मुगल काल में ग्राम पंचायत के मुखिया के कोई तीन कार्य बताइए - mugal kaal mein graam panchaayat ke mukhiya ke koee teen kaary bataie

मुग़लकालीन शासन व्यवस्था अत्यधिक केन्द्रीकृत नौकरशाही व्यवस्था थी. सम्राट को प्रशासन की गतिविधियों को भली-भांति संचालित करने के लिए एक मंत्रिपरिषद की आवश्यकता होती थी. बाबर के शासन काल में वज़ीर का पद काफ़ी महत्त्वपूर्ण था, परन्तु कालान्तर में यह पद महत्वहीन हो गया:

(1) मंत्रिपरिष्द को विजारत कहा जाता था.

(2) बाबर के शासनकाल में वजीर पद काफी महत्वपूर्ण था.

(3) सम्राट के बाद शासन के कार्यों को संचालित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी वकील था, जिसके कर्तव्यों को अकबर ने दीवान, मीरबख्श, सद्र-उस स्द्र और मीर समन में विभाजित कर दिया.

(4) औरंगजेब के समय में असद खान ने सबसे ज्यादा 31 साल तक दीवान के पद पर कार्य किया.

(5) मीरबख्श द्वारा सरखत नाम के पत्र पर हस्ताक्षर के बाद ही सेना को हर महीने वेतन मिल पाता था.

(6) जब कभी-भी सद्र न्याय विभाग के प्रमुखों का कार्य करता था तब उसे काजी कहा जाता था. लगानहीन भूमि का निरीक्षण सद्र करता था. सम्राट के घरेलू विभागों का प्रधान मीर समान कहलाता था.

(7) सूचना और गुप्तचर विभाग का प्रदान दरोगा-एडाक चौकी कहलाता था.

(8) शरियत के प्रतिकूल काम करने वाले को रोकना, आम जनता को दुश्चरित्र से बचाने का काम मुहतसिब नाम का अधिकारी करता था.

(9) प्रशासन की दृष्टि से मुगल साम्राज्य का बंटावारा सूबों में, सूबों का सरकार में, सरकार का परगना और महाल में महाल का जिले या दस्तूर में और दस्तूर जिले में बंटे होते थे.

(10) मुगल काल में सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, जिसे मावदा या दीह कहते थे.

(11) मावदा के अंतर्गत छोटी-छोटी बस्तियों को नागला कहा जाता था.

(12) शाहजहां के शासनकाल में सरकार और परगना के मध्य चकला नाम की एक नई इकाई की स्थापना की गई.

         मुगल काल के प्रमुख अधिकारी और कार्य

पद

कार्य

सूबेदार

प्रांतों में शांति स्थापित करना

दीवान

प्रांतीय राजस्व का प्रधान

बख्शी

प्रांतीय सैन्य प्रधान

फौजदार

जिले का प्रधान फौजी अधिकारी

अमलगुजार

जिले का प्रमुख राजस्व अधिकारी

कोतवाल

नगर प्रधान

शिकदार

परगने का प्रमुख अधिकारी

आमिल

ग्राम के कृषकों से प्रत्यक्ष संबंध बनाने वाला और लगान का निर्धारण करने वाला

(13) भूमिकर के विभाजन के आधार पर मुगल साम्राज्य की समस्त भूमि 3 वर्गों में विभाजित थी:
(i) खालसा- प्रत्यक्ष रूपसे खालसा के नियंत्रण में
(ii) जागीर भूमि- तनख्वाह के बदले दी जाने वाली भूमि.
(iii) सयूरगल- अनुदान में दी गई लगानहीन भूमि.

(14) शेरशाह द्वारा भूराजस्व हेतू अपनाई जानेवाली पद्धति राई का उपयोग अकबर ने भी किया.

(15) अकबर ने करोड़ी नाम के अधिकारी की नियुक्ति 1573 ई में की. इसे अपने क्षेत्र से 1 करोड़ रुपये दाम वसूल करना होता था.

(16) 1580 ई. में अकबर ने दहसाला नाम की नवीन कर प्रणाली शुरू की. इसे टोडरमल बंदोबस्त कहा जाता था. इसमें भूमि को चार भागों में विभाजित किया गया:
(i) पोलज- इसमें रोज खेती होती थी.
(ii) परती- इसमें एक या दो साल के अंतराल पर खेती होती थी.
(iii) चाचर- इसमें चार साल के अंतराल पर खेती होती थी.
(iv) बंजर- यह भूमि खेती योग्य नहीं थी. इस पर लगान नहीं वसूला जाता था.

(17) 1570-71 ई में टोडरमल ने खालसा भूमि पर भू राजस्व की नई व्यवस्था शुरू की. इसमें कर निर्धारण की 2 व्यवस्थाएं थीं- तखशीस और तहसील.

(18) औरंगजेब ने अपने शासनकाल में भू राजस्व की नस्क प्रणाली को अपनाया, जिसमें भू-राजस्व की राशि को उपज का आधा कर दिया गया.

(19) किसान तीन भागों में विभाजित थे:
(i) खुदकाश्त- उसी गांव की भूमि पर खेती करते थे जहां वो रहते थे.
(ii) पाही काश्त- दूसरे गांव जाकर खेती करते थे.
(iii) मुजारियन- किराए पर लेकर भूमि पर कृषि करते थे.

(20) आना सिक्के का प्रचलन शाहजहां ने करवाया था.

(21) जहांगीर ने अपने समय के सिक्कों में अपनी आकृति बनवाई थी और नूरजहां और अपना नाम अंकित करवाया था.

(22) सबसे बड़ा सिक्का शंसब सोने का था. मुगलकालीन अर्थव्यवस्था का आधार चांदी का रुपया था. रोज के लेन-देन में तांबे का इस्तेमाल होता था.

(23) सेना चार भागों में विभाजित थीं:
(i) पैदल सेना
(ii) घुड़सवार सेना
(iii) हाथी सेना
(iv) तोपखाना मुग़लकालीन

(24) सैन्य व्यवस्था पूर्णतः मनसबदारी प्रथा पर आधारित थी. अकबर द्वारा आरम्भ की गई इस व्यवस्था में उन व्यक्तियों को सम्राट द्वारा एक पद प्रदान किया जाता था, जो शाही सेना में होते थे. दिये जाने वाले पद को ‘मनसब’ और ग्रहण करने वाले को ‘मनसबदार’ कहा जाता था. मनसबदार राज्य का वेतनभोगी पदाधिकारी होता था. उसे राज्य की फ़ौजी सेवा के लिए निश्चित संख्या में फ़ौज देनी पड़ती थी.

(25) मनसबदारी प्रथा मुग़ल काल की सैनिक नौकरशाही प्रथा की रीढ़ थी. जात से इंसान के वेतन और प्रतिष्ठा का ज्ञान होता था.

(26) सवार पद से घुड़सवार दस्तों की संख्या का भी ज्ञान होता था. जहांगीर ने सवार पदों में दो अस्पा और सिंह अस्पा की व्यवस्था की.