भारत की सबसे पुरानी मूर्ति कौन सी है? - bhaarat kee sabase puraanee moorti kaun see hai?

ताजातरीन खबर ये है कि बिहार से 20 साल पहले चोरी की गई एक बुद्ध की मूर्ति इटली में मिली. वहां से उसे वापस लाया जा रहा है. पिछले सालों में लगातार ये खबरें आ रही हैं कि देश से जो बहुमूल्य प्रतिमाएं चोरी चुपके बाहर भेजी गईं थीं, वो यहां तो वापस देश में आ चुकी हैं या फिर उनके आने का रास्ता साफ हो रहा है.

ऐसा कैसे हो रहा है. दरअसल अंग्रेजों के भारत में आने के बाद से हमारे देश से सैकड़ों-हजारों बहुमूल्य प्रतिमाएं चोरी करके विदेशों में मोटी कीमत पर बेचने का सिलसिला चलता रहा है. कुछ मूर्तियों और प्रतिमाएं विदेशों के सरकारी संग्रहालयों में देखी गईं तो कुछ ऐसी भी हैं जो विदेश में लोगों के प्राइवेट संग्रह में हैं, जिनका पता चलना मुश्किल है.

इनमें से कुछ कलाकृतियां तो 2000 साल पुरानी हैं. हालांकि बहुत सी जो प्रतिमाएं पिछले सालों में लौटी हैं, वो धार्मिक भी हैं और गैर धार्मिक भी. लौटाई गई वस्तुओं में धार्मिक मूर्तियां, कांसे और टैराकोटा की बनी प्राच्य वस्तुएं शामिल हैं. इन्हें भारत के सबसे संपन्न धार्मिक स्थलों से लूटा और चुराया गया.

लौटाई गई कलाकृतियों में चोल काल -850 ईसा पश्चात से 1250 ईसा पश्चात के हिंदू कवि संत माणिककविचावाकर की एक मूर्ति भी है. इसे चेन्नई के सिवान मंदिर से चुराया गया था. इसकी कीमत 15 लाख डॉलर है. इसी में भगवान गणेश की कांसे की प्रतिमा भी है जो 1000 साल पुरानी बताई जाती है.

जब कुछ साल पहले जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल कुछ समय पहले भारत आईं तो उन्होंने दसवीं सदी की मां दुर्गा के महिषासुर मर्दनी अवतार वाली प्रतिमा लौटाने की घोषणा की थी. ये मूर्ति जम्मू-कश्मीर के पुलवामा से 1990 के दशक में गायब हो गई थी. फिर जर्मनी के स्टुटगार्ड के लिंडन म्युजियम में पाई गई.

भारत की सबसे पुरानी मूर्ति कौन सी है? - bhaarat kee sabase puraanee moorti kaun see hai?
एक अनुमान के अनुसार भारत से एक लाख से ज्यादा प्रतिमाएं, मूर्तियां और धरोहरें चोरी के जरिए विदेश भेजी जा चुकी हैं. बड़े रैकेट इस धंधे को आपरेट करते हैं.

दुनियाभर में भारत से चोरी गईं 01 लाख से ज्यादा मूर्तियां और धरोहर
अंदाज है कि पिछले कुछ दशकों में देश से एक लाख से ज्यादा प्राचीन धरोहरें, जिसमें मूर्तियां और कलाकृतियां चोरी करके चुपचाप विदेश भेज दी गईं. दुनियाभर में भारत की ऐसी चोरी की मूर्तियां फैली हुई हैं. अब कुछ सालों से भारत गंभीरता से उन्हें वापस पाने की कोशिश कर रहा है. इसमें सफलता भी मिल रही है. हालांकि इसकी कानूनी लड़ाई खासी लंबी होती है.

अब देशों के नए कानून बन रहे हैं मददगार
कुछ देशों में अब ये कानून बन चुके हैं कि अगर ये साबित हो जाता है कि मूर्ति चोरी की है तो उसे तुरंत संबंधित देश को लौटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है. तमाम यूरोपीय देश, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में ये कानून सख्ती से लागू किया जा चुका है. अब सरकार के साथ कुछ प्राचीन धरोहर प्रेमियों के संघर्ष से जागरुकता बढ़ रही है.

कुछ दुर्लभ मूर्तियां और धरोहरें यूपीए के शासनकाल में लौटाईं गईं. एनडीए के सत्ता में आने के बाद इस प्रक्रिया में और तेजी आई. अमेरिकी एचएसआइ डिपार्टमेंट ने इस बात की तसदीक की है कि हर साल सैकड़ों भारतीय कलाकृतियां चोरी करके अमेरिकी बाजार में ले जाई जाती हैं.

मनकोडी बताते हैं, “यह प्रधानमंत्री कम से कम जवाब तो देते हैं. पहले तो मेरी चिट्ठियों पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं होती थी. अब कोई उस पर कार्रवाई तो करता है.” हालांकि यह कार्रवाई विदेश कार्यालय से स्थानीय राजदूत के नाम महज तीन लाइन की चिट्ठी के रूप में ही सीमित है. उनका कहना है, “आप सिर्फ तीन लाइन की चिट्ठी से डेढ़ करोड़ डॉलर की मूर्ति वापस हासिल नहीं कर सकते. आपको उसके लिए पूरे मकसद के साथ कोशिश करनी होती है.” एचएसआइ ने इस बात की पुष्टि की है कि हर साल सैकड़ों भारतीय कलाकृतियां चोरी करके अमेरिकी बाजार में ले जाई जाती हैं. उन्हें लेकर सरकार कुछ नहीं करती और न ही उन्हें वापस लाने के लिए समन्वित कोशिशें की जाती हैं.

जब अटरू में गडगछ मंदिर की डीसिल्टिंग के समय दो मूर्तियां चुरा ली गई थीं तो मनकोडी ने “प्लंडर्ड पास्ट” नाम से वेबसाइट लॉन्च की थी. वे उन कुछ मुट्ठीभर स्वतंत्र सलाहकारों में शामिल हैं जो भारतीय पुरातात्विक सर्वे (एएसआइ), एचएसआइ और इंटरपोल के साथ मिलकर भारत की चोरी गई कला को वापस लाने का काम कर रहे हैं. मनकोडी के अलावा “पोएट्री इन स्टोन” नाम से वेबसाइट चलाने वाले सिंगापुर स्थित ब्लॉगर एस. विजय कुमार ने कथित तौर पर दस करोड़ डॉलर का तस्करी रैकेट चलाने वाले न्यूयॉर्क स्थित गैलरी संचालक सुभाष कपूर की 2011 में गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाई थी. ग्लासगो यूनिवर्सिटी में लैटिन अमेरिकी कला की चोरी से जुड़े मामलों की विशेषज्ञ डोना येट्स भी बड़ी मेहनत से अपनी वेबसाइट “स्टोलन गुड्स” के एक हिस्से पर भारत से चोरी गई कलाकृतियों की मैपिंग का काम करती हैं. इन्हीं सलाहकारों की मदद से भारत की चोरी गई मूर्तियों की वापसी हाल के समय में बढ़ी है, भले ही यह अब भी बहुत छोटी संख्या में हो.

मई के मध्य में, लंदन के एक आर्ट डीलर जॉन एस्केनाजी ने मैनहटन में मैत्रेय गैलरी के मालिक नायर होमसी पर भैरव की 9वीं सदी की 29 इंच ऊंची मूर्ति की मौलिकता को छिपाने का मामला न्यूयॉर्क के कोर्ट में दायर किया. अब यह माना जा रहा है कि उसे ओडिसा से लूटा गया था. संघीय जांचकर्ताओं का कहना है कि उसे सबसे पहले 2011 में न्यूयॉर्क में एशिया वीक में बेचा जाना था लेकिन उसे उस समय हटा लिया गया, जब होमसी को यह संकेत दिया गया कि वह चोरी की कलाकृति हो सकती है. होमसी ने फिर उसे 2013 में एस्केनाजी को उसकी कीमत को हताशा में 15,000 डॉलर कम करके 55,000 हजार डॉलर में बेच दिया. एस्केनाजी ने अपनी रकम वापस पाने, दंडात्मक जुर्माना वसूलने, कानूनी फीस पाने और सुरक्षा के लिए केस दायर किया. एचएसआइ की तरफ से आठ साल चली जांच का नतीजा इस साल मार्च में होमसी की 5,00,000 डॉलर की संपत्ति को फ्रीज करने के रूप में निकला. फिलहाल यह मामला बगैर किसी भारतीय जांच एजेंसी के दखल के चल रहा है.

2011 में यूनेस्को ने अनुमान लगाया था कि 1989 तक भारत से लगभग 50,000 कलाकृतियां चोरी कर ली गई थीं. बाद के दशकों में यह संख्या दो और तीन गुना ही हुई होगी. भारत में इस तरह की कोई राष्ट्रीय गणना नहीं हुई है. 2014 में मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के बाद जब नटराज की चोरी गई मूर्ति भारत को प्रत्यावर्तित की गई थी तो कला अपराधविशेषज्ञ डंकन चैपल ने द ऑस्ट्रेलियन में एक लेख में अनुमान लगाया था कि जैसे-जैसे दुनिया में टकराव के इलाके बढ़ेंगे, कला की चोरियों में भी उतना ही इजाफा होगा. इंटरपोल ने भी इस धारणा की पुष्टि की जिसने इस साल मार्च में इस बात पर विचार करने के लिए बैठक बुलाई थी कि किस तरह आइएसआइएस विश्व विरासत स्थलों को निशाना बना रहा है. इंटरपोल के महासचिव यर्गन स्टॉक ने बैठक में कहा, “कला का काला बाजार भी अब ड्रग्स, हथियार और जाली सामान जितना आकर्षक हो गया है. प्राचीन कलाकृतियां आतंकवादी समूहों के लिए भी अब संपदा का बड़ा संभावित स्रोत हो गई हैं.” यूनेस्को का कहना है कि सांस्कृतिक विरासत की तस्करी अब दुनिया में ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के बाद तीसरा सबसे बड़ा अवैध व्यापार हो गई है.

इसके बावजूद भारत में मूर्तियों की चोरी पर निगाह रखने वाली सिर्फ एक जांच इकाई है-तमिलनाडु स्टोल आइडल्स यूनिट. आर्थिक अपराध शाखा के अधीन कुल 12 लोगों की इस टीम का नेतृत्व प्रतीप फिलिप कर रहे हैं. कपूर की गिरफ्तारी में निर्णायक साक्ष्य इसी टीम ने जुटाया था. यूं तो जब भी कोई मूर्ति चोरी जाती है तो एएसआइ नियम से हर बार एफआइआर दर्ज कराता है. खुदाई की सभी जगहें दूरदराज में किसी ग्रामीण पुलिस थाने के अधीन आती हैं, वहीं इन मामलों का खात्मा भी हो जाता है. फिर न तो ऐसे मामलों का कोई व्यापक राष्ट्रीय डाटाबेस है, न ही ऐसे मामलों की आगे निगरानी के लिए कोई व्यक्ति या संस्था जिम्मेदार है. 2007 में शुरू किया गया स्मारकों और प्राचीन वस्तुओं पर राष्ट्रीय मिशन एक अधूरी परियोजना बनकर रह गया है और वह भारत की कुल पहचानी गई लगभग आठ लाख प्राचीन कलाकृतियों में से पांच लाख की संख्या से आगे नहीं बढ़ पा रहा है. सूत्र बताते हैं कि यह मिशन कोई प्राथमिक जांच नहीं करता, बस इनटैक जैसे संगठनों या निजी कर्मियों के आंकड़ों पर निर्भर रहता है. मिशन निदेशक मीना गौतम ने इस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

एएसआइ का विचार है कि इस तस्करी का मुकाबला करने के लिए व्यापार को कानूनी जामा पहनाया दिया जाए और इसके लिए 1972 के कलाकृति कानून में संशोधन किया जाए. आलोचक इसे सिर्फ उस संस्था का बहाना मानते हैं जिसने इस लूट को रोकने के लिए कुछ नहीं किया. लिहाजा अब यह काम सिर्फ ब्लॉगर्स के जिम्मे रह गया है जो दरअसल किसी सरकार के नियुक्त संस्कृति दस्ते का होना चाहिए था. संस्कृति मंत्रालय ने इस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और एएसआइ के पास जाने को कहा. एएसआइ ने इस रिपोर्ट के प्रेस में जाने तक कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की थी.

डोना येट्स का ध्यान भारत की ओर उस समय गया जब वे 2013 में फुलब्राइट स्कॉलरशिप पर बोलिविया में काम कर रही थीं. बोलिविया की संरक्षक संत द वर्जिन ऑफ कोपाकैबेना और देश के सबसे पवित्र स्थल को लूट लिया गया था. उन्होंने कहा, “मुझे हैरत हुई, आखिर कौन वर्जिन ऑफ कोपाकैबेना का ताज खरीदेगा? इसके जवाब में मेरा ध्यान ऐसी खास जगहों पर गया, तब भारत मेरे जेहन में आया. आप सिर्फ भारतीय अंग्रेजी मीडिया ही देखें तो आपको कम से कम हर हफ्ते एक मूर्ति चोरी की घटना मिल जाएगी.”

येट्स कहती हैं, “हमें इसका अंदाजा लगाने के लिए पश्चिमी “एशियाई कला” संग्रहालयों या अंतरराष्ट्रीय संग्रहालयों में एशियाई संग्रहों पर निगाह डालनी चाहिए.” वे इस बात का पर्दाफाश करने में कि सुभाष कपूर की कुछ प्रमुख चोरी की कलाकृतियां कैसे-कैसे कहां पहुंचीं, विजय कुमार और अवैध कलाकृतियों के व्यापार पर काम करने वाले अमेरिकी रिपोर्टर जैसन फेल्श जैसे लोगों की भूमिका की ओर इशारा करती हैं. वे कहती हैं, “यहां जिस जानकारी को सामने लाया जा रहा है, वह भले ही बाजार के अत्यधिक उच्च स्तर से जुड़ी हो, पर एक सफल शुरुआत है.”

सिंगापुर में शिपिंग कंपनी के 40 वर्षीय जनरल मैनेजर कुमार ट्विटर पर इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट भी चलाते हैं. वे कहते हैं कि हर हफ्ते औसतन कम से कम एक भारतीय उन्हें मंदिर से चोरी की खबर भेजता है. कला में कुमार की रुचि कल्कि कृष्णामूर्ति के तमिल ऐतिहासिक उपन्यास पोन्नियिन सेल्वन को पढऩे से जागी. वे किताब में उल्लिखित स्थानों की यात्रा और उनके बारे में लिखने लगे. जल्द ही मूर्तियों की वापसी पर उनका ध्यान केंद्रित हो गया. “बिना किसी प्रामाणिक राष्ट्रीय अभिलेखागार और कला दस्ते के इस बात में कोई हैरत नहीं कि हम हर दशक में औसतन 10,000 वस्तुएं खो रहे हैं. यह औद्योगिक स्तर पर की जा रही लक्षित लूट है जिसमें भारतीय कला की बेहतरीन सामग्री को लूटा जा रहा है.”

कुमार गलत नहीं हैं. मुंबई में जोगेश्वरी का एक छुटभैया तस्कर विजय बांग्लादेश सीमा के पार सामान भेजता है. हम बांद्रा में एक मित्र के छोटे-से सेफ हाउस में मिलते हैं. उसका अपना काम मवेशियों से जुड़ा है लेकिन विजय कहता है कि सीमा पार सबसे ज्यादा और सबसे आसानी से जाने वाला सामान मूर्तियां हैं. भारत में कहीं की भी, किसी भी तरह की, मूर्ति के 5,000 रु. से लेकर लाखों रु. तक मिल जाते हैं.

इस संकट का सामना करने वालों में भारत अकेला नहीं है. 2014 में ग्लासगो यूनिवर्सिटी में येट्स की सहयोगियों सिमोन मैकेंजी और टेस डेविस ने एशिया के आपराधिक तस्करी नेटवर्क का सबसे पहला मूल्यांकन तैयार किया. इसमें उन्होंने कंबोडिया से बाहर आ रही हिंदू कलाकृतियों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया. स्रोत से लेकर बाजार तक की इस पहली मैपिंग में संगठित अपराध नेटवर्क की भागीदारी, अवैध नेटवर्क के जरिए काम करने वाले दलालों की भूमिका के साथ ही इस बात की भी पड़ताल की गई कि कैसे कलाकृतियां दुनियाभर में सक्वमानित गैलरियों और लोगों तक पहुंच जाती हैं. इसको रोकने का एक ही तरीका है कि हर कृति का उपयुक्त दस्तावेज हो और सौदे में पारदर्शिता हो. यह पारदर्शिता न तो खरीदार और न ही विक्रेता रखने को तत्पर हैं.

भारत में सबसे पुरानी मूर्ति कौन सी है?

सबसे पुरानी मूर्तियां शहर में सबसे पुरानी मूर्ति कौन सी है, इसके बारे में कोई स्पष्ट इतिहास नहीं है। बताया जाता है कि बिरहाना रोड स्थित भारत माता मंदिर में स्थापित भारत माता की मूर्ति सबसे पुरानी है। यह मूर्ति आजादी से पहले की है।

सबसे पुरानी मूर्ति का नाम क्या है?

Venus of Hohle एक मानव आकृति को चित्रित करने वाली सबसे पुरानी मूर्ति है. ये विशाल हाथी दांत की मूर्ति जर्मनी में पाई गई थी. ये 5,500 साल पुराना काउहाइड मोकासिन अर्मेनिया की एक गुफा में पाया गया था.

देश की सबसे बड़ी मूर्ति कौन सी है?

दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, की है जो भारत के लौह पुरुष, सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति है. ... .
यह भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे पसंदीदा परियोजनाओं में से एक है. ... .
यह स्टैच्यू ऑफ यूनिटी वडोदरा शहर के पास सरदार सरोवर बांध के पार बनाई गई है..

दुनिया में सबसे ज्यादा मूर्ति किसकी है?

प्रश्न : विश्व में सबसे ज्यादा मूर्तियां किसकी है? उत्तर – विश्व में सबसे ज्यादा मूर्तियां गौतम बुद्ध की है।