हमें गुस्सा क्यों नहीं करना चाहिए? - hamen gussa kyon nahin karana chaahie?

 

हमें गुस्सा क्यों नहीं करना चाहिए? - hamen gussa kyon nahin karana chaahie?

“क्रोध” एक ऐसी भावना है
जो व्यक्ति के सभी गुणों को नष्ट कर देता है।

क्रोध इंसान के सकारात्मक परिवेश को नष्ट करता हैं,
इसलिए क्रोध से अपने अंतर्मन को हमेशा दूर रखें
वरन यह आपके लक्ष्य में अनेकों बाधाएं उत्पन्न करेगा।

क्रोध या व्यर्थ की उत्तेजना हमारे भीतर
की शक्ति का हनन करके,
पतन के द्वार पर जाकर छोड़ देती है।

क्रोध से सिर्फ शारीरिक नहीं एवम्
मानसिक विकार जुड़े हुए हैं जो
कि व्यक्ति को नकारात्मक सोच की तरफ धकेल देते है।

क्रोध किसी समस्या का समाधान नहीं देता
इसलिए सदैव सकरात्मक सोचे और
निरंतर अपनी आत्मशक्ति का प्रयोग कर
अपने लक्ष्य की प्राप्ति करें।

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गुस्सा क्यों नहीं करना चाहिए 10 कारण – 10 Facts About Anger

व्यक्ति सदैव अपने कर्म-कौशल और
कर्तव्य पालन की प्रक्रिया
से पहचाना जाता है।

अपने से बड़ों का आदर-सत्कार करने
एवम् अपने से उम्र में छोटो का मार्गदर्शन करने से
इंसान के चरित्र का पता चलता है।

एक सहनशील एवम् धैर्यवान व्यक्ति की यही पहचान होती है,
कारण चाहे जो भी हो वो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना अच्छे से जानता है।
जटिल से जटिल समस्या में
अपनी जीवन रूपी नैया को पार लगाने में सक्षम होता है।

दैहिक स्तर पर क्रोध करने से
ह्रदय की गति बढ़ जाती है
इसी कारण रक्त चाप भी बढ़ जाता है।

सुखी एवम् समृद्ध जीवनशैली की प्राप्ति हेतु
यह अतिआवश्यक है कि इंसान अपनी ऊर्जा का दुरपयोग न करे
अपितु सदिपयोग करके राष्ट्र एवम् समाज हितैषी बने।

Alone Status – दुश्मन की कोई जरूरत नहीं।

हमें गुस्सा क्यों नहीं करना चाहिए? - hamen gussa kyon nahin karana chaahie?

Agar aap me ahankar hai or aapko bahut gussa aata hai
to aapko kisi or dushman ki jarurat nhi

अगर आप में अहंकार है और आपको बहुत गुस्सा आता है
तो आपको किसी और दुश्मन की कोई जरूरत नहीं। Read More

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गुस्सा कभी दूसरों को हम पर तो कभी हमें दूसरों पर आता है। कभी-कभी तो पूरी व्यवस्था पर हीं हम बौखला जाते हैं। लेकिन कभी सोचा है कि क्या गुस्से से कभी भी कुछ भी अच्छा बदलाव आता है ? या गुस्सा होने के सिर्फ नुकसान ही होते हैं?

जब हम चीजों को उस तरह से नहीं संभाल पाते, जैसे कि उन्हें संभाला जाना चाहिए और जब हालात बेकाबू होते लगते हैं, तो आपको सक्रिय हो जाने का एक ही तरीका आता है, और वह है अपने अंदर गुस्सा पैदा करना।

आपको लगता है कि इससे मदद मिलेगी, लेकिन सोचिए अगर कोई ऐसी हालत है जिसे संभालना आपको आता है तो क्या आप नाराज होंगे? चूंकि आप यह नहीं जानते कि उस हालत को कैसे संभाला जाए, इसलिए आप गुस्सा होते हैं।

क्योंकि आम तौर पर आप आलस की अवस्था में हैं, या यों कहें कि आप सोए हुए हैं। तो जगने का, कुछ कर गुजरने का आपको एक ही तरीका आता है, और वह है गुस्सा। आपका वह गुस्सा चाहे एक इंसान पर उसके बर्ताव की वजह से हो, या समाज में बढ़ रही अव्यवस्था और अपराध की वजह से हो, बात एक ही है।

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मैं कहता हूं कि जैसे ही आप गुस्से में आते हैं, आप दुनिया को विभाजित कर देते हैं। आप किसी से किसी बात पर नाराज हैं और जैसे ही आप किसी चीज के खिलाफ जाते हैं, तो आप आधी दुनिया को खत्म कर देना चाहते हैं। यह समस्या का हल नहीं है। यह तो एक असहाय और कमजोर आदमी का हथियार है। इंसान इतना ज्यादा कमजोर इसलिए हो गया है, क्योंकि वह समय पर काम नहीं करता। जब चीजों को सुधारा जाना चाहिए, हम नहीं सुधारते, सोते रहते हैं। और फिर जब सब कुछ बेकाबू हो जाता है, तो लगता है कि हम असहाय हैं। तब हमें गुस्से के अलावा कुछ और नहीं सूझता।

आपको लगता है कि इससे मदद मिलेगी, लेकिन सोचिए अगर कोई ऐसी हालत है जिसे संभालना आपको आता है तो क्या आप नाराज होंगे? चूंकि आप यह नहीं जानते कि उस हालत को कैसे संभाला जाए, इसलिए आप गुस्सा होते हैं। कभी-कभी आपको गुस्सा करने से नतीजे निकलते नजर आते हैं। इसीलिए आपको लगता है कि लोगों को बदलने का यही तरीका है, इसी तरीके से काम बन सकते हैं।

जब आप युवा थे, तो आपके माता-पिता आपको एक खास रास्ते पर चलाना चाहते थे, लेकिन आप अलग ही रास्ते जा रहे थे। याद कीजिए उन पलों को जब आपके पिताजी या माताजी गुस्से में भरकर आपके ऊपर चीखते-चिल्लाते थे। तब क्या आप उनकी तारीफ करते थे? नहीं, आप हमेशा उनका विरोध करते थे। उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिए आपको कई बार प्यार से समझाया, लेकिन जब उससे बात नहीं बनी, तो हो सकता है एक दो बार वे आपके ऊपर चिल्लाए हों। लेकिन सोचिए अगर वे रोजाना आप पर गुस्से से भड़कते, तो क्या होता? आप भी उनसे भिड़ जाते। फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि रिश्ते में वे आपके कौन लगते हैं। जब आपके ऊपर कोई गुस्सा करता है तो आपको अच्छा नहीं लगता, लेकिन फिर भी आपको लगता है कि दुनिया की समस्याओं का हल गुस्से से ही निकल सकता है। किसी असहाय आदमी का यह अंतिम सहारा है। यह कमजोर आदमी का हथियार है, जो अपने या अपने आसपास के जीवन के लिए कुछ भी नहीं करता।

तो समस्या पैदा करके क्या आपको समाधान नहीं ढूंढना चाहिए ? हम इतने ज्यादा असंवेदनशील हो गए हैं कि कुछ भी हो जाए, हम समाधान नहीं खोजते। फिर गुस्सा हमें एक सद्गुण मालूम पड़ता है। यह कोई सद्गुण नहीं है, यह तो ऐसा है मानो किसी इंसान ने खुद ही अपना दर्जा घटा लिया हो, यह तो तौहीन है। दरअसल, जब आप गुस्सा होते हैं तो आप इंसान ही नहीं रह जाते। यह बड़े अफसोस की बात है।

देखिए, कहीं न कहीं आपके और तमाम दूसरे लोगों के दिमाग में यह गलत ख्याल बैठ गया है कि लोगों को जगाने का मतलब है, उनके भीतर गुस्सा पैदा करना। जागने का मतलब है ज्यादा जागरूक हो जाना।

मेडिकल आधार पर हम आपको यह बात साबित कर सकते हैं कि अगर आप पांच मिनट के लिए गुस्सा हो जाएं और इस गुस्से की वजह चाहे जो भी हो, तो आपका खून आपको बता देगा कि आप अपने शरीर में जहर घोल रहे हैं। खुद के शरीर में जहर घोलना क्या यह कोई अच्छी बात हो सकती है?

गुस्से में होने के लिए आपको जागरूक होने की जरूरत नहीं है, लेकिन आप अगर गुस्से से बचना चाहते हैं तो आपको जागरूक होना पड़ेगा। जैसे ही आप जागरूक हो जाते हैं, तो सबको साथ लेकर चलने की काबिलियत आपके अंदर आ जाती है और ऐसा होते ही आप खुद ही समस्या का हल बन जाते हैं। आजकल हम अपनी बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल समस्या का हल निकालने में नहीं कर रहे, बल्कि समस्याएं पैदा करने में कर रहे हैं। जब समस्याएं हमें परेशान करती हैं, जब हम असहाय हो जाते हैं, तो हमें तेज गुस्सा आता है और हम समझते हैं कि यही एक तरीका है।

देखिए, कहीं न कहीं आपके और तमाम दूसरे लोगों के दिमाग में यह गलत ख्याल बैठ गया है कि लोगों को जगाने का मतलब है, उनके भीतर गुस्सा पैदा करना।

गुस्से में होने के लिए आपको जागरूक होने की जरूरत नहीं है, लेकिन आप अगर गुस्से से बचना चाहते हैं तो आपको जागरूक होना पड़ेगा।

जागने का मतलब है ज्यादा जागरूक हो जाना। नींद से जाग्रत अवस्था में आ जाना। यही अंतर है। नींद से जाग्रत अवस्था में आना अचेतन अवस्था से चेतना की अवस्था की ओर बढ़ना है। तो ’जागना’ शब्द का इस्तेमाल हमें उस हालात के लिए नहीं करना चाहिए, जब हम अचेतन की ओर जा रहे हैं। जागने का मतलब हमेशा ज्यादा चेतनापूर्ण होना है। जब आप गुस्से में होते हैं, तो आप जागरूक नहीं होते। इस स्थिति में आप तमाम बेवकूफी भरे काम करते हैं। फिर गुस्से में जागने का सवाल कहां होता है?

ज्यादा गुस्सा करने से क्या होता है?

गुस्सा करने से दिल और दिमाग खतरनाक अवस्था तक दुष्प्रभावित होते हैं। दिमाग में खून की नलियां सिकुड़ने से हाई ब्लड प्रेशर के कारण दिल पर दबाव बढ़ जाता है। यह दिल की मांसपेशियां, नर्वस, ब्लड़ वेन्स को डैमेज करते हुए दिल के फंक्शन को प्रभावित कर सकता है। गुस्से की वजह से लार का स्त्राव कम होने से मुंह सूखने लगता है।

क्रोध करने से क्या नुकसान है?

गुस्सा करने से शरीर झेलता है ये 8 नुकसान.
दिमाग पर असर क्रोध आने पर मस्तिष्क में ऐसे रासायनिक तत्व बनते हैं, जिनका शरीर और मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ... .
ब्लड प्रेशर बढ़ना ... .
सोचने की शक्ति कमजोर होना ... .
तनाव ... .
वीक इम्यून सिस्टम ... .
ग्रोथ में कमी ... .
नींद पर बुरा असर ... .
फोन पर गुस्सा करना.

छोटी छोटी बातों पर गुस्सा क्यों आता है?

आज की इस व्यस्त जीवनशैली में काम के तनाव के कारण व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत अधिक प्रेशर में रहने लगा है। जिसकी वजह से अक्सर छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाना एक आम समस्या बन गया है। लेकिन यह चिड़चिड़ाहाट कभी-कभी विकराल गुस्से का रूप ले लेती है।

गुस्से वाले इंसान कैसे होते हैं?

ये लोग हर बात पर तर्क करते हैं और जब तक अपनी बात मनवा ना लें, ये पीछे नहीं हटते हैं. गुस्से में आने के बाद ये बहुत उल्टा-सीधा बोलते हैं और अपने रिश्तों को भी खराब कर लेते हैं. ये लोग खासतौर से अपने से छोटे लोगों पर पूरे हक से गुस्सा करते हैं.