अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी प्रभु जी तुम चंदन हम पानी? - ab kaise chhoote raam naam rat laagee prabhu jee tum chandan ham paanee?

bhajan: ab kaise chhute ram rat lagi

Listen to bhajan by Shri V N S 'Bhola'

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी ।

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा ।

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती ।

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।

प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भगति करै रैदासा ।

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अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी ।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती ।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा ।

है प्रभु ! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है ? अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ । जो चंदन और पानी में होता है । चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है , उसी प्रकार मेरे तन मन में तुम्हारा प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है । आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो , मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ । जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है , उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ । जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ । है प्रभु ! तुम दीपक हो , मैं तुम्हारी बाती के समान सदा तुम्हारे प्रेम जलता हूँ । प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो । मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ । तुम्हारा और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है । जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है , उसी तरह मैं तुम्हारे संपर्क से शुद्ध –बुद्ध हो जाता हूँ । हे प्रभु ! तुम स्वामी हो मैं तुम्हारा दास हूँ ।

इस पद में कवि ने उस अवस्था का वर्णन किया है जब भक्त पर भक्ति का रंग पूरी तरह से चढ़ जाता है। एक बार जब भगवान की भक्ति का रंग भक्त पर चढ़ जाता है तो वह फिर कभी नहीं छूटता। कवि का कहना है कि यदि भगवान चंदन हैं तो भक्त पानी है। जैसे चंदन की सुगंध पानी के बूँद-बूँद में समा जाती है वैसे ही प्रभु की भक्ति भक्त के अंग-अंग में समा जाती है। यदि भगवान बादल हैं तो भक्त किसी मोर के समान है जो बादल को देखते ही नाचने लगता है। यदि भगवान चाँद हैं तो भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो अपलक चाँद को निहारता रहता है। यदि भगवान दीपक हैं तो भक्त उसकी बाती की तरह है जो दिन रात रोशनी देती रहती है। यदि भगवान मोती हैं तो भक्त धागे के समान है जिसमें मोतियाँ पिरोई जाती हैं। उसका असर ऐसा होता है जैसे सोने में सुहागा डाला गया हो अर्थात उसकी सुंदरता और भी निखर जाती है।

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढ़रै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥

इस पद में कवि भगवान की महिमा का बखान कर रहे हैं। भगवान गरीबों का उद्धार करने वाले हैं उनके माथे पर छत्र शोभा दे रहा है। भगवान में इतनी शक्ति है कि वे कुछ भी कर सकते हैं और उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है। भगवान के छूने से अछूत मनुष्य का भी कल्याण हो जाता है। भगवान अपने प्रताप से किसी नीच को भी ऊँचा बना सकते हैं। जिस भगवान ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार किया था वही बाकी लोगों का भी उद्धार करेंगे।

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अब कैसे छुटै राम रट लागी

अब कैसे छुटै राम रट लागी॥टेक॥

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग−अंग बास समानी।

प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितबत चंद चकोरा।

प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति जरै दिन राती।

प्रभु जी तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।

प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भगति करै रैदास॥

उस परमात्मा के नाम की रट हृदय से निकलती नहीं है। हे प्रभु, तुम चंदन हो और मैं पानी हूँ। जिस प्रकार पानी में चंदन के घिसे जाने पर पानी सुवासित हो जाता है, उसी प्रकार मैं भी आपका सान्निध्य पाकर चेतन हो गया हूँ। यदि आप बादल अथवा उपवन हैं तो मैं मोर हूँ; यदि आप चंद्रमा हैं तो मैं अनवरत देखने वाला चकोर पक्षी हूँ। यदि आप दीपक हैं तो मैं उसमें दिन−रात जलने वाली बाती की हूँ; यदि आप मोती हैं तो मैं उसमें डाले गए धागे के समान हूँ। हम दोनों का संबंध सोने में सुहागा है। हे परमात्मा! मैं (रैदास) आपकी ऐसी भक्ति चाहता हूँ! क्योंकि आप मेरे स्वामी हो और मैं आपका दास हूँ।

स्रोत :

  • पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 223)
  • रचनाकार : जगदीश शरण
  • प्रकाशन : साहित्य संस्थान
  • संस्करण : 2011

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अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी?

रैदास के चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित हैं। अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी । प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग- अँग बास समानी । प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा ।

कभी ने अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी क्यों कहा है?

रैदास को राम के नाम की रट लगी है। वह इस आदत को इसलिए नहीं छोड़ पा रहे हैं, क्योंकि वे अपने आराध्ये प्रभु के साथ मिलकर उसी तरह एकाकार हो गए हैं; जैसे-चंदन और पानी मिलकर एक-दूसरे के पूरक हो जाते हैं।