भारतीय समाज के वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? - bhaarateey samaaj ke varn vyavastha se aap kya samajhate hain?

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Published in Journal

Year: Jan, 2019
Volume: 16 / Issue: 1
Pages: 67 - 70 (4)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/a/58432
Published On: Jan, 2019

Article Details

भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति एवं विकास | Original Article


इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

हिन्दू धर्म
श्रेणी

भारतीय समाज के वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? - bhaarateey samaaj ke varn vyavastha se aap kya samajhate hain?
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भारतीय समाज के वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? - bhaarateey samaaj ke varn vyavastha se aap kya samajhate hain?

हिन्दू मापन प्रणाली

वर्ण (संस्कृत: वर्ण), के कई अर्थ होते हैं, जैसे प्रकार, क्रम, रंग या वर्ग।[1][2] इसका उपयोग सामाजिक वर्गों को संदर्भित करने के लिए किया जाता था। सनातन ग्रंथों में जैसे मनुस्मृति[1][3][4] और अन्य ग्रंथों में मनुष्यों के इन चार वर्णों का उल्लेख है:[1][5]

  • क्षत्रिय: शासक, योद्धा, सैनिक और प्रशासक।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
  • ब्राह्मण: पुजारी, विद्वान और शिक्षक, भिछुक ,इंजीनियर और डॉक्टर[कृपया उद्धरण जोड़ें]
  • वैश्य: कृषिविद , व्यापारी।[6]
  • शूद्र: सेवा प्रदाता , पशुपालक, चर्मकार।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

कालांतर में समुदाय वर्णों से संबंधित हो गए। डी. आर. जटावा के अनुसार समुदाय जो चार वर्णों या वर्गों में से एक से संबंधित थे, उन्हें सवर्ण कहा जाता था, जो लोग किसी वर्ण से संबंध नहीं रखते थे, उन्हें अवर्ण कहा जाता था।[7][8] आमतौर पर इस अवधारणा का पता ऋग्वेद के पुरुष सूक्त पद्य से लगाया जाता है।

मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था पर टिप्पणी अक्सर उद्धृत की जाती है.[9] वर्ण-व्यवस्था की चर्चा धर्मशास्त्रों में व्यापक रूप से की जाती है।[10] धर्म-शास्त्रों में वर्ण व्यवस्था समाज को चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में विभाजित करती है। जो लोग अपने पापों के कारण इस व्यवस्था से बाहर हो जाते हैं, उन्हें अवर्ण (अछूत) के रूप में निरूपित किया जाता है और वर्ण व्यवस्था के बाहर माना जाता है।[11][12] म्लेच्छ और जो लोग अधर्मी या अनैतिक हैं उन्हें भी अवर्ण माना जाता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • हिंदू धर्म
  • जाति
  • क्षत्रिय
  • ब्राह्मण
  • वैश्य
  • शूद्र
  • म्लेच्छ

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ↑ अ आ इ Doniger, Wendy (1999). Merriam-Webster's encyclopedia of world religions. Springfield, MA, USA: Merriam-Webster. पृ॰ 186. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-87779-044-0.
  2. Stanton, Andrea (2012). An Encyclopedia of Cultural Sociology of the Middle East, Asia, and Africa. USA: SAGE Publications. पपृ॰ 12–13. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4129-8176-7.
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Monier-Williams 2005 924 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  4. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Malik 2005 p.48 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  5. Ingold, Tim (1994). Companion Encyclopedia of Anthropology. London New York: Routledge. पृ॰ 1026. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-415-28604-6.
  6. Kumar, Arun (2002). Encyclopaedia of Teaching of Agriculture. Anmol Publications. पृ॰ 411. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-261-1316-3. मूल से 3 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2021.
  7. DR Jatava (2011). The Hindu Sociology. Surabhi Publications. पृ॰ 92.
  8. Yājñika, Acyuta and Sheth, Suchitra (2005). The Shaping of Modern Gujarat: Plurality, Hindutva, and Beyond, p. 260. Penguin Books India
  9. David Lorenzen (2006). Who invented Hinduism: Essays on religion in history. Yoda Press. पपृ॰ 147–149. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-902272-6-1.
  10. (Olivelle, Caste and Purity 1998, पृ॰प॰ 189–216)
  11. (Olivelle, Caste and Purity 1998, पृ॰प॰ 199–216)
  12. Bayly, Susan (2001), Caste, Society and Politics in India from the Eighteenth Century to the Modern Age, Cambridge University Press, पपृ॰ 9–11, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-26434-1

भारतीय वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत समाज का चार भागों में कार्यात्मक विभाजन किया जा सकता है, यथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। साधारणतया लोग वर्ण एवं जाति को एक ही मान लेते हैं और एक ही अर्थ में इन दोनों का प्रयोग भी करते हैं, यह पूरी तरह से अनुपयुक्त है। दोनों अवधारणायें एक दूसरे से अलग हैं

वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं समझाइए?

वर्ण व्‍यवस्‍था हिन्दू धर्म में सामाजिक विभाजन का एक आधार है। हिन्दू धर्म-ग्रंथों के अनुसार समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है- क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र; जबकि और बौद्ध धर्म के ग्रन्थों के अनुसार समाज को छह वर्णों में विभाजित किया गया है।

वर्ण व्यवस्था क्या है वर्तमान भारतीय समाज में इसका क्या स्वरूप है?

भारतीय हिन्दू सामाजिक संगठन का एक प्रमुख आधार-स्तम्भ चार वर्ण या वर्ण-व्यवस्था है। वर्ण-व्यवस्था के अन्तर्गत समाज के सदस्यों को चार वर्णों- ब्राह्मण, छत्रिय, वैश्य और शूद्र में विभाजित किया गया था और प्रत्येक वर्ण के लिए कुछ नियमों व कर्तव्यों को निर्धारित कर दिया गया था।

वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं वर्ण व्यवस्था के समाजशास्त्रीय महत्व पर चर्चा करें?

मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था पर टिप्पणी अक्सर उद्धृत की जाती है. वर्ण-व्यवस्था की चर्चा धर्मशास्त्रों में व्यापक रूप से की जाती है। धर्म-शास्त्रों में वर्ण व्यवस्था समाज को चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में विभाजित करती है।