फिशर का मुद्रा का सिद्धांत मुद्रा समीकरण में मुद्रा को क्या मानता है? - phishar ka mudra ka siddhaant mudra sameekaran mein mudra ko kya maanata hai?

Mudra Pariman Sidhhant

Pradeep Chawla on 12-05-2019

मुद्रा की माँग का फलन और मुद्रा का परिमाण सिद्धांत समीकरण (Function of money demand and quantity theory of money)

मुद्रा का परिमाण सिद्धांत हमें अर्थव्यवस्था पर मुद्रा के असर का विश्लेषण करने में मदद करता है। राशि एम/पी को मुद्रा की क्रय शक्ति के बारे में बताता है। एम/पी को रियल मनी बैलेंस भी कहते हैं।

उदाहरण के लिए :

एक अर्थव्यवस्था केवल पनीर का उत्पादन करती है। अगर एम = 20, पी = रु 5 प्रति टुकड़ा तो एम/पी = पनीर के 4 टुकड़े। यह बताता है कि मौजूदा कीमतों पर अर्थव्यवस्था में मुद्रा पनीर के 4 टुकड़े खरीदने के लिए सक्षम है।

मुद्रा माँग फलन यह दर्शाता है कि मुद्रा की असली मात्रा जो लोग पकड़ना चाहते हैं यह किस पर निर्धारित है। एक साधारण मुद्रा माँग फंक्शन है

(M/P)3 = k.Y

जहाँ

K = एक चर है जो बताता है कि लोग अपनी आय के हर रुपये के लिए कितनी मुद्रा पकड़ना चाहते हैं। यह समीकरण बताता है कि ‘रियल मनी बैलेंस’ की माँग वास्तविक आय के अनुपात में होती है

कैम्ब्रिज समीकरण और फिशर का परिमाण सिद्धांत

समानता और अंतर

फिशर का परिमाण सिद्धांत समीकरण मुद्रा और लेनदेन के बीच संबंध स्थापित करता है :

एम × वी = पी × टी – (1)

लेकिन कैम्ब्रिज अर्थशास्त्र मुद्रा की मात्रा सिद्धांत के माध्यम से आय को मुद्रा से जोड़ते हैं

एमडी = के × पी × वाई - 2

मुद्रा की माँग मौद्रिक आय यानि पी × वाई का एक फंक्शन है। इस मौद्रिक आय का एक अंश नकदी के रूप में जनता द्वारा माँगा जाता है। दोनों की तुलना करने पर यह पता लगता है कि समीकरण में वाई उत्पादन की भौतिक मात्रा है (वास्तविक आय), और इसलिए यह लेनदेन समीकरण के बराबर है। (1) में इसे यह पता चलता है कि वी = के और के = 1/वी

यानि कि एक दूसरे का व्युत्क्रम है। उदाहरण के लिए मुद्रा का स्टॉक जो लोग पकड़ना चाहते हैं, वह उनकी कुल आय (लेनदेन) का चौथा हिस्सा है। और इसलिए के = 0.25 और वी = 1/के = 4 अगर मुद्रा की पूर्ति लेनदेन के मूल्य का चौथा हिस्सा होगी तब प्रत्येक रुपया औसतन चार गुना इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

यदि “के” बड़ा होगा, तो लोग इच्छुक होंगे कि वे अपनी आय के प्रत्येक रुपये के लिए बहुत सारी मुद्रा पकड़ें। यदि “के” छोटा होगा तो मुद्रा का हाथ परिवर्तन कभी-कभी होगा। “के” छोटा होने पर लोग थोड़ी मुद्रा पकड़ने की इच्छा करेंगे, तब “वी” बड़ा होगा और मुद्रा बार-बार हाथ बदलेगी। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि मुद्रा की माँग का पैरामीटर “के” और मुद्रा का वेग “वी” एक दूसरे से नकारात्मक रूप से जुड़े हुए हैं।

स्थिर वेग (Constant velocity)

मुद्रा का स्थिर वेग मानने से समीकरण मुद्रा का परिणाम सिद्धांत बन जाता है। वास्तव में अगर मुद्रा का माँग-फंक्शन बदलता है तो वेग में बदलाव आता है। उदाहरण के लिए स्वचालित टैलर मशीन शुरु किए जाने पर लोगों की औसत मुद्रा की माँग कम हो गई है।

समीकरण अब निम्न रूप में है :

एम × वी’ = पी × वाई

जहाँ

वी’ = स्थिर वेग

अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा के कारण मौद्रिक सकल घरेलू उत्पाद में आनुपातिक परिवर्तन होता है। दूसरे शब्दों में, यदि वी स्थिर है तो अर्थव्यवस्था में उत्पादन के रुपये मूल्य को मुद्रा की मात्रा निर्धारित करती है।

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Rahul on 17-08-2020

Mudra ka parinaam sidhant ki vekhaya kre keninets dristi ko spsat kre bateye prinaam sidhant samann hi h. Iskq answer kya hoga batie

Pooja biswas on 17-07-2020

Mudra ka parinam siddhant kya hai iski alochnatmak vyakhya kijiye

Saloni on 06-12-2019

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Lalita on 04-12-2019

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Shahid on 22-11-2019

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Examine the cambridge vesion of quantity theory of money



फिशर के सिद्धांत में मुद्रा की मांग क्या है?

इरविंग फिशर ने अपने सिद्धान्त में मुद्रा की मांग की अपेक्षा मुद्रा की पूर्ति को अधिक महत्व दिया है। फिशर ने बताया कि मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होने पर कीमत स्तर परिवर्तित होता है जबकि मुद्रा की माँग का कीमत स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार फिशर केवल मुद्रा के पूर्ति पक्ष को अधिक महत्व देते है।

मुद्रा सिद्धांत क्या है?

मुद्रा का परिमाण सिद्धांत हमें अर्थव्यवस्था पर मुद्रा के असर का विश्लेषण करने में मदद करता है। राशि एम/पी को मुद्रा की क्रय शक्ति के बारे में बताता है। एम/पी को रियल मनी बैलेंस भी कहते हैं।

एम फ्रीडमैन के अनुसार मुद्रा का परिमाण सिद्धांत क्या है?

= L2(r). जहांM2, मुद्रा को सट्टा मांग है और r ब्याज िर। रेखागखणतीय रूप में, यह एक समतल चक्र है जो बायींऔर में िायींओर नीचेकी ओर ढाल (negativeslope) होता है। परन्तु ब्याज की बहुत नीची िर पर पर मुद्रा को सट्टा मांग पूणातया लोचिार बन जाती है।

मुद्रा क्या है सिद्धांत के अनुसार मुद्रा का मूल्य किस पर आधारित है?

मुद्रा की पूर्ति के दृष्टिकोण से, हमें इसके करेंसी निगर्मन कार्य पर ध्यान देना है। केंद्रीय बैंक द्वारा निगर्मित करेंसी, जनता के पास हो सकती है अथवा व्यावसायिक बैंकों के पास, इसे 'उच्च शक्ति द्रव्य' कहा जाता है अथवा 'रिजर्व द्रव्य' अथवा 'मौद्रिक आधार' क्योंकि यह साख निर्माण के आधार के रूप में कार्य करता है।