कोसी नदी का निर्माण कब हुआ? - kosee nadee ka nirmaan kab hua?

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  • Forbesganj News 66 Years After The Start Of Kosi Project To Prevent Flooding

कोसी क्षेत्र में तटबंधों से सटे कुछ इलाक़े सुपौल, अररिया, सहरसा तो ऐसे हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है। लाखों के जान-माल का नुक़सान होता है। बिहार में बाढ़ कब से आ रही है, कहना संभव नहीं है। लेकिन आज़ादी के बाद अब तक नौ बार बिहार ने बाढ़ का वह विकराल रूप देखा है। जिसकी कल्पना मात्र से ही रूह सिहर उठता है। भारत के आज़ाद होने के बाद पहली बार 1953-54 में बाढ़ को रोकने के लिए एक परियोजना शुरू की गई नाम दिया गया कोसी परियोजना। 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू हुई। इस परियोजना के शिलान्यास के समय यह कहा गया था कि अगले 15 सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर क़ाबू पा लिया जाएगा।

1955 में कोसी परियोजना का हुआ था शिलान्यास

बुद्धिजीवियों में राजनारायण प्रसाद, हेमंत यादव, विनोद तिवारी सहित अन्य ने बताया की देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने साल 1955 में कोसी परियोजना के शिलान्यास कार्यक्रम के दौरान सुपौल के बैरिया गांव में सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि “मेरी एक आंख कोसी पर रहेगी और दूसरी आंख बाक़ी हिन्दुस्तान पर। 1965 में लाल बहादुर शास्त्री ने कोसी बराज का उद्घाटन किया था। बैराज बना कर नेपाल से आने वाली सप्तकोशी के प्रवाहों को एक कर दिया गया और बिहार में तटबंध बनाकर नदियों को मोड़ दिया गया। परियोजना के तहत समूचे कोसी क्षेत्र में नहरों को बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की गई। कटैया में एक पनबिजली केंद्र भी स्थापित हुआ। जिसकी क्षमता 19 मेगावॉट बिजली पैदा करने की है।

अब तक दो जगहों कमला बलान तथा झंझारपुर में तटबंध टूटे
प्रलयकारी बाढ़ के दौरान फारबिसगंज क्षेत्र में चारों ओर फैला बाढ़ का पानी।

66 वर्षों में बाढ़ आती रही लेकिन कोसी परियोजना धरातल पर नहीं उतर सकी
कोसी परियोजना जिन उद्देश्यों के साथ शुरू की गई थी। क्या वे उद्देश्य पूरे हुए पहला जवाब मिलेगा नहीं। कहां तो 15 साल के अंदर बिहार में बाढ़ रोक देने की बात कही गई थी। वहीं आज 66 साल बाद भी अररिया हर साल बाढ़ की विभीषिका झेल रहा है। बाढ़ तभी आ रही जब नदियों का जलस्तर बढ़ने से तेज़ बहाव में तटबंध टूटने लगते हैं।

कोशी के लिए अगस्त माह रहा है तांडव के लिए अनुकूल
आज़ादी के बाद अब तक नौ बार डायन कोशी ने अपना रूप दिखाया है पर सबसे ज्यादा अगस्त माह में कोशी ने तांडव मचाया है और इस बार भी लोगों के अंदर इस बात का डर सता रही है कि अगस्त तो अभी बांकी है।

2008 में कुसहा में बांध टूटने से मची थी तबाही
जानकार बुजुर्ग बताते हैं कि अगस्त 1963 में डलवा में पहली बार तटबंध टूटा था। फिर अक्तूबर 1968 में दरभंगा के जमालपुर में और अगस्त 1971 में सुपौल के भटनिया में तटबंध टूटे। सहरसा में तीन बार अगस्त 1980, सितंबर 1984 और अगस्त 1987 में बांध टूटे। जुलाई 1991 में भी नेपाल के जोगिनियां में कोसी का बांध टूट गया था। 2008 में फिर से कुसहा में बांध टूटा, जिसने भारी तबाही मचाई। इस बार अब तक दो जगहों पर कमला बलान तथा झंझारपुर में तटबंध टूटे हैं।

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कोसी नदी पर देश के सबसे बड़े पुल के लिए हुआ टेंडर

  • 3.5 साल में पूरा होगा काम, बदलेंगे मधुबनी व सुपौल के पिछड़े इलाके 
  • कुल 1286 करोड़ रुपए होंगे खर्च, पुल की ही लागत है 984 करोड़ रुपए

पटना. देश के सबसे लंबे (10.2 किलोमीटर) महासेतु के निर्माण के लिए टेंडर हो गया है। केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से 1286 करोड़ की लागत से बनने वाले इस महासेतु के निर्माण की स्वीकृति मिलते ही एनएचएआई ने टेंडर कर दिया है। इसमें सिर्फ पुल की लागत 984 करोड़ रुपए है। बकौर (सुपौल) और भेजा (मधुबनी) के बीच बनने वाला यह महासेतु साढ़े तीन साल में बनकर तैयार होगा।  


दियारा में दोनों तरफ बनेंगे दो बड़े-बड़े अंडरपास : कोसी महासेतु और बलुआहा घाट के बीच की बड़ी आबादी को इस महासेतु से बहुत लाभ होगा। बकौर-भेजा के बीच बनने वाले इस पुल के 25 किलोमीटर उत्तर में कोसी नदी पर कोसी महासेतु है तो 26 किलोमीटर दक्षिण में कोसी नदी पर ही बलुआहा घाट सेतु है, जिससे गाड़ियां आर-पार हो रही हैं। धारा बदलते रहने वाली कोसी नदी के स्वभाव के कारण इस महासेतु के सिरों को दोनों तरफ बने तटबंध (पूर्वी और पश्चिमी) से सीधे जोड़ा जा रहा है। इस कारण से ही यह महासेतु अब देश का सबसे लंबा महासेतु बन जाएगा।

अभी असम और अरुणाचल प्रदेश दो राज्यों को जोड़ने के लिए ब्रह्मपुत्र नदी पर बने सबसे बड़े महासेतु की लंबाई 9.8 किलोमीटर है। बकौर-भेजा महासेतु के बनने के बाद दियारे (तटबंधों के बीच) में रहने वाली आबादी को ध्यान में रखते हुए महासेतु के दोनों तरफ दो बड़े-बड़े अंडरपास बनाए जाएंगे। इनसे गाड़ियां भी आर-पार हो सकेंगी। बीच में पड़ने वाले दियारा के पांच गांवों को इस तरफ से उस तरफ जाने के लिए रास्ता मिलेगा। 
 

सामरिक दृष्टिकोण से भी है यह अहम 
भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत उमगांव (मधुबनी) से महिषी तारापीठ (सहरसा) के बीच बन रहे फोरलेन सड़क के एलाइनमेंट में यह पुल है। यह पुल सामरिक दृष्टिकोण से भी बहुत ही महत्वपूर्ण है। नेपाल, बांग्लादेश और भूटान के साथ उत्तर-पूर्व के राज्यों को जुड़ने में यह कारगर सिद्ध होगा। इसके बन जाने के बाद बागडोगरा एयरपोर्ट पर जाना-आना काफी आसान हो जाएगा। भारतमाला प्रोजेक्ट 5 पैकेजों में बन रहा है। इन्हीं में से एक पैकेज में इस पुल का निर्माण हो रहा है।
 

इसलिए भी है खास
{एप्रोच की लंबाई है सुपौल की तरफ 2 किलोमीटर तो मधुबनी की तरफ 1.1 किलोमीटर होगी {इसके बनने के बाद मधुबनी और सुपौल जिला मुख्यालय की दूरी घटेगी {सिलीगुड़ी यानी बंगाल से बिहार के कई जिलों में आना-जाना और आसान होगा {इस पुल  में 204 पिलर और 50 मीटर लंबाई वाले 50 स्पैन होंगे {2 लेन सड़क की चौड़ाई 11 मीटर, दोनों तरफ 1.5-1.5 मीटर के फुटपाथ  बनाए जाएंगे {मरीचा, चंदेल, गोपालपुर समेत पांच गांवों को महासेतु से सीधे रास्ता मिलेगा।

कोसी परियोजना की शुरुआत कब हुई?

भारत के आज़ाद होने के बाद पहली बार 1953-54 में बाढ़ को रोकने के लिए एक परियोजना शुरू की गई नाम दिया गया कोसी परियोजना। 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू हुई। इस परियोजना के शिलान्यास के समय यह कहा गया था कि अगले 15 सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर क़ाबू पा लिया जाएगा।

कोसी नदी का पुराना नाम क्या है?

कोसी नदी का प्राचीन नाम कौशिकी है। इसे सप्त कोशी नाम से भी जाना जाता है।

कोसी नदी किसका शोक है?

कोसी नदी, जिसे बिहार का शोक (Sorrow of Bihar) कहते हैं, अपना मार्ग बदलने के लिए कुख्यात रही है। यह नदी पर्वतों के ऊपरी क्षेत्रों से भारी मात्रा में अवसाद लाकर मैदानी भाग में जमा करती है

कोसी परियोजना कौन से राज्य में है?

कोसी बहुउद्देशीय परियोजना बिहार राज्य से संबंधित है। बांध नेपाल की सप्तकोसी नदी पर बनाया जाएगा। यह भारत और नेपाल सरकार की संयुक्त जल परियोजना है।