अभी देश आजादी का अमृत महोत्सव (Independence Day) मना रहा है, लेकिन अगर हरित क्रांति (Green Revolution) ना हुई होती तो शायद आज भी हम अन्न की कमी से जूझ रहे होते. 1947 में आजादी मिलने से पहले बंगाल में एक भीषण अकाल पड़ा था, जिसकी वजह से करीब 20 लाख लोग मारे गए थे. उसी वक्त हर किसी को ये बात समझ आ गई थी कि अब कृषि में कुछ अलग करना होगा, तभी खाद्यान्न की कमी से निपटा जा सकता है. इस समस्या को गहराई से समझा एमएस स्वामीनाथन (M. S. Swaminathan) ने और साथ ही इस समस्या का हल भी ढूंढ निकाला. तभी तो उन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है. आज भारत अनाज के मामले में बहुत आगे है. 2021-22 में भारत में 12.96 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ, जबकि 10.64 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ. Show
जानिए क्या हुआ था हरित क्रांति मेंभारत में हरित क्रांति की शुरुआत एम एस स्वामीनाथन ने 1968 में की थी. वैसे तो इस पर काम कुछ साल पहले से ही शुरू हो गया था, लेकिन 1968 में इंदिरा गांधी ने हरित क्रांति की आधिकारिक घोषणा की थी. हरित क्रांति हमारे देश में उस वक्त मुमकिन नहीं हो पाती अगर नॉर्मन बोरलॉग ना होते. बोरलॉग ने मैक्सिको के प्रसिद्ध 'बौना गेहूं प्रजनन कार्यक्रम' की शुरुआत की थी. 1959 के दौरान स्वामीनाथन ने बोरलॉग से संपर्क किया और अर्ध बौने गेहूं के प्रजनन वाले बीज मांगे. इसके बाद 1963 में बोरलॉग भारत आए और यहां की खेती का निरीक्षण किया. रबी के सीजन में बोरलॉग के बीजों का उत्तर भारत में कई जगहों पर टेस्ट भी किया गया और नतीजे हैरान करने वाले थे. पाया गया कि मैक्सिको मूल के अर्ध बौने गेहूं के बीज से प्रति हेक्टेयर करीब 4-5 टन पैदावार मिल रही है, जबकि भारतीय नस्ल से सिर्फ 2 टन तक ही पैदावार मिलती थी. जब 1964 में सी. सुब्रमण्यम देश के खाद्य और कृषि मंत्री बने तो उन्होंने ज्यादा पैदावार वाली किस्मों का खूब समर्थन किया. आखिरकार प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इन बौने किस्म वाले बीजों के आयात की मंजूरी दी. नतीजा ये हुआ कि 1968 में किसानों ने करीब 170 लाख टन का रेकॉर्ड गेहूं उत्पादन कर के सबको हैरान कर दिया. धान की खेती में 1950 के दशक में ही आने लगी थी क्रांति1950 के दशक में वैज्ञानिकों ने भारत के देसी गेहूं-धान की किस्मों पर उर्वरकों का इस्तेमाल करना शुरू किया. टेस्टिंग में पाया गया कि उर्रवकों के इस्तेमाल से देसी गेहूं-धान की किस्म वाली फसलें नुकसान होने लगीं. जैसे ही उर्वरक डालते तो फसल गिर जाती. इसकी वजह यह थी कि उस समय जो किस्में बोई जाती थीं, उनका तना बेहद लंबा और पतला होता था. इतना ही नहीं, पौधे की बाली भी छोटी होती थी. वहीं बौनी किस्मों में तना मोटा और छोटा हो गया, साथ ही बाली बड़ी हो गई. यानी अब एक तो हर पौधे से उत्पादन अधिक होता था, ऊपर से पौधा गिरता नहीं था तो नुकसान भी बहुत कम हो गया. इसकी वजह से पैदावार में तगड़ी तेजी देखने को मिली. उस दौरान धान की जापानी किस्म का इस्तेमाल शुरू हो चुका था, जो बौनी प्रजाति थी, जिससे पैदावार बढ़ने लगी थी. जापानी किस्म से किसान को प्रति हेक्टेयर धान की करीब 5 टन तक पैदावार मिलती थी, जबकि देसी किस्म में यह पैदावार सिर्फ 2 टन तक ही सीमित रह जाती थी. धीरे-धीरे समय बीतने के साथ-साथ मक्का, ज्वार, बाजरा आदि की भी संकर किस्में विकसित की गईं, जिससे किसानों की पैदावार बढ़ी. हरित क्रांति से फायदे के साथ-साथ हुए ये नुकसान भीजब देश में हरित क्रांति आई तो पैदावार बढ़ने से किसानों का मुनाफा तेजी से बढ़ा. हालांकि, इस बढ़ी पैदावार में बहुत बड़ी भूमिका रही उर्वरकों और रसायनों की. इन रसायनों और उर्वरकों ने जमीन में लगे पौधे को तो खूब मजूबत और अधिक पैदावार वाला बना दिया, लेकिन जमीन की ताकत कम कर दी. इन्हीं रसायनों और उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल की वजह से आज के वक्त में उपजाऊ मिट्टी बहुत ही कम बची है. जमीन की उर्वरा शक्ति काफी हद तक कम हो गई है. हालात ये हो गए हैं कि अब फिर से ऑर्गेनिक और नेचुरल फार्मिंग को लेकर जागरूकता फैलाने की जरूरत पड़ गई है. Green Revolution एक कृषि सुधार था जिसने 1950 के दशक के अंत तक 1960 के बीच फसलों के उत्पादन को व्यापक रूप से बढ़ा दिया। इसमें फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले कच्चे माल के साथ उच्च अंत तकनीकों और प्रौद्योगिकियों का उपयोग शामिल है। इस तकनीक के आगमन ने वैश्विक कृषि को बदल दिया और भारत सहित विभिन्न विकासशील देशों को बड़े पैमाने पर अकाल से रोका। आश्चर्य है कि भारत में Green Revolution की शुरुआत किसने की? या Green Revolution की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? फिर इस ब्लॉग पर पढ़ें और भारत के साथ-साथ दुनिया में Green Revolution के बारे में सब कुछ पता करें। क्या आप जानते हैं? “हरित क्रांति” शब्द को तीसरे विश्व के कई देशों में सफल कृषि प्रयोगों के लिए लागू किया जाता है। यह भारत के लिए विशिष्ट नहीं है। लेकिन यह भारत में सबसे सफल रहा। Check it : Indira Gandhi biography in hindi Green Revolution का इतिहासअमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग को Green Revolution की शुरुआत का श्रेय दिया जाता है। 1904 के दशक में मेक्सिको में अनुसंधान करते हुए, उन्होंने गेहूं की नई उच्च उपज वाली किस्मों को विकसित किया, जिसमें उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता थी।
अमेरिका के बाद, Green Revolution से दुनिया भर के कई देशों को फायदा हुआ। भारत भी उनमें से एक था जो 1960 के दशक की शुरुआत में आबादी में बड़े पैमाने पर अकाल की वजह से था लेकिन बाद में गेहूं का निर्यातक बन गया। बाद में, बोरलॉग और फॉर फाउंडेशन ने IR8 नामक चावल की एक नई किस्म विकसित करके शोध किया। अब, भारत चावल के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, विशेष रूप से IR8 चावल। दुनिया को खिलाने वाले और हरित क्रांति के जनक के रूप में जाने जाने वाले नॉर्मन बोरलॉग एक अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने गेहूं के नए रोग प्रतिरोध उच्च उपज किस्मों का विकास किया। Check it : Sarojini Naidu biography भारत में Green Revolution क्या है?अगर कृषि गलत हो जाती है, तो हमारे देश में और कुछ भी सही होने का मौका नहीं होगा।” – एम। एस। स्वामीनाथन स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों में भारतीय कृषि प्रणाली सबसे खराब देखी गई। निधियों की कमी, कम उपज वाले कच्चे माल, मशीनरी और प्रौद्योगिकी की कमी , उस समय कुछ मुख्य समस्याएं थीं। कृषि क्षेत्र की बिगड़ती हालत को समझते हुए, भारत सरकार ने Green Revolution की शुरुआत की जिसके माध्यम से देश में उच्च उपज वाले किस्म (HYV) के बीजों का उपयोग किया गया। इसके साथ-साथ सिंचाई सुविधाओं में सुधार और अधिक प्रभावी उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि हुई। इस सब के कारण भारत में उच्च गुणवत्ता वाली फसलों का बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ। इन मुद्दों के लिए एक इष्टतम समाधान खोजने के लिए, 1965 में एमएस स्वामीनाथन के मार्गदर्शन में भारत सरकार ने 1967- 1978 तक चली Green Revolution की शुरुआत की। भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में भी जाना जाता है, एमएस स्वामीनाथन एक भारतीय आनुवंशिकीविद् और प्रशासक हैं। Check it : Rowlatt act Green Revolution की विशेषताएंनीचे दी गई हैं Green Revolution की विशेषताएं:
Check it : Indian Freedom fighters भारत में Green Revolution का प्रभावभारत में Green Revolution के परिणाम को समझें और इसने निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से देश के लाखों लोगों को कैसे प्रभावित किया:
Check it : Indian national movement Green Revolution के आर्थिक प्रभाव
Green Revolution के बाद कृषि में नवीन मशीनों जैसे- ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, ट्यूबवेल, पंप आदि का प्रयोग किया जाने लगा। इस प्रकार तकनीकी के प्रयोग से कृषि का स्तर बढ़ा , कम ,समय और श्रम में अधिक उत्पादन संभव हुआ था। कृषि के मशीनीकरण के चलते कृषि हेतु प्रयोग होने वाली मशीनों के अलावा हाइब्रिड बीजों, कीटनाशकों, खरपतवार नाशक तथा रासायनिक उर्वरकों की मांग में तीव्र वृद्धि होती गई थी।
Check it: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन की कहानी Green Revolution के विभिन्न फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) और अन्य सब्सिडी सेवाओं का प्रावधान भी इसी समय शुरू किया गया था। Green Revolution के फलस्वरूप किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलना संभव हो सका था। किसानों को दिये जाने वाले इस प्रोत्साहन मूल्य से वे नई कृषि तकनीक अपनाने में सक्षम हुए थे और साथ ही देश की प्रगति हुई थी ।
Green Revolution तथा मशीनीकरण से उत्पादन में हुई बढ़ोतरी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के नए अवसर विकसित हुए थे और धीरे-धीरे देश की प्रगति में होती जा रही थी।
Check it : Maurya Samrajya का परिचय Green Revolution के सामाजिक प्रभावGreen Revolution की वजह से भारत के ग्रामीण समाज में व्यापक स्तर पर बदलाव हुए थे। इनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था ग्रामीण समाज का बाज़ारोन्मुख और गतिशील होना।
किसानों की आय बढ़ने से उनके सामाजिक और शैक्षिक स्तर का विकास हुआ था। Green Revolution की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में स्वकेंद्रण की भावना का विकास हुआ था। जिससे पारंपरिक संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकल परिवार की व्यवस्था प्रचलन में आई थी ।
Check it : भारत के लोकप्रिय कवि Green Revolution के राजनीतिक प्रभावभारतीय राजनीति के क्षेत्र में Green Revolution ने दूरगामी प्रभाव डाले गए थे।
Green Revolution ने स्वतंत्रता के बाद बहुत सारे बदलाव आए थे जैसे ज़मींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार , कदमों के चलते भारत में समतामूलक समाज के निर्माण को गति प्रदान की थी। किसानों को बहुत ही सहायता मिली थी, इससे छोटे और मध्यम स्तर के किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और इससे उन्हें शिक्षा तथा राजनीतिक चेतना का विकास हुआ था।
Green Revolution के घटकGreen Revolution में जो नई कृषि रणनीति अपनाई गई उसके घटक निम्न है-
कैसे बनें Motivational Speaker? Green Revolution की कमियां क्या हैं?दुनिया भर में कृषि क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण विकासों में से एक के रूप में पहचाने जाने के बाद भी, Green Revolution में कुछ कमियां थीं। नीचे उल्लेखित भारत में Green Revolution की कमियां हैं-
भूरी दुनिया के विकासशील राष्ट्रों की तुलना में विशेषाधिकार प्राप्त दुनिया के संपन्न देशों में हरित क्रांति का पूरी तरह से अलग अर्थ है।” – नॉर्मन बोरलॉग भारत में Green Revolution के जनकएम एस स्वामीनाथन वह व्यक्ति है, जिन्हे भारत में Green Revolution का जनक माना जाता है। यह मुख्य रूप से पौधे के जेनेटिक वैज्ञानिक है। इन्होने मैक्सिको के बीजों को पंजाब के घरेलू किस्म के बीजों के साथ मिश्रित किया और गेंहू कि फसल के लिए उच्च उत्पादन क्षमता वाले बीज निर्मित किए थे । इनके कार्य की वजह से इन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। Source: Free educationआशा करते हैं कि आपको Green Revolution का ब्लॉग अच्छा लगा होगा ।जितना हो सके अपने दोस्तों और बाकी सब को शेयर करें ताकि वह भी इसकी जानकारी प्राप्त कर सके और जो विद्यार्थी यूपीएससी, एसएससी की तैयारी कर रहे हो तो वह का ज्ञान प्राप्त कर सके ।हमारे Leverage Edu में आपको इसी प्रकार के कई सारे ब्लॉग मिलेंगे जहां आप संपूर्ण जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं ।अगर आपको किसी भी विषय में दिक्कत आ रही हो तो हमारे विशेषज्ञों आपकी सहायता भी करेंगे। हरित क्रांति के नुकसान क्या हैं?श्रम-विस्थापन की समस्या- हरित क्रान्ति के अन्तर्गत प्रयुक्त कृषि यन्त्रीकरण के फलस्वरूप श्रम-विस्थापन को बढ़ावा मिला है। कृषि में प्रयुक्त यन्त्रीकरण से श्रमिकों की मांग पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः भारत जैसी श्रम-अतिरेक वाली अर्थव्यवस्थाओं में यन्त्रीकरण बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न कर सकता है।
हरित क्रांति क्या है इसके फायदे और नुकसान?आज, बहुत से किसान हरित क्रांति के तहत आधुनिक कृषि पद्धतियों का अभ्यास कर रहे हैं, जो फसलों के बढ़ने के पारंपरिक तरीकों को बदलने के लिए सरकार द्वारा प्रेरित एक वैकल्पिक समाधान है। इसके मुख्य उद्देश्यों में खेती करना और अधिक कुशल बनाने, और पूरी दुनिया में भूख को नष्ट करना शामिल है।
हरित क्रांति के दो नकारात्मक प्रभाव क्या थे?(ii) इससे समाज के विभिन्न वर्गो और देशों के अलग- अलग इलाकों के बिच धुर्वीकरण तेज़ गति से हुआ। हरित क्रांति के दो नकरात्मक परिणाम: (i) इससे गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर और अधिक हो गया।
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