लेखक के छोटे भाई के कोमल मन को धक्का क्यों लगा? - lekhak ke chhote bhaee ke komal man ko dhakka kyon laga?

(प्रत्येक 2 अंक)

प्रश्न 1. भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था?
उत्तरः भाई के बुलाने पर, घर लौटते समय लेखक को भाई से पिटने का डर था। जब लेखक को भाई का बुलावा आया तब वह व उसके दोस्त बेर तोड़-तोड़ कर खा रहे थे। उसे लगा शायद इसी बात की भनक भाई को लग गई हो और उन्होंने उसे बुलावा भेजा हो।

प्रश्न 2. मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?
उत्तरः एक दिन बच्चों की टोली ने कुएँ में ढेला फेंककर जानना चाहा कि उसकी प्रतिध्वनि कैसी होती है। जैसे ही कुएँ में ढेला फेंका गया, वैसे ही उसमें से साँप की फुसकार सुनाई पड़ी। (यह सुनकर वे चकित रह गए) उसके बाद वे प्रतिदिन, साँप की फुसकार सुनने के लिए, कुएँ में ढेला फेंकने लगे।

प्रश्न 3. ‘साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’-यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?
उत्तरः उपर्युक्त कथन से लेखक की बदहवास मनोदशा स्पष्ट होती है। जिस समय लेखक कुएँ में ढेला फेंक रहा था, उसी समय उसने अपने एक हाथ से टोपी भी उतारी जिससे उसकी चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गईं। चिट्ठियों के कुएँ में गिरने के कारण, लेखक का डर के मारे बुरा हाल हो गया था। इसी डर की वजह से उसे पता ही नहीं चला और न ही स्मरण रहा कि साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं।

प्रश्न 4. किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?
उत्तरः लेखक के बड़े भाई ने लेखक को चिट्ठियाँ डाकखाने में डालने को दी थी, लेकिन लेखक से वे कुएँ में गिर गईं। लेखक अपने बड़े भाई से बहुत डरते थे। अगर घर पहुँचकर सच बोलते तो बड़े भाई से रूई की तरह धुने जाने (बहुत पिटाई होना) का डर था। इस ख्याल से ही लेखक का शरीर ही नहीं, मन भी काँप रहा था और झूठ बोलकर चिट्ठियों के न पहुँचने की जिम्मेदारी के बोझ से भी वह दबा जा रहा था। इसलिए उसने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया।

प्रश्न 5. साँप का ध्यान बँटाने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाईं?
उत्तरः साँप का ध्यान बँटाने के लिए लेखक ने कई युक्तियाँ अपनाईं। जैसे-साँप के पास पड़ी चिट्ठियों को उठाने के लिए डंडा बढ़ाया, साँप डंडे पर कूदा और डंडा छूट गया लेकिन इससे साँप का आसन भी बदल गया। लेखक चिट्ठियाँ उठाने में सफल रहा।
डंडा उठाने के लिए उसने साँप की दाईं ओर एक मुट्ठी मिट्टी लेकर फेंकी। जैसे ही साँप का ध्यान ऊपर गया, लेखक ने डंडा उठा लिया। डंडा बीच में होने के कारण साँप उस पर वार न कर पाया।

प्रश्न 6. ”जब जीवन होता है, तब हजारों ढंग बचने के निकल आते हैं।“ इस पंक्ति से किस भाव का पता चलता है?
उत्तरः इस पंक्ति में ईश्वर के प्रति भक्ति और विश्वास की भावना परिलक्षित हुई है। एक कहावत भी प्रसिद्ध है-जाको राखे साईंयाँ, मार सके न कोय।

प्रश्न 7. लेखक जब कुएँ में घुसने लगा तब छोटा भाई रोने क्यों लगा?
उत्तरः लेखक को कुएँ में घुसते देख भाई को आशंका हुई कि कुएँ में बैठा विषधर भाई को जीवित बाहर नहीं आने देगा। उस समय मौत सजीव और नग्न रूप लिए कुएँ में बैठी थी। इसलिए छोटा भाई रोने लगा। उसका रोना बिना कारण के नहीं था। इससे उसके भ्रातृ प्रेम, सहृदयता, दया, संरक्षण की भावना प्रकट होती है।

प्रश्न 8. माँ ने लेखक को अपनी गोद में क्यों व किस तरह से बिठा लिया?
उत्तरः माँ ने लेखक को ममता व वात्सल्य से अपनी गोद में ऐसे बिठा लिया जैसे चिड़िया अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे छिपा लेती है।

प्रश्न 9. लेखक व उसका भाई कुएँ की पाट पर बैठे रो क्यों रहे थे?
उत्तरः चिट्ठियाँ कुएँ में गिरने के बाद निराशा, पिटने के भय, बेचैनी और घबराहट के मारे लेखक व उसका भाई कुएँ की पाट पर बैठ कर रो रहे थे।

प्रश्न 10. ‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’- पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः लेखक यह सोचकर कुएँ में उतर गया था कि या तो वह चिट्ठियाँ उठाने में सफल होगा या साँप द्वारा काट लिया जाएगा। उसने फल की चिंता नहीं की। अतः फल की चिंता किए बिना दृढ़-विश्वास के साथ हमें कर्म करना चाहिए। फल देने वाला तो ईश्वर है। यह उसकी इच्छा है कि हमें मनचाहा फल मिलता है या नहीं, लेकिन दृढ़विश्वास व निश्चय से कर्म करने वाले व्यक्ति का ईश्वर भी साथ देता है।

(प्रत्येक 3 अंक)

प्रश्न 1. इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है ? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरः बच्चे बाल्यावस्था में पेड़ों पर चढ़ते हैं और उस पेड़ के फल तोड़कर खाते हैं, कुछ फल फेंक देते हैं तथा बच्चों को पेड़ों से बेर आदि फल तोड़कर खाने में मजा आता है। बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते में शरारतें करते हुए तथा शोर करते हुए जाते हैं। तथा बच्चे जीव-जन्तुओं को तंग करके खुश होते हैं। रास्ते में कुत्ते, बिल्ली या किसी कीड़े को पत्थर मारकर सताते हैं क्योंकि वे नासमझ होते हैं। उन्हें उनके दर्द व पीड़ा के बारे में पता नहीं चलता। वे नासमझी व बाल-शरारतों के कारण ऐसा करते हैं।

प्रश्न 2. दोनों भाइयों ने मिलकर कुएँ में नीचे उतरने की क्या युक्ति अपनाई?
उत्तरः कुएँ में चिट्ठियाँ गिर जाने पर दोनों भाई सहम गए और डरकर रोने लगे। छोटा भाई जोर-जोर से और लेखक आँख डबडबा कर रो रहा था। तभी उन्हें एक युक्ति सूझी। उनके पास एक धोती में चने बँधे थे, दो धोतियाँ उन्होंने कानों पर बाँध रखी थीं और दो धोतियाँ वह पहने हुए थे। उन्होंने पाँचों धोतियाँ मिलाकर कसकर गाँठ बाँध कर रस्सी बनाई। धोती के एक सिरे पर डंडा बाँधा, तो दूसरा सिरा चरस के डेंग पर कसकर बाँध दिया और उसके चारों ओर चक्कर लगाकर एक और गाँठ लगाकर छोटे भाई को पकड़ा दिया। लेखक धोती के सहारे कुएँ के बीचों-बीच उतरने लगा। छोटा भाई रो रहा था पर लेखक ने उसे विश्वास दिलाया
कि वह साँप को मारकर चिट्ठियाँ ले आएगा। नीचे साँप फन फैलाए बैठा था। लेखक ने बुद्धिमतापूर्वक साँप से लड़ने या मारने की बात त्याग कर डंडे से चिट्ठियाँ सरका ली और साँप को चकमा देने में कामयाब हो गया।

प्रश्न 3. कभी-कभी दृढ़ संकल्प के साथ तैयार की गई योजना भी प्रभावी नहीं हो पाती है। कुएँ से चिट्ठी निकालने के लिए लेखक द्वारा बनाई गई पूर्व-योजना क्यों सफल नहीं हुई?
उत्तरः चिट्ठियाँ कुएँ में गिर जाने पर लेखक बहुत भारी मुसीबत में फँस गया। पिटने का डर और जिम्मेदारी का अहसास उसे चिट्ठियाँ निकालने के लिए विवश कर रहा था। लेखक ने धोतियों में गाँठ बाँध कर रस्सी बनाकर कुएँ में उतरने की योजना बना ली।
लेखक को स्वयं पर भरोसा था कि वह नीचे जाते ही डंडे से दबाकर साँप को मार देगा और चिट्ठियाँ लेकर ऊपर आ जाएगा क्योंकि वह पहले भी कई साँप मार चुका था। उसे अपनी योजना में कमी नहीं दिखाई दे रही थी, परन्तु लेखक द्वारा बनाई गई यह पूर्व योजना सफल नहीं हुई, क्योंकि योजना की सफलता परिस्थिति पर निर्भर करती है। कुएँ में स्थान की कमी थी और साँप भी व्याकुलता से उसको काटने के लिए तत्पर था। ऐसे में डंडे का प्रयोग करना संभव नहीं था।

प्रश्न 4. लेखक ने इस पाठ में भ्रातृ स्नेह के ताने-बाने को चोट लगने की बात कही है। भाई-से-भाई के स्नेह का कोई अन्य उदाहरण प्रस्तुत करते हुए लेखक के इस कथन का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तरः लेखक के वर्णन के अनुसार जब कुएँ में साँप से उसका सामना हुआ तो साँप और लेखक के आपसी द्वंद्व में होने वाली क्रियाओं के फलस्वरूप लेखक के छोटे भाई को, जो कुएँ के ऊपर खड़ा था, ऐसा प्रतीत हुआ कि उसके बड़े भाई को साँप ने काट लिया। छोटा भाई यह सोचकर चीख पड़ा। लेखक उसकी चीख को उसके मन में अपने प्रति उपस्थित स्नेह-भाव के कारण उठी चीख मानता है। वास्तव में स्नेह या प्रेम ऐसा ही सकारात्मक मनोविकार है। इसमें अपने स्नेह-पात्र के अमंगल की आशंका से उसे स्नेह करने वाले का मन व्यथित हो उठता है। लेखक के छोटे भाई का चीखना इसी का उदाहरण है। ऐसा उदाहरण हम राम और लक्ष्मण के इतिहास प्रसिद्ध ‘भ्रातृ-स्नेह’ में देख सकते हैं, जब ‘युद्ध-भूमि’ में लक्ष्मण के मूच्र्छित हो जाने पर उनके वियोग

की आशंका से राम जैसा मर्यादित और वीर पुरुष भी विलाप करने लगा। वस्तुतः भ्रातृ-प्रेम का ऐसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है। लेखक ने इसी कारण भ्रातृ-स्नेह के ताने-बाने को चोट लगने की बात कहते हुए भाई-भाई के पास्परिक प्रेम को सामान्य लोकानुभव से जोड़कर देखा है।

प्रश्न 5. ”अपनी शक्ति के अनुसार योजना बनाने वाला ही सफल होता है“-स्मृति पाठ के अनुसार इस कथन की विवेचना कीजिए। 
उत्तरः विद्यार्थियों की समझ तथा अभिव्यक्ति के आधार पर।
व्याख्यात्मक हल:
लेखक ने कुएँ में चिट्ठियाँ गिर जाने के बाद बहुत ही बुद्धिमानी, चतुरता एवं साहस का परिचय दिया। कठिन परिस्थिति में भी उसने हिम्मत नहीं हारी। कुएँ में जहरीला साँप होने के बावजूद वह साहसपूर्ण युक्ति से अपने पास मौजूद सभी धोतियों को आपस में बाँधता है, ताकि वे नीचे तक चली जाएँ। सर्प के डसे जाने से बचने के लिए उसने पहले कुएँ की बगल की मिट्टी गिराई। फिर डंडे से चिट्ठियों को सरकाया। डंडा छूट जाने पर उसने साँप का ध्यान दूसरी ओर बँटाया, फिर डंडे को उठा लिया।
साँप का आसन बदला तो उसने चिट्ठियाँ भी उठा लीं और उन्हें धोतियों में बाँध दिया। इस प्रकार लेखक ने अपनी बुद्धि का पूरा सदुपयोग करके तथा युक्तियों का सहारा लेकर कुएँ में गिरी हुई चिट्ठियों को निकाला। यह उसकी साहसिकता का स्पष्ट परिचय देता है।

प्रश्न 6. ‘स्मृति’ कहानी बाल मनोविज्ञान को किस प्रकार प्रकट करती है? बच्चों के स्वभाव उनके विचारों के विषय में हमें इससे क्या जानकारी मिलती है? 
उत्तरः बाल मस्तिष्क हर समय सूझ-बूझ से कार्य करने में सक्षम नहीं होता। बच्चे शरारतों का ध्यान आते ही अपने चंचल मन को रोक नहीं पाते। खतरे उठाने, जोखिम लेने, साहस का प्रदर्शन करने में उन्हें आनन्द आता है वे अपनी जान को खतरे में डालने से भी नहीं चूकते। लेकिन बच्चों का हृदय बहुत कोमल होता है। बच्चे मार व डाँट से बहुत डरते हैं। जिस तरह लेखक बड़े भाई की डाँट व मार के डर से तथा चिट्ठियों को समय पर पहुँचाने की जिम्मेदारी की भावना के कारण जहरीले साँप तक से भिड़ गया। बच्चे अधिकतर ईमानदार होते हैं वे बड़ों की भाँति न होकर छल व कपट से दूर होते हैं। मुसीबत के समय बच्चों को सबसे अधिक अपनी माँ की याद आती है। माँ के आँचल में वे स्वयं को सबसे अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं।

प्रश्न 7. लेखक कुएँ से चिट्ठी निकालने का काम टाल सकता था, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया। ‘स्मृति’ कहानी से उसके चरित्र की कौन-सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं? 
उत्तरः लेखक के द्वारा कुएँ से चिट्ठी निकालने का काम टल सकता था। लेकिन बड़े भाई की डाँट के डर से उसने ऐसा नहीं किया। इसके साथ ही लेखक बहुत ईमानदार भी था वह अपने भाई से झूठ बोलना अथवा बहाना लगाना नहीं चाहता था। चिट्ठियों को पहुँचाने की जिम्मेदारी, कर्तव्यनिष्ठा की भावना उसे कुएँ के पास से जाने नहीं दे रही थी। लेखक ने पूरे साहस व सूझ-बूझ के साथ कुएँ में नीचे उतरकर एकाग्रचित हो साँप की गतिविधियों को ध्यान में रखकर चिट्ठियाँ बाहर निकाल लीं। इस तरह हमें लेखक की ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा के साथ उसके साहस, दृढ़ निश्चय, एकाग्रचित्ता व सूझ-बूझ की जानकारी भी मिलती है।

प्रश्न 8. लेखक ने भय, निराशा और उद्वेग के मन में आने तथा माँ की गोद याद आने का वर्णन किस प्रसंग में किया है
अथवा
लेखक की माँ ने घटना सुनकर लेखक को गोद में क्यों बिठा लिया? ‘स्मृति’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः लेखक जब अपने बड़े भाई द्वारा दी गई चिट्ठियों को मक्खनपुर के डाकखाने में डालने के लिए अपने छोटे भाई के साथ जा रहा था, तब रास्ते में कुएँ वाले साँप को ढेले मारकर उसकी फुँफकार सुनने का विचार पुनः उसके मन में आया। लेखक के इसी प्रयास के दौरान उसकी टोपी में रखी चिट्ठियाँ कुएँ में जा गिरीं। लेखक का उपर्युक्त कथन इसी घटना के संदर्भ में है क्योंकि कुएँ के बहुत अधिक गहरा होने, अपनी उम्र कम होने और सबसे ज्यादा कुएँ में पड़े विषैले साँप के डर से लेखक चिट्ठियों को निकालने का कोई उपाय नहीं समझ पा रहा था। चिट्ठियाँ न मिलने का परिणाम बड़े भाई द्वारा दिया जाने वाला दंड था।
इसलिए लेखक निराशा, भय और उद्वेग अर्थात् घबराहट के मनोभावों के बीच फँस गया था। स्वाभाविक रूप से बचपन में कोई कार्य गलत हो जाता है तो बच्चे अपने अपराध- निवारण या उससे संबंधित दंड से बचने हेतु माँ के लाड़-प्यार और उसकी गोद का आश्रय लेना स्वभावतः पसंद करते हैं। माँ की ममता बच्चों के लिए एक सुरक्षात्मक आवरण की भाँति कार्य करती है इसी कारण लेखक ने ऐसा कहा है।

प्रश्न 9. ”दृढ़संकल्प से तो दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं।“ उपर्युक्त कथन से क्या आप सहमत हैं
उत्तरः जीवन में किसी भी सफलता का मूल मंत्र व्यक्ति की दृढ़ इच्छा-शक्ति, दृढ़ संकल्प होता है। जिसके मन में दृढ़संकल्प सबसे प्रबल और अधिक होता है, वही सफल होता है। दृढ़-संकल्प में अद्भुत शक्ति होती है। उससे प्रेरित व्यक्ति दृढ़ता व लगन के साथ आगे बढ़ता है। दृढ़ संकल्प पीछे लौटने के सभी रास्तों को बंद कर देता है और आगे की जो भी दुविधा हो, बाधाएँ हों, उनको रौंद डालता है। युद्ध में नैपोलियन की सफलता का सबसे बड़ा कारण निश्चित लक्ष्य (दृढ़ संकल्प) होना था। अपने दृढ़ संकल्प के कारण ही नैपोलियन ने अपने समय की स्थिति को थाम लिया था। कोई भी व्यक्ति जो दृढ़ संकल्प होकर, सारी शक्ति लगाकर, लगन के साथ कार्य करता है उसकी कठिनाइयाँ स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं। अतः हम इस बात से सहमत हैं कि "दृढ़संकल्प से तो दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं।"

प्रश्न 10. ‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उलटी निकलती हैं’-का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः मनुष्य किसी कठिन काम को करने के लिए अपनी बुद्धि से कई योजनाएँ तो बनाता है किंतु यह आवश्यक नहीं कि वे योजनाएँ सफल भी रहें। क्योंकि जब वास्तविक समस्याओं से सामना होता है तब हमें समझ में आता है कि हमारी योजनाएँ कितनी उचित हैं। तब हमें यथार्थ स्थिति के अनुसार अपनी योजनाओं में फेरबदल करना पड़ता है। हम जानते हैं कि कल्पना और वास्तविकता में बहुत अंतर होता है। हमें भूत की योजनाओं से सबक लेते हुए वर्तमान के साथ चलना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार ही योजनाएँ बनानी चाहिए अन्यथा वे मिथ्या और उलटी निकलती हैं।