बात उन दिनों की है, जब इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ भारत आ रही है। महारानी के भारत दौरे की खबरें प्रतिदिन अखबारों में छपती थीं। एलिज़ाबेथ के दरज़ी उसकी पोशाक को लेकर परेशान थे। इंग्लैंड के अखबारों की कतरनें यहाँ के अखबारों में खूब प्रकाशित हो रही थीं कि रानी के लिए कौन-सी पोशाक बनाई जा रही हैं? रानी की जन्मपत्री, प्रिंस फिलिप के कारनामे, नौकरों, बावरचियों आदि के साथ-साथ शाही महल के कुत्तों की तस्वीरें भी छप रही थी। रानी के आगमन को लेकर भारतवर्ष में सनसनी मची हुई थी। रानी के स्वागत के लिए तैयारियाँ धूम-धाम से हो रही थीं। देखते-ही-देखते दिल्ली की कायापलट हो रही थी। सड़कों की सफाई व मुरम्मत भी हो रही थी। सभी मुख्य इमारतें भी सजाई जा रही थीं। Show x एकाएक समस्या सामने आ खड़ी हुई कि जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक गायब थी। पहले भी इस संबंध में राजनीतिक आंदोलन और बहसें हो चुकी थीं, किंतु राजनीतिक आंदोलन कभी किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकते। कुछ दल नाक लगवाने के पक्ष में थे तो कुछ कटवाने के। इसलिए समस्या ज्यों-की-त्यों बनी रही। किंतु एक हादसा हो गया कि हथियार-बंद जवानों के पहरे के होते हुए भी जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक कट गई। किंतु रानी के आगमन के समय नाक के कटने का अर्थ तो अपनी नाक कटाने के समान हो गया। देश के विभिन्न स्थानों पर शुभचिंतकों की मीटिंग बुलाई गई और एक मत होकर कहा गया कि रानी के आने से पहले नाक लग जानी चाहिए। इसी संदर्भ में तुरंत एक मूर्तिकार को बुलाया गया। मूर्तिकार पैसों के मामले में कुछ लाचार था। उसने अधिकारियों के चेहरों की घबराहट को जान लिया। तभी उसने एक आवाज़ सुनी कि जॉर्ज पंचम की नाक लगानी है। मूर्तिकार ने सहज भाव से उत्तर दिया, “नाक लग जाएगी। पर मुझे यह मालूम होना चाहिए कि यह लाट कब और कहाँ बनी थी। इस लाट के लिए पत्थर कहाँ से लाया गया था?” अधिकारियों के चेहरों की हवाइयाँ उड़ गईं। अंततः पुरातत्त्व विभाग की फाइलों के ढेर-के-ढेर खोले गए, किंतु कुछ भी पता न चल सका। अधिकारी गण फिर परेशान हो गए। एक खास कमेटी का गठन किया गया, उसे नाक लगाने का काम सौंप दिया गया। मूर्तिकार ने कमेटी को सुझाव दिया कि मैं देशभर के पर्वतों पर जाकर पत्थर की किस्म का पता लगाऊँगा। कमेटी के सदस्यों की जान-में-जान आ गई। सभापति ने भाषण भी जारी कर दिया, “ऐसी क्या चीज़ है जो हिंदुस्तान में मिलती नहीं। हर चीज़ इस देश के गर्भ में छिपी है, ज़रूरत खोज करने की है। खोज करने के लिए मेहनत करनी होगी, इस मेहनत का फल हमें मिलेगा ……आने वाला ज़माना खुशहाल होगा।” यह भाषण हर अखबार में छप गया। मूर्तिकार हर एक पहाड़ की खाक छान आया, किंतु वह कीमती पत्थर न मिल सका। उसने कहा कि यह विदेशी पत्थर है। सभापति उत्तेजित होकर बोला, “लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं…………तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?” मूर्तिकार चुप खड़ा रहा। बहुत सोचने पर मूर्तिकार के मन में एक विचार कौंध गया। उसने अखबार वालों तक खबर न पहुँचाने की शर्त पर एक सुझाव दिया। देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी तो बनाई गई हैं। उनमें से किसी भी नेता की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से मिलती-जुलती हो तो उसे ले लिया जाए। पहले तो सभा में सन्नाटा-सा छा गया। फिर सभापति ने कहा कि यह काम ज़रा होशियारी से करना। मूर्तिकार ने देश का भ्रमण किया। जॉर्ज पंचम की नाक का नाप उसके पास था। उसने दादा भाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, सुभाषचंद्र बोस, गाँधीजी, सरदार पटेल, गुरुदेव रवींद्रनाथ, राजा राममोहन राय, चंद्रशेखर आज़ाद, मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपतराय, भगतसिंह आदि सबकी मूर्तियों को भली-भाँति देखा और परखा। सबके नाक की माप ली गई पर सबकी नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी थी। वे इस पर फिट नहीं बैठती थी। इस बात से अधिकारी वर्ग में खलबली मच गई। अगर जॉर्ज की नाक न लग पाई तो रानी के स्वागत का कोई अर्थ नहीं था। अंत में मूर्तिकार ने एक और सुझाव प्रस्तुत किया। एक ऐसा सुझाव जिसका पता किसी को नहीं लगना चाहिए था। देश की चालीस करोड़ जनता में से किसी की जिंदा नाक काटकर मूर्ति पर लगा देनी चाहिए। यह सुनकर सभापति महोदय परेशान हो गए। किंतु उसे इसकी अनुमति दे दी गई। अखबारों में केवल इतना ही छपा कि नाक का मसला हल हो गया है और जॉर्ज पंचम की लाट की नाक लग रही है। नाक लगाने से पहले पहरे का पूरा बंदोबस्त कर दिया गया। मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ कर दिया गया। उसकी रवाब (काई) निकाली गई और ताज़ा पानी डाल दिया गया ताकि लगाई जाने वाली नाक जिंदा रह सके, सूख न जाए। अखबारों में छप गया कि जॉर्ज पंचम की जिंदा नाक लगाई गई है, जो बिल्कुल पत्थर की नहीं लगती। उस दिन अखबारों . में किसी प्रकार के उल्लास और उत्साह की खबर नहीं छपी। किसी का ताज़ा चित्र भी नहीं छपा। ऐसा लगता था कि जॉर्ज पंचम की जिंदा नाक लगने से सारे देशवासियों की नाक कट गई थी। किसी की नाक नहीं बची थी। जिन विदेशियों ने हमारे देश को इतने लंबे समय तक गुलाम बनाकर रखा था, उनकी नाक के लिए हम अपनी नाक कटवाने को क्यों तैयार रहते हैं। कठिन शब्दों के अर्थ (पृष्ठ-10) मय = साथ। चर्चा = बातें होना। शाही-दौरा = राजा-महाराजा का आगमन। सेक्रेटरी = सचिव। तूफानी = तेज़। फौज-फाटा = सेना तथा अन्य शाही कर्मचारी। कतरन = अखबार से काटा हुआ अंश। कारनामे = कार्य। बावरची = रसोइया। खानसामा = शाही महल के रसोईघर का प्रबंधक। सनसनी फैलाना = खलबली मचाना। (पृष्ठ-11) जान हथेली पर रखना = जीवन को खतरे में डालना। शान-शौकत = ठाठ-बाट। रहमत = कृपा, दया। कायापलट होना = पूर्णतः परिवर्तन होना। करिश्मा = जादू। जवान होना = पुनः सुधार होना। नाज़नीन = कोमल स्त्री। शृंगार = सजावट । उम्मीद = आशा। दास्तान = कहानी। प्रस्ताव पास करना = किसी मत या विचार को समर्थन देना। पन्ने रंगना = बहुत सारा लिखना। विपक्ष = विरोध। अजायबघर = वह स्थान जहाँ पुरानी वस्तुओं को रखा जाता है। लाट = खंभा, मूर्ति। गुरिल्ला युद्ध = जिस युद्ध में छिपकर वार किया जाता है। हादसा = दुर्घटना । एकाएक = अचानक । गश्त लगाना = पहरेदार का घूमना। खैरख्वाह = शुभ कामना करने वाला। मसला = समस्या। (पृष्ठ-12) मशवरा = सलाह। दिमाग खरोंचना = दिमाग लगाना। फौरन = तुरंत । हाज़िर = उपस्थित । लाचार = मजबूर। हुक्काम = शासक । बदहवास = घबराए हुए। ताका = देखा। छानबीन = जाँच। खता = गलती, दोष। हज़म करना = खा जाना। (पृष्ठ-13) दारोमदार = जिम्मेदारी। जान में जान आना = आशा के कारण आनंद आना। हताश = उदास, निराश । लानत बरसना = धिक्कार का भाव होना। सिर लटकाना = उदास और हताश होना। चप्पा-चप्पा खोजना = हर जगह ढूँढ़ना। तैश = आवेश। बाल डांस = विदेशी नृत्य का एक प्रकार। आँखों में चमक आना = आशा का भाव जागना। होशियारी = सावधानी। (पृष्ठ-14) परिक्रमा = चारों ओर चक्कर लगाना। ढाढ़स बँधाना = हिम्मत देना। हैरतअंगेज़ खयाल = हैरान कर देने वाला विचार। कौंधा = अचानक आया। सन्नाटा = चुप्पी। अचकचाना = चौंक उठना। कानाफूसी होना = कानों-ही-कानों में धीमी-धीमी बातें होना। (पृष्ठ-15) राजपथ = दिल्ली संसद-भवन के पास का एक राजमार्ग। हिदायत = निर्देश। उद्घाटन = शुरुआत। फीता काटना = शुरुआत करना । सार्वजनिक सभा = आम जनता की सभा। अभिनंदन = स्वागत । मानपत्र भेंट = किसी को सम्मान भेट करना। Kritika Chapter 2 Class 10 HBSE प्रश्न 1. जॉर्ज पंचम की नाक Summary HBSE 10th Class प्रश्न 2. Class 10 Kritika Chapter 2 HBSE प्रश्न 3. Kritika Class 10 Chapter 2 HBSE प्रश्न 4. (ख) इस प्रकार की पत्रकारिता आम जनता को रहन-सहन के तौर-तरीके और फैशन के प्रति अवश्य जागरूक करती है किंतु इसका कभी-कभी इतना अधिक प्रभाव पड़ता है कि युवक-युवतियाँ पढ़ाई-लिखाई की अपेक्षा फैशन की ओर अधिक ध्यान देने लगते हैं। ऐसे युवक व युवतियाँ वास्तविकता की अपेक्षा दिखावे पर अधिक विश्वास करने लगते हैं। जार्ज पंचम की नाक पाठ का उद्देश्य क्या है?उत्तर- जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का उद्देश्य यह है कि अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भी सत्ता से जुड़े विभिन्न प्रकार के लोगों की औपनिवेशिक दौर की मानसिकता और विदेशी आकर्षण पर गहरी चोट करना है।
जॉर्ज पंचम की नाक से हमें क्या शिक्षा मिलती है?Explanation: इसी घृणा तथा ब्रिटिश शासन के प्रति लोगों के असम्मान को प्रकट करने के लिए जॉर्ज पंचम की नाक को काट दिया गया था। इससे यह शिक्षा मिलती है कि आजाद तो हम हो चुके हैं लेकिन अभी भी दिल्ली को संभालने वाले लोग अंग्रेजों के मानसिक रूप से गुलाम हैं। हमें इस गुलामी से स्वयं को स्वतंत्र करना होगा।
जॉर्ज पंचम की नाक के माध्यम से लेखक क्या बताना चाहता है?'नई दिल्ली में सब था… सिर्फ नाक नहीं थी' के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता है कि हमारे देश की राजधानी में सब कुछ पहले जैसा था। यह कि अपना संविधान एवं लोकतंत्र था।
जॉर्ज पंचम की नाक पाठ में क्या व्यंग्य निहित है?'जॉर्ज पंचम की नाक' नामक पाठ व्यंग्य प्रधान रचना है। इसमें जॉर्ज पंचम की टूटी नाक को प्रतिष्ठा बनाकर मंत्रियों एवं सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली पर करारा व्यंग्य किया गया है।
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