क्षेत्रवाद क्या है इसके कारण एवं निवारण के? - kshetravaad kya hai isake kaaran evan nivaaran ke?

Q.67: क्षेत्रवाद से क्या आश्य है ? इसके उदय के कारणों को रोकने के उपाय लिखिए ।

Answer:  क्षेत्रवाद :  क्षेत्रवाद वह संकीर्ण मनोवृत्ति है, जिससे प्रेरित होकर किसी क्षेत्र विशेष के लोग अपने क्षेत्र विशेष की तुलना में अन्य क्षेत्रों को निम्न समझते है तथा वह अपनी क्षेत्रवादी मनोवृत्तियों के कारण अपने स्थानीय क्षेत्रवादी प्रवृत्तियों को ही बढ़ावा देते है।

क्षेत्रवाद के कारणों को रोकने के उपाय निम्नलिखित है :

(1) संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा :- सरकार द्वारा विकास कार्यक्रमों का निर्माण और क्रियान्वय इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि जिससे सन्तुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिल सके। यह बात निर्विवाद है कि अब तक भारत में चलाये गये अधिकांश क्षेत्रीय आन्दोलनों के मूल में असन्तुलित आर्थिक विकास हो रहा है।

(2) विशिष्ट जातिय समूहों की रक्षा :- विशिष्ट जातीय समूहों की संस्कृति और पहचान को सुरक्षित रखने के लिए सरकार को विशेष प्रयास करना चाहिए। इस आशय के प्रावधान वैसे भी संविधान के अनुच्छेद 29 एवं 30 में किये गये है इन्हें पूर्ण ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए।

(3) पिछड़े क्षेत्रों के विशेष ध्यान :- यथासम्भव पिछडे हुए क्षेत्रों पर राज्य को विशेष ध्यान देना चाहिए। ताकि उन्हें मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। संघ सरकार को राज्य सरकारों के पिछड़े हुए क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने के लिए निर्देश देना चाहिए।

(4) क्षेत्रीय आन्दोलनों पर अंकुश :- क्षेत्रीय आन्दोलनों की हिंसात्मक प्रवृत्ति पर कठोरता से अंकुश लगाना चाहिए । सरकार को यह दृढ़तापूर्वक स्पष्ट कर देना चाहिए कि किसी भी प्रकार की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति संविधान के दायरे में शान्तिपूर्ण ढंग से सम्भव है।

(5) भावनात्मक दृष्टिकोण का विकास :- क्षेत्रवादी राजनीति को समाप्त करने का सबसे कारगर उपाय भावनात्मक दृष्टि में कटुता व द्वेष के स्थान पर समानता को बढ़ावा देना चाहिए।

क्षेत्रवाद का अर्थ क्षेत्रवाद का अर्थ किसी देश के उस छोटे से क्षेत्र से है जो आर्थिक, सामाजिक आदि कारणों से अपने पृथक् अस्तित्व के लिए जाग्रत है।
प्रो० एस० गुप्ता के अनुसार, “क्षेत्रवाद का अर्थ देश की अपेक्षा किसी विशेष क्षेत्र से प्यार है।”
फॉल्टर के अनुसार, “क्षेत्रवाद का अर्थ एक देश के उस छोटे से क्षेत्र से है जो आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक आदि से अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक है।”

क्षेत्रवाद का कारण

क्षेत्रवाद के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. ऐतिहासिक कारण-क्षेत्रवाद की उत्पत्ति में इतिहास का दोहरा सहयोग रहता है-सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक योगदान में शिव सेना का उदाहरण दिया जा सकता है और नकारात्मक योगदान में डी०एम०के० का उदाहरण दिया जा सकता है।
2. ऐतिहासिक विरासत-भारत प्राचीन काल से विशाल प्रादेशिक राज्यों वाला देश रहा है। कुछ शक्तिशाली राजाओं ने सम्पूर्ण भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित किया है लेकिन विशाल आकार और यातायात के साधनों के अभाव के कारण अखण्ड केन्द्रीय राज्य भारत में अधिक समय तक नहीं चल सका। केन्द्र सरकार के शक्तिहीन होने पर अधीनस्थ प्रदेशों और सामन्तों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी और स्थानीय स्वशासन स्थापित हो गया। इसी आधार पर भारत में नागालैण्ड, तमिलनाडु, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के विभाजन की माँग उठी।
3. भौगोलिक एवं सांस्कृतिक कारण–स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जब राज्यों का पुनर्गठन किया गया तब राज्यों की पुरानी सीमाओं को भुलाकर नहीं किया गया बल्कि उनको पुनर्गठन का आधार बनाया गया है। इसी कारण एक राज्य के रहने वाले लोगों में एकता की भावना नहीं आ पायी। प्राय: भाषा और संस्कृति क्षेत्रवाद की भावनाओं को उत्पन्न करने में बहुत सहयोग देते हैं।
4. भाषागत विभिन्नताएँ-भारत के विभिन्न प्रान्तों और क्षेत्रों की अपनी-अपनी भाषा है। प्रादेशिक भाषा बोलने वालों को अपनी भाषा से भावनात्मक लगाव होता है। अपनी भाषा को वे अधिक श्रेष्ठ मानकर अन्य भाषाओं को हीन मान लेते हैं। इससे क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलता है।
5. आर्थिक असन्तुलन-स्वाधीन भारत में देश का आर्थिक विकास कार्यक्रम कुछ इस प्रकार चला कि कुछ क्षेत्र बहुत अधिक विकसित हो गए जबकि कुछ क्षेत्र पिछड़ गए। पिछड़े क्षेत्रों में असन्तोष का उदय होना स्वाभाविक था। मिजो और नगा विद्रोहियों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है।
6. प्रशासनिक कारण-प्रशासनिक कारणों से भी विभिन्न राज्यों की प्रगति में अन्तर रहा है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा राज्यों का समान विकास नहीं हुआ है। कुछ राज्यों में प्रभावशाली औद्योगिक नीति के कारण विकास हुआ है जो कुछ राज्यों में बहुत धीमी गति से हो रहा है जो क्षेत्रवाद को बढ़ावा देता है।

क्षेत्रवाद के दुष्परिणाम भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के प्रमुख दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-
⦁    विभिन्न क्षेत्रों के मध्य संघर्ष और तनाव-क्षेत्रवाद का पहला दुष्परिणाम भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक, राजनीतिक, मनौवैज्ञानिक संघर्ष और तनाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
⦁    राज्य तथा केन्द्र सरकार के मध्य सम्बन्धों का विकृत होना-भारत में क्षेत्रीय कारण कभी-कभी केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के मध्य सम्बन्धों को भी विकृत कर देते हैं। राज्यों में विरोधी दल की सरकार होने की स्थिति में तनाव और बढ़ जाता है।
⦁    स्वार्थी नेतृत्व एवं संगठनों का विकास क्षेत्रवाद के कारण कुछ स्वार्थी नेता और संगठन विकसित होने लगते हैं जो जनता की भावनाओं को उभारकर अपने स्वार्थों की पूर्ति करना चाहते हैं।
⦁    राष्ट्र की एकता को चुनौती-संकीर्ण क्षेत्रीयता राष्ट्र की एकता के लिए चुनौती बन जाती है।
⦁    पृथक्तावाद को प्रोत्साहन-क्षेत्रवाद के कारण उपक्षेत्रवाद का उदय होता है। स्वार्थी तत्त्वों द्वारा क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा दिया जाता है तथा इस असन्तोष को पृथक्तावाद का रूप प्रदान कर दिया जाता है।
⦁    नए राज्यों की माँग-क्षेत्रवाद की भावना से प्रेरित होकर नए राज्यों की माँगें की जाती हैं। कभी-कभी यह माँगें हिंसक रूप धारण कर लेती हैं। झारखण्ड, उत्तरांचल (उत्तराखण्ड), छत्तीसगढ़, तेलंगाना आदि राज्यों. के निर्माण से पूर्व हुए आन्दोलन इसके उदाहरण हैं।

क्षेत्रवाद क्या है इसके कारण एवं निवारण?

क्षेत्रवाद एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमें लोग क्षेत्र विशेष, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक शक्तियों की अन्य से अधिक मांग करते है. सरल भाषा में कहें तो अपने क्षेत्र या भूगोलिक के प्रति अधिक प्रयत्न और आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक अधिकारों की चाह ही क्षेत्रवाद कहलाता है.

क्षेत्रवाद का कारण क्या है?

क्षेत्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जो राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और वैचारिक रूप से क्षेत्र विशेष के हितों को सर्वोपरि मानता है। भारत में क्षेत्रवाद के लिये कई कारक उत्तरदायी हैं। उदाहरण के लिये पृथक् भाषा, अलग भौगोलिक पहचान, नृजातीय पहचान, असमान विकास, धार्मिक पहचान आदि।

क्षेत्रवाद से आप क्या समझते हैं भारत में इसके मुख्य कारणों का वर्णन करें?

क्षेत्रवाद एक राजनीतिक विचारधारा है जो किसी विशेष क्षेत्र, क्षेत्रों के समूह या अन्य उप-व्यावसायिक इकाई के राष्ट्रीय या आदर्शवादी हितों पर केंद्रित है। इनमें राजनीतिक विभाजन, प्रशासनिक विभाजन, सांस्कृतिक सीमाएँ, भाषाई क्षेत्र और धार्मिक भूगोल, जैसे अन्य मुद्दे शामिल हैंभारत एक विविधतापूर्ण देश है'।

क्षेत्रवाद से आप क्या समझते हैं क्षेत्रवाद को रोकने के उपाय बताइए?

Answer: क्षेत्रवाद : क्षेत्रवाद वह संकीर्ण मनोवृत्ति है, जिससे प्रेरित होकर किसी क्षेत्र विशेष के लोग अपने क्षेत्र विशेष की तुलना में अन्य क्षेत्रों को निम्न समझते है तथा वह अपनी क्षेत्रवादी मनोवृत्तियों के कारण अपने स्थानीय क्षेत्रवादी प्रवृत्तियों को ही बढ़ावा देते है।