कौन से कवि प्रगतिवादी युग के हैं? - kaun se kavi pragativaadee yug ke hain?

Answer:

प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रवृत्तियाँ

प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रगतिवाद के प्रमुख कवि प्रगतिवाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ - जो विचारधारा राजनितिक क्षेत्र में समाजवाद और दर्शन में द्वान्द्त्मक भौतिकवाद है ,वही साहित्यिक क्षेत्र में प्रगतिवाद के नाम से अभिहित की जाती है . मार्क्सवादी या साम्यवादी दृष्टिकोण के अनुसार निर्मित काव्यधारा प्रगतिवाद है .१९३६ का वर्ष हिंदी साहित्य के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष है .इस समय छायावाद जहाँ एक ओर अपने पूर्ण उत्कर्ष पर दिखाई पड़ता है ,वहाँ साथ - साथ उसमें हासर भी दिखाई देता है .व्यक्तिवाद की जो व्यापक चेतना ,लोक संग्रह ,आशा और उल्लास का जो स्वर प्रसाद ,महादेवी ,निराला और पन्त में मिलता है ,नए कवियों में उसका प्राय: लोप सा हो गया है . उत्तर छायावाद युग में अनेक कवि प्रगतिवाद के जीवन आदर्श से प्रेरित हुए .इसमें प्रमुख हैं - नरेंद्र शर्मा ,शिवमंगल सिंह सुमन ,केदारनाथ अग्रवाल ,नागार्जुन ,रांगेय राघव.प्रगतिवाद के तरुण कवि हैं - शम्भुनाथ सिंह ,गिरिजाकुमार माथुर , भारतभूषण अग्रवाल ,गोपालदास नीरज ,रामविलास शर्मा .

प्रगतिवादी काव्यधारा की प्रमुख विशेषताओं व प्रवृत्तियों का वर्णन निम्नलिखित है -

१. रूढ़ि - विरोध -

प्रगतिवादी साहित्यकार ईश्वर को सृष्टि का कर्ता न मानकर जागतिक द्वन्द को सृष्टि का विकास का कारण स्वीकार करता है .उसे ईश्वर की सत्ता ,आत्मा ,परलोक ,भाग्यवाद ,धर्म ,स्वर्ग ,नरक आदि पर विश्वास नहीं है .उसकी दृष्टि में मानव की महत्ता सर्वोपरि है .उसके लिए धर्म एक अफीम का नशा है और प्रारब्ध एक सुन्दर प्रवंचना है .उसके लिए मंदिर ,मस्जिद ,गीता और कुरान आज महत्व नहीं रखते हैं .प्रगतिवादी कवि का कहना है कि -

किसी को आर्य ,अनार्य ,
किसी को यवन ,
किसी को हूण -यहूदी - द्रविड
किसी को शीश
किसी को चरण
मनुज को मनुज न कहना आह !

२.क्रांति का स्वर -

प्रगतिवादी कवि क्रांति में विश्वास रखते हैं .वे पूंजीवादी व्यवस्था ,रुढ़ियों तथा शोषण के साम्राज्य को समूल नष्ट करने के लिए विद्रोह का स्वर निकालते हैं -

नवीन -

कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये,
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये,
प्राणों के लाले पड़ जायें त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाये,."

३. मानवतावाद का स्वर -

ये कवि मानवता की शक्ति में विश्वास रखते हैं .प्रगतिवादी कवि कविताओं के माध्यम से मानवतावादी स्वर बिखेरता है .वह जाति - पाति ,वर्ग भेद ,अर्थ भेद से मानव को मुक्त करके एक मंच पर देखना चाहते हैं .

४. नारी भावना -

प्रगतिवादी कवियों का विश्वास है कि मजदूर और किसान की तरह साम्राज्यवादी समाज में नारी भी शोषित है .वह पुरुष की दास्ताजन्य लौह बंधनों में बंद है .वह आज अपना स्वरुप खोकर वासना पूर्ति का उपकरण रह गयी है .अतः कवि कहता है -

मुक्त करो नारी को मानव चिर वन्दिनी नारी को।

युग-युग की निर्मम कारा से जननी सखि प्यारी को।

५. धरती पर ही स्वर्ग बनाना -

प्रगतिवादी कवि आशावादी है .वे जीवन से निराश नहीं होते हैं .उन्हें कल्पना और सपना पर विश्वास नहीं ,बल्कि इसी धरती को ही वे स्वर्ग के रूप में बदलना चाहते हैं .इस धरती से विषमता दूर हो जाए और मानवता का प्रसार हो जाए तो सचमुच यह धरती ही स्वर्ग से भी महान बन जायेगी .अतः कवि इस जीवन में विश्वास करते हैं और इसे ही श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं .

६. कला पक्ष -

प्रगतिवाद जन आन्दोलन के रूप में उभरा था ,इसीलिए इन कवियों ने अपनी भाषा को बहुत सरल और जन - भाषा के नजदीक रखा . अलंकारों के रूप में ए सामन्तवादी प्रवृत्ति का घोतक मानते हैं ,इसीलिए इन्होने उनके स्थान पर जनजीवन के लिए सहज उपमानों और प्रतीकों का प्रयोग किया है .छंदों का भी तिरस्कार करके मुक्त छंद का सहारा लिया है .

७. सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण -

प्रगतिवादी कविता की मुख्य विशेषता शब्दों के माध्यम से ध्वनि देना और अपनी जमीन से जुड़कर यथार्थ का चित्रण करना है .इनमें समाज के यथार्थ चित्रण की प्रवृत्ति मिलती है .कविवर पन्त भारतीय ग्राम का चित्रण करते हुए लिखते हैं -

यहाँ खर्व नर (बानर?) रहते युग युग से अभिशापित,
अन्न वस्त्र पीड़ित असभ्य, निर्बुद्धि, पंक में पालित।
यह तो मानव लोक नहीं रे, यह है नरक अपरिचित,
यह भारत का ग्राम,-सभ्यता, संस्कृति से निर्वासित।
झाड़ फूँस के विवर,--यही क्या जीवन शिल्पी के घर?
कीड़ों-से रेंगते कौन ये? बुद्धिप्राण नारी नर?
अकथनीय क्षुद्रता, विवशता भरी यहाँ के जग में,
गृह- गृह में है कलह, खेत में कलह, कलह है मग में!

८. समसामयिक राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीय चित्रण -

प्रगतिवादी कवियों में देश - विदेश में उत्पन्न समसामयिक समस्यों और घटनाओं की अनदेखी करने की दृष्टि नहीं है . साम्प्रदायिक समस्यों - भारत पाक विभाजन ,कश्मीर समस्या ,बंगाल का अकाल ,बाढ़ ,अकाल ,बेकारी ,चरित्रहीनता आदि का इन कवियों ने बड़े पैमाने पर चित्रण किया है .नागार्जुन ने कागजी आजादी पर लिखा है -

" कागज की आजादी मिलती ,ले लो दो - दो आने में "

निष्कर्ष -

प्रगतिवादी कवियों ने अपनी कविता के माध्यम से एक राजनितिक वाद विशेष साम्यवाद का प्रचार किया ,व्यक्तिवाद के स्थान पर जनवाद की स्थापना की ,जनता को सुख - दुःख की वाणी दी तथा शोषितों - पीड़ितों की उन्नति के लिए जोरदार समर्थन किया .

‘प्रगतिवाद’: (1936 – 1943 ई०)

सन् 1936 ई० में दो कार्य हुए-

  • भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ का पहला अधिवेशन मुंशी प्रेमचंद की अध्यक्षता में लखनऊ में हुआ था। उसी समय सुमित्रानंदन पंत के ‘युगांत’ रचना का प्रकाशन हुआ। तब सुमित्रानंदन पंत ने कहा था कि मैं छायावाद युग की समाप्ति की घोषणा करता हूँ।
  • इसलिए ‘युगांत’ को छायावाद के मृत्यु की घोषणा पत्र भी कहा जाता है।
  • 1943 ई० में ‘तार सप्तक’ के साथ प्रगतिवाद का अंत हो गया।  

प्रगतिवाद का अर्थ- 

सन् 1926 ई० से लेकर 1943 ई० के बीच कार्ल मार्क्स के विचारों से प्रभावित होकर शोषित वर्ग के प्रति जो करुणापूर्ण तथा शोषक वर्ग के प्रति आक्रोश युक्त जो साहित्य लिखा गया उसे प्रगतिवाद के नाम से जाना जाता है।

प्रगतिवाद का इतिहास-

  • सन् 1935 ई० में फ़्रांस की राजधानी पेरिस में ‘हेनरी बारबूज’ ने प्रगतिशील लेखकों का एक संघ बनाया।
  • इसके पश्चात 1935 ई० में ही पेरिस में ‘प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएसन’ का ‘ई०एम० फोर्स्टर’ की अध्यक्षता में प्रथम सम्मलेन/अधिवेशन हुआ।
  • इस अधिवेशन से प्रेरणा लेकर 1935 ई० में लंदन में ही डॉ० मुल्कराज आनंद और डॉ० सज्जाद जहीर ने भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की।
  • लंदन में ही इस संघ का घोषणा पत्र तैयार किया गया। जिसे मुंशी प्रेमचंद ने 1936 ई० में ‘हंस’ पत्रिका में प्रकाशित किया।
  • सन् 1936 ई० में भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ का प्रथम अधिवेशन मुंशी प्रेमचंद की अध्यक्षता में लखनऊ में हुआ। इसके अध्यक्ष के रूप में भाषण देते हुए प्रेमचंद ने दो महत्वपूर्ण बातें कही-

“साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पिछे चलने वाले सच्चाई नहीं है, बल्कि उनके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाले सच्चाई हैं।”

“साहित्य में राजाओं का गौरव गान, सुंदरी का सौन्दर्य चित्रण व निजी वेदना की अभिव्यक्ति बहुत हो चुकी। अब हमें अपने सामाजिक दायित्व को समझकर उपेक्षित वर्गों की स्थिति सामने लाकर उनकी दशा सुधारने का प्रयास करना होगा।”

  • डॉ नामवर सिंह ने प्रेमचंद के इस भाषण को प्रगतिवाद की आत्मा कहा था।
  • सन् 1935 ई० में हेनरी बारबूज पेरिस में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना किया।

सन् 1935 ई० में पेरिस में इसका प्रथम अधिवेशन ई० एम० फोर्स्टर की अध्यक्षता में प्रथम सम्मलेन/अधिवेशन हुआ।

  • सन् 1935 ई० में लंदन में ही घोषणा पत्र तैयार किया गया।
  • सन् 1936 ई० में ‘युगांत’ रचना में पंत ने छायावादी युग के अंत की घोषणा किया।
  • सन् 1937 ई० में शिवदान सिंह चौहान ने ‘विशाल भारत’ पत्रिका में एक निबंध लिखा ‘भारत में प्रगतिशील साहित्य की आवश्यकता’

कथन- “हमारा साहित्यक नारा- कला, कला के लिए नहीं वरन् संसार को बदलने के लिए है। इस नारे को बुलंद करना प्रत्येक प्रगतिशील साहित्यकार का फर्ज है।”

  • सन् 1937 ई० में निराला की ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता प्रकाशित हुई, जो एक प्रगतिवादी कविता थी।
  • 1938 ई० के ‘रूपाभ’ पत्रिका में ‘प्रगतिशील एक अवधारणा’ निबंध लिखकर पंत ने इसके महत्व को प्रतिपादित किया।
  • सन् 1939 ई० में भगवती चरण वर्मा की एक ‘प्रगतिशील’ कविता प्रकाशित हुई-

          ‘चरमर चूँ चरर मरर जा रही भैसागाड़ी’

  • इस विचारधरा के लिए प्रगतिवाद शब्द का प्रयोग सबसे पहले गजानन माधव मुक्ति बोध ने सन् 1942 ई० में ‘प्रगतिवाद एक दृष्टि’ नामक निबंध में किया। मुक्तिबोध ने प्रगतिवाद को एक ‘वैचारिक सैनिक संघर्ष’ कहा है।

प्रगतिवाद का प्रवर्तक-

डॉ० बच्चन सिंह के शब्दों में- “प्रगतिवाद के प्रवर्तक सुमित्रानंदन पंत है। (युगवाणी 1939 ई० प्रगतिवाद का प्रथम काव्य संकलन) सर्वमान्य मत है।  

डॉ० गंपतिचंद्र गुप्त- रामेश्वर करुण सतसई (1934 ई०) प्रगतिवाद की पहली रचना है।

प्रगतिवाद के विशेष तथ्य-

रामविलास शर्मा- “राजनीति के क्षेत्र में जो मार्क्सवाद व साम्यवाद है वही साहित्य के क्षेत्र में वही प्रगतिवाद है।”

डॉ० नगेन्द्र के शब्दों में- “सन् 1933 ई० में गांधी जी कॉग्रेस के सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। 1934 ई० में कॉग्रेस के अंतर्गत ही समाजवादी दल की स्थापन हुई, जिसमे राजनैतिक क्षेत्र साम्यवाद तथा साहित्य के क्षेत्र में प्रगतिवाद के बीज निहित थे।”

डॉ० नामवर सिंह के शब्दों में- “जिस तरह कल्पना प्रवण अंतर्दृष्टि छायावाद की विशेषता है और अंतर्मुखी बौद्धिकता प्रयोगवाद की विशेषता है, उसी तरह यथार्थ सामाजिक चेतना प्रगतिवाद की विशेषता है।”

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी के शब्दों में- “प्रगतिवाद, उपयोगितावाद का दूसरा नाम है।”

प्रगतिवाद को डॉ नगेन्द्र, नामवर सिंह ने सामजिक यथार्थवाद कहा है।”

मुक्तिबोध के शब्दों में- “छायावादी वायवीय कल्पना व गांधी जी की अहिंसावादी नीतियों के विरोध में शोषित वर्ग की जो भावनाएँ तत्कालीन रचनाकारों की लेखनी से प्रस्फुटित हुई वे रचनाएँ प्रगतिवादी रचनाएँ है।”

  • प्रगतिवाद के प्रतिनिधि कवि ‘नागार्जुन’ हैं।
  • प्रगतिवाद के प्रवर्तक ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं।
  • प्रगतिवाद शब्द का सबसे पहले प्रयोग ‘मुक्तिबोध’ ने किया था।
  • प्रगतिवाद के आदि प्रवर्तक ‘कार्ल मार्क्स’ थे।

प्रगतिवाद की मुख्य विशेषताएँ-

  • मार्क्सवाद और साम्यवाद में आस्था
  • शोषित वर्ग के प्रति करुणा का भाव
  • शोषक वर्ग के प्रति आक्रोस की भावना
  • हिंसक क्रांति का समर्थन हुआ है
  • मानवीय मूल्यों का पक्षधर है
  • नारी के प्रति आस्था
  • सामजिक यथार्थ का चित्रण है
  • आम बोल-चाल की भाषा है  
  • मुक्तक काव्यों की प्रधानता है
  • विश्व बन्धुत्व की भावना है
  • यह काव्य बहुजन हिताय का दृष्टीकोण है  
  • धर्म और ईश्वर के विरोध के भाव है 

प्रगतिवादी के रचनाकार-

छायावाद के समानांतर प्रगतिशील साहित्य लिखने वाले रचनाकार है- (मूलतः छ्यावादी थे)

पंत, निराला, दिनकर, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, नरेंद्र शर्मा, भगवती चरण वर्मा, माखानलाल चतुर्वेदी, जानकीवल्लभ शास्त्री, रामेश्वर शुक्ल अंचल।

उपर्युक्त सभी कवि मूलतः छायावादी थे। साथ-साथ प्रगतिवादी के समानांतर भी थे।

मूलतः प्रगतिवादी रचनाकार

  • नागार्जुन (1911 – 1988 ई०)
  • केदार नाथ अग्रवाल (1911 – 2000 ई०)
  • राम विलास शर्मा (1912 – 2000 ई०)
  • मन्नूलाल शर्मा (1914 – 1994 ई०)
  • त्रिलोचन शास्त्री (1917 – 2007 ई०)
  • रांघेय रांघव (1923 – 1962 ई०)

नागार्जुन (1911 – 1998 ई०)

जन्म: 30 जून (1911 ई०) सतलज दरभंगा, बिहार

निधन: 5 नवंबर (1998 ई०)

मूलनाम: वैद्दनाथ मिश्र

1936 ई० में श्रीलंका में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। वहां ‘विद्दालंकार परिवेण’ नामक बौद्ध मठ में तीन वर्षों तक रहे।

उपनाम: ढक्कन

‘यात्री’ नाम से मैथिली में रचना लिखते थे। (पत्रहीन नग्न गाछ)

प्यार से लोग इन्हें ‘बाबा’ भी कहते थे।

इन्हें ‘आधुनिक कबीर’ के नाम से भी जाना जाता है।

महत्वपूर्ण रचनाएँ: काव्य संकलन (खड़ी बोली)

  • युगधारा (1953 ई०)
  • तालाब की मछलियाँ (1957 ई०)
  • सतरंगे पंखोंवाली (1959 ई०)
  • प्यासी पथराई आँखें  (1962 ई०)
  • भाष्माअंकुर (खण्ड काव्य 1970 ई०)
  • गीत गोविंद (1979 ई०)
  • खिचड़ी विप्लव देखा हमने (1980 ई०)
  • तुमने कहा था (1980 ई०)
  • हजार-हजार बाहों वाली (1981 ई०)
  • पुरानी जूतियों का कोरस (1983 ई०)
  • रत्नगर्भा (1984 ई०)
  • ऐसे भी हम क्या ऐसे भी तुम क्या (1985 ई०)
  • इस गुब्बारे की छाया में (1990 ई०)
  • आखिर ऐसा क्या कह दिया मैने (1991 ई०)
  • भूल जाओ पुराने सपने (1994 ई०)
  • अपने खेत (1997 ई०)

लम्बी कविताएँ-

  • हरिजन गाथा
  • भूमिजा- इसका संपादन सोमदेव और शोभाकांत ने किया

महत्वपूर्ण उपन्यास:              

  • रतिनाथ की चाची (1948 ई०)
  • बलचनामा (1952 ई०)
  • नई पौध (1952 ई०)
  • बाबा बटेसर नाथ (1954 ई०)
  • वरुण के बेटे (1957 ई०)
  • दुःखमोचन (1957 ई०)
  • कुम्भीपाक (1960 ई०)
  • हीरक जयंती (1962 ई०) दूसरा नाम- अभिनंदन
  • उग्रतारा (1963 ई०)
  • जमनिया का बाबा या उमरतिया (1968 ई०)
  • पारो (1975 ई०)
  • गरीबदास (1979 ई०)

कहानी संग्रह: ताप हारिणी, असमर्थदाता, कायापलट, ममता, विषम ज्वर, होतक जयंती, मनोरंजन का टैक्स।

महत्वपूर्ण नाटक: अनुकंपा और निर्णय (ऐतिहासिक नाटक)

यात्रा वृतांत: हिमालय की बेटियाँ, टिहरी से नेल्डर, धौ लिड्आतिथ्य सत्कारसिंध में सत्रह महिने।

संस्मरण: एक घंटा (1957 ई०), मैं सो रहा हूँ (1957 ई०)आईने के सामने (1964 ई०)

संपादन- दीपक पत्रिका (1962- 68 ई०) हिन्दी में

अनुवाद- कालिदास के ‘मेघदूत’ का हिन्दी में अनुवाद किया

आलोचना- एक व्यक्ति एक युग (1957 ई०)

जीवनी- इनकी जीवनी ‘शोभाकांत’ ने ‘बाबूजी’ नाम से लिखी

‘पत्रहीन नग्न गाछ’ मैथिली काव्य संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार (1968 ई०)

महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

“कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास” (आकाल और उसके बाद)

“आओ रानी हम ढोए पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की” (व्यंग्य कविता)

पैदा हुआ मैं दीनहीन अपठित

कालिदास सचसच बतलाना रति यक्ष रोया था (कालिदास)

बादल को घिरते देखा है—-

घोर निर्जन में परिस्थिति में दिया है (सिंदूर तिलांकित भाल- कविता)

पेशा से प्राइमरी स्कूल का मास्टर थे (प्रेत का ब्यान – कविता)

2. केदारनाथ अग्रवाल (1911 – 2000 ई०)

जन्म: 1 अप्रैल (1911 ई०) गाँव कमासिन, जिला बाँदा (उ० प्र०)

निधन: (2000 ई०)

पिता: हनुमान प्रसाद थे।

  • ये ‘मान’ के उपनाम से रचनाएँ लिखते थे।
  • इनके पिता का एक काव्य संकलन ‘मधुरिमा’ है। जिसमे 29 कविताएँ हैं। जो ‘श्रृंगार’ और ‘प्रकृति’ से संबंधित थे।
  • पंत के सामान प्रकृति चित्रण के कारण केदारनाथ अग्रवाल को छायावादोत्तर कविता का ‘पंत’ भी कहा जाता है।
  • इन्हें ‘परिवार का कवि’ और ‘प्रकृति का कवि’ भी कहा जाता है।
  • इन्हें ‘केन’ का कवि भी कहा जाता है।
  • इनकी प्रथम कविता ‘छाया’ (1928 ई०) 17 वर्ष की अवस्था में।

महत्वपूर्ण काव्य संग्रह:

  • युग की गंगा (1947 ई०) यह प्रथम काव्य संकलन है।
  • नींद के बादल (1947 ई०)
  • लोक और आलोक (1957 ई०)
  • फूल नहीं रंग बोलते है (1965 ई०)
  • आँग का आईना (1970 ई०)
  • देश-देश की कविताएँ (1970 ई०)
  • गुल मेहंदी (1978 ई०)
  • पंख और पतवार (1979 ई०)
  • विचार और बाँदा (1980 ई०)
  • देश विदेश की कविताएँ (1980 ई०)
  • विवेक विवेचन (1981 ई०)
  • हे मेरी तुम (1981 ई०)
  • मार प्यार के थापे (1981 ई०)
  • कहे केदार खरी-खरी (1983 ई०)
  • बंबई की रक्त स्नान (1983 ई०)
  • अपूर्वा (1984 ई०) साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला 1986 ई० 
  • जमुनजल तुम (1984 ई०)
  • बोल-बोल अबोल (1985 ई०)
  • जो शिलाएँ तोड़ते है (1985 ई०)
  • आत्मगंध (1988 ई०)
  • अनहारी हरियाली (1988 ई०)  
  • खुली आँखें और खुली डैने (1989 ई०)
  • पुष्पदीप (1989 ई०)
  • बसंत में प्रसन्न हुई पृथ्वी (1990 ई०)
  • कुहुकी कोयल (1990 ई०)
  • अस्थि और अंकुर (यह निधन के बाद प्रकाशित हुई इसमें 65 कविताएँ थी। प्रकाशन वर्ष 2005 ई० प्रगतिवादी कविताओं का संकलन है।

केदारनाथ अग्रवाल की प्रसिद्ध कविताएँ:

‘हे मेरी तुम’ कविता संग्रह में संकलित कविताएँ- हे मेरी तुम, एक खिले फूल से समुंद्र है वह, तुम भी कुछ हो। (पत्नी को संबोधित काव्य संकलन)

अपूर्वा (1984 ई०) कविता में संकलित कविताएँ- न बूझी आग की गाँठ, समय बदला, ममहित है धरा इरा है, जहान से बाहर को, जीने का दुःख, मर्म भीतर छिपाएँ

महत्वपूर्ण उपन्यास: पतिया (1985 ई०)बैल बाजी मार ले गए (अधूरा उपन्यास)

निबंध संकलन: समय-समय (1970 ई०), विचार बोध (1980 ई०), विवेक विवेचन(1981 ई०)

यात्रा वृतांत: बसती खिले गुलाबों की (1981 ई०)

कुछ अन्य प्रसिद्ध कविताएँ:

केन किनारे, आज नदी बिल्कुल उदास थीसे, चंद्र गहना से लौटती बेर, माझी न बजाओं वंशी।

कुछ कविताओं के प्रसिद्ध पंक्तियाँ:

मारो मारो मारो हँसिया, पाटो पाटो पाटो धरती

धीरज और अधीरज क्या है? कारज से बढ़ धीरज क्या है?

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है

तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है

जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

हमारी ज़िन्दगी के दिन, बड़े संघर्ष के दिन हैं।
हमेशा काम करते हैं, मगर कम दाम मिलते हैं।

हे मेरी तुम! आज धूप जैसी हो आई
और दुपट्टा, उसने मेरी छत पर रक्खा
मैंने समझा तुम आई हो, दौड़ा मैं तुमसे मिलने को

विशेष तथ्य:

  • केदारनाथ अग्रवाल आरम्भ में छायावादी कविताएँ लिखते थे। बाद में प्रगतिवादी हो गए।
  • कहें केदार खरी-खरी कविता में पूँजीवादी के खतरों से सचेत किया गया है। डॉलर के खतरे से भी सावधान किया गया है।
  • हे मेरी तुम, जमुनजल तुम पत्नी पर आधारित काव्य संकलन है।
  • इनकी कविताओं में ग्रामीण प्रकृति सौंदर्य का चित्रण है
  • अज्ञेय के शब्दों में- “केदारनाथ अग्रवाल वास्तव में ग्रामीण प्रकृति व संस्कृति के चितेरे है इनकी कविताओं में मिट्टी से जुडाव की गंध है।”

3. डॉ० रामविलास शर्मा 

जन्म: 10 अक्तूबर, (1912 ई०)

निधन: 30 मई, (2000 ई०)

आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, विचारक एवं कवि थे।

हिन्दी के प्रकांड पंडित और महान विचारक, ऋग्वेद और मार्क्स के अध्येता, कवि, आलोचक, इतिहासवेत्ता, भाषाविद, राजनीति-विशारद ये सब विशेषण उन पर समान रूप से लागू होते हैं।

कविता-नाटक-उपन्यास

  1. चार दिन (उपन्यास) -1936
  2. ‘तार सप्तक’ में संकलित कविताएँ -1943
  3. महाराजा कठपुतली सिंह (प्रहसन) -1946
  4. पाप के पुजारी (नाटक) -1936
  5. बुद्ध वैराग्य तथा प्रारम्भिक कविताएँ -1997 (सन् 1929 से 1936 के बीच लिखित कविताएँ)
  6. सदियों के सोये जाग उठे (सन् 1945-47 में लिखित कविताएँ) -1988
  7. रूपतरंग -1956 (सन् 1935 से 1956 के बीच लिखित कुछ कविताएँ; सन् 1990 में रूपतरंग और प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि में अंतर्वर्ती प्रथम खंड के रूप में समाहित)

साहित्यिक आलोचना

  1. प्रेमचन्द -1941
  2. भारतेन्दु युग -1943 (परिवर्द्धित संस्करण भारतेन्दु युग और हिन्दी भाषा की विकास परम्परा -1975)
  3. निराला -1946
  4. प्रेमचन्द और उनका युग -1952
  5. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र -1953 (परिवर्द्धित संस्करण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएँ -1985)
  6. प्रगतिशील साहित्य की समस्याएँ -1954
  7. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना -1955
  8. विराम चिह्न -1957 (संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण-1985)
  9. आस्था और सौन्दर्य -1961 (संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण-1990)
  10. निराला की साहित्य साधना-1 (जीवनी) -1969
  11. निराला की साहित्य साधना-2 (आलोचना) -1972
  12. निराला की साहित्य साधना-3 (पत्राचार संग्रह एवं बृहद् भूमिका) -1976
  13. महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण -1977
  14. नयी कविता और अस्तित्ववाद -1978
  15. परम्परा का मूल्यांकन -1981
  16. भाषा, युगबोध और कविता -1981
  17. कथा विवेचना और गद्यशिल्प -1982
  18. मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य -1984
  19. भारतीय साहित्य के इतिहास की समस्याएँ -1986
  20. भारतीय साहित्य की भूमिका -1996 (‘संगीत का इतिहास’ भी मूलतः इसी में है।)
  21. प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि (सन् 1990 में ‘रूपतरंग और प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि’ में अन्तर्वर्ती तृतीय खंड के रूप में प्रकाशित; परिशिष्ट आदि को छोड़कर कुल 160 पृष्ठों की पाठ्य सामग्री)

आत्मकथा-साक्षात्कार-पत्रसंवाद-सम्पादकीय

  1. मेरे साक्षात्कार (1994)
  2. अपनी धरती अपने लोग (आत्मकथा, तीन खण्डों में) -1996
  3. आज के सवाल और मार्क्सवाद (साक्षात्कार) -2001
  4. मित्र-संवाद (केदारनाथ अग्रवाल से पत्र व्यवहार; प्रथम संस्करण-1992; परिवर्धित संस्करण, दो खंडों में, 2010)
  5. अत्र कुशलं तत्रास्तु (2004, अमृतलाल नागर से पत्रव्यवहार)
  6. भाषा, साहित्य और जातीयता (‘समालोचक’ पत्रिका में लिखित सम्पादकीय लेख एवं पुस्तक-समीक्षाओं का एकत्र संकलन) -2012

सम्पादित कृतियाँ

  1. गीतिमाला -1948
  2. जहाज और तूफान (परिजनों द्वारा लिखित रिपोर्ताज, रेखाचित्र एवं संस्मरण, दो खंडों में) -1965
  3. घर की बात -1983
  4. लोकजागरण और हिन्दी साहित्य (87 पृष्ठों की विस्तृत भूमिका सहित आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंधों का संग्रह) -1985 ई०
  5. प्रगतिशील काव्यधारा और केदारनाथ अग्रवाल -1986 ई०
  6. तीन महारथियों के पत्र (23 पृष्ठों की भूमिका सहित) -1997 ई०
  7. कवियों के पत्र (39 पृष्ठों की भूमिका सहित) -2000 ई०

4. मन्नूलाल शर्मा ‘शील’

जन्म: 15 अगस्त (1914 ई०)

निधन: 23 नवंबर (1994 ई०)

हिन्दी के एक महाकवि क्रांतिकारी विचारों और जूझारू व्यक्तित्व के स्वामी शील जी अपने समय के लोकप्रिय नाटककार और कवियों में से थे।

प्रमुख कविताएँ:

  • चर्खाशाला (यह उनकी लम्बी कविता है।)
    • उदयपथ
    • एक पग
    • अंगड़ाई
    • लावा और फूल
    • कर्मवाची शब्द हैं
    • लाल पंखों वाली चिड़िया उनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं।
    • किसान

प्रमुख नाटक:

  • तीन दिन तीन घर
    • किसान
    • हवा का रुख
    • नदी और आदमी
    • रिहर्सल
    • रोशनी के फूल
    • पोस्टर चिपकाओ आदि नाटक हैं।
  • उनके कई नाटकों को पृथ्वी थियेटर द्वारा खेला गया यहाँ तक कि रशिया में भी उनके शो हुए तथा राजकपूर ने उनमें अभिनय भी किया है|
  • हवा का रुख शीर्षक से उनके तीन नाटक लोक भारती प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित हुए थे। ये नाटक बाद में शील रचनावली-1 के नाम से भी प्रकाशित हुए।
  • किसान नामक उनका नाटक रंगमंच पर भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।
  • उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

5. त्रिलोचन शास्त्री (1917 – 2007 ई०)

मूलनाम: वासुदेव सिंह  

जन्म: 20 अगस्त (1917 ई०) सुलतानपुर

निधन: 9 दिसंबर (2007 ई०) नई दिल्ली

उपनाम: सॉनेट का कवि

  • जीवन में निहित लय का कवि- नामवर सिंह जी ने कहा
    • अवध का किसान कवि- मुक्तिबोध ने कहा   
    • जिजीविसा का कवि
    • धरती का कवि
    • औसत भारतीयता का कवि
  • कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है।
  • वे आधुनिक हिन्दी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो स्तंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।

महत्वपूर्ण कविता संग्रह

  • धरती (1945 ई०) प्रथम काव्य संकलन 63 कविताएँ है।
    • गुलाब और बुलबुल (1956 ई०)
    • दिगंत (1957 ई०) सॉनेट छंद में रचित हैं।
    • ताप के ताए हुए दिन (1980 ई०) 1981 ई० में इसके लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 
    • उस जनपद का कवि (1981 ई०)
    • अरघान (1983 ई०)
    • कहनी भी कुछ अनकहनी है (1985 ई०)
    • तुम्हें सौंपता हूँ (1985 ई०)
    • फूल नाम है एक (1985 ई०)
    • सबका अपना आकाश (1987 ई०)
    • चैती (1987 ई०)
    • अमोला (1990 ई०) इनकी ‘अमोला’ रचना की भाषा ‘अवधी’ में है।
    • शब्द (1990 ई०)
    • मेरा घर (2000 ई०)
    • जीने की कला (2004 ई०)

संपादित: मुक्तिबोध की कविताएँ

कहानी संग्रह: देशकाल (1986 ई०) इसमें 13 कहानियाँ है।

डायरी: रोजनामचा (1992 ई०) यह हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ डायरी मानी जाती है।

आलोचना: काव्य और अर्थबोध  (1995 ई०)

त्रिलोचन की प्रसिद्ध कविताएँ:

  • मैं उस जनपद का कवि हूँ, जो भूखा है दूखा है, नगा है अनजान है कला नहीं जानता
    • तुम बढ़ो विजय के पथ पर
    • चीन महान चीन
    • इन दिनों मनुष्यता का कोई महत्व नहीं
    • चिर भरा पाजामा
    • काल फिर वह भिक्षुक आया था
    • प्रभो! पुत्र वह माँग रही
    • दीवारें  दीवारें दीवारें दीवारें
    • तुम्हें याद है

विशेष तथ्य:

  • इन्होंने  ‘अमोला’ रचना बरवै छंद में लिखि इसमें (2700 बरवै छंद है।)
    • यह नीति, सम-सामयिक घटनाओं से संबंधित छंद है।
    • ‘मेरा घर’ रचना में रूस व चीन की क्रांतियों का समर्थन, भारतिय किसानों मजदूरों की दयनीय स्थिति का चित्रण है।
    • इन्होंने तुलसी और ग़ालिब भावों की समानता की खोज की है।
    • तुलसी इनके प्रिये कवि थे इन्होंने तुलसी के विषय में लिखा है-

“तुलसी बाबा भाषा मैने तुमसे सीखी

 मेरी सजग चेतना में तुम रमे हो।”

  • इन्होंने तुलसी और निराला में भी भावों की समानता बताई है।

6.रांघेय रांघव (1923 – 1962 ई०)

मूलनाम: तिरुमल्लै नंबकम् वीरराघव 

जन्म: 17 जनवरी (1923 ई०) आगरा

निधन: 12 सितंबर (1962 ई०) आगरा

महत्वपूर्ण कविताएँ:

  • डायन सरकार
    • फ़िर उठा तलवार
    • खुला रहने दो
    • अर्धचेतन अवस्था में 
    • नास्तिक
    • श्रमिक
    • अन्तिम 
    • पिया चली फगनौटी कैसी गंध
    • उमंग भरी

महत्वपूर्ण उपन्यास:

  • घरौंदे (1946 ई०) यह विश्वविद्यालय परिसर पर लिखा गया, हिन्दी का प्रथम उपन्यास है।
    • विषादमठ (1946 ई०) बंगाल के अकाल पर आधारित उपन्यास है।
    • मुर्दों का टीला (1948 ई०)
    • प्रतिदिन (1950 ई०)
    • चीवर (1951 ई०)
    • सीधा-साधा रास्ता (1951 ई०)
    • हुजूर (1951 ई०)
    • अँधेरे में जुगुनू (1953 ई०) दासप्रथा को बचाने के लिए कुलीन वर्ग के प्रयत्न का चित्रण  
    • उबाल (1954 ई०)
    • भारती का सपूत (1954 ई०)
    • बोलते खंडहर (1955 ई०)
    • कब तक पुकारूँ (1957 ई०)
    • बौने और घायल फूल (1957 ई०)
    • पक्षी और आकाश (1957 ई०)
    • लखिमा की आँखें (1957 ई०)
    • जब आवेगी काली घटा (1958 ई०)
    • बन्दूक और बीन (1958 ई०)
    • राई और पर्वत (1958 ई०)
    • राह न रुकी (1958 ई०) महावीर स्वामी एवं बुद्ध युग कै जागरण की कथा।
    • छोटी सी बात (1959 ई०)
    • पथ का पाप (1959 ई०)
    • धुनी का धुआँ (1959 ई०)
    • महायात्रा (1960 ई०)
    • धरती मेरा घर (1960 ई०)
    • प्रोफेसर (1961 ई०)
    • पतझर (1962 ई०)
    • आखरी आवाज (1963 ई०)
    •  देवकी का बेटा, यशोधरा जीत गई, लोई का ताना, रत्ना की बात,  
  • ‘विषादमठ’ उपन्यास में रांगेय राघव ने अकाल से त्रस्त, क्षुधापीड़ित लोगों की करुण कहानी के साथ पूंजीपतियों का चित्रण किया है।
  • रांघेय रांघव के प्रसिद्ध उपन्यास ‘कब तक पुकारू’ पर टेलीविजन धारावाहिक भी बना। इस उपन्यास में ब्रज के नटों का चित्रण है।
  • 1948 ई० में उनका दूसरा उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’ प्रकाशित हुआ। इसकी कहानी सिंधु घाटी की सभ्यता पर आधारित है।
  • ‘चीवर’ उपन्यास में हर्षवर्धन और राज्यश्री के जीवन काल का चित्रण है।
  • रांघेय राघव ने ‘सीधा-सादा रास्ता’ उपन्यास भगवतीचरण वर्मा के उत्तर से जोड़कर उनकी कहानी ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’ से जोड़ दिया

महत्वपूर्ण कहानी संग्रह:

संकलित कहानियाँ : पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कम्बल, पेड़, नारी का विक्षोभ, काई, समुद्र के फेन, देवदासी, कठपुतले, तबेले का धुंधलका, जाति और पेशा, नई जिंदगी के लिए, ऊंट की करवट, बांबी और मंतर, गदल, कुत्ते की दुम और शैतान : नए टेक्नीक्स, जानवर-देवता, भय, अधूरी मूरत।

रांघेय रांघव की कहानी ‘गदल’ आधुनिक स्त्री विमर्श की कसौटी पर खड़ी उतरती है।

इसका अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुआ हैं।

यात्रा वृत्तान्त:

  • महायात्रा गाथा (अँधेरा रास्ता के दो खंड)
    • महायात्रा गाथा, (रैन और चंदा के दो खंड)।

भारतीय भाषाओं में अनूदित कृतियाँ:

जैसा तुम चाहो, हैमलेट, वेनिस का सौदागर, ऑथेलो, निष्फल प्रेम, परिवर्तन, तिल का ताड़, तूफान, मैकबेथ, जूलियस सीजर, बारहवीं रात।

डॉ० रांघेय राघव के जीवनी प्रधान उपन्यास:

डॉ० रांघेय राघव जी ने 1950 ई० के पश्चात कई जीवनी प्रधान उपन्यास लिखें है।

इनका पहला उपन्यास सन 1951-1953 ई० के बीच प्रकाशित हुआ।

  • भारती का सपूत – भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन पर आधारित है।
    • लखिमा की आँखें – विद्यापति के जीवन पर आधारित है।
    • मेरी भव बाधा हरो – बिहारी के जीवन पर आधारित है।
    • रत्ना की बात – तुलसुदास के जीवन पर आधारित है।
    • लोई का ताना – कबीर के जीवन पर आधारित है।
    • धूनी का धूंआं – गोरखनाथ के जीवन पर आधारित है।
    • यशोधरा जीत गई – (1954 ई०)  गौतम बुद्ध के जीवन पर लिखा गया है।
    • देवकी का बेटा – कृष्ण के जीवन पर आधारित है।
  • रांघेय राघव ने जर्मन और फ्रांसीसी के कई साहित्याकाओं की रचनाओं का हिन्दी अनुवाद किया।
  • उन्होंने शेक्सपियर के दस नाटकों का भी हिन्दी में अनुवाद किया।
  • वे अनुवाद मूल रचना सरीखे थे। इसलिए रांघेय राघव को हिन्दी का ‘शेक्सपियर’ कहा जाता है।

Read it also: 

प्रगतिवादी युग के कौन कौन से कवि हैं?

प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:.
केदारनाथ अग्रवाल (1911-2000): केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1911 ई. ... .
राम विलास शर्मा (1912-2000): रामविलास शर्मा का जन्म 1912 ई. ... .
नागार्जुन (1910-1998): नागार्जुन का जन्म 1911 ई. ... .
रांगेय-राघव (1923-1962): ... .
शिव-मंगल सिंह 'सुमन' (1915-2002): ... .
त्रिलोचन (1917-2007):.

प्रगतिवाद के लेखक कौन है?

'प्रगतिवाद' शिवदान सिंह चौहान द्वारा रचित रचना है।

प्रगतिशील कवि क्या है?

स्वतंत्रता के पश्चात् हिन्दी साहित्य में जिन नयी विचारधाराओं का जन्म हुआ उसमें प्रगतिशील विचारधारा प्रमुख थी। नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल और त्रिलोचन इस विचारधारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। इन तीनों को प्रगतिशील त्रयी के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

प्रगतिवादी युग कब से कब तक चला?

प्रगतिवादी युग (1936-1943) NVS,KVS, TET, CTET, NET, MDU hindi - YouTube.