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कोसी क्षेत्र में तटबंधों से सटे कुछ इलाक़े सुपौल, अररिया, सहरसा तो ऐसे हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है। लाखों के जान-माल का नुक़सान होता है। बिहार में बाढ़ कब से आ रही है, कहना संभव नहीं है। लेकिन आज़ादी के बाद अब तक नौ बार बिहार ने बाढ़ का वह विकराल रूप देखा है। जिसकी कल्पना मात्र से ही रूह सिहर उठता है। भारत के आज़ाद होने के बाद पहली बार 1953-54 में बाढ़ को रोकने के लिए एक परियोजना शुरू की गई नाम दिया गया कोसी परियोजना। 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू हुई। इस परियोजना के शिलान्यास के समय यह कहा गया था कि अगले 15 सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर क़ाबू पा लिया जाएगा। 1955 में कोसी परियोजना का हुआ था शिलान्यास बुद्धिजीवियों में राजनारायण प्रसाद, हेमंत यादव, विनोद तिवारी सहित अन्य ने बताया की देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने साल 1955 में कोसी परियोजना के शिलान्यास कार्यक्रम के दौरान सुपौल के बैरिया गांव में सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि “मेरी एक आंख कोसी पर रहेगी और दूसरी आंख बाक़ी हिन्दुस्तान पर। 1965 में लाल बहादुर शास्त्री ने कोसी बराज का उद्घाटन किया था। बैराज बना कर नेपाल से आने वाली सप्तकोशी के प्रवाहों को एक कर दिया गया और बिहार में तटबंध बनाकर नदियों को मोड़ दिया गया। परियोजना के तहत समूचे कोसी क्षेत्र में नहरों को बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की गई। कटैया में एक पनबिजली केंद्र भी स्थापित हुआ। जिसकी क्षमता 19 मेगावॉट बिजली पैदा करने की है। अब तक दो जगहों कमला बलान तथा झंझारपुर में तटबंध टूटे 66 वर्षों में बाढ़ आती रही लेकिन कोसी
परियोजना धरातल पर नहीं उतर सकी कोशी के लिए अगस्त माह रहा है तांडव के लिए अनुकूल 2008 में कुसहा में बांध टूटने से मची थी तबाही
कोसी नदी पर देश के सबसे बड़े पुल के लिए हुआ टेंडर
पटना. देश के सबसे लंबे (10.2 किलोमीटर) महासेतु के निर्माण के लिए टेंडर हो गया है। केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से 1286 करोड़ की लागत से बनने वाले इस महासेतु के निर्माण की स्वीकृति मिलते ही एनएचएआई ने टेंडर कर दिया है। इसमें सिर्फ पुल की लागत 984 करोड़ रुपए है। बकौर (सुपौल) और भेजा (मधुबनी) के बीच बनने वाला यह महासेतु साढ़े तीन साल में बनकर तैयार होगा।
अभी असम और अरुणाचल प्रदेश दो राज्यों को जोड़ने के लिए ब्रह्मपुत्र नदी पर बने
सबसे बड़े महासेतु की लंबाई 9.8 किलोमीटर है। बकौर-भेजा महासेतु के बनने के बाद दियारे (तटबंधों के बीच) में रहने वाली आबादी को ध्यान में रखते हुए महासेतु के दोनों तरफ दो बड़े-बड़े अंडरपास बनाए जाएंगे। इनसे गाड़ियां भी आर-पार हो सकेंगी। बीच में पड़ने वाले दियारा के पांच गांवों को इस तरफ से उस तरफ जाने के लिए रास्ता मिलेगा। सामरिक दृष्टिकोण से भी है यह अहम इसलिए भी है खास कोसी परियोजना की शुरुआत कब हुई?भारत के आज़ाद होने के बाद पहली बार 1953-54 में बाढ़ को रोकने के लिए एक परियोजना शुरू की गई नाम दिया गया कोसी परियोजना। 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू हुई। इस परियोजना के शिलान्यास के समय यह कहा गया था कि अगले 15 सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर क़ाबू पा लिया जाएगा।
कोसी नदी का पुराना नाम क्या है?कोसी नदी का प्राचीन नाम कौशिकी है। इसे सप्त कोशी नाम से भी जाना जाता है।
कोसी नदी किसका शोक है?कोसी नदी, जिसे बिहार का शोक (Sorrow of Bihar) कहते हैं, अपना मार्ग बदलने के लिए कुख्यात रही है। यह नदी पर्वतों के ऊपरी क्षेत्रों से भारी मात्रा में अवसाद लाकर मैदानी भाग में जमा करती है।
कोसी परियोजना कौन से राज्य में है?कोसी बहुउद्देशीय परियोजना बिहार राज्य से संबंधित है। बांध नेपाल की सप्तकोसी नदी पर बनाया जाएगा। यह भारत और नेपाल सरकार की संयुक्त जल परियोजना है।
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