हवन करते समय कौन सा मंत्र पढ़ना चाहिए? - havan karate samay kaun sa mantr padhana chaahie?

हवन करते समय क्यों बोला जाता है स्वाहा ?

हवन करते समय कौन सा मंत्र पढ़ना चाहिए? - havan karate samay kaun sa mantr padhana chaahie?

हिंदू धर्म में कोई भी अनुष्ठान और शुभ कार्य को हवन या यज्ञ के बिना अधूरा माना जाता है फिर चाहे वो घर में सत्यनारायण की कथा हो या

हिंदू धर्म में कोई भी अनुष्ठान और शुभ कार्य को हवन या यज्ञ के बिना अधूरा माना जाता है फिर चाहे वो घर में सत्यनारायण की कथा हो या किसी नए काम की शुरुआत। आपने देखा होगा कि हवन के दौरान जितनी बार आहुति डाली जाती है उतनी ही बार मंत्र के अंत में स्वाहा भी बोला जाता है। लेकिन, कभी आपने ये सोचा है कि हर मंत्र के अंत में बोले जाने वाले स्वाहा का अर्थ क्या है। अगर आप भी नहीं जानते हैं तो चलिए हम आपको बताते हैं। लेकिन हम सबसे पहले जानते हैं कि स्वाहा शब्द का क्या अर्थ होता है ।

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स्वाहा का होता है अर्थ है – किसी वस्तु को सही रीति से दूसरों को पहुंचाना। सरल भाषा में बताएं तो जरूरी भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय तक पहुंचाना। बता दें तो हवन में स्वाहा शब्द के उच्चारम का वर्णन श्रीमद्भागवत तथा शिव पुराण में किया गया है। कहते हैं कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में मंत्र -पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन साम्रगी, अघ्र्य या भोग लगाना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वास्तव में स्‍वाहा अग्नि देव की पत्‍नी है इसलिए हवन में हर मंत्र के बाद इनका उच्‍चारण किया जाता है। दरअसल, बात ये है कि कोई भी यज्ञ या हवन तब तक सफल नहीं माना जाता है। जब तक कि हवन का भोग  देवता ग्रहण न कर लें लेकिन, आपको बता दें सभी देवता भोग ग्रहण तब कर सकते हैं, जब तक उसको अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण न किया जाए।
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पौराणिक कथाएं-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं.।  इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था। अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं। यही नहीं पुराणों में बताएगा गया है कि हवन के द्वारा आह्वान किए गए देवता को भोग भी स्वाहा के माध्यम से ही प्राप्त होता है। वहीं, दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार स्वाहा प्रकृति की ही एक कला है, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर संपन्न हुआ था। इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे। अगर कोई भी मंत्र-जप के दौरान स्वाहा का उच्चारण नहीं करेगा, तो उसका जप- तप फलदायी नहीं होगा। यही कारण है कि हवन या यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र स्वाहा पर समाप्त होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यज्ञ में हवन सामग्री के साथ खीर, पूरी और नारियल आदि चढ़ाया जाता है, माना जाता है कि हवन में इन चीजों को अग्नि देव को समर्पित करने से भोग देवताओं तक पहुंच जाता है।

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हवन करते समय क्या मंत्र बोला जाता है?

इसलिए हवन के समय स्वाहा मंत्र का उच्चारण किया जाता है. तब से ही किसी भी हवन या यज्ञ के दौरान आहूति देते समय स्वाहा बोला जाता है. उस मंत्र के उच्चारण से ही देवतागण हविष्य ग्रहण करते हैं. देवता ये तभी ग्रहण कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए.

हवन की शुरुआत कैसे करें?

ऐसे करें हवन : हवन करने से पूर्व स्वच्छता का ख्याल रखें। सबसे पहले रोज की पूजा करने के बाद अग्नि स्थापना करें फिर आम की चौकोर लकड़ी लगाकर, कपूर रखकर जला दें। उसके बाद इन मंत्रों से हवन शुरू करें

हवन में कितनी आहुति देनी चाहिए?

किसी स्वच्छ स्थान पर हवन कुंड का निर्माण करें। हवन कुंड में आम के पेड़ की लकड़ी और कपूर से अग्नि प्रज्जवलित करें। हवन कुंड में सभी देवी- देवताओं के नाम की आहुति दें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिए

हवन में आहुति कैसे दें?

रूई में घी लगाकर लकड़ी के ऊपर रखें। कपूर जलाकर हवनकुंड की ज्वाला प्रज्जवलित करें। इसके बाद बाद घी से 3 या 5 बार गणेशजी, पंचदेवता, नवग्रह, क्षेत्रपाल, ग्राम देवता एवं नगर देवता को आहुति दें। इसके बाद 'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै नमः' मंत्र से माता के नाम से आहुति दें