(1) Show चालियउ उलगाणउ कातिग मास। (2) मगसिरियइ दिन छोटा जी होइ। (3) देषि सषी हिव लागउं छइ पोस। (4) माह मासइ सीय पडइ ठंठार। (5) फागुण फरहर्या कंपिया रूख। (6) चेत्र मासइ चतुरंगी हे नारि। (7) वइसाषइ धुर लूणिजइ धान। (8) देषि जेठाणी हिव लागउ छइ जेठ। (9) आसाढइ धुरि बाहुडया मेंह। (10) स्रावण बरसइ छइ छोटीय
धार। (11) भाद्रवइ बरसइ छइ गुहरि गंभीर। (12) आसोजइ धण मंडिया आस। राजमती ने कहा “चाकर बीसलदेव कार्तिक मास में गया। वह मंदिर घर तथा शयन गृह को छोड़ गया। वह अपनी चौपाल और चोखंडी (चार खंडों का राजभवन) छोड़ गया। तबसे उसके मार्ग में सिर दे रो-रोकर मैंने अपने नेत्र गँवा दिए; मेरी भूख जाती रही, और तृषा भी उचट गई। कहो न सखी! फिर नींद कैसे आवे? मार्गशीर्ष में दिन छोटा होने लगा है। हे सखी! मेरा पति कोई संदेश भी नहीं भेजता है। संदेशों पर मानो वज्रपात हो गया है। मार्ग में ऊँचे पर्वत और गहरी घाटियाँ पड़ती हैं। मेरा पति परदेश गया है। वहाँ से न चिट्ठी आती है, और न कोई उस मार्ग से जाता है। हे सखी! देखो, अब पौष लग गया है। इस मरणासन्न स्त्री को कोई दोष मत देना। मैं दुख में दग्ध होकर पंजर मात्र हो गई हूँ। धान भाता नहीं है; शिर का स्नान छोड़ दिया है; छाँह-धूप नहीं भी शरीर अनुभव नहीं करता है, देखते-देखते राजभवन श्मशान हो गया है। माघ मास में शरीर सुखाकर ठठरी कर देनेवाला शीत पड़ रहा है कि उससे वनखंड दग्ध होकर क्षार हो गया है। विरह में अपने दग्ध होने के साथ-साथ संसार दग्ध हुआ दिखाई पड़ रहा है। मेरी चोली के भीतर से भी शरीर दग्ध हो गया है; स्वामी के बिना स्त्री इस प्रकार दिखाई पड़ रही है। हे स्वामी! तुम ऊँट पलान करके अविलंब आओ। यौवन का छत्र उमड़ा हुआ है। मेरी कनक-काया में तुम अपनी आन फेर जाओ। फाल्गुन फर-फर कर रहा है जिससे वृक्ष काँपने लगे है। चित में मैं चौंक गई हूँ, रात में न नींद आती है और न भूख लगती है। दिन सुंदर होने लगा है, और ऋतु बदल गई है, किंतु मुझे नादान राजा आ कर नहीं देखता है। हे सखी! जीवित रहूँगी तभी तो यौवन का सुख भी होगा। चारों दिशाओं में वायु फरहरा रही है, और वह लता-वृक्षादि में से होकर वेग से बहने के कारण बज रही है। चैत्र मास में नारियाँ रंग-बिरंगे वस्त्रों से सुसज्जित हो चौरंगी हो गई हैं, किंतु मैं प्रियतम के बिना किसके सहारे जीवित रहूँ? मेरी कंचुकी भीग जाती है और लोग हँसते हैं। सात सहेलियाँ आकर बैठी हुई हैं। उनके दाँत कौड़ियों जैसे चमकाए हुए और नाखून रंगे हुए हैं। वे कहती हैं कि सखी! चलो। होली खेलने के लिए हम लोग चलें। जो यौवन आज है, वह कल नहीं रहेगा। मैं कहती हूँ, मैं होली खेलने किस प्रकार जाऊँ? मैं तो चाकर की स्त्री हूँ; तुम मेरी उँगली पकड़कर बाँह पकड़ती हो। धुर वैशाख में धान काटा जाता है; पानी शीतल और पान पका होता है। कनक-काया रूपी वृक्ष को जल के घड़ों से तृप्त किया जाता है। मूर्ख राजा मेरा सार नहीं जानता है। वह हाथ में घोड़े की लगाम और चाबुक लेकर खड़ा हुआ राज-द्वार पर सेवा करता है। हे जिठानी! देख, यह जेठ लग गया है। मुँह कुम्हला गया है और ओष्ठ सूख गए हैं। इस माह के दिन बहुत गर्म होते हैं। मुझ स्त्री के पैर धरती पर नहीं पड़ पाते हैं; आग जल रही है और स्त्री राजमती उसमें जलती है। हंस सरोवर छोड़कर चले गए हैं। धुर आषाढ़ में मेघ लौट आया है। नाले खल-भल करके बहने लग गए हैं, और धूल बह गई है। यद्यपि यह आषाढ़ है, किंतु मेरा स्वामी नहीं आ रहा है। मेघ प्रमत्त होकर मंदगलित हाथी की भाँति आकाश में पैर रख रहा है, वह सद्य: मदोन्मत की भाँति ढुलक रहा है। चाकरी में मेरा पति पराए घर में क्या कर रहा है। श्रावण छोटी धारो में बरसता है। ऐसे किनमिन के दिनों में प्रियतम के बिना किसके सहारे जीवित रहा जाए? सखियाँ और समवयस्काएँ कजली खेलती हैं। कमेड़ी पक्षी ने आशा लगा रक्खी है। पपीहा ‘पिउ-पिउ’ करता है। मुझे श्रावण मास अणखावना (बुरा) लगता है। भाद्रपद भारी वर्षा कर रहा है। जल-थल-मही-तल में सब जगह जल भर गया है, मानों सागर ही उलट पड़ा हो। रात्रि अंधकारमय होती है, बिजली चमक उठती है। बादल जल-भार के कारण धरती से मिला हुआ है। (ऐसे समय में भी) नादान राजा आकर मेरी दशा नहीं देखता है। हे स्वामी! एक तो मैं स्त्री हूँ और दूसरे अकेली हूँ। यह दोनों दुःख, नाल्ह कहता है, कैसे सहन किए जाएँ? आश्विन में राजमती ने आशा लगाई। उसने राजभवन और शयन गृह को सजाया, उसने चौपाल और चौखंडी की सफ़ेदी कराई; उस स्त्री ने ड्योढ़ी तथा परकोटे की भी सफ़ेदी कराई। गवाक्षों पर चढ़कर वह हर्षित फिर रही थी कि शायद उसका मूढ़ पति घर आ जाएगा। बारहमासा काव्य रचना में जायसी ने किसका वर्णन किया है?'बारहमासा' मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य "पद्मावत" के "नागमती वियोग खंड" का एक अंश है ! इस खंड में राजा रत्नसेन के वियोग में संतृप्त रानी नागमती की विरह व्यथा का वर्णन किया गया है !
बारहमासा गीतों में किसका वर्णन मिलता है?वर्ष भर के बारहमास में नायक - नायिका की श्रृंगारिक विरह और मिलन की क्रियाओं के चित्रण को बारहमासा कहते हैं। इसके पद्य या गीत में बारहों महीने की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन किसी विरही या विरहनी के मुख से कराया जाता है।
बारहमासा के लेखक कौन है?मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत में वर्णित बारहमासा हिन्दी का सम्भवतः प्रथम बारहमासा है। वर्ष भर के बारह मास में नायक-नायिका की शृंगारिक विरह एवं मिलन की क्रियाओं के चित्रण को बारहमासा नाम से सम्बोधित किया जाता है।
नागमती पवन से क्या संदेश भेजती है?(घ) नागमती अपने मन के दुख को व्यक्त करते हुए कहती है कि मैं स्वयं के तन को विरहग्नि में जलाकर भस्म कर देना चाहती हूँ। इस तरह मेरा शरीर राख का रूप धारण कर लेगा और पवन मेरे शरीर को उड़ाकर मेरे प्रियतम के रास्ते में बिखेर देगी। इस प्रकार मार्ग में चलते हुए अपने पति का में राख रूप में स्पर्श पा जाऊँगी।
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