गाय के थन का आकार कैसे बढ़ाएं? - gaay ke than ka aakaar kaise badhaen?

इलाज : इलाज के लिए एंटीबायोटिक टीके लगवाएं। पैरों में हुए जख्मों पर नीला थोथा 5 फीसदी घोल, फार्मालीन 2 फीसदी या जिंक सल्फेट 10 फीसदी का घोल बनाकर लगाने से पैरों में हुए जख्म ठीक हो जाते हैं। बचाव के लिए जानवर को साफ सुथरी जगह पर रखें।   

पशुपालन करने वाले किसान भाई हमेशा ये सोचते रहते हैं के कैसे वो अपने पशुओं का दूध बड़ा सकते हैं, साथ ही कुछ ऐसी डाइट के बारे में बता चल जाए कि गाय-भैंस की लेवटी यानि की अडर बढ़ा सकें। तो किसान भाइयों आज हम आपको एक ऐसी डाइट के बारे में बताने वाले हैं जिससे आपके पशु को तीन फायदे मिलेंगे।

यानि कि आपके पशुओं को एक ही चीज देने से आपको अनेक फायदे मिलेंगे। दूध उत्पादन और लेवटी बढ़ने के साथ साथ इससे आपके पशु के दूध का फैट भी बढ़ेगा। इसके लिए सबसे पहले आपको मक्के को पिसवा के बिलकुल आटे की तरह बना लेना है, ध्यान रहे कि ये बिलकुल बारीक पिसा हो।

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उसके बाद इसे छान के इसमें पानी डालें और बिलकुल आटे की तरह हिलाएं और अच्छे से इसका चुरा बना लें। अब इसमें आपको आटा डालना है और इसे अच्छी तरह से मिला लेना है। इसके बाद इसमें पानी डाल के आटे की तरह गूंध लें। बाद में इसमें अजवाइन डाल दें।

अब इसे गोल गोल पेड़े जैसे गोले बना लें। अब आपको इसे रोटी की तरह बेल लेना है और तवे के ऊपर बिलकुल अच्छी तरह से रोटी की तरह सेक लेना है। अब एक बर्तन में सरसों का तेल लेना है और इसमें थोड़ा नमक डाल दें और अच्छी तरह से मिला लें। अब इस तेल को उस रोटी के ऊपर दोनों तरफ अच्छी तरह से लगा दें।

अब इस रोटी को अपने पशु को खिला दें। इसी तरह की 3-4 रोटियां सुबह और तीन चार रोटियां शामको खिलाने से आपके पशु का दूध भी बढ़ेगा, दूध में फैट की मात्रा भी बढ़ेगी और साथ ही आपके पशु के अडर यानि लेवटी के आकार में भी बढ़ोतरी होगी। ज्यादा जानकारी के लिए नीचे दी गई वीडियो देखें…

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इस बीमारी को वैक्सीनिया या वेरीओला भी कहते हैं। यह एक घातक, संक्रामक  एवं छूत का रोग है। यह प्रायः  दूध देने वाली  गायों  एवं भैंसों में अधिक पाया जाता है इस रोग में शरीर की त्वचा पर विशेष प्रकार के फफोले उत्पन्न हो जाते हैं और थन तथा अयन पर दाने निकल आते हैं जो बाद में फूटकर घाव बन जाते हैं।

रोग का कारण: यह काऊ पाक्स (Cow Pox) नामक विषाणु (Virus) द्वारा होता है।

रोग ग्रहणशील पशु: यह रोग गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊंट तथा घोड़ो में होता है। भेड़ और बकरियों के लिए यह रोग अधिक संक्रामक है।

रोग फैलने की विधियां

  • रोगी पशुओं के सीधे संपर्क में आने से।
  • रोग ग्रस्त पशु के चारे पानी तथा मल मूत्र से।

यह रोग निम्न प्रकार से फैलता है-

  • दूध निकालने वाले के हाथों से।
  • दुग्ध दुहने की मशीन से।
  • थन के ऊपर बने घाव से विषाणु का प्रवेश हो जाना।
  • पशु के बिछावन इत्यादि के संपर्क से।

रोग ग्रस्त पशु की देखरेख करने पर उस मनुष्य को लग जाती है। अधिकांश चेचक माता पशुओं में ही अधिक होता है क्योंकि गाय भैंसों का दूध निकालने के लिए मनुष्य कई पशुओं के संपर्क में आते हैं अर्थात रोग फैलने की शुरुआत मनुष्य करता है। गर्मी में तो विषाणु निष्क्रिय हो जाते हैं इसलिए गर्मी के अपेक्षा सर्दी में रोग अधिक पाया जाता है।

लक्षण उत्पन्न होने का समय अर्थात इनक्यूबेशन पीरियड: रोग के लक्षण 3 से 7 दिन में प्रकट हो जाते हैं।

रोग के लक्षण

पशुओं में पहले हल्का सा बुखार होता है। पशु की भूख कम हो जाती है। पशु जुगाली करना बंद कर देता है। मादा पशु के थन गर्म और कुछ सूजन आ जाती है। नर पशुओं के अंडकोष पर भी दाने पाए जाते हैं। दूध देने वाले पशुओं को दूध दुहने में कठिनाई होती है। अतः पशु पैर चलाता है। अयन के ऊपर छाले हो जाते हैं। रोगी पशुओं में जो छाले अथवा दाने पाए जाते हैं वह निम्नलिखित अवस्थाओं से होकर गुजरते हैं:

  1. रोसियोला अवस्था: त्वचा के ऊपर छोटा सा भाग लाल हो जाता है।
  2. पैपुलर अवस्था: त्वचा का लाल भाग मध्य से उभरकर ग्रंथिका बनाता है इसके 7 से 8 दिन में छाले बन जाते हैं।
  3. वेसिकुलर अवस्था: ग्रंथिकायें पीली  या नीली हो जाती है और इनमें लसीका भर जाती है। लसिका से भरे पैपूल, ही छाले का रूप लेते हैं यह छाले गोल होते हैं तथा बीच में दबे होते हैं।
  4. पशचुलर अवस्था: छालों में भरा लसीका गाढ़ा हो जाता है। इसका रंग भूरा अथवा हल्का पीला होता है। छालों से भरा लसिका 10 से 11 दिनों में सूखने लगता है।
  5. डेसीकेशन या स्केब: इस अवस्था में छालों का लसीका सूखकर पीला खुरंट या पपड़ी बन जाता है। यह खुरंट, लक्षण पैदा होने के 3 सप्ताह बाद गिर जाते हैं। खुरंट गिर जाने के बाद इन के नीचे गड्ढे बन जाते हैं। कभी-कभी यह चिन्ह सदैव को रह जाते हैं। सांड के अंडकोष और बगल में चिन्ह मिलते हैं। चेचक के चिन्ह कभी-कभी जांघ, माथे और बगल में पाए जाते हैं। अयन पर वेसिकल गोल होते हैं तथा  थनों पर अंडाकार होते हैं।

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पशु इस रोग से 3 से 4 सप्ताह में ठीक हो जाता है परंतु इस रोग के बिगड़ने से थनैला रोग उत्पन्न हो जाता है।

और देखें :  डेयरी पशुओं में प्रजनन क्षमता सुधार के लिए मद के लक्षणों की पहचान भी आवश्यक

रोग निदान: लक्षणों के अनुसार रोग के लक्षण देखकर पहचान की जाती है। फोटो वह दर्द युक्त चेचक के फफोले

प्राथमिक चिकित्सा

रोग के कारण थन की त्वचा जगह-जगह से फट गई हो तो कोई भी जीवाणु नाशक मल्हम, या दवा जैसे बोरिक एसिड मल्हम, पेंसिलिंन  क्रीम, समान भाग जिंक ऑक्साइड और जैतून का तेल मिलाकर 3% सैलिसिलिक एसिड को ग्लिसरीन में मिलाकर थनों पर लगाना चाहिए। त्वचा को मुलायम करने वाले मलहम लगाएं जिसमें प्रतिजैविक औषधि भी हो, इससे पशुओं के दूध को दुहने में सहायता मिलती है। द्वितीयक संक्रमण को रोकने के लिए अधिक समय तक कार्य करने वाली पेनिसिलिन इंटरमस्कुलर विधि से दें। पशु ठीक हो जाने पर, जीवन भर के लिए तो नहीं परंतु वर्षों तक  के लिए रोग मुक्त हो जाता है। अतः वैक्सीन की ना तो आवश्यकता होती है और न ही लगाई जाती है। यह रोग अधिकतर कम पशुओं में ही होता है। मनुष्य में चेचक की रोकथाम हेतु जिस वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है वह गायों की चेचक के विषाणु से ही बनाई जाती है।

रोग की रोकथाम एवं बचाव

  • रोगी पशुओं को अलग कर देना चाहिए।
  • रोगी पशुओं को अंत में दुहना चाहिए।
  • ग्वाला रोगी पशुओं का दुग्ध निकालने के पहले एवं बाद में अपने हाथों को पोटेशियम परमैंगनेट के 1: 1000 के घोल से अवश्य धुले।
  • जिन मनुष्यों के हाल ही में चेचक का टीका लगा हो अथवा चेचक हो गई हो उन्हें पशुओं के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए।
  • रोगी पशु के नीचे बच्चों को दूध नहीं चूसने देना चाहिए। साफ सफाई का समुचित ध्यान देना आवश्यक है।

और देखें :  असामान्य या कठिन प्रसव (डिस्टोकिया) के कारण एवं उसका उपचार

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

लेखक

  • गाय के थन का आकार कैसे बढ़ाएं? - gaay ke than ka aakaar kaise badhaen?
    गाय के थन का आकार कैसे बढ़ाएं? - gaay ke than ka aakaar kaise badhaen?

    डॉ. संजय कुमार मिश्र

    पशु चिकित्सा अधिकारी, पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश, पूर्व सहायक आचार्य, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत

    गाय का थन बढ़ाने के लिए क्या खिलाए?

    गाय या भैंस के थन बढ़ाने की दवा.
    विटामिन एच आपको पाउडर या तरल पदार्थ के रूप में आसानी से मिल जाएगी।.
    अगर आप तरल विटामिन एच की एक बोतल खरीदते हैं तो इसकी कीमत करीब 700 रुपए तक हो सकती है।.
    आप भैंस या गाय को पाल रहे हैं तो आप उन्हें प्रसव से 2 महीने पहले विटामिन एच की दवा देना शुरू कर सकते हैं.

    गाय को गाभिन करने के लिए क्या करें?

    पशुपालक गाय या भैंस को गाभिन करवाने के लिए इन बातों का ध्यान रखें.
    अच्छे आहार के साथ – साथ 50 – 60 ग्राम उच्च गुणों वाला खनिज मिश्रण प्रतिदिन दें |.
    यदि पशु अन्त: कृमियों से ग्रसित है तो पशु – चिकित्सक की सलाह से कृमिनाशक दवा दें |.
    मद के लक्षण पहचान कर उचित समय पर गर्भित करायें |.

    गाय के थन में दूध नहीं आने का क्या कारण है?

    इसके बनने के मुख्य कारण चोट लगना, अंगूठे से दूध निकालना या फिर बछड़े के द्वारा थन को काटने से यह समस्या बन जाती है। इस बीमारी में गर्म पानी का सेक किया जाता है। इसके बाद इसमें आयोडिन क्रीम या ट्रपनटाइन तेल का मसाज किया जा सकता है। थनों में कोई चोट लगने, चेचक की बीमारी, मुंहखुर आदि के कारण थन फट जाते हैं।

    दूध के ऊपर बढ़ाने के लिए गाय को क्या दिया जाता है?

    सरसों का तेल और आटे से बनाएं दूध बढ़ाने की दवा सबसे पहले 200 से 300 ग्राम सरसों का तेल, 250 ग्राम गेहूं का आटा लें। अब दोनों को आपस में मिलाकर शाम के समय पशु को चारा व पानी खिलाने के बाद खिलाएं। ध्यान रहे दवा खिलाने के बाद पशु को पानी नहीं पिलाना है।