आशुतोष के मित्र का नाम क्या है? - aashutosh ke mitr ka naam kya hai?

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आपका प्रश्न है आशुतोष का अर्थ क्या है देखे आपको बताता हूं कि आशुतोष का अर्थ है तुरंत प्रसन्न होने वाला धन्यवाद

aapka prashna hai ashutosh ka arth kya hai dekhe aapko batata hoon ki ashutosh ka arth hai turant prasann hone vala dhanyavad

आपका प्रश्न है आशुतोष का अर्थ क्या है देखे आपको बताता हूं कि आशुतोष का अर्थ है तुरंत प्रसन

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आशुतोष के मित्र का नाम क्या है? - aashutosh ke mitr ka naam kya hai?
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आशुतोष के मित्र का नाम क्या है? - aashutosh ke mitr ka naam kya hai?

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मेष राशि : आपका दिन उत्तम रहेगा। आज आपके धैर्य का आस-पास के लोगों पर सकारात्मक असर होगा इस असर से आपके शत्रु भी आपसे मित्र की तरह व्यवहार करने की कोशिश करेगे। आज का दिन आपके लिए बहुत ही शुभ है क्योंकि काफी दिनों से आपके आर्थिक मामलों में जो परेशानी चल रही थी वो आज जीवनसाथी की मदद से हल हो जाएगी, साथ ही संतान से गुड न्यूज़ भी मिलने के भी आसार नजर आ रहे हैं इससे आपका मन प्रसन्नता से खिल उठेगा। आज किसी नई योजना से आपको सफलता मिल सकती है।

वृष राशि : आपका दिन लाभदायक रहेगा। आज सूर्य को जल देने से आपका मनोबल बढे़गा जिससे कार्यक्षेत्र में जल्द ही आपकी पदोन्नति भी हो सकती है। आपकी आर्थिक स्थिति पहले से बहुत मज़बूत होगी किन्तु खर्चों में भी कोई कमी नहीं होगी यह भी संभव है कि आपका कोई घनिष्ठ मित्र आपसे लम्बी धन राशी उधार मांग सकता है सोच समझकर निर्णय लेना होगा क्योंकि उधार देने के लिए आज का दिन थोड़ा माध्यम है।

मिथुन राशि : आपका दिन खुशहाल रहेगा। आज आप उन चीजों को महत्व दें जो सच में आपके लिए महत्वपूर्ण हैं इधर उधर की बातों पर ध्यान लगाने से लक्ष्य हासिल नही होगा, सोच समझकर लक्ष्य निर्धारित करें और उस पर मजबूती से अमल करें तो आपके लिए कुछ अच्छा साबित हो सकता है।आपको अपने परिवार, दोस्तों और काम के बीच संतुलन बनाना चाहिए जिससे आपको समय मिल सके। आज आपके घर रिश्ते की बात के लिए लोग आ सकते है लेकिन बात फाईनल होने में अभी कुछ समय और लग सकता है।

कर्क राशि :आपका दिन कॉन्फिडेंस से भरा रहेगा। आज आप निजी स्तर पर स्फूर्ति से भरे रहेंगे और सामाजिक उत्सवों पर नए मित्र भी बनाएँगे इन उत्सवों पर जाने से आपकी दिनचर्या में बेहतर परिवर्तन आएगा और आप काफी खुशमिजाज़ भी रहेगे। बीते दिनों में किए गए निवेश आपको आज लाभ दे सकता हैं। आज आप ऐसी जगह पैसा लगायेंगे जहां से फायदा मिलने का बहुत सौलिड चांस नजर आ रहा है। आज खरीदी-बिक्री और जमीन-जायदाद के लिहाज से भी।

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पटना : करिके गवनवा, भवनवा में छोड़ि कर, अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ, अंखिया से दिन भर, गिरे लोर ढर-ढर, बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ। इन गीतों को सुनकर बिहार के ग्रामीण इलाकों में कभी थके हारे मजदूरों के चेहरे पर रौनक सी आ जाती थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले लोक गायक, संगीतकार और नाट्यकर्मी भिखारी ठाकुर की। बिहार के सारण जिले में 18 दिसबंबर 1887 को पैदा हुए भिखारी ठाकुर एक सार्थक लोक कलाकार थे। उन्होंने सामाजिक समस्याओं और मुद्दों पर बोल-चाल की भाषा में गीतों की रचना की। उसे गाया और मंच पर जीवंत किया। आज भिखारी ठाकुर की जयंती है। 10 जुलाई 1971 को अंतिम सांस लेने वाले भिखारी ठाकुर पर वरिष्ठ लेखक संजीव ने एक उपन्यास 'सूत्रधार' की रचना भी की है। अपनी जयंती के दिन भिखारी ठाकुर ट्वीटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। उनकी जयंती पर उन्हें याद करते हुए सोशल मीडिया पर ईटी नाउ के एंकर प्रशांत पांडेय कहते हैं भोजपुरी गीत संगीत और लोकनाट्य के अनूठे सूत्रधार भिखारी ठाकुर की जयंती है। भिखारी ठाकुर को महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने 'भोजपुरी का शेक्सपीयर' कहा था।

'भिखारी होना बड़ी बात'

भिखारी ठाकुर के बारे में लोक गायक विष्णु ओझा कहते हैं कि देखिए भोजपुरी में माटी से जुड़े हुए कलाकार रहे भिखारी ठाकुर। बाद के दिनों में कई लोगों ने उनकी नकल करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी कामयाब नहीं हो पाया। महेंद्र मिश्र और भिखारी ठाकुर भोजपुरिया माटी की शान हैं। विष्णु ओझा ने भोजपुरी के शेक्सपियर को आधुनिक शिक्षा पाठ्यक्रम में लाने की मांग की। उन्होंने कहा कि भिखारी ठाकुर को लेकर राजकीय लोक संगीत कार्यक्रम और सम्मान समारोह का आयोजन होना चाहिए। भिखारी ठाकुर विरह वेदना, बेटी विदाई और सामाजिक समस्याओं के ताने-बाने को लोक संगीत में पिरो देते थे। उनकी खासियत ये थी कि वे हमेशा सामाजिक मुद्दों में अपना संगीत ढूंढ़ते थे। भिखारी ठाकुर को अब लोग भूल चुके हैं। हालांकि, आज भी जब भी भोजपुरी की चर्चा होती है। भिखारी ठाकुर की चर्चा जरूर होती है। विष्णु ओझा ने वर्तमान में भोजपुरी की स्थिति पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने आशा व्यक्त की और कहा कि आने वाले दिनों में लोग भोजपुरी भाषा की मिठास को बरकरार रखते हुए संगीत की रचना करें, तो ज्यादा बेहतर है। विष्णु ओझा बिहार के जाने-माने लोक संगीतकार हैं। इनके गाये भोजपुरी गीत खासे पसंद किये जाते हैं।


गरीबी में दिन कटे

शिक्षा की रोशनी से दूर, मजबूरी, मुफलिसी और गरीबी के साथ अपमान का घूट पीकर भिखारी ठाकुर ने अपने को जिस तरह भोजपुरी के शेक्सपियर तक पहुंचाया। उस कालखंड की कहानी बड़ी रोचक है। अध्ययन से पता चला कि नाटक और नचनिया बने भिखारी ठाकुर की स्थिति भी कमोवेश वही रही, जो समाज से बिलग चलकर अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है। उन्हें शुरू में कुछ लोगों से इज्जत मिली, तो कुछ ने ‘भिखरिया’ कहकर अपमानित किया। प्रसिद्ध लेखकर संजीव ने भिखारी ठाकुर के जीवन पर बहुचर्चित उपन्यास ‘सूत्रधार’ लिखा है। उनके शोध बताते हैं कि जन्म से भिखारी ठाकुर आभाव में अपनी जिंदगी घसीटते रहे। पिता दलसिंगार ठाकुर ने जब पढ़ने को स्कूल भेजा, तब काफी दिनों बाद तक भिखारी ठाकुर को ‘राम गति, देहूं सुमति’ लिखने नहीं आया। जब वे स्कूल पहुंचते, तो उस समय के माट साहब उनसे नाई वाला काम लेने लगते।


घर से बाहर निकले

'सूत्रधार' में चर्चा है कि मास्टर लोग भिखारी ठाकुर से कहते कि पढ़ लिखकर क्या करेगा, आखिर जवान होकर हाथ में उस्तरा ही पकड़ना है। अबहिए से पैरैटिस कर ले बचवा। भिखारी ठाकुर को स्कूल में मन नहीं लगा और वे भैंसों के साथ चरवाही में भेज दिए गए। उन्हें पढ़ना नहीं आया, लेकिन उसकी जरूरत उन्हें महसूस जरूर हुई। कोई पत्र पढ़ना होता, तो वे मित्र भगवान साह के पास जाते और कहते कि हमरो के पढ़े सिखा द। 'सूत्रधार' में चर्चा है कि भिखारी ठाकुर तीस साल की उम्र में रोजी रोटी के लिए परदेश पहुंचे। उस समय का परदेश यानी कोलकाता। उनके एक रिश्तेदार मेदनीपुर जिला में रहते थे, उस जिले के शहर खड़गपुर, जिसका रेलवे प्लेटफार्म विश्व में सबसे लंबा है। वहां जमीन पर बैठकर नाईगिरी करने वाले की जमात में जम गए। रात में खाली होने के बाद वे रामायण का अध्ययन करते। वहीं पर उनके पड़ोसी रामानंद सिंह ने उन्हें सलीके से जीने और लिखने की प्रेरणा दी। उसके बाद कलाकार मन वाले भिखारी ने भोजपुरी की संस्कृति में क्रांति का अध्याय लिखना शुरू किया।


दहेज लोभियों पर प्रहार
भिखारी ठाकुर ने प्रचलित नाटकों से अलग उन्होंने स्वयं नाटक लिखे, जिसे वे ‘नाच’ या ‘तमासा’ कहते थे, जिनमें समाज के तलछट के लोगों के सुख-दुख, आशा-आकांक्षा का चित्रण होता था। ‘बिरहा बहार’ तुलसीकृत रामचरितमानस की तर्ज पर लिखा हुआ ‘धोबी-धोबिन’ का सांगीतिक वार्तालाप था। उन दिनों दहेज से तंग आकर किशोरियों की शादी बूढ़े या अनमेल वरों के साथ कर दी जाती थी। यह भिखारी का ही कलेजा था, जिसने इनके प्रतिकार में ‘बेटी वियोग’ जैसा मर्मांतक नाटक लिखा। ‘बेटी बेचवा’ के नाम से ख्यात यह नाटक उन दिनों भोजपुर अंचल में इतना लोकप्रिय था कि कई जगहों पर बेटियों ने शादी करने से मना कर दिया, कई जगहों पर गांव वालों ने ही वरों को खदेड़ दिया। भिखारी ठाकुर ने इसी दौरान भोजपुरी में दहेज लोभियों और दुल्हा पर व्यंग्य करते हुए एक गीत लिखा। चलनी के चालल दुलहा सूप के फटकारल हे, दिअका के लागल बर दुआरे बाजा बाजल हे। आंवा के पाकल दुलहा झांवा के झारल हे, कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे। सासु का अंखिया में अन्हवट बा छावल हे, आइ कs देखऽ बर के पान चभुलावल हे।आम लेखा पाकल दुलहा गांव के निकालल हे, अइसन बकलोल बर चटक देवा का भावल हे। मउरी लगावल दुलहा, जामा पहिरावल हे, कहत ‘भिखारी’ हवन राम के बनावल हे।


भोजपुरी के 'भिखारी'
फार्रवर्ड प्रेस पत्रिका में भिखारी ठाकुर के बारे में प्रकाशित संस्मरण में चर्चा है कि 1964 में धनबाद जिले के कुमारधुवी अंचल में प्रदर्शन के दौरान हजारीबाग जिले के पांच सौ मजदूर रोते हुए उठ खड़े हुए। उन्होंने शिव जी के मंदिर में जाकर सामूहिक शपथ ली कि आज से बेटी नहीं बेचेंगे। यह घटना लायकडीह कोलियरी की थी। भिखारी ठाकुर ने अपने नाच और उसके प्रदर्शनों से समाज में प्रवासियों, बेटियों, विधवाओं, वृद्धों व दलित-पिछड़ों की पीड़ा को जुबान दी। पिटाई और प्रताड़ना तक का जोखिम उठाया। मना करने के बावजूद लोग भिखारी का नाटक देखने जाते। संक्रमण और संधान के घटना बहुल इस युग में गंवई चेतना का भी एक उभार आया था। साहित्य, कला और संस्कृति में इस गंवई चेतना ने कतिपय ऐसे स्थलों को भी अपना उपजीव्य बनाया, जहां हिन्दी साहित्य की नजर तक न गई थी। गदर के शौर्य, भारतीयों की दुर्दशा और गिरमिटिया मजदूरों की हूक तत्कालीन भोजपुरी और अवधी तथा अन्य बोलियों में ही सुलभ है, हिन्दी में नहीं. भिखारी इसी युग की भोजपुरी भाषी जनता के सबसे चहेते, सबसे जगमगाते सितारे थे।

आशुतोष के मित्र का नाम क्या?

➲ 'पाजेब' कहानी में आशुतोष के मित्र का नाम 'छन्नू' था।

बुआ आशुतोष के लिए क्या लाई थी?

उत्तर: आशुतोष की बुआ उसके लिए मिठाई और केले लाई थी