फागुन में वर्षा होती है, बारिश की बूँदें वातावरण को स्वच्छ कर देती हैं तथा पूरा वातावरण सुंदर प्रतीत होता है। आसमान अत्यंत साफ़ सुथरा लगता है, प्रकृति में चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली होती है, वातावरण शीतल तथा शांत हो जाता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण फागुन का मौसम अन्य सभी ऋतुओं से भिन्न होता है। Show (iv) रहस्यवादी दृष्टिकोण-निराला जी के रहस्यवाद का मूल आधार वेदांत है। वे आत्मा और परमात्मा के प्रणय संबंधों पर बल देते हैं। उनके रहस्यवाद में भावना और चिंतन का सुंदर समन्वय है। निराला जी के रहस्यवाद में व्यावहारिकता अधिक है। उनके रहस्यवादी दर्शन के निष्कर्ष शक्ति, करुणा, सेवा, त्याग आदि हैं। (v) प्रकृति-चित्रण-अन्य छायावादी कवियों की ही भाँति निराला जी ने भी प्रकृति के विविध रूपों को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित किया है। उनके प्रकृति-चित्रण में प्रकृति के भयानक और मनोरम, दोनों ही रूपों के दर्शन होते हैं। उन्होंने भावनाओं को उद्दीप्त करने वाले प्राकृतिक रूप को अधिक चित्रित किया है। (vi) प्रेम और श्रृंगार का वर्णन-निराला जी के आरंभिक काव्य में प्रेम और शृंगार का खूब वर्णन हुआ है लेकिन उनके शृंगार-वर्णन में ऐंद्रियता का अभाव है। ‘जूही की कली’ आदि कविताओं में तो शृंगार स्थूल है लेकिन अन्य कविताओं में यह पावन एवं उदात्त है। उनका प्रेम निरूपण लौकिक होने के साथ-साथ अलौकिक भी है। ऐसे स्थलों पर निराला रहस्यवादी कवि प्रतीत होने लगते हैं। ‘तुम और मैं’, ‘यमुना के प्रति’, ‘कौन तम के पार रे कह!’ आदि कविताओं में उनकी रहस्यवादी भावना व्यक्त हुई है। 4. भाषा-शैली-कविवर निराला ने अपने काव्य में तत्सम प्रधान शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने कोमलकांत पदावली के प्रयोग से अपनी काव्य-भाषा को खूब सजाया है। निराला जी अपने सूक्ष्म प्रतीकों, लाक्षणिक पदावली तथा नवीन उपमानों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके काव्य में संगीतात्मकता के सभी अनिवार्य तत्त्व उपलब्ध हैं। निराला जी ने अपने काव्य में शब्दालंकार एवं अर्थालंकार, दोनों का सफल प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, उपमा, रूपक, यमक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग देखते ही बनता है। उत्साह और अट नहीं रही कविता का सार 1. उत्साह प्रश्न- 2. अट नहीं रही है। प्रश्न- 1. उत्साह उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1. उत्साह अट नहीं रही है प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2. Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न 3. Chapter 5 Hindi Class 10 Kshitij उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न 4. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 5. पाठेतर सक्रियता: बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए। 2. अट नहीं रही है प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 6. पाठेतर सक्रियता फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए। HBSE 10th Class Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answersविषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. अति लघुत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. उत्साह और अट नहीं रही पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर [1] बादल, गरजो: शब्दार्थ-घोर = भयंकर। धाराधर = जल की धारा धारण करने वाले। ललित = सुंदर। विद्युत-छबि = बिजली के समान सुंदरता। उर = हृदय। वन = कठोर, भीषण। नूतन = नई। प्रश्न- (ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘उत्साह’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। कवि ने उत्साह एवं शक्ति के प्रतीक बादलों का आह्वान किया है कि वे पीड़ित, दुःखी एवं प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। कवि ने बादलों को अंधविश्वास के अंकुर के विध्वंसक एवं क्रांति की चेतना को जागृत करने वाला कहा है। (ग) कवि ने क्रांति के प्रतीक बादल को संबोधित करते हुए कहा है कि हे बादल! तुम खूब गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर खूब बरसो। घनघोर वर्षा करो। हे बादल! तुम बहुत ही सुंदर हो। तुम्हारा रूप घने काले और धुंघराले बालों के समान है। तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले हुए हो। तुम अपने हृदय में बिजली की शोभा रखे हुए हो। तुम नई सृष्टि की रचना करने वाले हो। तुम अपने जल द्वारा नया जीवन देने वाले हो। तुम्हारे भीतर वज्र की शक्ति विद्यमान् है। हे बादल! तुम इस संसार को नई-नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने वाले हो। हे बादल! तुम खूब गरजो और सबमें एक बार फिर नया जीवन भर दो। (घ) कवि ने बादलों का आह्वान गरजने के लिए इसलिए किया है क्योंकि कवि वातावरण में जोश और क्रांति की भावना भर देना चाहता है। बादल की गर्जन को सुनकर सबमें जोश भर जाता है। (ङ) यहाँ बादलों को क्राँति उत्पन्न करने वाले साहसी व उत्साही वीर पुरुष के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है। (च) बादल नन्हें अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं। वे अत्यंत सुंदर एवं कोमल हैं। (छ) बादल मानव-जीवन और कवि को नई-नई प्रेरणाएँ प्रदान करते हैं। (ज) कवि बादलों को जल बरसाकर प्राणियों को सुख प्रदान करने के लिए कहते हैं। . (झ) ‘वज्र छिपा’ का तात्पर्य है कि बादलों के भीतर बिजली की कड़क छिपी हुई है। दूसरे शब्दों में, कवि के हृदय में भी उथल-पुथल करने वाली क्रांति की भावना छिपी हुई है। (ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्यासे और पीड़ित लोगों के हृदय की पीड़ा को दूर करके उनकी कामनाओं को पूरा करने . का आह्वान किया है। कवि को बादलों की गर्जन प्रिय है क्योंकि उसमें शक्ति की भावना समाहित है। कवि समाज में क्रांति लाना . चाहता है ताकि समाज में व्याप्त रूढ़िबद्ध परंपराएँ समाप्त हो जाएँ और समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सके। (ट)
(ठ) कविवर ‘निराला’ ने अपने काव्य में तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग किया है। इस पद्यांश में भी उन्होंने तत्सम प्रधान और ओजस्वी भाषा का प्रयोग किया है। लघु शब्दों की आवृत्ति से भाषा में गति एवं एक लय का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है। [2] विकल विकल, उन्मन थे उन्मन शब्दार्थ-विकल = बेचैन। उन्मन = अनमना। निदाघ = तपती गर्मी। सकल = सारा। जन = मनुष्य। अज्ञात = अनजान। अनंत = असीम अज्ञान। घन = बादल। तप्त = तपी हुई। धरा = पृथ्वी। प्रश्न- (ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘उत्साह’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इस कविता में कवि ने बादलों का दुःख से पीड़ित मानवता को सुख प्रदान करने के लिए आह्वान किया है। (ग) कवि कहता है कि चारों ओर व्याकुलता और बेचैनी थी। सब लोग परेशान थे तथा सबके मन अनमने व उचाट हो रहे थे। विश्व के सभी लोग भीषण गर्मी से दुःखी एवं पीड़ित थे। तब न जाने किस अज्ञात दिशा से बादल आकाश में छा गए। कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है कि हे बादलो! तुम खूब बरसो और गर्मी से पीड़ित लोगों को शीतलता प्रदान करो। खूब बरसो और जन-जन को ठंडक पहुँचाओ। हे बादल! तुम खूब गरजो। (घ) कवि बादल से प्रार्थना करता है कि वे गर्मी से तपी हुई धरती पर खूब जल बरसाओ और उसे शीतलता प्रदान करो। (ङ) संपूर्ण पृथ्वी के लोग कष्टों व दुःखों रूपी गर्मी के कारण बेचैन व व्याकुल थे। (च) कवि ने ‘निदाघ’ अर्थात् भीषण गर्मी का प्रयोग संसार के कष्टों के प्रतीकार्य किया है। (छ) बादल न जाने असीम आकाश के किस कोने से आकर चारों ओर छाया की भाँति छा जाते हैं। (ज) ‘तप्त धरा’ का शाब्दिक अर्थ है-गर्मी से तपती हुई धरती तथा इसका सांकेतिक अर्थ है-सांसारिक दुःखों से पीड़ित मानव-जीवन। (झ) प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों का मानवता को सुख देने के लिए आह्वान किया है। इस धरती पर सांसारिक कष्टों व पीड़ाओं से पीड़ित मनुष्य को सुख प्रदान करके उसे शांति व शीतलता प्रदान करनी चाहिए। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गर्मी से तपती हुई धरती को बादल वर्षा करके ठंडक प्रदान करते हैं। . (ञ)
(ट) संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग किया गया है। छोटे-छोटे शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाह बना हुआ है। संबोधन शैली के प्रयोग से कविता में रोचकता का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है। [3] अट नहीं रही है शब्दार्थ-अट = समाना, प्रविष्ट करना। आभा = सुंदरता। नभ = आकाश। उर = हृदय। मंद-गंध = धीमी-धीमी सुगंध। पुष्प-माल = फूलों की माला। पाट-पाट = जगह-जगह। शोभा-श्री = सुंदरता से परिपूर्ण। पट = न समाना। प्रश्न- (ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘अट नहीं रही है’ नामक कविता से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने फागुन मास की प्राकृतिक छटा का मनोरम चित्रण किया है। कवि ने अपने अनंत प्रिय को संबोधित करते हुए कहा है कि यह सब तुम्हारी शोभा का प्रकाश है जो समा नहीं रहा है। (ग) कवि कहता है कि फागुन की सुंदरता व चमक कहीं भी समा नहीं रही है। प्रकृति का तन इस फागुनी सुंदरता से जगमगा रहा है। तुम पता नहीं कहाँ से साँस लेते हो और अपनी साँसों की सुगंध से घर भर देते हो अर्थात् कवि को हर जगह अपने प्रिय की साँसों की सुगंध अनुभव होती है। वे तुम्ही हो जो मन को ऊँची कल्पनाओं में उड़ने की प्रेरणा प्रदान करते हो। चारों ओर तुम्हारे सौंदर्य की आभा ही चमक रही है। मैं चाहकर भी इस सौंदर्य से आँख नहीं हटा सकता। कवि का मन प्राकृतिक सौंदर्य से बंधकर रह जाता है। (घ) कवि ने फागुन मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है। (ङ) घर-घर में फागुन मास की शोभा और मस्ती भर जाती है। चारों ओर सुंदरता एवं मधुरता का वातावरण बन जाता है। . (च) फागुन मास पक्षियों को उड़ने की प्रेरणा देता है अर्थात् फागुन मास के आते ही पक्षियों के जीवन में भी क्रियाशीलता अधिक . तीव्रता से उत्पन्न हो जाती है। फागुन मास में मनुष्यों के मनों में भी ताज़गी भर जाती है और वे भी क्रियाशील हो उठते हैं। (छ) कवि की आँख प्राकृतिक छटा से नहीं हटती क्योंकि कवि को फागुन मास की प्राकृतिक छटा देखना अत्यंत प्रिय लगता है। (ज) फागुन मास के आते ही वृक्षों पर हरे-भरे व लाल-लाल पत्ते लद जाते हैं। (झ) वन में प्राकृतिक छटा पट (समा) नहीं रही है। (ञ) फागुन मास के कारण वन-उपवन सब महक उठे हैं। पेड़ों पर हरे-भरे व नए-नए पत्ते लद जाते हैं तथा तरह-तरह के फूल खिल जाते हैं। फूलों से लदे पेड़ ऐसे लगते हैं मानों उन्होंने फूलों से बनी हुई मालाएँ पहन रखी हों। वन-उपवनों में फागुन मास की छटा पट नहीं रही है। (ट) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फागुन मास के अपूर्व एवं असीम सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। कवि के अनुसार प्रकृति की अनंत सुंदरता व शोभा का कोई छोर नहीं है अर्थात् उसे सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता। फागुन मास में प्रकृति का सौंदर्य ऐसा बन जाता है जो बरबस लोक लोचनों को बाँध लेता है। (ठ)
(ड) ‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता में कवि ने शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। लघु शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में जहाँ प्रवाह बना रहता है वहीं लय भी उत्पन्न हुई है, इन काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की अन्य विशेषता यह है कि इसमें देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है तथा विशेष वातावरण का निर्माण भी हुआ है। फागुन आते ही वन उपवन में क्या परिवर्तन होने लगता हैॽ?Answer: Explanation: चारों ओर प्रकृति का सौन्दर्य चरम पर होता है। वृक्ष हरे-भरे पत्तों से युक्त रंग-बिरंगे फूलों की सुगंध से ऐसा लगता है मानो स्वयं वृक्षों ने मंद-सुगंध वाले फूलों की माला गले में धारण की हो।
फागुन के साँस लेते ही वातावरण में क्या परिवर्तन होता है?Answer: Explanation: फागुन के साँस लेते ही प्रकृति में यह परिवर्तन दिखाई देते हैं कि सर्वत्र खुशभू व्याप्त हो जाती है। इसका प्रभाव तन-मन, पेड़-पौधों की डालियों, नए-नए पत्तों एवं फूलों पर दिखाई देता है।
फागुन मास के आते ही वृक्ष कैसे हो जाते हैं?फागुन का महीना मस्ती से भरा होता है जो सारी प्रकृति को नया रंग प्रदान कर देता है। पेड़-पौधों की शाखाएँ हरे--हरे पत्तों से लद जाती हैं। लाल-लाल कोंपलें अपार सुंदर लगती हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहार-सी छा जाती है।
फागुन मास में कौन सी ऋतु होती है?फाल्गुन मास का महीना हिन्दू पंचांग का अंतिम महीना होता है. ये वही समय होता है जब बसंत ऋतु का भी आगमन होता है.
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