मनु के अनुसार राज्य क्या है? - manu ke anusaar raajy kya hai?

इसे सुनेंरोकेंदैवी सिद्धान्त सम्बन्धि मनु के विचार मनु ने अनेक देवताओं के सारभूत नित्य अंश को लेकर राजा की सृष्टि करने का जो उल्लेख किया है उससे राज की दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त में विश्वास प्रकट होता है। चूंकि राजा में दैवी अंश व्याप्त है, अतः यह अपेक्षित है कि प्रजा उसका कभी अपमान न करें।

राज्य की उत्पत्ति के कितने सिद्धांत है?

इसे सुनेंरोकेंराज्य की उत्पत्ति का सम्पत्ति, परिवार तथा वर्ण सम्बन्धी सिद्धांत इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या के आधार पर राज्य की उत्पत्ति का विशलेषण करने वाले विचारक राज्य की उत्पत्ति के विकासवादी सिद्धांत के समर्थक हैं। उनके अनुसार राज्य की उत्पत्ति के लिए सम्पत्ति परिवार तथा वर्ण उत्तरदायी कारक हैं।

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क्या दिव्य सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति के बारे में है?

इसे सुनेंरोकेंदिल्ली के मामलुक वंश के 9 वे सुल्तान ग्यासुद्दीन बलबन ने राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धांत के समान राजाओं के सिद्धांत को तैयार करने वाला पहला मुस्लिम शासक था। बलबन कहा करता था कि, “सुल्तान पृथ्वी पर भगवान का प्रतिनिधि (नियाबत-ए-खुदाई) था अतः उसका स्थान केवल पैगम्बर के पश्चात है। और राज्य राजाओं की दिव्य संस्था है।”

राजाओं ने दिव्य स्थिति का दावा क्यों किया?

इसे सुनेंरोकेंराजा सिद्धांतों के दिव्य अधिकार के अनुसार, भगवान ने राज्य बनाया, शासकों को परमेश्वर ने नियुक्त किया। राजा इतने महत्वपूर्ण बन गए कि कुछ लोग उसे धरती पर भगवान की छाया मानते हैं। ५१८/५००० हालांकि राजा सिद्धांतों के दैवीय अधिकार को भी दैवीय अधिकार सिद्धांत के रूप में जाना जाता है, हालांकि अभी तक यह कुछ वालियां था।

मनु के अनुसार राज्य का कार्य क्षेत्र क्या है वह क्या कीजिये?

इसे सुनेंरोकेंमनु के अनुसार, राज्य के द्वारा आपराधिक प्रवृति वाले लोगों से प्रजा की सुरक्षा की जानी चाहिए। राज्य द्वारा यह कार्य दण्ड-शक्ति के प्रयोग के आधार पर ही किया जा सकता है। शक्तिशाली व्यक्ति निर्बलों के प्रति उचित व्यवहार करे, इसके लिए राजा को आवश्यकतानुसार दण्ड-शक्ति के प्रयोग के लिए तत्पर रहना चाहिए।

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मनु के अनुसार राज्य का क्षेत्र क्या है?

इसे सुनेंरोकेंराज्य का कार्य क्षेत्र मनु का मानना था कि राज्य की मत्स्य न्याय से प्रजा की रक्षा हुई हैं राज्य मानव से वर्ण धर्म एकं आश्रम धर्म का पालन कराता हैं. मनु के अनुसार राज्य का कार्य सुरक्षा व्यवस्था तक ही सीमित न होकर लोक कल्याणकारी भी हैं.

राज्य की उत्पत्ति के विकासवादी सिद्धांत का प्रमुख प्रवर्तक कौन है?

इसे सुनेंरोकेंपाराम्भ में शक्ति ने राज्य के निर्माण व विकास में जो योगदान दिया, उसी के कारण राज्य की उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त का प्रतिपादन हुआ । प्रारम्भिक समाज में राज्य या शासन का उदय शक्ति के आधार पर ही हुआ।

राज्य की उत्पत्ति का कौन सा का सिद्धान्त जिसकी लाठी उसकी भैंस के सिद्धान्त पर आधारित है?

इसे सुनेंरोकेंराज्य की उत्पत्ति का जो सिद्धान्त ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के सिद्धान्त पर आधारित है, वह है (अ) सामाजिक समझौता सिद्धान्त

राज्य की उत्पत्ति का कौन सा सिद्धांत सबसे अधिक?

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इसे सुनेंरोकेंनिष्कर्ष-राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में ऐतिहासिक या विकासवादी सिद्धान्त ही सर्वाधिक मान्य हैं जिसके अनुसार किसी एक तत्व के द्वारा नहीं वरन् मूल सामाजिक प्रवृत्ति, रक्त संबंध, धर्म शक्ति, आर्थिक गतिविधियाँ और राजनीतिक चेतना सभी के द्वारा सामूहिक रूप से राज्य का विकास किया गया है।

दैवीय अधिकार का सिद्धांत क्या है?

इसे सुनेंरोकेंइस सिद्धांत के अनुसार राज्य मानवीय नहीं बल्कि ईश्वर द्वारा स्थापित संस्था है। ईश्वर यह कार्य या तो स्वयं ही करता है या इस संबंध में अपने किसी प्रतिनिधि की नियुक्ति करता है। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होने के नाते केवल उसी के प्रति उत्तरदाई होता है और राजा की आज्ञा का पालन प्रजा का परम पवित्र धार्मिक कर्तव्य है।

प्राचीन विचारकों- मनु, शुक्र, बृहस्पति और कौटिल्य आदि ने राज्य के कार्यों और राजा के कर्तव्यों पर विस्तार से विचार किया है। सामान्य रूप से उन्होंने प्राचीन भारत के राजनीतिक चिन्तन में राज्य को व्यापक कार्यक्षेत्र प्रदान किया है।

मनु का राजत्व सिद्धान्त
राज्य के कार्यक्षेत्र और राजा की शक्तियों के प्रसंग में आचार्य मनु के राजनीतिक चिन्तन की निम्नलिखित दो बातें प्रमुख हैं-

(क) मनु ने सदैव इस बात पर जोर दिया है कि राजा द्वारा कर्तव्यपालन किया जाना चाहिए और राजा का सर्वोच्च कर्तव्य है—प्रजा-पालन। मनु के शब्दों में, “राजा को अपनी प्रजा के प्रति पिता के समान व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि प्रजा का पालन करना राजा का श्रेष्ठ धर्म है और प्रजा-पालन द्वारा शास्त्रोक्त फल को भोगने वाला राजा धर्म से युक्त होता है।”

(ख) उसने राजा को निरंकुश शक्तियाँ प्रदान नहीं कीं, वरन् राजसत्ता को सीमित किया है। मनु के अनुसार, राजा को समझना चाहिए कि वह धर्म के नियमों के अधीन है। कोई भी राजा धर्म के विरुद्ध व्यवहार नहीं कर सकता, धर्म राजाओं और जनसाधारण पर एकसमान ही शासन करता है। इसके अतिरिक्त, राजा (राजनीतिक प्रभु) जनता के भी अधीन है। वह अपनी शक्तियों के प्रयोग करने में जनता की आज्ञा-पालन की क्षमता से सीमित होता है। सालेटोर के अनुसार, “मनु ने निस्सन्देह यह कहा है कि जनता राजा को गद्दी से उतार सकती है और उसे मार भी सकती है, यदि वह अपनी मूर्खता से प्रजा को सताता है।”

राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में मनु के चिन्तन की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उसने मानवमात्र के कर्तव्यों और स्वधर्म-पालन पर बल दिया है जिसे अपनाकर सम्पूर्ण मानव-जाति सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकती है। मनु ने ऐसी कानूनी पद्धति तथा राजधर्म का वर्णन किया है। जिसमें सभी वर्गों के व्यक्तियों के कर्तव्यों की व्याख्या की गयी है।

मनु ने राज्य को क्या माना है?

मनु ने राज्य को सप्तांग माना है अर्थात् राज्य एक सावयव है, जिसके 7 अंग हैं। 'मनुस्मृति के अनुसार स्वामी, मन्त्री राष्ट्र, कोष, दुर्ग, दण्ड और मित्र-ये राज्य के सात अंग हैं, जिनसे युक्त संगठन सप्तांग राज्य कहलाता है। मनु राज्य के इन सात अंगों में राजा अर्थात् स्वामी को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानता है।

मनु के अनुसार राज्य में कितने अंग है?

सप्तांग राज्य का सिद्धान्त इन सात अंगों से निर्मित राज्य का प्रत्येक अंग एक विशिष्ट कार्य करता है और इसी कारण उसका महत्व है। मनु के अनुसार यदि इनमें से किसी भी एक अंश की उपेक्षा होती है तो राजा के लिये राज्य का कुशल संचालन सम्भव नहीं है।

मनु के अनुसार राज्य का प्रमुख कार्य क्या है?

राज्य का कार्य क्षेत्र मनु का मानना था कि राज्य की मत्स्य न्याय से प्रजा की रक्षा हुई हैं राज्य मानव से वर्ण धर्म एकं आश्रम धर्म का पालन कराता हैं. मनु के अनुसार राज्य का कार्य सुरक्षा व्यवस्था तक ही सीमित न होकर लोक कल्याणकारी भी हैं.

मनु के अनुसार राज्य की उद्भव का आधार क्या है?

दैवी सिद्धान्त सम्बन्धि मनु के विचार राजा से द्वेष करने का अर्थ स्वयं का विनाश करना है। मनुस्मृति में यह भी लिखा गया है कि विभिन्न देवता राजा के शरीर में प्रविष्ट होते हैं। इस प्रकार राजा स्वयं महान् देवता बन जाता है। मनुस्मृति के सातवें अध्याय में राजधर्म का प्रतिपादन करते हुए राज्य की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है।