चेर वंश के संस्थापक कौन थे? - cher vansh ke sansthaapak kaun the?

चेर राजवंश, तमिलकम के तीन प्रमुख राजवंशों में से एक थे, जिसके शासकों ने दक्षिण भारत में वर्तमान केरल राज्य तथा तमिलनाडु के कुछ हिस्सों पर शासन किया था. चेर शब्द शायद चेरल शब्द से उत्पन्न हुआ था, जिसका अर्थ प्राचीन तमिल में एक पहाड़ की ढ़लान है। यहां हम सामान्य जागरूकता के लिए चेर शासकों की सूची और उनके योगदान का विवरण दे रहे हैं।

चेर वंश के संस्थापक कौन थे? - cher vansh ke sansthaapak kaun the?

चेर राजवंश, तमिलकम के तीन प्रमुख राजवंशों में से एक थे, जिसके शासकों ने दक्षिण भारत में वर्तमान केरल राज्य तथा तमिलनाडु के कुछ हिस्सों पर शासन किया था. "चेर" शब्द शायद चेरल शब्द से उत्पन्न हुआ था, जिसका अर्थ प्राचीन तमिल में "एक पहाड़ की ढ़लान" है। उन्हें "केरलपुत्र" के नाम से भी जाना जाता था और उनका राज्य पांड्य साम्राज्य के पश्चिमोत्तर में स्थित था। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, चेरा राजवंश मोटे तौर पर दो चरणों में विभाजित था। प्रारंभिक चेर शासकों ने 4थी शताब्दी ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी ईस्वी तक शासन किया था जबकि बाद के चेर शासक, जिन्हें "कुलशेखर" भी कहा जाता है, 8वीं से 12वीं शताब्दी ईसवी के बीच सत्तासीन थे। यहां हम सामान्य जागरूकता के लिए चेर शासकों की सूची और  उनके योगदान का विवरण दे रहे हैं।

चेर राजवंश के शासकों ने दो अलग अलग समयावाधियों में शासन किया था. पहले चेर वंश ने संगम युग में शासन किया था जबकि दूसरे चेर वंश ने 9 वीं शताब्दी ईस्वी से लेकर आगे तक के काल में भी शासन कार्य किया था. हमें  चेर वंश के बारे में जानकारी संगम साहित्य से मिलता है. चेर शासकों   के द्वारा शासित क्षेत्रों में  कोचीन, उत्तर त्रावणकोर और दक्षिणी मालाबार शामिल थे. चेर वंश की राजधानी बाद में चेर  की उनकी राजधानी किज़न्थुर-कन्डल्लुर  और करूर वांची थी. परवर्ती चेरों की राजधानी  कुलशेखरपुरम और मध्य्पुरम थी. चेरों का प्रतीक चिन्ह धनुष और तीर था. उनके द्वारा जारी सिक्को पर धनुष डिवाइस अंकित था.

उदियांजेरल

यह चेर राजवंश के पहले राजा के रूप में दर्ज किया गया है. चोलों के साथ अपनी पराजय के बाद इसने  आत्महत्या कर ली थी. इसने महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले वीरो को भोजन करवाया था ऐसी जानकारी स्रोतों से मिलती है.

नेदुन्जेरल आदन 

इसने मरैंदे को अपने राजधानी के रूप में चुना था. इसके बारे में कहा जाता है की इसने सात अभिषिक्त राजाओं को पराजित करने के बाद अधिराज की उपाधि धारण की थी. इसने इयाम्बरंबन की भी उपाधि धारण की थी जिसका अर्थ होता है हिमालय तक की सीमा वाला.

सेनगुट्टवन (धर्म परायण कट्तुवन)

सेनगुट्टवन इस राजवंश का सबसे शानदार शासक था. इसे लाल चेर के नाम से भी जाना जाता था. वह प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य शिल्प्पदिकाराम  का नायक था. दक्षिण भारत से चीन के लिए दूतावास भेजने वाला वह पहला चेर राजा था. करूर उसकी राजधानी थी. उसकी नौसेना दुनिया में सबसे अच्छी एवं मजबूत थी. इसे पत्तिनी पूजा का संस्थापक माना जाता है.

आदिग ईमान

इस शासक को दक्षिण में गन्ने की खेती प्रारंभ करने का श्रेय दिया जाता है.

दूसरा चेर राजवंश

कुलशेखर अलवर, दूसरे चेर राजवंश का संस्थापक था. उसकी राजधानी महोदयपुरम  थी. दूसरे  चेर राजवंश का अंतिम चेर राजा राम वर्मा कुलशेखर था. उसने 1090 से 1102 ईस्वी तक शासन किया था. उसके मृत्यु के बाद वंश समाप्त हो गया.

चेर वंश का सबसे महान शासक कौन था?

पलामू के चेरो का सबसे महान शासक मेदिनी राय था, जिसका राज्य गया, दाऊदनगर एवं अरवल तक विस्तृत था

चेर वंश के संस्थापक कौन है?

चेर वंश : चेर वंश का प्रथम शासक और संस्थापक उदियन जेरल (उदयिन जेरल) को माना जाता है। चेर वंश का साम्राज्य पांड्य देश के पश्चिम और उत्तर में समुद्र और पहाड़ों के मध्य स्थित था। उन्होंने केरल और तमिल के कुछ भागों में शासन किया था।

चेर वंश की स्थापना कब हुई?

पहले चेर वंश ने संगम युग में शासन किया था जबकि दूसरे चेर वंश ने 9 वीं शताब्दी ईस्वी से लेकर आगे तक के काल में भी शासन कार्य किया था. हमें चेर वंश के बारे में जानकारी संगम साहित्य से मिलता है.

चेर क्या होता है?

चेर (तमिल - சேரர்) दक्षिण भारत का एक राजवंश था। इसको यदा कदा "केरलपुत्र" (संस्कृत) नाम से भी जाना जाता है। इसका विस्तार आधुनिक कोयम्बटूर, सलेम तथा करूर जिले (तमिल नाडु) तथा मध्य केरल के कुछ क्षेत्रों के पास केन्द्रित था।