गायत्री मंत्र कितने दिन में सिद्ध हो जाता है? - gaayatree mantr kitane din mein siddh ho jaata hai?

1 - सुबह बिस्तर से उठते ही अष्ट कर्मों को जीतने के लिए 8 बार उच्चारण करें ।
2 - सुबह पूजा में बैठकर कम से तीन माला या 108 बार जप करें ।
3 - भोजन करने से पूर्व 3 बार उच्चारण करने से भोजन अमृत के समान हो जायेगा ।


4 - घर से बाहर जाते समय 3 या 5 बार समृद्धि सफलता और सिद्धि के लिए उच्चारण करें ।
5- किसी भी मन्दिर में जाने पर 12 बार परमात्मा के दिव्य गुणों को याद करने के लिए उच्चारण करें ।
6- अगर छींक आ जाए तो उसी समय 1 बार उच्चारण करने से अमंगल दूर हो जाते हैं । 7- सोते समय 7 बार सात प्रकार के भय दूर करने के लिए उच्चारण करें ।

गायत्री महामंत्र
।। ॐ भूर्भुवः स्वःतत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

इस मंत्र को सूर्य देवता की उपासना साधना के लिये भी प्रमुख माना गया है । इसलिए इसका जप या उच्चारण करते समय भाव करें कि- हे प्रभू! आप हमारे जीवन के दाता हैं आप, हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं आप, हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं । हे संसार के विधाता हमें शक्ति दो कि हम आपकी ऊर्जा से शक्ति प्राप्त कर सकें, कृपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें ।

गायत्री महामंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या- इस मंत्र के पहले नौं शब्द ईश्वर के दिव्य गुणों की व्याख्या करते हैं ।

1- ॐ = प्रणव ।
2- भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाले ।
3- भुवः = दुख़ों का नाश करने वाले ।
4- स्वः = सुख़ प्रदान करने वाले ।
5- तत = वह ।


6- सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल ।
7- वरेण्यं = सबसे उत्तम ।
8- भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाले ।
9- देवस्य = प्रभू ।
10- धीमहि = आत्म चिंतन के* *योग्य (ध्यान) ।


11- धियो = बुद्धि ।
12- यो = जो ।
13- नः = हमारी ।
15- प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें ।


अर्थात- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।

हिंदू धर्म के अनुसार गायत्री मंत्र में वो शक्ति होती है जिसकी मदद से व्यक्ति अपनी जिंदगी से जुड़ी हर समस्या को हल कर सकता है. गायत्री मंत्र का जाप करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. अगर किसी व्यक्ति को नौकरी या रोजगार में परेशानी आ रही हो तो उसे गायत्री मंत्र का जाप लाभ दे सकता है. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे गायत्री मंत्र का जाप करने से आप अपनी सभी समस्याओं को दूर कर सकते हैं.  

गायत्री मंत्र का जाप कैसे करें-

-शुक्रवार को सबसे पहले पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री मां का ध्यान करें.

-गायत्री मंत्र के आगे-पीछे श्री का संपुट लगाकर जाप करें.

-रविवार का व्रत रखना और भी लाभकारी हो सकता है.

शत्रुओं से परेशान हैं तो ऐसे करें गायत्री मंत्र का जाप-

-मंगलवार, अमावस्या या रविवार को लाल वस्त्र पहनें, मां दुर्गा का ध्यान करें.

-गायंत्री मंत्र के आगे-पीछे क्लीं बीज मंत्र का तीन बार संपुट लगाकर 108 बार जाप करें.

-ऐसा करने से शत्रुओ पर विजय प्राप्त होगी, परिवार में एकता बढ़ेगी, मित्रों से प्रेम बढ़ेगा.

-गायत्री मंत्र का जाप करने से मिलते हैं ये लाभ-

-गायत्री मंत्र का जाप करने से सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है. रोगों से मुक्ति में गायत्री मंत्र का जाप अचूक माना गया है. इसके लिए सबसे पहले किसी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में जल भरने के बाद एक लाल आसन पर बैठ जाएं. गायंत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायंत्री मंत्र का जाप करें. मंत्र जाप के बाद पात्र में भरे जल का सेवन करें. ऐसा करने से रोग से छुटकारा मिल जाएगा.

-हर क्षेत्र में सफलता के लिए ऐसे करें गायत्री मंत्र का प्रयोग-

गायत्री मंत्र का प्रयोग हर क्षेत्र में सफलता के लिए सिद्ध माना गया है. विद्यार्थि अगर इस मंत्र का नियम अऩुसार 108 बार जाप करें तो उन्हें सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है. विद्यार्थियों का पढ़ने में मन लगने लगता है. सच्चे मन और विधि पूर्वक गायत्री मंत्र का प्रयोग आपके लिए कल्यणकारी साबित हो सकता है. यदि आपके जीवन में कोई भी समस्या है तो नियम और संयम से गायत्री मंत्र का जाप करें, तो यकीनन आपकी समस्याओं का समाधान हो जाएगा.

गायंत्री मंत्र जाप के नियम-

-गायत्री मंत्र जप किसी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए.

-गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें.

-गायत्री मंत्र जप करने से पहले साफ और सूती वस्त्र पहनें.

-कुश या चटाई का आसन पर बैठकर जाप करें.

-तुलसी या चन्दन की माला का प्रयोग करें.

-ब्रह्ममूहुर्त में यानी सुबह पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र का जाप करें और शाम को पश्चिम दिशा में मुख कर जाप करें.

- इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है.

- गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए. किंतु जिन लोगों का सात्विक खान-पान नहीं है, वह भी गायत्री मंत्र जप कर सकते हैं.

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प्रतिदिन गायत्री मन्त्र का जप विधि के अनुसार यथा शक्ति संख्या में नित्य जप करने से शरीर का स्वास्थ्य, चेहरे का तेज और वाणी का ओज बढ़ता जाता है। बुद्धि में तीक्ष्णता और सूक्ष्मदर्शिता की मात्रा में वृद्धि होती है एवं अनेक मानसिक सद्गुणों का विकास होता है, यह लाभ ऐसे हैं जिसके द्वारा जीवन यापन में सहायता मिलती है। विशेष अनुष्ठान पूर्वक गायत्री मन्त्र को सिद्ध करने से उपरोक्त लाभों के अतिरिक्त कुछ अन्य विशिष्ठ लाभ भी प्राप्त होते हैं जिनको चमत्कार या सिद्धि भी कहा जा सकता है। गायत्री अनुष्ठान की अनेक विधियां हैं, विभिन्न ग्रन्थों और विभिन्न आचार्यों द्वारा पृथक रीति से विधान बताये गये हैं। इसमें से कुछ विधान ऐसी तान्त्रिक प्रक्रियाओं से परिपूर्ण हैं कि उनका तिल तिल विधान यथा नियम पूरा किया जाना चाहिए, यदि उसमें जरा भी गड़बड़ हो तो लाभ के स्थान पर हानि होने की आशंका अधिक रहती है। ऐसे अनुष्ठान गुरु की आज्ञा से उनकी उपस्थिति में करने चाहिए तभी उनके द्वारा समुचित लाभ प्राप्त होता है।<br><br> किन्तु कुछ ऐसे भी राजमार्गी साधन हैं जिनमें हानि की कोई आशंका नहीं, जितना है लाभ ही है। जैसे राम नाम अविधि पूर्वक जपा जाय तो भी कुछ हानि नहीं हर हालत में कुछ न कुछ लाभ ही है। इसी प्रकार राजमार्ग के अनुष्ठान ऐसे होते हैं जिनमें हानि की किसी दशा में कुछ संभावना है। हां लाभ के सम्बन्ध में यह बात अवश्य है कि जितनी श्रद्धा, निष्ठा और तत्परता से साधन किया जायगा उतना ही लाभ होगा। आगे हम ऐसे ही विधि अनुष्ठान का वर्णन करते हैं। यह गायत्री की सिद्धि का अनुष्ठान हमारा अनुभूत है। और भी कितने ही हमारे अनुयायियों ने इसकी साधना को सिद्ध करके आशातीत लाभ उठाया है।<br><br> देवशयनी एकादशी (आषाढ़ सुदी 11) से लेकर देव उठनी एकादशी (कार्तिक सुदी 11) के चार महीनों को छोड़ कर अन्य आठ महीनों में गायत्री की सवालक्ष सिद्धि का अनुष्ठान करना चाहिये। शुक्ल पक्ष की दौज इसके लिये शुभ मुहूर्त है। जब चित्त स्थिर और शरीर स्वस्थ हो तभी अनुष्ठान करना चाहिये। डांवाडोल मन और बीमार शरीर से अनुष्ठान तो क्या कोई भी काम ठीक तरह नहीं हो सकता।<br><br> प्रातःकाल सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व उठकर शौच स्नान से निवृत्त होना चाहिये। फिर किसी एकान्त स्वच्छ, हवादार कमरे में जप के लिये जाना चाहिये। भूमि को जल से छिड़क कर दाभ का आसन फिर उसके ऊपर कपड़ा बिछाना चाहिये। पास में घी का दीपक जलता रहे तथा जल से भरा हुआ एक पात्र हो। जप के लिए तुलसी या चन्दन की माल होनी चाहिये। गंगाजल और खड़िया मिट्टी मिलाकर मालाओं को गिनने के लिए छोटी छोटी गोलियां बना लेनी चाहिये। यह सब वस्तुएं पास में रखकर आसन पर सूर्य की ओर मुख करके जप करने के लिये बैठना चाहिये। शरीर पर धुली हुई धोती हो, और कन्धे से नीचे खद्दर का चादरा या ऊनी कंबल ओढ़ लेना चाहिए। गरदन और सिर खुला रहे।<br><br> प्राणायाम—मेरु दंड सीधा रख कर बैठना चाहिए। आरम्भ में दोनों नथनों से धीरे धीरे पूरी पूरी सांस खींचनी चाहिये। जब छाती और पेट में पूरी हवा भर जाय तो कुछ समय उसे रोकना चाहिये और फिर धीरे-धीरे हवा को पूरी तरह बाहर निकाल देना चाहिये। ‘‘ॐ’’ मन्त्र का जप मन ही मन सांस खींचने रोकने और छोड़ने के समय करते रहना चाहिये। इस प्रकार के कम से कम 5 प्राणायाम करने चाहिये। इससे चित्त स्थिर होता है, प्राण शक्ति तेज होती है और कुवासनाएं घटती हैं।<br><br> प्रतिष्ठा—प्राणायाम के बाद नेत्र बन्द कर के सूर्य के सामने तेजवान अत्यन्त स्वरूपवान कमल पुष्प पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान द्वारा आह्वान करना चाहिये। उनके लिये जगज्जननी, तेजपुंज, सर्वव्यापक, महाशक्ति की भावना धारण करनी चाहिए। मन ही मन उन्हें प्रणाम करना चाहिए और अपने हृदय कमल पर आसन देकर उन्हें प्रीति पूर्वक विराजमान करना चाहिए।<br><br> इसके बाद जप आरम्भ करना चाहिए। ‘‘ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।’’ इस एक मन्त्र के साथ माला का एक मनका फेरना चाहिए। जप एक माला के 108, दाने पूरे हो जायें तो खड़िया की गंगाजल मिश्रित जो गोलियां बना कर रखी हैं उनमें से एक उठा कर अलग रख देनी चाहिए। इस प्रकार हर एक माला समाप्त होने पर एक गोली रखते जाना चाहिए जिससे मालाओं की संख्या गिनने में भूल न पड़े।<br><br> जप के समय नेत्र अधखुले रहने चाहिए। मन्त्र इस तरह जपना चाहिए कि कण्ठ, जिह्वा, तालू, ओष्ठ आदि स्वर यन्त्र तो काम करते रहें पर शब्द का उच्चारण न हो। दूसरा कोई उन्हें सुन न सके। वेद मन्त्र को जब उच्च स्वर से उच्चारण करना हो तो सस्वर ही उच्चारण करना चाहिए। सर्व साधारण पाठकों के लिए स्वर विधि के साथ गायत्री मन्त्र का उच्चारण कर सकना कठिन है इसलिए उसे इस प्रकार जपना चाहिए कि स्वर यन्त्र तो काम करें पर आवाज ऐसी न निकले कि उसे कोई दूसरा आदमी सुन सके। जप से उठने के बाद जल पात्र को अर्घ रूप में सूर्य के सन्मुख चढ़ाना चाहिए। दीपक को अध जली बत्ती को हटाकर हर बार नई बत्ती डालनी चाहिए। अनुष्ठान में सवा लक्ष मन्त्र का जप करना है। इसके लिए कम से कम सात दिन और अधिक से अधिक पन्द्रह दिन लगाने चाहिए। सात, नौ, ग्यारह या पन्द्रह दिन में समाप्त करना ठीक है। साधारणतः एक घन्टे में 15 से लेकर 20 माला तक जपी जा सकती हैं। कुल मिला कर 1158 माला जपनी होती हैं। इसके लिए करीब 60 घण्टे चाहिए। जितने दिन में जप पूरा करना हो उतने ही दिन में मालाओं की संख्या बांट लेनी चाहिए। यदि एक सप्ताह में करना हो तो करीब 8-9 घण्टे प्रति दिन देने पड़ेंगे इनमें से आधे से अधिक भाग प्रातःकाल और आधे से कम भाग तीसरे पहर पूरा करना चाहिए। जिन्हें 15 दिन में पूरा करना हो उन्हें करीब 4 घण्टे प्रतिदिन जप करना पड़ेगा जो कि प्रातःकाल ही आसानी से हो सकता है।<br><br> जप पूरा हो जाय तब दूसरे दिन एक हजार मन्त्रों के जप के साथ हवन करना चाहिए। गायत्री हवन में वैदिक कर्म काण्ड की रीतियां न बरती जा सकें तो कोई हानि नहीं। स्वच्छ भूमि पर मिट्टी की वेदी बना कर पीपल, गूलर या आम की समिधाएं जलाकर शुद्ध हवन सामग्री से हवन करना चाहिए। एक मन्त्र का जप पूरा हो जाय तब ‘स्वाहा’ के साथ सामग्री चढ़ाने चाहिए। एक दूसरा साथी हवन में और बिठाना चाहिए जो आहुति के साथ घी चढ़ाता जाय। जब दस मालाएं मन्त्र जप के साथ हवन समाप्त हो जाय तो अग्नि की चार प्रदक्षिणा करनी चाहिए। तत्पश्चात् भजन, कीर्तन, प्रार्थना, स्तुति करके प्रसाद का मिष्ठान्न बांटकर कार्य करना चाहिए।<br><br> जिन्हें गायत्री मन्त्र ठीक रीति से याद न हो सके वे ‘‘ॐ भूर्भुवः स्वः’’ केवल इतना ही जप करें। जिन दिनों अनुष्ठान चल रहा हो, उन दिनों एक समय ही सात्विक भोजन करना चाहिए, सन्ध्या को आवश्यकता पड़ने पर दूध या फल लिया जा सकता है। भूमि पर सोना चाहिए, हजामत नहीं बनवानी चाहिए, ब्रह्मचर्य से रहना चाहिए। चित्त को चंचल क्षुब्ध या कुपित करने वाला कोई काम नहीं करना चाहिए। कम बोलना, शुद्ध वस्त्र पहनना, भजन, सत्संग में रहना, स्वाध्याय करना, तथा प्रसन्न चित्त रहना चाहिए। अनुष्ठान पूरा होने पर सत्पात्रों को अन्न धन का दान देना चाहिए।<br><br> इस प्रकार सवालक्ष जप द्वारा गायत्री मन्त्र सिद्ध कर लेने पर वह चमत्कार पूर्ण लाभ करने वाला हो जाता है। बीमारी, शत्रु का आक्रमण, राज दरबार का कोप, मानसिक भ्रांति बुद्धि या स्मरण शक्ति की कमी, ग्रह जन्म अनिष्ट, भूत बाधा, सन्तान सम्बन्धी चिन्ता, धन हानि, व्यापारिक विघ्न, बेरोजगारी, चित्त की अस्थिरता, वियोग, द्वेष भाव, असफलता आदि अनेक प्रकार की आपत्तियां और विघ्न बाधाएं दूर होती हैं। यह सिद्ध करने वाला अपनी और दूसरों की विपत्ति टालने में बहुत हद तक दूर करने में किस प्रकार समर्थ होता है। इसका वर्णन अगले अंग में करेंगे।<br><br> बुरे कर्म का फल अच्छा हो ही नहीं सकता, बुरा कर्म करते हुए जो किसी को फलता फूलता देखा जाता है वह उसके उस बुरे कर्म का फल नहीं है, वह तो पूर्व के किसी शुभ कर्म का फल है जो अभी प्रकट हुआ है। अभी जो वह बुरा कर्म कर रहा है उसका फल तो आगे चलकर मिलेगा। </div> <div class="magzinHead"> <div style="text-align:center"> <a target="_blank" href="http://literature.awgp.org/book/gayatri_ki_chamatkari_sadhana/v1.1" title="First"> <b>&lt;&lt;</b> <i class="fa fa-fast-backward" aria-hidden="true"></i></a> &nbsp;&nbsp;|&nbsp;&nbsp; <a 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गायत्री मंत्र को सिद्ध कैसे करते हैं?

1 - सुबह बिस्तर से उठते ही अष्ट कर्मों को जीतने के लिए 8 बार उच्चारण करें । 2 - सुबह पूजा में बैठकर कम से तीन माला या 108 बार जप करें । 3 - भोजन करने से पूर्व 3 बार उच्चारण करने से भोजन अमृत के समान हो जायेगा । 4 - घर से बाहर जाते समय 3 या 5 बार समृद्धि सफलता और सिद्धि के लिए उच्चारण करें ।

मंत्र सिद्ध होता है तो क्या पता चलता है?

जब बिना जाप किये साधक को लगे की मंत्र-जाप स्वतः चल रहा हैं तो मंत्र की सिद्धि होनी अभिष्ट हैं। साधक सदैव अपने इष्ट -देव की उपस्थिति अनुभव करे और उनके दिव्य-गुणों से अपने को भरा समझे तो मंत्र-सिद्ध हुआ जाने।

गायत्री जप कब फलीभूत होता है?

गायत्री मंत्र जाप का समय गायत्री मंत्र के जाप का तीन समय है। पहला समय है सूर्योदय से ठीक पहले, जिसे सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए। दूसरा समय है दोपहर का। तीसरा समय है सूर्यास्त से ठीक पहले और सूर्यास्त के बाद तक करना चाहिए।

मंत्र सिद्ध होने के बाद क्या होता है?

मंत्र जब सिद्ध हो जाता है तो उक्त मंत्र को मात्र तीन बार पढ़ने पर संबंधित मंत्र से जुड़े देवी, देवता या अन्य कोई आपकी मदद के लिए उपस्थित हो जाते हैं। अंत में मंत्र जिन्न के उस चिराग की तरह है जिसे रगड़ने पर उक्त मंत्र से जुड़े देवता सक्रिय हो जाते हैं। मंत्र एक प्रकार से मोबाइल के नंबरों की तरह कार्य करता है।