साधारण बीमा कारबार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 Show (1972 का अधिनियम संख्यांक 57) [20 सितम्बर, 1972] समुदाय के सर्वाधिक हित में साधारण बीमा कारबार का विकास सुनिश्चित करके अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की अधिक अच्छी तरह पूर्ति करने तथा यह सुनिश्चित करने की दृष्टि से कि आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार से चले जिससे धन का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी केन्द्रण न हो, भारतीय बीमा कम्पनियों के शेयरों तथा अन्य विद्यमान बीमाकर्ताओं के उपक्रमों के अर्जन तथा अन्तरण के लिए, ऐसे कारबार के विनियमन और नियंत्रण के लिए तथा उससे सम्बद्ध अथवा उसके आनुषंगिक विषयों के लिए उपबन्ध करने के लिए अधिनियम भारत गणराज्य के तेईसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :- अध्याय 1 प्रारम्भिक 1. संक्षिप्त नाम-इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम साधारण बीमा कारबार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 है । 2. राज्य की नीति के बारे में घोषणा-यह घोषित किया जाता है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 39 के खण्ड (ग) में उल्लिखित तत्त्वों का प्रयोग सुनिश्चित करने की राज्य की नीति को प्रभावी करने के लिए है । स्पष्टीकरण-इस धारा में राज्य" का वही अर्थ है जो संविधान के अनुच्छेद 12 में है । 3. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,- (क) अर्जक कम्पनी" से कोई भारतीय बीमा कम्पनी अभिप्रेत है और, जहां कोई ऐसी स्कीम बनाई गई है जिसमें किसी एक भारतीय बीमा कम्पनी का किसी दूसरी में विलयन या दो या अधिक ऐसी कम्पनियों का समामेलन सम्मिलित है, वहां वह भारतीय बीमा कम्पनी जिसमें किसी दूसरी कम्पनी का विलयन हुआ है अथवा वह कम्पनी जो समामेलन के परिणामस्वरूप बन गई है, अभिप्रेत है; (ख) नियत दिन" से ऐसा दिन अभिप्रेत है जो 1973 की जनवरी के दूसरे दिन के बाद का न हो और जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा नियत करे । (ग) कम्पनी अधिनियम" से कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) अभिप्रेत है; (घ) निगम" से धारा 9 के अधीन बनाया गया भारतीय साधारण बीमा निगम अभिप्रेत है; (ङ) विद्यमान बीमाकर्ता" से प्रत्येक ऐसा बीमाकर्ता अभिप्रेत है जिसके उपक्रम का प्रबन्ध साधारण बीमा (आपात उपबन्ध) अधिनियम, 1971 (1971 का 17) की धारा 3 के अधीन केन्द्रीय सरकार में निहित हो गया है और इसके अन्तर्गत जीवन बीमा निगम का उपक्रम भी है जहां तक कि वह उसके द्वारा चलाए जाने वाले साधारण बीमा कारबार से सम्बद्ध है; (च) विदेशी बीमाकर्ता" से भारत के बाहर के किसी देश की विधि के अधीन निगमित विद्यमान बीमाकर्ता अभिप्रेत है; (छ) साधारण बीमा कारबार" से अग्नि, समुद्री या प्रकीर्ण बीमा कारबार अभिप्रेत है चाहे वह अकेले चलाया जाता हो अथवा उनमें से एक या अधिक के साथ-साथ चलाया जाता हो, किन्तु इसके अन्तर्गत पूंजी मोचन कारबार और निश्चित-वार्षिकी कारबार नहीं है; (ज) सरकारी कम्पनी" से कम्पनी अधिनियम की धारा 617 में यथापरिभाषित सरकारी कम्पनी अभिप्रेत है; (झ) भारतीय बीमा कम्पनी" से शेयर पूंजी वाला ऐसा विद्यमान बीमाकर्ता अभिप्रेत है जो कम्पनी अधिनियम के अर्थ में कम्पनी है; (ञ) बीमा अधिनियम" से बीमा अधिनियम, 1938 (1938 का 1) अभिप्रेत है; (ट) जीवन बीमा निगम" से जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 (1956 का 31) के अधीन स्थापित भारतीय जीवन बीमा निगम अभिप्रेत है; (ठ) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है; (ड) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है; (ढ) अनुसूची" से इस अधिनियम की अनुसूची अभिप्रेत है; (ण) स्कीम" से धारा 16 के अधीन बनाई गई स्कीम अभिप्रेत है [और जिसके अन्तर्गत धारा 17क के अधीन बनाई गई स्कीम भी है]; (त) उन सभी शब्दों और पदों के जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किन्तु इसमें परिभाषित नहीं हैं और बीमा अधिनियम में परिभाषित हैं, वे ही अर्थ होंगे जो उस अधिनियम में हैं; (थ) उन सभी शब्दों और पदों के जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किन्तु इसमें अथवा बीमा अधिनियम में परिभाषित नहीं हैं तथा कम्पनी अधिनियम में परिभाषित हैं, वे ही अर्थ होंगे जो कम्पनी अधिनियम में हैं । अध्याय 2 साधारण बीमा कारबार का लोक-स्वामित्व के अधीन किया जाना 4. भारतीय बीमा कम्पनियों के शेयरों का अन्तरण-(1) नियत दिन को, प्रत्येक भारतीय बीमा कम्पनी की पूंजी में सभी शेयर इस अधिनियम के आधार पर, सभी न्यासों, दायित्वों और विल्लंगमों से, जो उन पर प्रभाव डालते हैं, मुक्त रूप में केन्द्रीय सरकार को अन्तरित और उसमें निहित हो जाएंगे । (2) केन्द्रीय सरकार, तत्पश्चात् तुरन्त, अधिसूचना द्वारा, ऐसे व्यक्तियों को, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, इस प्रकार अन्तरित और निहित शेयरों में से प्रत्येक ऐसी कम्पनी के कम से कम दस शेयरों के अन्तरण का उपबन्ध इस दृष्टि से करेगी कि भारतीय बीमा कम्पनी सरकारी कम्पनी के रूप में काम कर सके । (3) उपधारा (2) के अधीन निकाली गई प्रत्येक अधिसूचना में उन व्यक्तियों के, नाम और वर्णन जिन्हें शेयर अन्तरित किए गए हैं, वर्णन तथा उन शेयरों की विशिष्टियां, जो प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को अन्तरित किए गए हैं, विनिर्दिष्ट होंगी । (4) उपधारा (2) के अधीन निकाली गई प्रत्येक अधिसूचना की एक प्रति, निकाले जाने के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र, केन्द्रीय सरकार द्वारा सम्बद्ध भारतीय बीमा कम्पनी को भेजी जाएगी जो उस प्रति के प्राप्त होने पर और कम्पनी अधिनियम में अथवा अपने संगम-अनुच्छेदों में किसी बात के होते हुए भी, अपने सदस्यों के रजिस्टर को, उन व्यक्तियों के नाम सम्मिलित करके तुरन्त परिशुद्ध करेगी जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट शेयरों के धारकों के रूप में उसमें वर्णित हैं । (5) शंकाओं को दूर करने के लिए घोषित किया जाता है कि उपधारा (1) के अधीन किए गए किसी अन्तरण से या निहित होने से यह न समझा जाएगा कि वह भारतीय बीमा कम्पनी के किसी ऐसे अधिकार पर प्रभाव डालता है जो किसी शेयरधारक के विरुद्ध कोई राशि इस आधार पर, कि शेयरधारक ने अपने द्वारा धारित किन्हीं शेयरों का पूरा मूल्य अथवा उसका कोई भाग बीमाकर्ता को नहीं दिया है या उसके नाम जमा नहीं किया है अथवा किसी भी अन्य आधार पर, वसूल करने का हो और नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान हो । 5. अन्य विद्यमान बीमाकर्ताओं के उपक्रमों का अन्तरण-(1) प्रत्येक ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता का, जो भारतीय बीमा कम्पनी न हो, उपक्रम नियत दिन को केन्द्रीय सरकार को अन्तरित और उसमें निहित हो जाएगा और केन्द्रीय सरकार, तत्पश्चात् तुरन्त, अधिसूचना द्वारा, उस उपक्रम के ऐसे भारतीय बीमा कम्पनी को अन्तरित होने और उसमें निहित होने का उपबन्ध करेगी जिसे वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे । (2) उपधारा (1) के अधीन निकाली गई किसी अधिसूचना में यह उपबन्ध हो सकेगा कि पूर्वोक्त उपक्रमों में से कोई भी उपक्रम एक से अधिक भारतीय बीमा कम्पनी को ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन अन्तरित और उसमें निहित किया जा सकेगा जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं । 6. उपक्रमों के अन्तरण का प्रभाव-(1) प्रत्येक ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता के उपक्रम के बारे में, जो धारा 5 में निर्दिष्ट है, यह समझा जाएगा कि उसके अन्तर्गत सभी आस्तियां, अधिकार, शक्तियां, प्राधिकार तथा विशेषाधिकार और जंगम तथा स्थावर सभी सम्पत्ति, रोकड़-बाकी, आरक्षित निधियां, विनिधान तथा ऐसी सम्पत्ति में या उससे पैदा होने वाले अन्य समस्त अधिकार और हित जो नियत दिन के ठीक पूर्व भारत में या भारत के बाहर उस उपक्रम के सम्बन्ध में ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता के स्वामित्व, कब्जे, शक्ति या नियंत्रण में थे, तथा उनसे सम्बन्धित सभी लेखा-बहियां, रजिस्टर, अभिलेख और किसी भी प्रकार की अन्य सभी दस्तावेजें हैं, और यह भी समझा जाएगा कि उसके अन्तर्गत विद्यमान बीमाकर्ता के उस समय विद्यमान किसी भी प्रकार के सभी उधार, दायित्व और बाध्यताएं भी हैं । (2) उस दशा के सिवाय जब कि इस अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप से अन्यथा उपबन्धित है, सभी विलेख, बन्धपत्र, करार, मुख्तारनामे, विधिक प्रतिनिधित्व के अधिकार-पत्र और किसी भी प्रकार की अन्य लिखतें जो नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान हैं अथवा प्रभावी हैं और जिनका ऐसा कोई बीमाकर्ता जो धारा 5 में निर्दिष्ट है, पक्षकार है अथवा जो ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता के पक्ष में है, उस भारतीय बीमा कम्पनी के विरुद्ध या उसके पक्ष में जिसमें कि वह उपक्रम या उसका भाग जिससे वह लिखत सम्बद्ध है, निहित हो गया है वैसे ही पूर्णतः प्रवृत्त और प्रभावी होंगी और वैसे ही पूर्ण रूप से और प्रभावी तौर पर प्रवर्तित की जा सकेंगी या क्रियान्वित की जा सकेंगी मानो धारा 5 में निर्दिष्ट विद्यमान बीमाकर्ता के स्थान पर उनकी पक्षकार वह भारतीय बीमा कम्पनी रही हो जिसमें कि उपक्रम अथवा उसका कोई भाग निहित हुआ है, अथवा मानो वे उसके पक्ष में जारी हुई हों । (3) यदि नियत दिन को किसी ऐसे उपक्रम के कारबार के सम्बन्ध में जो धारा 5 के अधीन अन्तरित किया गया है, कोई वाद, अपील या किसी भी प्रकार की अन्य कार्यवाही ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता के द्वारा या उसके विरुद्ध , जो उस धारा में निर्दिष्ट है, लम्बित है तो उसका उस उपक्रम के अन्तरण के अथवा इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के कारण उपशमन नहीं होगा, वह बन्द नहीं होगी या किसी भी प्रकार उस पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडे़गा, किन्तु वह वाद, अपील या अन्य कार्यवाही उस भारतीय कम्पनी द्वारा या उसके विरुद्ध जारी रखी जा सकेगी, चलाई जा सकेगी और प्रवर्तित की जा सकेगी जिसमें कि वह उपक्रम या उसका कोई भाग जिससे कार्यवाही सम्बद्ध हो, निहित हुआ है । (4) शंकाओं को दूर करने के लिए घोषित किया जाता है कि, यथास्थिति, विदेशी बीमाकर्ता अथवा जीवन बीमा निगम की दशा में धारा 5 के और पूर्ववर्ती उपधाराओं के उपबन्ध केवल वहां तक जहां तक कोई सम्पत्ति, पूर्वकथित की दशा में भारत के भीतर किए जाने वाले साधारण बीमा कारबार से और पश्चात्कथित की दशा में चाहे भारत के भीतर या बाहर किए गए साधारण बीमा कारबार से सम्बन्धित है, और, यथास्थिति, विदेशी बीमाकर्ता या जीवन बीमा निगम द्वारा ऐसे साधारण बीमा कारबार के प्रयोजनार्थ अर्जित अधिकारों और शक्तियों को तथा उपगत ऋणों, दायित्वों और बाध्यताओं को, तथा की गई संविदाओं, करारों या अन्य लिखतों को, तथा उन प्रयोजनों से सम्बद्ध विधिक कार्यवाहियों को लागू होंगे और उन उपबन्धों का अर्थ तद्नुसार लगाया जाएगा । (5) यदि इस बारे में कोई प्रश्न उठे कि क्या कोई सम्पत्ति किसी ऐसे साधारण बीमा कारबार से जो इस धारा में निर्दिष्ट है, सम्बन्धित थी या नहीं अथवा किसी ऐसे कारबार के प्रयोजनार्थ, यथास्थिति, विदेशी बीमाकर्ता या जीवन बीमा निगम द्वारा कोई अधिकार, शक्तियां, दायित्व या बाध्यताएं अर्जित या उपगत की गई थीं या नहीं अथवा कोई संविदा, करार या अन्य लिखत की गई थी या नहीं अथवा क्या कोई दस्तावेजें उन प्रयोजनों से सम्बन्धित हैं या नहीं तो वह प्रश्न केन्द्रीय सरकार को निर्देशित किया जाएगा जो मामले में हितबद्ध व्यक्तियों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् उसे ऐसी रीति से विनिश्चित करेगी जैसी वह ठीक समझे । 7. कुछ दशाओंमेंविद्यमानकर्मचारियोंकीसेवाओंकाअन्तरण-(1) भारतीय बीमा कम्पनी से भिन्न किसी विद्यमान बीमाकर्ता का प्रत्येक पूर्णकालिक अधिकारी या अन्य कमर्चारी जो नियत दिन के ठीक पूर्व उस बीमाकर्ता द्वारा पूर्णतः या मुख्यतः अपने साधारण बीमा कारबार के सम्बन्ध में नियोजित था नियत दिन को, उस भारतीय बीमा कम्पनी का जिसमें उस बीमाकर्ता का उपक्रम अथवा उपक्रम का वह भाग जिससे उस अधिकारी या अन्य कर्मचारी की सेवा सम्बद्ध है, निहित हो गया है, यथास्थिति, अधिकारी या अन्य कर्मचारी हो जाएगा, और भारतीय बीमा कम्पनी के अधीन वैसे ही निबन्धनों और शर्तों पर और पेंशन, उपदान तथा अन्य बातों के बारे में वैसे ही अधिकारों के साथ अपना पद धारण करेगा या सेवा करता रहेगा जो उसे अनुज्ञेय होते यदि इस प्रकार निहित न किया गया होता और तब तक ऐसा करता रहेगा जब तक उस भारतीय बीमा कम्पनी में जिसमें उपक्रम या उसका कोई भाग निहित हो गया है, उसका नियोजन समाप्त नहीं कर दिया जाता या जब तक उसके पारिश्रमिक, निबन्धनों और शर्तों में उस भारतीय बीमा कम्पनी द्वारा सम्यक् रूप से परिवर्तन नहीं कर दिया जाता : परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी को लागू न होगी जिसने केन्द्रीय सरकार को अथवा उस सरकार द्वारा इस निमित्त नामनिर्दिष्ट किसी व्यक्ति को नियत दिन के पूर्व अपने इस आशय को प्रज्ञापित करने वाली लिखित सूचना दे दी है कि वह उस भारतीय बीमा कम्पनी का अधिकारी या कर्मचारी नहीं होना चाहता जिसमें वह उपक्रम या उसका भाग जिससे उसकी सेवा सम्बद्ध है, निहित हुआ है । (2) यदि इस बारे में कोई प्रश्न उठे कि क्या कोई व्यक्ति पूर्णकालिक अधिकारी या अन्य कर्मचारी था या नहीं या कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी नियत दिन के ठीक पूर्व मुख्यतः या पूर्णतः उपधारा (1) में निर्दिष्ट विद्यमान बीमाकर्ता के साधारण बीमा कारबार के सम्बन्ध में नियोजित था या नहीं तो वह प्रश्न नियत दिन से दो वर्ष की अवधि के अन्दर न कि उसके पश्चात्, केन्द्रीय सरकार को निर्देशित किया जाएगा जो मामले से सम्बद्ध व्यक्ति को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् उसे ऐसी रीति से विनिश्चित करेगी जैसी वह ठीक समझे और ऐसा विनिश्चय अन्तिम होगा । (3) औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी उपधारा (1) के अधीन किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी की सेवाओं का अन्तरण किसी ऐसे अधिकरी या अन्य कर्मचारी को उस अधिनियम अथवा ऐसी अन्य विधि के अधीन किसी प्रतिकर का हकदार नहीं बनाएगा और ऐसा कोई दावा किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकरण द्वारा ग्रहण नहीं किया जाएगा । 8. भविष्य, अधिवार्षिकी, कल्याण तथा अन्य निधियां-(1) जहां किसी विद्यमान बीमाकर्ता ने अपने कर्मचारियों के फायदे के लिए कोई भविष्य, अधिवार्षिकी, कल्याण अथवा अन्य निधि स्थापित की है और उसके बारे में कोई न्यास (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् विद्यमान न्यास कहा गया है) गठित किया है वहां नियत दिन को ऐसी निधि में जमा सभी धनराशियां ऐसी निधि की किन्हीं अन्य आस्तियों के सहित, ऐसे किसी न्यास से मुक्त रूप में नियत दिन को भारतीय बीमा कम्पनी को अन्तरित और उसमें निहित हो जाएंगी । (2) जब जीवन बीमा निगम के या किसी अन्य विद्यमान बीमाकर्ता के सब कर्मचारी किसी भारतीय बीमा कम्पनी के कर्मचारी नहीं बनते तब उपधारा (1) में निर्दिष्ट निधि की धनराशियां और अन्य आस्तियां निधि के न्यासियों और भारतीय बीमा कम्पनी के बीच विहित रीति से प्रभाजित की जाएंगी; और ऐसे प्रभाजन के संबंध में किसी विवाद की दशा में, उस पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा । (3) जब किसी विद्यमान बीमाकर्ता का उपक्रम एक से अधिक भारतीय बीमा कम्पनियों में निहित हो गया है तब केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा, उस उपक्रम से सम्बद्ध किसी विद्यमान न्यास की धनराशियों और अन्य आस्तियों का उन भारतीय बीमा कम्पनियों में ऐसी रीति से प्रभाजन का उपबंध कर सकेगी जो उसकी राय में समुचित हो । (4) भारतीय बीमा कम्पनी नियत दिन के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र उन सभी धनराशियों और अन्य आस्तियों के बारे में, जो इस धारा के अधीन उसे अन्तरित और उसमें निहित हो जाएं, एक या अधिक न्यासों का गठन करेगी जिनके उद्देश्य विद्यमान न्यासों के उद्देश्यों के उतने ही समान होंगे जितना परिस्थितियों में व्यावहारिक हो । (5) जहां किसी विद्यमान न्यास की समस्त धनराशियां और अन्य आस्तियां इस धारा के अधीन किसी भारतीय बीमा कम्पनी को अन्तरित और उसमें निहित हो जाती हैं वहां ऐसे न्यास के न्यासी नियत दिन से पहले की गई या न की गई बातों के सिवाय, नियत दिन से न्यास से उन्मोचित हो जाएंगे । अध्याय 3 भारतीय साधारण बीमा निगम 9. भारतीय साधारण बीमा निगम का बनाया जाना-(1) इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र केन्द्रीय सरकार साधारण बीमा कारबार के अधीक्षण, नियंत्रण तथा चलाए जाने के प्रयोजन के लिए कम्पनी अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार एक सरकारी कम्पनी बनाएगी जो भारतीय साधारण बीमा निगम कहलाएगी : [परंतु साधारण बीमा कारबार (राष्ट्रीयकरण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारंभ से ही इस उपधारा के उपबंधों का प्रभाव इस प्रकार होगा मानो साधारण बीमा कारबार के अधीक्षण, नियंत्रण तथा चलाए जाने" शब्दों के स्थान पर पुनर्बीमा कारबार चलाए जाने" शब्द रखे गए हों ।] (2) निगम की प्राधिकृत पूंजी [दो सौ पचास करोड़] रुपए होगी जो एक-एक सौ रुपए के 2[दौ सौ पचास लाख] पूर्णतः समादत्त शेयरों में विभक्त होगी जिसमें से पांच करोड़ रुपए निगम की आरम्भिक प्रतिश्रुत पूंजी होगी : 1[परंतु केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, यथास्थिति, प्राधिकृत पूंजी या प्रतिश्रुत पूंजी में वृद्धि या कमी, जो वह ठीक समझे, कर सकगी ।] (3) कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में किसी बात के होते हुए भी, निगम के नाम के अन्तिम शब्द के रूप में लिमिटेड" शब्द जोड़ना आवश्यक नहीं होगा । 10. केन्द्रीय सरकार में निहित शेयरों का निगम को अन्तरण-(1) प्रत्येक भारतीय बीमा कम्पनी की पूंजी में वे सभी शेयर जो धारा 4 के आधार पर केन्द्रीय सरकार को अन्तरित और उसमें निहित हो गए हैं [उन शेयरों को छोड़कर जो किसी व्यक्ति को उस धारा की उपधारा (2) के अधीन अन्तरित हुए हों] ऐसे निहित होने के तुरन्त पश्चात् निगम को अन्तरित और उसमें निहित हो जाएंगे और प्रत्येक भारतीय बीमा कम्पनी शेयरों के ऐसे अन्तरण को तुरन्त प्रभावी करेगी और अपने रजिस्टर को, उन शेयरों के धारक के रूप में निगम को सम्मिलित करके परिशुद्ध करेगी । [10क. निगम में निहित शेयरों का केन्द्रीय सरकार को अंतरण-अर्जक कंपनियों, अर्थात् :- (क) नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ; (ख) न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ; (ग) ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ; (घ) यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, की पूंजी में सभी शेयर, जो साधारण बीमा कारबार (राष्ट्रीयकरण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारंभ से पूर्व निगम में निहित थे, ऐसे प्रारंभ पर, केन्द्रीय सरकार को, अंतरित हो जाएंगे ।] अध्याय 4 अर्जन के लिए संदत्त की जाने वाली रकमें 11. शेयरों या उपक्रमों के अन्तरित और निहित किए जाने के लिए संदत्त की जाने वाली रकमें-(1) प्रत्येक भारतीय बीमा कम्पनी के शेयरों के धारा 4 के अधीन केन्द्रीय सरकार को अन्तरित और उसमें निहित किए जाने के लिए, प्रत्येक ऐसी कम्पनी के शेयरधारकों को वितरित किए जाने के निमित्त, केन्द्रीय सरकार द्वारा निगम को उतनी रकम संदत्त की जाएगी जितनी अनुसूची के भाग क में उस कंपनी के सामने स्तंभ 3 के नीचे की सम्बन्धित प्रविष्टि में विनिर्दिष्ट है । (2) प्रत्येक ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता के जो भारतीय बीमा कम्पनी न हो, उपक्रम के धारा 5 के अधीन केन्द्रीय सरकार को अन्तरित और उसमें निहित किए जाने के लिए प्रत्येक ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता को संदाय के निमित्त, केन्द्रीय सरकार द्वारा निगम को उतनी रकम संदत्त की जाएगी जितनी अनुसूची के भाग ख में ऐसे बीमाकर्ता के सामने स्तम्भ 3 के नीचे की सम्बन्धित प्रविष्टि में विनिर्दिष्ट है । 12. निगम द्वारा रकमों का संवितरण-(1) केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 11 के अधीन दी गई कुल रकम को निगम की प्रतिश्रुत पूंजी में अतिरिक्त अभिदाय माना जाएगा और ऐसी अतिरिक्त प्रतिश्रुत पूंजी केन्द्रीय सरकार को आबंटित और उसमें निहित हो जाएगी । (2) निगम धारा 11 के अधीन उसे संदत्त की गई रकम, प्रत्येक भारतीय बीमा कम्पनी के तथा प्रत्येक ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता के, जो भारतीय बीमा कम्पनी न हो, शेयरधारकों को उनके अधिकारों और हितों के अनुसार वितरित करेगा और यदि ऐसी पूर्ण रकम या उसके किसी भाग को प्राप्त करने के बारे में किसी व्यक्ति के अधिकार या अधिकार की सीमा के सम्बन्ध में कोई शंका या विवाद है तो उस शंका या विवाद को अवधारण के लिए केन्द्रीय सरकार को निर्देशित करेगा और तत्पश्चात् उस सरकार द्वारा किए गए अवधारण के अनुसार कार्रवाई करेगा । (3) उपधारा (2) में यथा अन्यथा उपबन्धित के सिवाय धारा 11 में निर्दिष्ट रकम, यथास्थिति, धारा 13, धारा 14 या धारा 15 के उपबन्धों के अनुसार दी जाएगी । 13. संदाय का ढंग-(1) जहां धारा 11 में निर्दिष्ट रकम- (क) किसी भारतीय बीमा कम्पनी के सदस्यों को दी जानी है, वहां प्रत्येक ऐसे सदस्य को देय रकम उस दशा में पूर्णतः संदत्त की जाएगी जिसमें वह पच्चीस हजार रुपए से अधिक नहीं है और उस दशा में जिसमें वह पच्चीस हजार रुपए से अधिक है ऐसे प्रत्येक सदस्य को पच्चीस हजार रुपए संदत्त किए जाएंगे और ऐसे सदस्य को संदेय रकम का अतिशेष उसे तीन समान वार्षिकी किस्तों में संदत्त किया जाएगा जिनमें से प्रथम नियत दिन को देय होगी ; (ख) किसी विदेशी बीमाकर्ता को दी जानी है, वहां वह से नियत दिन से तीन मास के भीतर नकद संदत्त की जाएगी; (ग) जीवन बीमा निगम को दी जानी है, वहां वह उसे तीन समान वार्षिक किस्तों में दी जाएगी जिसमें से प्रथम नियत दिन को देय होगी; (घ) किसी ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता को दी जानी है जो सहकारी सोसाइटी है वहां वह नियत दिन के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र सोसाइटी के ऐसे नियमों के अनुसार वितरित की जाएगी जो सोसाइटी के विघटन की दशा में लागू होंगे; (ङ) पूर्वगामी उपबन्धों के अन्तर्गत न आने वाले किसी विद्यमान बीमाकर्ता को दी जानी है, वहां वह अर्जक कम्पनी द्वारा बीमाकर्ता के उन विभिन्न पालिसीधारकों में जिनकी पालिसियां उस बीमाकर्ता के पास नियत दिन को प्रवृत्त हैं और उस बीमाकर्ता के उपक्रम में समाविष्ट हैं, उन पालिसीधारकों द्वारा ऐसी पालिसियों के अधीन संदत्त किए गए प्रीमियमों के अनुपात के अनुसार प्रभाजित की जाएगी और ऐसा हर संदाय या तो- (i) डाक मनीआर्डर द्वारा भेज कर नकद किया जाएगा; या (ii) पालिसीधारक के विकल्पानुसार, पालिसी के नवीकरण के समय पर देय प्रीमियम में कटौती के रूप में किया जाएगा और ऐसे विकल्प का प्रयोग पालिसीधारक द्वारा नियत दिन से तीन मास के अवसान के पूर्व (या तीन मास से अनधिक इतने अतिरिक्त समय के भीतर जितना केन्द्रीय सरकार, पालिसीधारक के आवेदन पर, अनुज्ञात करे) किया जाएगा, तथा इस प्रकार प्रयुक्त विकल्प अन्तिम होगा और प्रयुक्त किए जाने के पश्चात् परिवर्तित या विखण्डित नहीं किया जाएगा : परन्तु यदि कोई पालिसीधारक अनुज्ञात समय के भीतर अपने विकल्प का प्रयोग नहीं करता है तो यह समझा जाएगा कि उसने डाक मनीआर्डर द्वारा नकद संदाय के लिए अपने विकल्प का प्रयोग किया है । (2) जहां इस धारा के उपबन्धों के अधीन कोई रकम किस्तों में या अन्यथा संदेय है वहां प्रत्येक ऐसी असंदत्त रकम पर, जो देय हो गई है, नियत दिन से चार प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज लगेगा । 14. शेयरधारकों को संदेय रकम का कुछ दशाओं में उनके बजाय नामित व्यक्तियों को दिया जाना-(1) इस अधिनियम में अन्यत्र किसी बात के होते हुए भी यदि ऐसे व्यक्तियों की बहुसंख्या, जो नियत दिन के ठीक पूर्व किसी भारतीय बीमा कम्पनी की पुस्तकों में उसके सदस्यों के रूप में रजिस्ट्रीकृत थे और उस बीमा कम्पनी को संदेय रकम में दो-तिहाई मूल्य के अधिकारी थे, उस प्रयोजन के लिए विशेष रूप से बुलाई गई अधिवेशन में या तो स्वयं या परोक्षी द्वारा सहमत हो जाएं कि इस प्रकार संदेय रकम, सदस्यों को वितरित किए जाने के बजाय किसी कारबार को चलाने के प्रयोजनार्थ, किसी ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के निकाय को दे दी जाए जिसे वे सदस्य उसी अधिवेशन में या बाद में नामनिर्दिष्ट करें और केन्द्रीय सरकार का समाधान हो जाए कि उन व्यक्तियों के जो उस संकल्प से विसम्मत रहे हैं अपने-अपने शेयरों के मूल्य के संदाय के लिए सम्यक् उपबंध कर दिया गया है या कर दिया जाएगा तो वह रकम इस प्रकार नामनिर्दिष्ट व्यक्ति या व्यक्तियों के निकाय को ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन दी जा सकेगी जो केन्द्रीय सरकार ठीक समझे । (2) नियत दिन के पश्चात् किए गए किसी ऐसे अधिवेशन में, जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट है, पारित कोई संकल्प तब तक प्रभावी न होगा जब तक कि वह अधिवेशन केन्द्रीय सरकार का अनुमोदन प्राप्त करने के पश्चात् न बुलाया गया हो । 15. परस्पर विरोधी दावों की दशा में न्यायालय में संदाय-जहां धारा 11 के अधीन संदेय रकम के लिए दावा दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा एक दूसरे के विरुद्ध किया जाए वहां निगम उस रकम को उस निमित्त अधिकारिता रखने वाले किसी सिविल न्यायालय में जमा करा सकेगा और वह न्यायालय विनिश्चय करेगा कि संदाय किस को किया जाए । अध्याय 5 साधारण बीमा कारबार के पुनर्गठन के लिए स्कीम 16. कम्पनियों के विलयन आदि के लिए स्कीमें-(1) यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि साधारण बीमा कारबार को और दक्षतापूर्वक चलाने के लिए ऐसा करना आवश्यक है तो वह निम्नलिखित सभी या उनमें से किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध करने वाली एक या अधिक स्कीमें, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी :- (क) किसी एक भारतीय बीमा कम्पनी में किसी अन्य भारतीय बीमा कम्पनी का विलयन, अथवा दो या अधिक भारतीय बीमा कम्पनियों के समामेलन द्वारा किसी नई कम्पनी का बनाया जाना ; (ख) किसी ऐसी भारतीय बीमा कम्पनी के, जो स्कीम के कारण विद्यमान नहीं रह जाती, उपक्रम का (उसके समस्त कारबार, सम्पत्तियों, आस्तियों तथा दायित्वों सहित) अर्जक कम्पनी को अन्तरण तथा उसमें निहित होना ; (ग) अर्जक कम्पनी का गठन, नाम तथा रजिस्ट्रीकृत कार्यालय और उसकी पूंजी संरचना तथा शेयरों का निर्गमन और आबंटन ; (घ) अर्जक कम्पनी के प्रबन्ध के लिए प्रबन्ध बोर्ड का गठन, चाहे उसका कोई भी नाम हो ; (ङ) अर्जक कम्पनी के संगम-ज्ञापन तथा संगम-अनुच्छेदों का ऐसे प्रयोजनों के लिए परिवर्तन जो स्कीम को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है ; (च) उस भारतीय बीमा कम्पनी के, जो स्कीम के कारण विद्यमान नहीं रह गई है, सभी अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों की सेवाओं का अर्जक कम्पनी में उन्हीं निबन्धनों और शर्तों पर बना रहना जो स्कीम के प्रारम्भ के ठीक पूर्व उन्हें, यथास्थिति, प्राप्त थे या जिनके द्वारा वह शासित थे ; (छ) जहां कहीं आवश्यक हो अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों के वेतनमानों तथा सेवा के अन्य निबन्धनों और शर्तों का सुव्यवस्थीकरण अथवा पुनरीक्षण ; (ज) उस भारतीय बीमा कम्पनी के, जो स्कीम के कारण विद्यमान नहीं रह गई है, अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों से सम्बन्धित भविष्य, अधिवार्षिकी, कल्याण तथा अन्य निधियों का अर्जक कम्पनी को अन्तरण ; (झ) ऐसी भारतीय बीमा कम्पनी द्वारा या उसके विरुद्ध, जो स्कीम के कारण विद्यमान नहीं रह गई है, लम्बित विधिक कार्यवाहियों का अर्जक कम्पनी द्वारा या उसके विरुद्ध जारी रखा जाना, तथा ऐसी सिविल अथवा दाण्डिक विधिक कार्यवाहियों का आरम्भ किया जाना जो वह भारतीय बीमा कंपनी उस दशा में आरंभ कर सकती थी जब उसका विद्यमान रहना समाप्त न होता ; (ञ) ऐसे आनुषंगिक, पारिणामिक तथा अनुपूरक विषय जो स्कीम को पूर्ण रूप से प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक हैं । (2) उपधारा (1) के अधीन स्कीमें बनाने में केन्द्रीय सरकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होगा कि अन्ततः (निगम का अपवर्जन करके) केवल चार कम्पनियां ही विद्यमान रह जाएं और वे इस प्रकार स्थित हों कि भारत के सभी भागों में संयुक्त रूप से अपनी सेवाएं प्रदान कर सकें । (3) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई स्कीम किसी सम्पत्ति या दायित्वों के अन्तरण का उपबन्ध करती है, वहां उस स्कीम के आधार पर वह सम्पत्ति अर्जक कम्पनी को अन्तरित और उसमें निहित हो जाएगी और वे दायित्व अर्जक कम्पनी को अन्तरित और उसके दायित्व हो जाएंगे । (4) यदि किसी स्कीम के अधीन किसी वेतनमान अथवा सेवा के अन्य निबन्धनों और शर्तों का सुव्यवस्थीकरण या पुनरीक्षण किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी को स्वीकार न हो तो अर्जक कम्पनी उसे तीन मास के पारिश्रमिक के बराबर प्रतिकर देकर उसका नियोजन समाप्त कर सकेगी जब तक कि ऐसे कर्मचारी के साथ सेवा की संविदा में समाप्ति के लिए उससे कम समय की सूचना का उपबन्घ न हो । स्पष्टीकरण-किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी को इस उपधारा के अधीन संदेय प्रतिकर किसी ऐसी पेंशन, उपदान, भविष्य-निधि या अन्य फायदे के, अतिरिक्त होगा जिसका कि वह कर्मचारी अपनी सेवा की संविदा के अधीन हकदार हो, अतिरिक्ति होगा तथा उस पर कोई प्रभाव न डालेगा । (5) औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी किसी भारतीय बीमा कम्पनी के किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी की सेवाओं का अर्जक कम्पनी को अन्तरण किसी ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी को उस अधिनियम या अन्य विधि के अधीन किसी प्रतिकर का हकदार नहीं बनाएगा, और ऐसा कोई दावा किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकरण द्वारा ग्रहण नहीं किया जाएगा । (6) केन्द्रीय सरकार इस धारा के अधीन बनाई गई किसी स्कीम को अधिसूचना द्वारा परिवर्धित, संशोधित या परिवर्तित कर सकेगी । (7) इस धारा के तथा इसके अधीन बनाई गई किसी स्कीम के उपबन्ध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि अथवा किसी करार, पंचाट या अन्य लिखत में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे । [(8) उपधारा (1) के अधीन स्कीम बनाने की शक्ति और इस धारा के अधीन बनाई गई किसी स्कीम में परिवर्धन, संशोधन या परिवर्तन करने के लिए उपधारा (6) द्वारा प्रदत्त शक्ति के अन्तर्गत ऐसी तारीख से, जो नियत दिन से पूर्वतर न हो, भूतलक्षी प्रभाव से, ऐसी स्कीम बनाने की शक्ति भी होगी ।] [17. स्कीमों और अधिसूचनाओं का संसद के समक्ष रखा जाना-धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन बनाई गई प्रत्येक स्कीम और उस धारा की उपधारा (3) के अधीन निकाली गई प्रत्येक अधिसूचना, बनाए जाने या निकाले जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखी जाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस स्कीम या अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह स्कीम नहीं बनाई जानी या अधिसूचना नहीं निकाली जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगी । किन्तु स्कीम या अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडेगा ।] [अध्याय 5क अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबंधन और शर्तें 17क. अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबंधनों और शर्तों का विनियमन करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निगम के या किसी अर्जक कम्पनी के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतनमानों और सेवा के अन्य निबन्धनों और शर्तों का विनियमन करने के लिए एक या अधिक स्कीमें बना सकेगी । (2) उपधारा (1) के अधीन बनाई गई स्कीम, निगम के या किसी अर्जक कम्पनी के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतनमानों और सेवा के अन्य निबन्धनों और शर्तों के सुव्यवस्थीकरण या पुनरीक्षण की बाबत धारा 16 के अधीन बनाई गई किसी स्कीम में, ऐसे वेतनमानों और सेवा के अन्य निबन्धनों और शर्तों के और सुव्यवस्थीकरण या पुनरीक्षण का उपबन्ध करने के लिए परिवर्धन, संशोधन या परिवर्तन [जिसके अन्तर्गत धारा 16 की उपधारा (6) के अधीन, अधिसूचना द्वारा, उसमें किया गया कोई परिवर्धन, संशोधन या परिवर्तन हैट इस बात के होते हुए भी कर सकेगी कि ऐसा और सुव्यवस्थीकरण या पुनरीक्षण साधारण बीमा कारबार के राष्ट्रीयकरण के परिणामस्वरूप बीमा कम्पनियों के समामेलन या विलयन से संबंधित या संसक्त नहीं है । (3) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस धारा के अधीन बनाई गई किसी स्कीम में परिवर्धन, संशोधन या परिवर्तन कर सकेगी । (4) उपधारा (1) के अधीन स्कीम बनाने की शक्ति के और इस धारा के अधीन बनाई गई किसी स्कीम में परिवर्धन, संशोधन या परिवर्तन करने के लिए उपधारा (3) द्वारा प्रदत्त शक्ति के अन्तर्गत ऐसी तारीख से, जो नियत दिन से पूर्वतर न हो, भूतलक्षी प्रभाव से, यथास्थिति, ऐसी स्कीम बनाने की या इस धारा के अधीन बनाई गई किसी स्कीम में ऐसा परिवर्धन, संशोधन और परिवर्तन करने की शक्ति होगी । (5) इस धारा के अधीन बनाई गई प्रत्येक स्कीम और उसके प्रत्येक संशोधन की एक प्रति उसके बनाए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी । (6) इस धारा के और इसके अधीन बनाई गई किसी स्कीम के उपबन्ध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या किसी करार, पंचाट या अन्य लिखत में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे ।] अध्याय 6 निगम तथा अर्जक कम्पनियों के कृत्य और उनका प्रबंध 18. निगम के कृत्य-(1) निगम के कृत्यों के अन्तर्गत निम्नलिखित होंगे- (क) साधारण बीमा कारबार के किसी भाग का चलाया जाना जब कि वह ऐसा करना वांछनीय समझे ; (ख) साधारण बीमा कारबार में संचालन तथा उचित व्यवहार के स्तरमान निश्चित करने के विषय में तथा साधारण बीमा पालिसीधारकों की दक्षतापूर्वक सेवा करने के विषय में अर्जक कम्पनियों को सहारा, सहायता तथा सलाह देना ; (ग) अर्जक कम्पनियों को उनके व्ययों पर नियंत्रण रखने के विषय में सलाह देना जिनके अन्तर्गत कमीशन का संदाय तथा अन्य व्यय भी हैं ; (घ) अर्जक कम्पनियों को उनकी निधियों के विनिधान के विषय में सलाह देना ; (ङ) अर्जक कम्पनियों को साधारण बीमा कारबार के संचालन के संबन्ध में निदेश जारी करना : [परंतु इस उपधारा में विनिर्दिष्ट निगम के सभी कृत्यों का अनुपालन साधारण बीमा कारबार (राष्ट्रीयकरण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारम्भ से ही केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाएगा ।] (2) उपधारा (1) के अधीन कोई निदेश जारी करने में [केन्द्रीय सरकार] यथासम्भव अर्जक कम्पनियों के बीच प्रतियोगिता को प्रोत्साहन देने की वांछनीयता का इस दृष्टि से ध्यान रखेगा कि उनकी सेवाएं अधिक दक्षतापूर्वक हों । 19. अर्जक कम्पनियों के कृत्य-(1) प्रत्येक अर्जक कम्पनी का यह कर्तव्य होगा कि वह केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए गए नियमों के, यदि कोई हों, तथा अपने संगम-ज्ञापन तथा संगम-अनुच्छेदों के अधीन रहते हुए, साधारण बीमा कारबार चलाए । (2) प्रत्येक अर्जक कम्पनी इस अधिनियम के अधीन इस प्रकार कार्य करेगी जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि साधारण बीमा कारबार का विकास समुदाय को अधिकतम लाभप्रद रूप में होता है । (3) प्रत्येक अर्जक कम्पनी अपने कृत्यों के निर्वहन में, यावत्शक्य, कारबार के सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करेगी और जहां [केन्द्रीय सरकार या बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम 1999 (1999 का 41) की धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरणट द्वारा कोई निदेश जारी किए गए हों वहां ऐसे निदेशों के अनुसार चलेगी । (4) शंकाओं को दूर करने के लिए घोषित किया जाता है कि निगम तथा कोई अर्जक कम्पनी, ऐसे नियमों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाए, पुनः बीमा की ऐसी संविदाएं अथवा ऐसी पुनः बीमा संधियां कर सकेगी जो वह अपने हितों की संरक्षा के लिए ठीक समझे । 20. लाभ के अतिशेष का उपयोग किस प्रकार किया जाए-(1) डूबे तथा शंकास्पद ऋणों, आस्तियों में अवक्षयण, भविष्य, अधिवार्षिकी, कल्याण तथा अन्य निधियों, सरकार को देय ऋणों के लिए तथा अन्य सभी ऐसे विषयों के लिए उपबन्ध करने के पश्चात्, जिनके लिए उपबन्ध किसी विधि के अधीन आवश्यक है अथवा जिनके लिए सामान्यतः बीमा कम्पनियां उपबन्ध करती हैं, प्रत्येक अर्जक कम्पनी लाभ के अतिशेष को लाभांशों के रूप में वितरित करेगी । (2) निगम को हुए किसी लाभ तथा निगम द्वारा लाभांशों के रूप में या अन्यथा प्राप्त किन्हीं राशियों के सम्बन्ध में उसके द्वारा ऐसी रीति से कार्रवाई की जाएगी जो विहित की जाए । 21. भारतीय बीमा कम्पनियों के प्रबन्ध के लिए अन्तरिम उपबन्ध-(1) कम्पनी अधिनियम में अथवा किसी भारतीय बीमा कम्पनी के संगम-ज्ञापन और संगम-अनुच्छेदों में किसी बात के होते हुए भी, नियत दिन से और तब तक जब तक भारतीय बीमा कम्पनी का नया निदेशक बोर्ड सम्यक् रूप से गठित नहीं कर दिया जाता, कम्पनी का प्रबन्ध, नियत दिन के ठीक पूर्व, साधारण बीमा (आपात उपबन्ध) अधिनियम, 1971 (1971 का 17) के उपबन्धों के आधार पर, उस कम्पनी के उपक्रम के प्रबन्ध के भारसाधक अभिरक्षक में निहित रहेगा और अभिरक्षक ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त जारी करे, उन सभी शक्तियों का प्रयोग करने का और उन सभी कार्यों और बातों को करने का हकदार होगा जिन शक्तियों का प्रयोग या जिन बातों को कम्पनी अथवा उसके निदेशक बोर्ड द्वारा किया जा सकता है । (2) उपधारा (1) की किसी बात से यह न समझा जाएगा कि वह उस उपधारा में निर्दिष्ट अवधि के दौरान किसी भारतीय बीमा कम्पनी के उपक्रम के प्रबन्ध का भारग्रहण करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करने से उस दशा में जब कि किसी कारण से ऐसा करना आवश्यक हो जाए केन्द्रीय सरकार को निवारित करती है, और इस प्रकार नियुक्त किया गया व्यक्ति उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा और वे सभी कार्य और बातें कर सकेगा जिन शक्तियों का प्रयोग या जिन बातों को अभिरक्षक उपधारा (1) के अधीन कर सकता है । (3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अभिरक्षक तथा उपधारा (2) के अधीन नियुक्त व्यक्ति ऐसे वेतन और अन्य भत्तों के हकदार होंगे जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे और वे केन्द्रीय सरकार के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेंगे । 22. केन्द्रीय सरकार की कर्मचारियों का अन्तरण करने की शक्ति- [केन्द्रीय सरकार या उसके द्वारा प्राधिकृत कोई व्यक्ति] किसी भी समय किसी अर्जक कम्पनी या निगम से किसी अधिकारी या कर्मचारी को, यथास्थिति, किसी अन्य अर्जक कम्पनी या निगम को अन्तरित कर सकेगी और इस प्रकार अन्तरित अधिकारी या कर्मचारी को सेवा की वही शर्तें और निबन्धन लागू होते रहेंगे जो उसे ऐसे अन्तरण के तुरन्त पूर्व लागू होते थे । 23. केन्दीय सरकार की निदेश देने की शक्ति-निगम और प्रत्येक अर्जक कम्पनी का अपने कृर्त्यों के निर्वहन में नीति संबंधी विषयों पर, जो लोकहित से संबद्ध हैं, ऐसे निदेश द्वारा मार्गदर्शन होगा जो केन्द्रीय सरकार दे । अध्याय 7 प्रकीर्ण 24. अर्जक कम्पनियों का साधारण बीमा कारबार करने का अनन्य विशेषाधिकार होना-(1) जहां तक इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से उपबन्धित है उसके सिवाय, नियत दिन से निगम और अर्जक कम्पनियों को भारत में साधारण बीमा कारबार करने का अनन्य विशेषाधिकार होगा । (2) धारा 36 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उपधारा (1) मे निर्दिष्ट बीमाकर्ता से भिन्न किसी बीमाकर्ता को बीमा अधिनियम के अधीन दिया गया रजिस्ट्रीकरण-प्रमाणपत्र, नियत दिन से प्रभावी न रहेगा । परन्तु इस उपधारा की कोई बात जीवन बीमा निगम द्वारा बीमा कारबार और पूंजी मोचन और निश्चित-वार्षिकी कारबार को लागू नहीं होगी । [24क. निगम और अर्जक कंपनियों के अनन्य विशेषाधिकार का न रहना-इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, निगम और अर्जक कंपनियों का भारत में साधारण बीमा कारबार करने का अनन्य विशेषाधिकार बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 (1999 का 41) के प्रारंभ से ही समाप्त हो जाएगा और तत्पश्चात् निगम और अर्जक कंपनियां, भारत में साधारण बीमा कारबार बीमा अधिनियम, 1938 (1938 का 4) के उपबंधों के अनुसार करेंगी :] [परन्तु निगम, साधारण बीमा कारबार (राष्ट्रीयकरण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारंभ से ही, साधारण बीमा कारबार करना बंद कर देगा ।] 25. भारत में स्थित संत्तियों का केन्द्रीय सरकार की अनुज्ञा के बिना विदेशी बीमाकर्ताओं से बीमा न कराया जाना-(1) कोई भी व्यक्ति भारत में स्थित किसी सम्पत्ति की बाबत या भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत या अन्य जलयान या वायुयान की बाबत किसी ऐसे बीमाकर्ता से, जिसके कारबार का मुख्य स्थान भारत से बाहर है, केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुज्ञा के बिना, कोई बीमा पालिसी न तो लेगा और न नवीकृत कराएगा । (2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के किसी भी उपबन्ध का उल्लंघन करेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा । 26. अर्जक कम्पनियां और आय-कर-आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) के प्रयोजनों के लिए प्रत्येक अर्जक कम्पनी के बारे में यह समझा जाएगा कि वह भारतीय कम्पनी तथा ऐसी कम्पनी है जिसमें जनता पर्याप्त रूप से हितबद्ध है । 27. कुछ मामलों में बीमा की रकम कम करने की शक्ति-कोई अर्जक कम्पनी, 1971 के मई की 13 तारीख को अपनी वित्तीय स्थिति को, या उक्त तारीख को किसी ऐसे विद्यमान बीमाकर्ता की, जिसका उपक्रम इस अधिनियम के अधीन उसे अन्तरित या उसमें निहित हो गया हो, वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए, उक्त तारीख के पूर्व की गई साधारण बीमा की संविदाओं के अधीन पैदा हुए दायित्वों को ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए कम कर सकेगी जो वह ठीक समझे : परन्तु ऐसी कोई कमी अर्जक कम्पनी द्वारा इस निमित्त की गई और केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित विनिर्दिष्ट प्रस्थापनाओं के अनुसार ही की जाएगी अन्यथा नहीं । 28. कुछ संव्यवहारों की बाबत राहत चाहने का अर्जक कम्पनी का अधिकार-(1) जहां किसी विद्यमान बीमाकर्ता ने 1971 के मई की 13 तारीख के पूर्व के पांच वर्षों के भीतर किसी भी समय- (क) किसी व्यक्ति को प्रतिफल के बिना कोई संदाय किया है, (ख) बीमाकर्ता की किसी सम्पत्ति का प्रतिफल के बिना या अपर्याप्त प्रतिफल पर विक्रय या व्ययन किया है, (ग) किसी सम्पत्ति या अधिकारों को अत्यधिक प्रतिफल पर अर्जित किया है, (घ) ऐसा कोई करार किया है या उसमें ऐसा परिवर्तन किया है जिससे बीमाकर्ता द्वारा अत्यधिक प्रतिफल संदत्त करना या देना अपेक्षित है, (ङ) ऐसी दुर्भर प्रकृति का कोई अन्य संव्यवहार किया है जिससे बीमाकर्ता को उससे अधिक हानि होती है या उस पर उससे बड़ा दायित्व अधिरोपित हो जाता है जितना कि उसे फायदा प्रोद्भूत हुआ है, और वह संदाय, विक्रय, व्ययन, अर्जन, करार या उसमें परिवर्तन या अन्य संव्यवहार उस बीमाकर्ता के साधारण बीमा कारबार के प्रयोजनार्थ उचित रूप से आवश्यक नहीं है या वह बीमाकर्ता में प्रज्ञा के अनुचित अभाव के कारण किया गया है, वहां इन दोनों ही दशाओं में उस समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अर्जक कम्पनी ऐसे संव्यवहार की बाबत राहत के लिए न्यायालय से आवेदन कर सकेगी और जब तक कि न्यायालय अन्यथा निदेश दे, उस संव्यवहार के सभी पक्षकार उस आवेदन में पक्षकार बनाए जाएंगे । (2) आवेदन करने वाले पक्षकार जिस सीमा तक संव्यवहार के लिए क्रमशः उत्तरदायी हैं या उससे लाभान्वित हुए हैं उसको और मामले की सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय आवेदन के किसी भी पक्षकार के विरुद्ध ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह न्यायसंगत समझे । (3) जहां किसी संव्यवहार की बाबत इस उपधारा के अधीन न्यायालय को आवेदन किया जाता है और आवेदन का अवधारण अर्जक कम्पनी के पक्ष में किया जाता है वहां न्यायालय को संव्यवहार की बाबत विद्यमान किसी भी दावे का अवधारण करने की अनन्य अधिकारिता होगी । 29. सम्पत्ति का कब्जा और उससे सम्बन्धित दस्तावेज परिदत्त करने का कर्तव्य-(1) जहां किसी विद्यमान बीमाकर्ता से सम्बद्ध कोई सम्पत्ति धारा 5 के अधीन किसी भारतीय बीमा कम्पनी को अन्तरित या उसमें निहित की गई है वहां,- (क) प्रत्येक व्यक्ति, जिसके कब्जे, अभिरक्षा या नियंत्रण में ऐसी सम्पत्ति है, उस सम्पत्ति को तुरन्त भारतीय बीमा कम्पनी को परिदत्त करेगा ; (ख) प्रत्येक व्यक्ति, जिसके कब्जे, अभिरक्षा या नियंत्रण में विद्यमान बीमाकर्ता से सम्बन्धित कोई बहियां, दस्तावेजें या अन्य कागज-पत्र ऐसे निहित होने के ठीक पहले हैं, उक्त बहियों, दस्तावेजों और कागज-पत्रों का लेखा-जोखा भारतीय बीमा कम्पनी को देने के लिए जिम्मेदार होगा और उन्हें उस कम्पनी को या ऐसे व्यक्ति को परिदत्त करेगा जिसे परिदत्त करने का वह कम्पनी निदेश दे । (2) विशिष्टतः, किसी विद्यमान बीमाकर्ता की उपक्रम से सम्बद्ध सब आस्तियां, जो भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बीमा अधिनियम के अधीन निक्षेप के रूप में या न्यासियों द्वारा न्यास के रूप में धारित हों, भारतीय बीमा कम्पनी को परिदत्त की जाएंगी । (3) इस धारा के अन्य उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, प्रत्येक भारतीय बीमा कम्पनी के लिए उन सब सम्पत्तियों का, जो इस अधिनियम के अधीन उसे अन्तरित या उसमें निहित की गई हैं, कब्जा लेने के लिए सब आवश्यक कार्रवाइयां करना विधिपूर्ण होगा । 30. सम्पत्ति आदि विधारित करने के लिए शास्ति-यदि कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति या किन्हीं बहियों, दस्तावेजों या अन्य कागज-पत्रों को, जो उसके कब्जे में हों, जानबूझकर विधारित करेगा या उन्हें धारा 29 द्वारा यथा अपेक्षित किसी भारतीय बीमा कम्पनी को परिदत्त नहीं करेगा या किसी विद्यमान बीमाकर्ता की किसी सम्पत्ति पर, जो धारा 5 के अधीन किसी भारतीय बीमा कम्पनी को अन्तरित या उसमें निहित की गई है, विधिविरुद्ध कब्जा रखेगा या किसी ऐसी सम्पत्ति का इस अधिनियम में अभिव्यक्त या उसके द्वारा प्राधिकृत प्रयोजनों से भिन्न किन्हीं प्रयोजनों के लिए जानबूझकर उपयोग करेगा तो वह, भारतीय बीमा कम्पनी के परिवाद पर, कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा । 31. निगम या अर्जक कम्पनियों के अधिकारियों और कर्मचारियों का लोक सेवक होना-निगम का या किसी अर्जक कम्पनी का प्रत्येक अधिकारी या अन्य कर्मचारी भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 9 के प्रयोजनों के लिए लोक सेवक समझा जाएगा । 32. क्षतिपूर्ति-केन्द्रीय सरकार के प्रत्येक अधिकारी और निगम या किसी अर्जक कम्पनी के प्रत्येक अधिकारी या अन्य कर्मचारी की, इस अधिनियम के अधीन उसके कर्तव्यों के निर्वहन में या उनके सम्बन्ध में उसको हुई सभी हानियों तथा व्ययों की बाबत जो उसके जानबूझकर किए गए कार्य या व्यतिक्रम से न हुए हों, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या निगम या अर्जक कम्पनी द्वारा क्षतिपूर्ति की जाएगी । 33. निगम और अर्जक कम्पनियों का विघटन-कम्पनियों के परिसमापन से सम्बद्ध विधि का कोई भी उपबन्ध निगम या किसी अर्जक कम्पनी को लागू न होगा और निगम और ऐसी कोई कम्पनी केन्द्रीय सरकार के आदेश के और ऐसी रीति के, जो वह निर्दिष्ट करे, सिवाय समापनाधीन नहीं की जाएगी । 34. अन्य विधियों में विद्यमान बीमाकर्ता के प्रति निर्देश-इस अधिनियम से भिन्न किसी विधि में या किसी संविदा या अन्य लिखत में किसी विद्यमान बीमाकर्ता के प्रति निर्देश का अर्थ, वहां तक जहां तक कि वह किसी अर्जक कम्पनी से सम्बन्धित है, यह लगाया जाएगा कि वह उस कम्पनी के प्रति निर्देश है । 35. बीमा अधिनियम का लागू होना-ऐसे अपवादों, निर्बन्धनों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, यदि कोई हों, जैसी केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, बीमा अधिनियम निगम को और प्रत्येक अर्जक कम्पनी को या उसके सम्बन्ध में, यावत्शक्य, ऐसे लागू होगा मानो, यथास्थिति, वह निगम या अर्जक कम्पनी उक्त अधिनियम के अर्थ में साधारण बीमा कारबार करने वाला कोई बीमाकर्ता है । । । । । । । 36. छूट-(1) इस अधिनियम की कोई भी बात निम्नलिखित के सम्बन्ध में लागू नहीं होगी- (क) राज्य सरकार द्वारा चलाया जाने वाला कोई साधारण बीमा कारबार, जहां तक ऐसा बीमा राज्य सरकार की सम्पत्तियों से या पूर्णतः या मुख्यतः राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन उपक्रमों से, या उन सम्पत्तियों से संबंधित है जो अर्ध-सरकारी निकायों या राज्य सरकार द्वारा किसी कानून के अधीन स्थापित किसी बोर्ड या निगमित निकाय, या किसी औद्योगिक या वाणिज्यिक उपक्रम की हैं जिसमें चाहे शेयरधारक, उधार देने वाले या प्रत्याभूतिदाता के रूप में राज्य सरकार का पर्याप्त वित्तीय हित है ; (ख) खण्ड (क) के अन्तर्गत न आने वाला कोई ऐसा साधारण बीमा कारबार, जो इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले राज्य सरकार द्वारा चलाया जा रहा है, उस सीमा तक जिस तक ऐसे कारबार को स्वतः लुप्त होने देना आवश्यक है : परंतु इस उपखंड की कोई भी बात राज्य सरकार को नई पालिसियां जारी करने या किन्हीं विद्यमान पालिसियों को नवींकृत करने के लिए प्राधिकृत करने वाली नहीं समझी जाएगी ; (ग) कोई ऐसा बीमाकर्ता जिसके कारबार का स्वेच्छया या न्यायालय द्वारा परिसमापन किया जा रहा है; (घ) कलकत्ता हास्पिटल एण्ड नर्सिंग होम बेनिफिट एसोसिएशन लिमिटेड द्वारा चलाया जा रहा बीमा कारबार ; (ङ) निर्यात उधार और प्रत्याभूति निगम लिमिटेड तथा निक्षेप बीमा निगम अधिनियम, 1961 (1961 का 47) की धारा 3 के अधीन स्थापित निक्षेप बीमा निगम द्वारा चलाया जा रहा बीमा कारबार ; (च) 1971 के मई की 14 तारीख के ठीक बाद पहले विद्यमान कोई स्कीम या केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से उक्त तारीख के पश्चात् बनाई गई कोई स्कीम जो फसलों के या पशुओं के या बाढ़ से खतरों के या युद्ध या आपातकालीन खतरों के बीम के लिए है । (2) यदि केन्द्रीय सरकार का समाधान हो जाता है कि कोई बीमाकर्ता, चाहे वह नियत दिन के पूर्व या पश्चात् स्थापित किया गया है केवल ऐसा साधारण बीमा कारबार करता है जो बीमाकर्ताओं द्वारा साधारणतया नहीं किया जाता है, तो वह अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम की कोई भी बात ऐसे बीमाकर्ता को लागू न होगी । 37. रिक्तियों आदि, से कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होना-निगम या किसी अर्जक कम्पनी का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि निगम या कम्पनी में कोई रिक्ति थी या उसके गठन में कोई त्रुटि थी । 38. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार के किसी अधिकारी या निगम या अर्जक कम्पनी के किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी के विरुद्ध न होगी । 39. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी । (2) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना इस धारा के अधीन बनाए गए नियम निम्नलिखित के लिए उपबन्ध कर सकेंगे- (क) वह रीति जिससे निगम को प्राप्त लाभों, यदि कोई हों, और अन्य धनराशियों के विषय में संव्यवहार किया जा सकेगा ; [(ख) वे शर्तें, यदि कोई हों, जिनके अधीन रहते हुए निगम पुनर्बीमा कारबार चलाएगा ; (खक) वे शर्तें, यदि कोई हों, जिनके अधीन रहते हुए अर्जक कंपनियां साधारण बीमा कारबार चलाएंगी ;] (ग) वे निबन्धन और शर्तें, जिनके अधीन पुनः बीमा संविदाएं या संधियां की जा सकेंगी ; (घ) वह प्ररूप जिसमें और वह रीति जिससे केन्द्रीय सरकार को कोई सूचना दी जा सकेगी या आवेदन किया जा सकेगा ; (ङ) वे रिपोर्टें जो केन्द्रीय सरकार निगम और अर्जक कम्पनियों से मांग सकेगी ; (च) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना अपेक्षित हो या विहित किया जाए । (3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और धारा 35 के अधीन निकाली गई प्रत्येक अधिसूचना, बनाए जाने या निकाली जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिए, रखा जाएगा या रखी जाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या प्रभावी होगी । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए या वह अधिसूचना नहीं निकाली जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा या निष्प्रभाव हो जाएगी । किन्तु नियम या अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से पूर्व उसके अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडे़गा । । । । । । अनुसूची (धारा 11 देखिए) संदत्त की जाने वाली रकमें भाग क
भागख
__________ भारतीय जीवन बीमा का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?राष्ट्रीयकरण भारतीय संसद ने १९ जून १९५६ को भारतीय जीवन बीमा विधेयक पारित किया। जिसके तहत ०१ सितम्बर १९५६ को भारतीय जीवन बीमा निगम अस्तित्व में आया। भारतीय जीवन बीमा व्यापार का राष्ट्रीयकरण औद्योगिक नीति संकल्प १९५६ का परिणाम है।
भारत में जीवन बीमा की शुरुआत कब हुई?भारत में जीवन बीमा का शुभारम्भ 1818 में कलकत्ता में 'ओरिएन्टल लाइफ इन्श्योयोरेन्स कम्पनी' की स्थापना के साथ हुआ। 1823, 1829, 1847 में भी अन्य कम्पनियां स्थापित हुई।
LIC की स्थापना कब की गई थी?1 सितंबर 1956भारतीय जीवन बीमा निगम / स्थापना की तारीख और जगहnull
भारत की पहली बीमा कंपनी कौन सी है?भारत में पहली बीमा कंपनी युरोपियन द्वारा सन 1818 में स्थापित किया गया था ।
|