इसे सुनेंरोकेंइस कविता में कवि ने हमारे देश की आजादी से पहले की स्थिति और आजादी के बाद की स्थिति का चित्रण बड़ी गहरी अनुभूति के साथ किया है । जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष किया वे तो स्वतन्त्रता के पश्चात् अंधेरे में खो गए तथा वे लोग रोशनी में आ गए जो स्वार्थी एवं अवसरवादी थे । Show मनीष कुमारशोधार्थी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली; +91 956 088 3358'अंधेरे में' की मूल संवेदना अंधेरे में तो नहीं मगर विवादास्पद रही है। विवाद हुआ, अच्छा रहा। मुक्तिबोध के जीवनकाल में उनकी अन्य रचनाओं की भांति इस कृति का भी कोई नोटिस नहीं लिया गया था। उनकी मृत्यु के बाद उक्त कविता विचार-विमर्श के केंद्र में आकर यदि अब तक अन्यतम बनी हुई है तो इस संदर्भ में उन विवादों को आभारी हुआ जा सकता है। 'अंधेरे में' एक जटिल कवि की जटिल रचना है। पचास साल से अधिक समय बीत जाने पर भी यह कविता अनेक संदर्भों में नयी कविता की महत्त्वपूर्ण कुंजी बनी हुई है। प्रकारांतर से 'अंधेरे में' की मूल संवेदना पर विमर्श करना नयी कविता की मूल संवेदना पर विचार करने जैसा कहा जा सकता है। कुछ प्रमुख आलोचकों के महत्त्वपूर्ण मत संक्षेप में देखें तो-
'अंधेरे में' अंधेरे से उजाले की साम्यवादी काव्य-यात्रा है। यह कविता सभ्यता-समीक्षक मुक्तिबोध के निज व्यक्तित्व (जो अपनी निजता में लगभग समूचे देश का प्रतिनिधित्व भी है) का आपरेशन है। क्रमानुसार मुक्तिबोध के व्यक्तित्व का कविता में विस्तार होता है। कविता में खंडित नायक की अवस्थिति वास्तव में आत्ममंथन से उपजी है। यह मध्यमवर्गीय द्वंद्व से संबंधित है। जिस 'ज्ञानात्मक संवेदन' और 'संवेदनात्मक ज्ञान' की बात मुक्तिबोध ने की थी उसकी एक झलक यहां भी दृष्टव्य है। मुक्तिबोध रूमानी मार्क्सवादी कवियों की भांति मध्यमवर्ग की कोरी आलोचना नहीं करते। हर बार ज़रूरी नहीं कि कोई वृहद संवेदना छोटी संवेदनाओं का अतिक्रमण करके ही अपना आकार ले। मुक्तिबोध अपने समाजवादी सपने में पारिवारिक संबंधशीलता को आड़े नहीं आने देना चाहते- कविता के अंत में चित्रित यह सुकोमल भावना भी इसका विस्तार है- "मानो कि उस क्षण/ अतिशय मृदु किन्हीं बांहों ने आकर/ कस लिया था मुझको/ उस स्वप्न-स्पर्श की, चुंबन-घटना की याद आ रही है,/ याद आ रही है!!"
इस अभिव्यक्ति को बुद्धि विलास या स्वान्त: सुखाय से संबंधित शुद्ध साहित्यिक कृति मानना भूल है। मुक्तिबोध स्वयं साहित्य पर ज़रूरत से अधिक विश्वास करने को मूर्खतापूर्ण मानते थे। ऐसे में इस अभिव्यक्ति के सामाजिक अर्थ को समझे बिना इसकी व्याख्या करना मुक्तिबोध के साथ अन्याय है। अपनी कविता 'भूल गलती' के अंतर्गत मुक्तिबोध ने अपनी इस अभिव्यक्ति को और अधिक स्पष्ट किया है-
सेतु, अगस्त 2020 अंधेरे में कविता का मूल भाव क्या है?इस कविता में कवि ने स्वतंत्रता से पहले की और स्वतंत्रता के बाद की स्थिति का चित्रण किया है। इसमें यह दिखाया गया है कि जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए लड़ते-लड़ते अपने प्राण दे दिये, वे लोग स्वतंत्रता के बाद किसी 'अंधेरे में' खो गये और जो लोग स्वार्थी और अवसरवादी थे, वे प्रकाश में आ गये।
अँधेरे में कविता के रचनाकार कौन है?गजानन माधव मुक्तिबोधअँधेरे में / लेखकnull
अंधेरे में कविता का रचना शिल्प क्या है?जो इस प्रकार हैं- 'अंधेरे में' कविता में फैंटेसी शिल्प का प्रयोग किया गया है। अथार्त इस कविता की सारी घटनाएँ किसी स्वप्न कथा की तरह चलता है। कहीं-कहीं तो सपने के भीतर एक और सपना चलने लगता है। बहुत सारी सम्भव और असम्भव घटनाओं का चित्रण कविता में किया गया है।
अंधेरे में कविता कब लिखी गई?यह डायरी 1963 की है यानी 'अंधेरे में' के रचनाकाल के लगभग आसपास की. यह वह समय और सामाजिक वातावरण था जिसने मुक्तिबोध की कविता को गहरे अंधेरे, धुंधले और धूसर रंग दिए.
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