फिरोज तुगलक के समय में विद्रोह करने वाला एकमात्र अमीर कौन था - phiroj tugalak ke samay mein vidroh karane vaala ekamaatr ameer kaun tha

दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश के तीसरे शासक फिरोज शाह तुगलक ने 37 साल तक राज चलाया. उसने देशभर में 300 नए नगरों की स्थापना भी कराई थी. उसे कट्टर मुस्लिम शासक कहा गया, जिसने इस्लाम स्वीकार न करने वालों पर जजिया कर लगवाया था. इतिहासकारों ने फिरोजशाह को धर्मांध और असहिष्णु शासक कहा है.

दिल्ली ने कई राजवंशों के साम्राज्य पनपते और सुल्तानों को बनते और मिटते देखा है. इसी दिल्ली में सुल्तानों के अलावा राजा-महाराजा और नवाब राज कर चुके हैं. तुगलक राजवंश भी इन्हीं में से एक रहा है. इस वंश का तीसरा शासक था फिरोज शाह तुगलक. फिरोजशाह का जन्म 1309 में हुआ था और मृत्यु सितम्बर 1388 ईसवी में हुई थी. उसे दिल्ली के हौजखास परिसर में दफनाया गया था.

फिरोजशाह ने हिंदुस्तान के कई हिस्सों में राज किया. उसके शासनकाल में दिल्ली में चांदी के सिक्के भी चलाए गए. फिरोजशाह तुगलक ने साल 1360 में उड़ीसा पर हमला कर दिया. वहां के शासक भानुदेव तृतीय थे, जिन्हें हराकर उसने जगन्नाथपुरी मंदिर को ध्वस्त कि‍या था.

दिल्ली में बसाया था शहर

नगर एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के अन्तर्गत फिरोजशाह ने पूरे देश में करीब 300 नए शहरों की स्थापना की थी. इनमें से हरियाणा का हिसार व फतेहाबाद, उत्तरप्रदेश का फिरोजाबाद शहर और जौनपुर व पंजाब का फिरोजपुर बसाया था. फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में फिरोजाबाद नाम से एक नया शहर बसाया था. फिलहाल दिल्ली में जो फिरोजशाह कोटला आबाद है, वह कभी उसके दुर्ग का काम करता था. इस किले को कुश्के-फिरोज यानी फिरोज के महल के नाम से पुकारा जाता था. इतिहासकार फिरोजाबाद को दिल्ली का पांचवां शहर मानते हैं.

ये थी पसंद

इतिहासकारों के अनुसार फिरोजशाह तुगलक को बुलंद इमारतों की तामीर करवाने का काफी शौक था. दिल्ली के हौज खास में फिरोजशाह तुगलक का मकबरा और दिल्ली में कई मस्जिदें भी बनाई गईं. फिरोज शाह तुगलक के बारे में कहा जाता है कि उसने गुज्जर समुदाय की युवती से विवाह किया था. उसने अपने पुत्र फतेह खान के जन्मदिन पर फतेहाबाद शहर की स्थापना की गई थी. यूपी के जौनपुर शहर की स्थापना उसने अपने बड़े भाई जौना खान की याद में की थी.

उसे यमुना नदी के किनारे बसाया गया फिरोजाबाद सबसे ज्यादा पसंद था. इस शहर की नींव फिरोज ने अपने चचेरे भाई फखरुद्दीन जौना यानी मुहम्मद बिन तुगलक की याद में डाली थी. वो अपने शासन काल में मेरठ से दो अशोक स्तम्भलेखों को लाया था और उन्हें दिल्ली में स्थापित किया था.

किए ये नेक काम

अपने कल्याणकारी कार्यों के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने एक रोज़गार का दफ्तर एवं मुस्लिम अनाथ स्त्रियों, विधवाओं एवं लड़कियों की मदद के लिए दीवान ए खैरात विभाग बनाया था. उसने दारुल शफा नाम का अस्पताल बनवाया था जहां गरीबों का इलाज होता था.

धर्मांध शासक था तुगलक

फिरोज शाह तुगलक कट्टर सुन्नी मुसलमान था. कहा जाता है कि उसने हिन्दू ब्राह्मणों पर जजि‍या कर लगाया था. इतिहासकार डॉ. आरसी मजूमदार ने कहा है कि फिरोज इस युग का सबसे धर्मान्ध शासक था. सम्भवतः दिल्ली सल्तनत का वह प्रथम सुल्तान था, जिसने इस्लामी नियमों का कड़ाई से पालन करके उलेमा वर्ग को प्रशासनिक कार्यों में महत्त्व दिया.

फिरोजशाह तुगलक ने सैय्यद-उस-सलातीन, खलीफा का नाइब की उपाधि धारण की| वह दिल्ली सल्तनत और तुगलक वंश का महत्वपूर्ण शासक था| firoz shah tuglak in hindi

फिरोज तुगलक के समय में विद्रोह करने वाला एकमात्र अमीर कौन था - phiroj tugalak ke samay mein vidroh karane vaala ekamaatr ameer kaun tha

फिरोजशाह तुगलक, सुलतान गयासुद्दीन तुगलक के छोटे भाई रज्जब का पुत्र था। उसका जन्म 1309 ई० में एक हिन्दू माता (बीबी जैला) के गर्भ से हआ था, जो अबोहर के भट्टी राजपूत रणमल की पुत्री थी।

1351 ई० में मोहम्मद-बिन-तुगलक की मृत्यु के बाद फिरोजशाह तुगलक दिल्ली की गद्दी पर बैठा। मार्च 1351 को थट्टा (सिन्ध) में ही फिरोजशाह तुगलक का पहला राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ तत्पश्चात अगस्त 1351 में दिल्ली में दोबारा राज्याभिषेक हुआ।

मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में जो प्रदेश दिल्ली सल्तनत से पृथक हो गये थे| उन्हें पुनार्विजित करने का भी उसने कोई प्रयास नहीं किया| फिरोज के अकुशल, ढीले प्रशासन, कमजोर विदेश नीति और दोषपूर्ण सैनिक संगठन के परिणामस्वरूप सल्तनत का तेजी से पतन और विघटन हो गया|

फिरोज जिस समय गद्दी पर बैठा शासन व्यवस्था अस्त-व्यस्त थी| इसके लिए उसने कई कदम उठाये। प्रशासन के मामलो में उसका दृष्टिकोण सस्ती लोकप्रियता अर्जित करना था। उसने मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा प्रदत्त समस्त ऋणों को माफ़ कर दिया|

उसने दण्ड संहिता को संशोधित करके दण्डों को अधिक मानवीय बनाया तथा सल्तान को भेंट देने की प्रथा समाप्त कर दी।

उसने कर को धार्मिक या मजहबी स्वरूप प्रदान किया और कम से कम 23 प्रचलित करों को समाप्त करके इस्लामी शरीयत कानून द्वारा अनुमति प्राप्त प्राप्त केवल चार करों – खराज, जकात, जजिया और खम्स को आरोपित किया।

अपने मजहबी-उत्साह या धर्म निष्ठा को प्रदर्शित करने के लिए उसने ब्राह्मणों पर भी ‘जजिया’ कर लगाया। नहर प्रणाली के निर्माण के बाद उसने उलेमा की स्वीकृति के पश्चात् सिंचाई कर (हक-ए-शर्व) भी लगाया।

फिरोज ने भू-मापन और वास्तविक उत्पादन के आधार पर कर वसूली की पद्धति का पूर्णतया त्याग कर दिया।

फिरोज तगलक पहला सल्तनत कालीन शासक था, जिसन राज्य की आमदनी का ब्योरा तैयार करवाया। ख्वाजा हिसामुद्दीन के एक अनुमान के अनसार फिरोज सरकार की वार्षिक आय छ: करोड़ पचहत्तर लाख टका थी जबकि अकेले सेना मंत्री बशीर के पास 13 करोड़ टंका धन दौलत थी।

तुगलक वंश का शासनकाल वजारत का चरमोत्कर्ष काल था। फिरोज के समय वजीर का पद ‘मलिक मकबूल (खान-ए-जहाँ), नायब वजीर का पद ‘मलिक राजी’ तथा गाजी शहना को सार्वजनिक विभाग सौंपा गया।

फिरोज तुगलक ने राजद्रोह के लिए गंभीर दण्डों की व्यवस्था का अंत कर दिया जो शरीयत में उल्लिखित नहीं था।

इसने जागीरदारी प्रथा को पुनः आरम्भ किया। उसने सैनिकों, सेनापतियों तथा असैनिक पदाधिकारियों को जागीर के रूप में वेतन देने की प्रथा की शुरूआत की।

उसने ‘ घूसखोरी को प्रोत्साहन दिया। अफीफ ने लिखा है कि ‘सुल्तान ने एक घुड़सवार को अपने खजाने से एक टंका दिया ताकि वह रिश्वत देकर दीवान-ए-अर्ज से अपने घोड़े को पास करवा सके।’ फिरोज का शासनकाल मध्यकालीन भारत में सबसे भ्रष्ट शासनकाल कहा जाता है।

फिरोजशाह तुगलक ने खुत्बे की प्रथा में भी परिवर्तन किया। इसने शुक्रवार के खुत्बे में पहले प्रचलित केवल शासक सुल्तान के नाम के साथ ही दिल्ली के पूर्व सुल्तानों के नामों का भी उल्लेख किया। परन्तु इस खुत्बे में कुतुबुद्दीन ऐबक का नाम शामिल नहीं किया।

दयालु प्रवृत्ति होने के कारण फिरोज ने जन-कल्याण के लिए अनेक कार्य किये: दास विभाग (दीवान-ए-बंदगान) की स्थापना, रोजगार दफ्तर खोला, दीवान-ए-खैरात (दान-विभाग) खोला, दीवान-ए-इस्तिहाक (पेंशन विभाग), तथा दारूल शफा यानि खैराती अस्पताल आदि महत्वपूर्ण विभागों द्वारा जनकल्याण को प्रोत्साहन दिया।

उसने सांस्कृतिक उपलब्धि के तहत लोक निर्माण विभाग की स्थापना की।

तुगलक काल में स्थापत्य कला का सर्वाधिक विकास फिरोज के काल में हुआ। फिरोज ने 300 नए नगरों की स्थापना की। उसके द्वारा स्थापित प्रमुख नगरों में फतेहाबाद, हिसार, फिरोजपुर, जौनपुर और फिरोजाबाद प्रमुख थे।

उसने मदरसे और मकतब बनवाए, जिसमें 1352 में दिल्ली में मदरसा ए-फिरोजशाही प्रमुख है। मस्जिदों में काली मस्जिद, खिड़की मस्जिद, बेगमपुरी तथा कला मस्जिद प्रमुख है।

उसने पुराने भवनों की मरम्मत करवायी इनमें दिल्ली का कुतुबुमीनार, जामा मस्जिद, शम्शी तालाब, अलाई दरवाजा, इल्तुतमिश का मकबरा प्रमुख है।

कषि एवं सिंचाई के लिए फिरोज ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये। फिरोज की नहर प्रणाली का विस्तृत वर्णन याहिया-बिन-अहमद सरहिन्दी की पुस्तक ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ में वर्णित है।

उसके द्वारा बनवायी गयी सबसे बड़ी महत्वपूर्ण नहरें उलुगखानी और राजवाही नहरें हैं। इसके द्वारा खुदवाई गई पाँच प्रमुख नहरें हैं:

  1. यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लम्बी (उलूगखानी)
  2. सतलुज से घग्घर तक 96 मील लम्बी (राजवाही नहर)
  3. सिरमौर की पहाड़ियों से हांसी तक
  4. घग्घर से फिरोजाबाद
  5. यमुना से फिरोजाबाद

उसने अनेक शाही कारखाने (36) स्थापित किये। जिसमें रकाबखाना (घोड़ों की साज), जमादारखाना (शाही वस्त्र निर्माण आलम खाना (शही पताका निर्माण) प्रमुख है।

कारखाने दो प्रकार के होते थे रातिबी तथा गैर-रातिबी। कारखानों का प्रबंध मतसर्रिफ नामक पदाधिकारी करते थे।

फिरोज ने दिल्ली के आस-पास 1200 फलों के बगीचे लगवाए। उद्यानों से राज्य की आय 1.80,000 टंका थी।

फिरोज ने ‘तासघडियाल’ अथवा जलघड़ी का अविष्कार किया। उसने अशोक के दो स्तम्भों क्रमश: टोपरा (जिला, अम्बाला-हरियाणा) तथा मेरठ (उत्तरप्रदेश) से लाकर दिल्ली स्थापित कराया।

फिरोज ने शिक्षा एवं साहित्य को संरक्षण दिया। उसने शिक्षा में व्यवसायिक पाठ्यक्रम लागू किया।

उसने जियाउद्दीन बरनी तथा शमस-ए-शिराज अफीफ को संरक्षण प्रदान किया। उसने स्वयं अपनी आत्मकथा फुतुहात-ए-फिरोजशाही की रचना की। इसके काल में फारसी भाषा का सर्वाधिक विकास हुआ। संगीत व औषधि आदि पर लिखी गयी संस्कृत पुस्तकों का फारसी भाषा में सर्वाधिक अनुवाद फिरोज के काल में हुआ।

कांगड़ा अभियान में फिरोज को 1300 ग्रंथ प्राप्त हुए। संगीत आधारित ग्रन्थ रागदर्पण का फारसी भाषा में अनुवाद इसके काल में हआ। 

फिरोज ने शशगनी (6 जीतल) नामक चाँदी का सिक्का चलाया। अफीफ के अनुसार सुल्तान ने अद्धा (112) तथा विख़ (1/4) नामक ताँबा और चाँदी निर्मित सिक्के चलाये। 

फिरोजशाह तुगलक दिल्ली का पहला सुल्तान था, जिसने इस्लामी कानून (शरीयत) व उलेमा वर्ग को राज्य के प्रशासन में प्रधानता दी।

यद्यपि वह उदारवादी सूफी संत अजोधन के फरीदुद्दीन गंज शंकर का अनुयायी था किन्तु धीरे-धीरे वह धर्मान्ध हो गया। 1374-75 ई. में वह बहराईच स्थित योद्धा संत सलार मसूद गांजी के मकबरे का दो बार दर्शन करने गया।

उलेमा वर्ग के समर्थन को जियाउद्दनीबरनी ने फिरोज तुगलक के शासनकाल में शांति एवं समृद्धि के लिए उत्तरदायी बताया है।

दिल्ली के सुल्तानों में फिरोज तुगलक ने सर्वप्रथम मुस्लिम स्त्रियों को दिल्ली के बाहर स्थित मजारों पर जाने पर प्रतिबंध लगाया|

फिरोज स्वयं को खलीफा का नायब घोषित करने वाला सल्तनत का प्रथम शासक था। उसने मिस्र के अब्बासी खलीफा से दो बार अपने सुल्तान पद की स्वीकृति एवं खिल्लत प्राप्त की। 

फिरोजशाह तुगलक का सैन्य अभियान 

फिरोज तुगलक, मोहम्मद बिन तुगलक की विरासत के रूप में प्राप्त विस्तृत साम्राज्य पर नियंत्रण रखने में असफल रहा। फिरोज का कोई भी अभियान उसके साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं बल्कि साम्राज्य के बचाव के लिए था। 

उसके समय गुजरात और सिन्ध में विद्रोह हुए| बंगाल ने पुनः अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। फिरोज ने सर्वप्रथम बंगाल व सिंध पर आक्रमण किया।

बंगाल पर प्रथम आक्रमण 1353 ई. में किया गया। शम्सुद्दीन इलियासशाह ने इकदाला के किले में शरण ली। सुल्तान अंततः किले पर अधिकार करने में असफल होकर 1355 ई. में वापस दिल्ली आ गया।

पुनः बंगाल पर अधिकार का प्रयास 1359 ई. में किया तथा वहाँ के तत्कालीन शासक शम्सुद्दीन इलियास के पुत्र सिकंदरशाह से असफल होकर वापस आना पड़ा। 

1360 ई० में बंगाल के द्वितीय अभियान के दौरान-फिरोज ने जाजनगर (उड़ीसा) पर आक्रमण किया। उस समय वहाँ का शासक वीरभानुदेव तृतीय था। फिरोज ने उसे परास्त कर दिया तथा पुरी के जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया।

1361 ई. में फिरोज ने नगरकाट पर आक्रमण कर वहाँ के शासक को परास्त कर प्रसिद्ध ज्वालामुखी देवी मंदिर को पूर्णत: नष्ट कर दिया।

1367 ई. में फिराज ने सिंध पर आक्रमणकिया यहाँ के जवाबबनियों से लड़ते हुए फिरोज की सेना 6 महीने तक कच्छ के रण के रेगिस्तान में फंसी रही|

इन साधारण विजयों के अतिरिक्त फिरोज ने कोई बड़ी विजय नहीं की। फिरोज के समय 1376-77 में गुजरात का विद्रोह, 1377-78 में इटावा का विद्रोह तथा कटेहर के राजपूत सरदार राय खरकू का विद्रोह हुआ। जुलाई 1388 ई. में फिरोज की मृत्यु हो गयी।

हम आशा करते है की इस लेख ने आपको फिरोज शाह तुगलक के बारे में जानने में सहायता की| आपको अलाउद्दीन खिलजी का बाजार नियंत्रण व्यवस्था, साम्राज्य विस्तार नीति और कर प्रणाली और लोदी वंश के बारे में पढना पसंद हो सकता है| आपको मध्यकालीन भारत के इतिहास दुसरे लेख भी देखने चाहिए|

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फिरोजशाह तुगलक द्वारा निर्मित सबसे लंबी नहर कौन सी थी?

फिरोजशाह तुगलक द्वारा सबसे लंबी नहर उलुगखानी नहर थी जो यमुना से हिसार तक जाती थी और यह नहर 150 मील लंबी थी

फिरोजशाह तुगलक का दरबारी कवि कौन था?

इसके दरबारी कवि “जियाउद्दीन बरनी” थे, इनकी रचना – तारीखे-ऐ-फिरोजशाही।

फिरोज तुगलक का उत्तराधिकारी कौन था?

आपको बता दें की जब फिरोज की मृत्यु हुई तो उसके बाद इसके बड़े पुत्र फतहखान का एक लड़का था तुगलकशाह, जो गियासुद्दीन तुगलकशाह द्वितीय नाम से गद्दी पर बैठा ।

जागीर बांटने की फिरोज शाह तुगलक की नीति के पीछे कौन सी शक्ति थी?

सेना का संगठन जागीर प्रथा के आधार पर किया। स्थायी सैनिकों को वेतन के बदले जागीर दी जाती थी और स्थायी सैनिकों को राजकोष से नकद वेतन दिया जाता था। फिरोज ने एक नया नियम यह बनाया कि सैनिकों के बूढ़े हो जाने पर उनका पुत्र, दामाद या गुलाम उनके स्थान पर रख लिये जायँ । इस नियम से सैनिक सेवा वंशानुगत हो गई।