मक्के में कौन कौन से रोग लगते हैं? - makke mein kaun kaun se rog lagate hain?

मक्का के जीवाणुजनित तना सड़न रोग के विशेष लक्षणों में पत्तियों, पत्ती आवरण और तने की गांठों का रंग उड़ना है। इसके बाद रोग तेज़ी से पूरे तने में फैलकर अन्य पत्तियों में फैल जाता है। ऊतकों के सड़ने पर दुर्गंध आती है और पौधे का ऊपरी हिस्सा आसानी से बाकी हिस्से से अलग किया जा सकता है। तना पूरी तरह सड़ जाता है और कभी-कभी ऊपरी हिस्सा गिर जाता है। तने को लंबाई में काटा जाए तो देखा जा सकता है कि अंदर का रंग उड़ा हुआ है और चिपचिपी सड़न दिखती है जो गांठों पर ज़्यादा होती है। क्योंकि जीवाणु एक पौधे से दूसरे में नहीं फैलता, रोग वाले पौधे अक्सर पूरे खेत में छितरे हुए मिलते हैं। परंतु, कुछ कीट वाहकों द्वारा एक से दूसरे पौधे में रोग फैलने की भी सूचना है। मक्के में यह रोग तब देखा जाता है जब रुक-रुक कर भारी वर्षा होती है, और उसके बाद उच्च तापमान और आर्द्र परिस्थितियां उपस्थित रहती हैं।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण जीवाणु इर्विनिया क्रिज़ेन्थमी है, जो ज़मीन के ऊपर केवल डंठलों के अवशेषों में सर्दियां बिताता है पर एक वर्ष से ज़्यादा जीवित नहीं रह पाता है। जीवाणु के बीजों से फैलने का कोई सुबूत नहीं है। 32-35° सेल्सियस तापमान और हवा में ज़्यादा नमी रोग को बढ़ावा देते हैं। लगातार बारिश और स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से पत्तियां लंबे समय तक गीली रहती हैं और झुरमुटों में पानी जमा हो जाता है। पानी गर्म होने पर पौधे के ऊपकों को क्षति पहुंचने से छिद्र बन सकते हैं जिनके माध्यम से संक्रमण हो सकता है। ज़्यादा तापमान और ज़्यादा सिंचाई वाले पौधों में पहले उनके आधार के आसपास लक्षण विकसित हो सकते हैं। सिंचाई का पानी रोगाणुओं का प्राथमिक स्रोत माना जाता है। जीवाणु पौधे में फैलकर अन्य गांठों को संक्रमित कर सकता है, लेकिन ये आसपास के पौधों में बिना कीट वाहकों की मदद के नहीं फैलता है।

जैविक नियंत्रण

फ़िलहाल, ई. क्रिज़ेन्थमी से निपटने के लिए कोई जैविक नियंत्रण उपाय नहीं हैं। अगर आपको किसी उपाय की जानकारी है, तो हमें सूचित करें।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। सिंचाई के पानी में क्लोरीन मिलाने या ब्लीचिंग पाउडर से मिट्टी को भिंगोने (33% क्लोरीन, 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से) की सलाह दी जाती है। कॉपर ऑक्सिक्लोराइड युक्त उत्पाद भी रोग के खिलाफ़ प्रभावी होते हैं। अंत में, 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दो ख़ुराकों में MOP का उपयोग भी लक्षणों की गंभीरता को कम करता है।

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मक्का में कौन सा रोग लग जाता है आपका प्रश्न सही है कि मक्का में आज के डेट में कोरोना वायरस और ओगी लग गया है कुरान वायरस के अलावा आज तक तो मक्का मदीना के अंदर कौन सा रोग नहीं लगा है उनको राणा वायरस के चलते हैं मक्का मदीना तक एकदम बंद है लव डाउन किया गया है पंकोरनाका वायरस के अंदर यह पुराना है नसीब ऐसी बीमारी है कि जो आज मक्का में भी चल रही है

makka me kaun sa rog lag jata hai aapka prashna sahi hai ki makka me aaj ke date me corona virus aur ogi lag gaya hai quraan virus ke alava aaj tak toh makka madina ke andar kaun sa rog nahi laga hai unko rana virus ke chalte hain makka madina tak ekdam band hai love down kiya gaya hai pankoranaka virus ke andar yah purana hai nasib aisi bimari hai ki jo aaj makka me bhi chal rahi hai

मक्का में कौन सा रोग लग जाता है आपका प्रश्न सही है कि मक्का में आज के डेट में कोरोना वायरस

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मक्के में कौन कौन से रोग लगते हैं? - makke mein kaun kaun se rog lagate hain?
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मक्के में कौन कौन से रोग लगते हैं? - makke mein kaun kaun se rog lagate hain?

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मक्का एक बहुपयोगी खरीफ, रबी, और जायद तीनों ऋतुओं में बोई जाने वाली फसल है। मक्के में कार्बोहाइड्रेट 70, प्रोटीन 10 और तेल 4 प्रतिशत पाया जाता है। जिसके कारण इसका उपभोग मनुष्य के साथ-साथ पशु आहार के रूप में भी किया जाता है। मक्के को कीटों से बचाने के लिए जरूरी यह है कि किसान भाइयों को मक्का फसल सही समय पर बोने, उन्नत किस्मों का चुनाव करने, उपयुक्त खाद देने और समय पर कीट रोकथाम करने के उपाय करने चाहिए। मक्का फसल को भी अन्य फसलों की तरह अनेक हानिकारक कीटों द्वारा नुकसान होता है।

तना छेदक

मक्के में कौन कौन से रोग लगते हैं? - makke mein kaun kaun se rog lagate hain?

पहचान एवं हानि- यह कीट मक्के के लिए सबसे अधिक हानिकारक कीट है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इसकी सुंडियां 20 से 25 मिमी लम्बी और स्लेटी सफेद रंग की होती है। जिसका सिर काला होता है और चार लम्बी भूरे रंग की लाइन होती है। इस कीट की सुंडियाँ तनों में छेद करके अन्दर ही अन्दर खाती रहती हैं। फसल के प्रारम्भिक अवस्था में प्रकोप के फलस्वरूप मृत गोभ बनता है, परन्तु बाद की अवस्था में प्रकोप होने पर पौधे कमजोर हो जाते हैं और भुट्टे छोटे आते हैं एवं हवा चलने पर पौधा बीच से टूट जाता है।

नियंत्रण
  • खेत में पड़े पुराने खरपतवार और अवशेषों को नष्ट करें।
  • मृत गोभ दिखाई देते ही प्रकोपित पौधों को भी उखाड़ कर नष्ट कर दें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 6 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधन करें।
  • मक्का फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें।
  • मक्के की फसल लेने के बाद, बचे हुए अवहशेषों, खरपतवार और दूसरे पौधों को नष्ट कर दें।
  • ग्रसित हुए पौधे को निकालकर नष्ट कर दें।
  • कीट के नियंत्रण हेतु 5 से 10 ट्राइकोकार्ड का प्रयोग करें।\
  • तना छेदक और पत्ती लपेटक कीटों के लिए टाइकोग्रामा परजीवी 50000 प्रति हेक्टेयर की दर से अंकुरण के 8 दिन बाद 5 से 6 दिन के अंतराल पर 4 से 5 बार खेत में छोड़ें।
  • 20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती 5 किलो धतूरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती इस घोल का दो बार में 7 से 10 दिनों तक छिडक़ाव करें।
  • रसायनिक नियंत्रण हेतु क्विनालफास 25 प्रतिशत, ई.सी0. 1.50 लीटर को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करेें।
मक्का का कटुआ कीट

मक्के में कौन कौन से रोग लगते हैं? - makke mein kaun kaun se rog lagate hain?

पहचान एवं हानि- कटुआ कीट काले रंग की सूंडी है, जो दिन में मिट्टी में छुपती है। रात को नए पौधे मिट्टी के पास से काट देती है। ये कीट जमीन में छुपे रहते हैं और पौधा उगने के तुरन्त बाद नुकसान करते हैं। कटुआ कीट की गंदी भूरी सुण्डियां पौधे के कोमल तने को मिट्टी के धरातल के बराबर वाले स्थान से काट देती है और इस से फसल को भारी हानि पहुंचाती है। सफेद गिडार पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं।

नियंत्रण
  • मक्का फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें।
  • मक्के की फसल लेने के बाद, बचे हुए अवशेषों, खरपतवार और दूसरे पौधों को नष्ट कर दें।
  • ग्रसित हुए पौधे को निकालकर नष्ट कर दें।
  • खेत में पड़े पुराने खरपतवार और अवशेषों को नष्ट करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 6 मिली प्रति किलोग्राम बीज दर से बीज शोधन करें।
  • मक्का फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें।
  • इथोफेंप्रॉक्स 10 ई.सी. एक लीटर प्रति हेक्टेयर 500 से 600 पानी में घोलकर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिडक़ाव करें।
मक्का का सैनिक सुंडी

पहचान एवं हानि- सैनिक सुंडी हल्के हरे रंग की, पीठ पर धारियां और सिर पीले भूरे रंग का होता है। बड़ी सुंडी हरी भरी और पीठ पर गहरी धारियाँ होती हैं। यह कुंड मार के चलती है। सैनिक सुंडी ऊपर के पत्ते और बाली के नर्म तने को काट देती है। अगर 4 सैनिक सुंडी प्रति वर्गफुट मिले तो इनकी रोकथाम आवश्यक हो जाती है।

नियंत्रण
  • खेत में पड़े पुराने खरपतवार और अवशेषों को नष्ट करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 6 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज दर से बीज शोधन करें।
  • मक्का फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें।
  • हर 7 दिन के अंतराल पर फसल का निरीक्षण करें।
  • सैनिक सुंडी को रोकने के लिए 100 ग्राम कार्बोरिल, 50 डब्लू.पी. या 40 मिलीलीटर फेनवलरेट, 20 ई.सी. या 400 मिली क्विनालफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. प्रति 100 ली. पानी में घोल कर 12 से 15 दिनों के अंतराल पर प्रति एकड़ छिडक़ाव करें।
फॉल आर्मीवर्म

पहचान एवं हानि– यह एक ऐसा कीट है, जो कि एक मादा पतंगा अकेले या समूहों में अपने जीवन काल में एक हजार से अधिक अंडे देती है। इसके लार्वा मुलायम त्वचा वाले होते हैं, जो कि बढऩे के साथ हल्के हरे या गुलाबी से भूरे रंग के हो जाते हैं। अण्डों का ऊष्मायन अवधि 4 से 6 दिन तक की होती है। इसके लार्वा पत्तियों को किनारे से पत्तियों की निचली सतह और मक्के के भुट्टे को भी खाते हैं। लार्वा का विकास 14 से 18 दिन में होता है। इसके बाद प्यूपा में विकसित हो जाता है, जो कि लाल भूरे रंग का दिखाई देता है। यह 7 से 8 दिनों के बाद वयस्क कीट में परिवर्तित हो जाता है। इसकी लार्वा अवस्था ही मक्का की फसल को बहुत नुकसान पहुंचती है।

मक्का में कौन सा रोग पाया जाता है?

बीमारियों के कारण मक्का में प्रतिशत तक नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। रबी मौसम में मक्का में मुख्य कवकजनित रोग चारकोल तना सड़न चारकोल स्टॉक रॉट) सामान्य रतुआ कॉमन रस्ट) टर्सीकम पत्ती अंगमारी एवं फ्यूजेरियम वृन्त सड़न है। चारकोल तना सड़न यह मैक्रोफोमिना फेसिओलिना नामक कवकजनित रोग है।

मक्का में कीड़ा लगा है कौन सी दवा डालें?

उन्होंने बताया कि इस कीड़े को रोकने के लिए पाउडरी मिल्ड्यू का छिड़काव करें। इसके 100 एमएल को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसके अलावा मक्का के लिए देसी उपचार भी है, जिसके इस्तेमाल से मक्का उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। गोबर, गौमूत्र और छाछ मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है।

मकई रोग का कारण क्या है?

मकई के सभी पौधे रोग के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। लेकिन, लक्षण उपस्थित विषाणुओं के संयोजन, पर्यावरणीय स्थिति और पौधे के विकास के चरण के आधार पर काफ़ी भिन्न होते हैं। बीमारी वास्तव में दो वायरस, मकई का क्लोरोटिक मोटल वायरस और एक दूसरे वायरस, ज़्यादातर सुगरकेन मोज़ाइक वायर, के संयोजन के कारण होती है।

मक्का में पीलापन कैसे दूर करें?

खेतों में पोषक तत्वों की कमी के कारण फसल पर कुछ समय के लिए पीलापन आ जाता है। फसल को पोषक तत्व मिलने के बाद पीलापन दूर हो जाता है और फसल सामान्य होकर अपना आकार ले लेती है । ऐसी स्थिति पर किसान डायथीन नामक दवा का छिड़काव खेतों में कर सकते हैं।