Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers. Show बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) 1. हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है – 2. मिट्टी से बने हल
के प्रतिरूप मिले हैं – 3. पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के किस स्थल से हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं? 4. थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र क्या कहलाता है? 5. भारतीय पुरातत्व का जनक किसे कहा जाता है? 6. हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत विशाल स्नानागार स्थित 7. मनके बनाने के लिए कौनसी बस्ती प्रसिद्ध थी? 8. बालाकोट तथा नागेश्वर किस वस्तु के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं ? रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए। 1…………….. प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के
विशेषज्ञ होते हैं। अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20.
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प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39.
प्रश्न 40. प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48.
प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. प्रश्न 54. प्रश्न 55. प्रश्न 56. प्रश्न 57. प्रश्न 58. प्रश्न 59. प्रश्न 60. प्रश्न 61. प्रश्न 62. प्रश्न 63. प्रश्न 64. प्रश्न 65. प्रश्न 66. प्रश्न 67. प्रश्न 68. प्रश्न 69. प्रश्न 70. प्रश्न 71. प्रश्न 72. प्रश्न 73. प्रश्न 74. प्रश्न 75. प्रश्न 76. प्रश्न 77. प्रश्न 78. प्रश्न 79. प्रश्न 80. प्रश्न 81. प्रश्न 82. प्रश्न 83. प्रश्न 84. प्रश्न 85. प्रश्न 86. लघुत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6. प्रश्न 7.
प्रश्न 8.
प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13.
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19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25.
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प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29.
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प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36.
प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न
39. प्रश्न 40.
प्रश्न 41. प्रश्न 42.
प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. (2) सामाजिक जीवन समाज में कई वर्ग थे। हड़मा समाज मातृ सत्तात्मक था। स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। ये लोग अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –
(3) आर्थिक अवस्था-मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, दाल, बाजरा, कपास, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। ये लोग गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैंस, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। यहाँ अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। (4) धार्मिक अवस्था हड़प्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी तथा शिव की उपासना करते थे। ये लोग लिंग और योनि की, पशुओं और वृक्षों की, नांग की भी पूजा करते थे। (5) राजनीतिक अवस्था हडप्पाई सभ्यता में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार यहाँ पुरोहित, राज शासन करते थे। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। परन्तु कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे। (6) लिपि हड़प्पाकालीन लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं। यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी। (7) कला वहाँ के लोग मुहर निर्माण करना, मूर्तिकला, चित्रकला आदि में निपुण थे। यहाँ के लोग मिट्टी के बर्तन और मूर्तियाँ बनाने में मुहर, मनके आदि बनाने में तथा सोने, चाँदी, ताँबे आदि के आभूषण में दक्ष थे। प्रश्न 2. पुरातत्त्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं एक ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली होते हैं और सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से सम्बद्ध पाए जाते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे स्थानों से मिली हैं, जो एक-दूसरे से लम्बी दूरी पर स्थित हैं। हड़प्पा सभ्यता का काल पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया है। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में गिनी जाती है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या की संस्कृतियाँ कहते हैं। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियों की अस्तियों के आँकड़े निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 3. (2) गेहूँ, जौ, दाल, चना, तिल, बाजरे, चावल का प्रयोग जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्त्वविदों को हड़प्पाई लोगों के भोजन के बारे में काफी जानकारी मिली है। इनका अध्यचन पुरा वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं हड़प्पाई लोग गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे। हड़प्पा के अनेक स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरे तथा चावल के दाने प्राप्त हुए थे। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे। चावल के दाने भी मिले थे, परन्तु वे अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं। (3) जानवरों के मांस का सेवन करना हड़या ‘के स्थलों के उत्खनन में अनेक जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं। इनमें भेड़, बकरी, भैंस या सूअर की हड्डियाँ सम्मिलित हैं। जीव पुरातत्वविदों के अनुसार ये सभी जानवर पालतू थे। अनुमान है कि हड़प्पाई लोग इन जानवरों के मांस का सेवन करते थे। इसके अतिरिक्त खुदाई में वराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। इस आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा के लोग इन जानवरों के मांस का भी सेवन करते थे मुहरों पर उत्कीर्ण मछली के चित्रों से ज्ञात होता है कि हड़प्पाई लोग मछली का भी सेवन करते थे। (4) मछली तथा पक्षियों के मांस का सेवन करना- उत्खनन में मछली तथा कुछ पक्षियों की हड्डियाँ भी मिली हैं। इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पा निवासी मछली तथा पक्षियों के मांस का भी सेवन करते थे। (5) जानवरों के शिकार के बारे में अनिश्चित जानकारी अभी तक विद्वान लोग यह नहीं जान पाए हैं कि हड़प्पा निवासी स्वयं इन जानवरों का शिकार करते थे अथवा अन्य आखेटक समुदायों से इनका मांस प्राप्त करते थे। प्रश्न 4. इस साक्ष्य के आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान (पाकिस्तान) के कई स्थलों तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हलों के प्रतिरूप मिले हैं। इनसे ज्ञात होता है कि लोग कृषि में हलों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त कालीबंगा (राजस्थान) नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। यह आरम्भिक हड़प्पा स्तरों से सम्बद्ध है। इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते थे। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि एक खेत में एक साथ दो अलग-अलग फसलें उगाई जाती थीं। (2) कृषि उपकरण – पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है। इसके लिए हड़प्पा के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औजारों का प्रयोग करते होंगे। (3) सिंचाई अधिकांश हड़प्पा-स्थल अर्थ – शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ सम्भवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परन्तु पंजाब और सिन्ध में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले। ऐसा सम्भव है कि प्राचीन नहरें बहुत पहले ही गाद से भर गई थीं। हड़प्पा स्थलों से कुओं के अवशेष भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता होगा। इसके अतिरिक्त धौलावीरा में जलाशय के अवशेष मिले हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि जलाशयों का प्रयोग सम्भवत: कृषि के लिए जल संचयन के लिए किया जाता था। इस प्रकार जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग भी सिंचाई के लिए किया जाता था। प्रश्न 5. अवतल चक्कियाँ अर्नेस्ट मैके के अनुसार मोहनजोदड़ो के उत्खनन में अनेक अवतल चक्कियाँ प्राप्त हुई हैं। अनुमान किया जाता है कि इन चक्कियों का प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता था। सम्भवतः अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं प्राय: इन चक्कियों का निर्माण मोटे रूप से कठोर कंकरीले अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से किया गया था। सामान्यतः इन चक्कियों का अत्यधिक प्रयोग किया जाता था। चूँकि इन चक्कियों के तल सामान्यतया उत्तल हैं, अतः इन्हें जमीन में अथवा मिट्टी में जमा कर रखा जाता होगा, जिससे इन्हें हिलने से रोका जा सके। दो मुख्य प्रकार की चक्कियाँ उत्खनन में दो मुख्य प्रकार की अवतल चक्कियाँ मिली हैं –
प्रश्न 6. (2) मुख्य नालों का निर्माण-मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और इन्हें ऐसी ईटों से ढका गया था, जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके कुछ स्थानों पर नालों को ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था। मकानों से आने वाली नालियाँ गली की नालियों में मिल जाती थीं। (3) घरों की नालियों का एक हीदी या मलकुंड में खाली होना घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में वह जाता था। जो नाले बहुत लम्बे थे, उनमें कुछ अन्तरालों पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं। (4) नालियों के किनारे गड्ढों का बना होना- नालियों के किनारे भी कहीं-कहीं गड्ढे बने मिलते हैं। (5) नालियों की सफाई समय समय पर नालियों की सफाई की जाती थी। कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि नालों की सफाई के बाद कचरे को सदैव हटाया नहीं जाता था। (6) छोटी बस्तियों में भी जल निकास प्रणालियों का प्रचलित होना जल निकास प्रणालियाँ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी प्रचलित थीं। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। नालियों के विषय में मैके ने लिखा है कि “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा सम्पूर्ण प्राचीन प्रणाली है।” प्रश्न 7. ताँबा लाया जाता था। कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं जो दोनों के साझा उद्भव की ओर संकेत करते हैं। इसके अतिरिक्त ओमानी स्थलों से एक बड़ा हड़प्पाई मर्तबान, जिसके ऊपर काली मिट्टी की एक मोटी परत चढ़ाई गई थी भी मिला है। ऐसी मोटी परतें तरल पदार्थों के रिसाव को रोक देती हैं। अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी इनमें रखे सामान का ओमानी ताँबे से विनिमय करते थे। (2) मेसोपोटामिया के लेखों से जानकारी प्राप्त होना मेसोपोटामिया के विभिन्न नगरों से हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। तीसरी सहस्राब्दी ई. पूर्व के मेसोपोटामिया के लेखों में मगान (सम्भवतः ओमान के लिए प्रयुक्त नाम) नामक क्षेत्र से ताँबे के आने का उल्लेख मिलता है। यह बात उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया के स्थलों से मिले ताँबे में भी निकल के अंश मिले हैं। (3) लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजें-लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजों में हड़प्पाई मुहरें, बाट, पासे तथा मनके सम्मिलित हैं। (4) मेसोपोटामिया के लेख से दिलमुन, मगान तथा मेलुहा से सम्पर्क की जानकारी मेसोपोटामिया के लेखों से दिलमुन (सम्भवतः बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (सम्भवतः हड़प्पाई क्षेत्र के लिए प्रयुक्त शब्द ) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। ये लेख मेलुहा से प्राप्त अनेक उत्पादों का उल्लेख करते हैं, जैसे- कार्नी लियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना तथा विविध प्रकार की लकड़ियाँ। (5) बहरीन में मिली मुहर पर हड़प्पाई चित्रों का मिलना बहरीन में मिली गोलाकार फारस की खाड़ी प्रकार की मुहर पर कभी-कभी हड़प्पाई चित्र मिलते हैं। प्रश्न 8. (2) कला के उत्कृष्ट नमूने – हड़प्पाई मुहरें तत्कालीन कला के उत्कृष्ट नमूने हैं अपने आकर्षक विशुद्ध आकार और हल्की चमकदार सतह के कारण वे सुन्दर कलाकृतियों में गिनी जाती हैं। (3) आकार-प्रकार हड़प्पाई मुहरें वर्गाकार, आयताकार, बटन जैसी घनाकार और गोल हैं। परन्तु मुख्यतः वर्गाकार अथवा चौकोर मुहरें ही लोकप्रिय थीं। (4) मुहरों पर पशुओं के चित्र एवं संक्षिप्त लेखों का उत्कीर्ण होना सामान्यतः मुहरों पर पशुओं के चित्र तथा संक्षिप्त लेख उत्कीर्ण हैं। इन पर बैल, हाथी, गेंडे, व्याघ्र आदि पशुओं का अंकन उल्लेखनीय है। (5) रचना-शैली-मुहरों की रचना शैली उत्कृष्ट है। हड़प्पावासी मुहरों पर पशुओं के चित्र उत्कीर्ण करने में निपुण थे। मुहरों पर पीपल आदि वृक्षों के चित्रण भी मिलते हैं। (6) विशिष्ट मुहरें हड़प्पाई मुहरों में दो मुहरें विशेष उल्लेखनीय हैं। एक मुहर पर एक देवता की मूर्ति अंकित है इस देवता के तीन मुख और दो सींग हैं। यह देव- पुरुष एक हाथी, चीता, गैंडा तथा भैंस से घिरे हुए हैं। जॉन मार्शल के अनुसार यह मूर्ति शिव की है, दूसरी प्रसिद्ध मुहर पर एक कूबड़दार बैल का अंकन है। (7) मुहरों का प्रयोग- इन मुहरों एवं मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान की भी जानकारी हो जाती थी । लिपि एवं तौल के साधन इसके लिए लघुत्तरात्मक प्रश्न संख्या 25 एवं 26 का उत्तर देखें। प्रश्न 9. (2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं –
प्रश्न 10. कनिंघम का भ्रम: हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम- एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए। प्रश्न 11. इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने मजदूरों को संगठित किया गया था। ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता- काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था। (2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं-
निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे। प्रश्न 10. कनिंघम का भ्रम: चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग- आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया। हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था। अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए। प्रश्न 11. उन्होंने हड़प्या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। प्रसिद्ध पुरातत्वविद एस.एन. राव ‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आर्कियोलोजी’ में लिखते हैं कि “मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा। ” मेसोपोटामिया के पुरास्थलों में हुए उत्खननों से हड़प्पा पुरास्थलों से प्राप्त मुहरों जैसी मुहरें मिली थीं। इस प्रकार विश्व को न केवल एक नई सभ्यता की जानकारी मिली, बल्कि यह भी ज्ञात हुआ कि यह सभ्यता मेसोपोटामिया की समकालीन थी। हड़या सभ्यता की खोज में जॉन मार्शल का योगदान – भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल के रूप में जॉन मार्शल का कार्यकाल वास्तव में भारतीय पुरातत्व में एक व्यापक परिवर्तन का काल था। वह भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्वविद थे। वह भारत में यूनान तथा क्रीट से अपने कार्यों का अनुभव भी लाए थे। कनिंघम की भांति ही उनकी भी आकर्षक खोजों में रुचि थी परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धतियों को जानने की भी उत्सुकता थी। जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में त्रुटि – जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में एक त्रुटि थी कि वह पुरास्थल के स्तर-विन्यास को पूर्णरूप से अनदेखा कर पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास करते थे। इस प्रकार पृथक्- पृथक् स्तरों से सम्बन्धित होने पर भी एक इकाई विशेष रूप से प्राप्त सभी पुरावस्तुओं को सामूहिक रूप से वर्गीकृत कर दिया जाता था। परिणामस्वरूप इन खोजों के संदर्भ के विषय में बहुमूल्य जानकारी सदा के लिए लुप्त हो जाती थी। प्रश्न 12. (2) भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करना हड़प्पा सभ्यता की भौगोलिक सीमाओं का आज की राष्ट्रीय सीमाओं से बहुत थोड़ा या कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु उपमहाद्वीप के विभाजन तथा पाकिस्तान के निर्माण के पश्चात् हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थान अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं। इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया। कच्छ में हुए व्यापक सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। इसी प्रकार पंजाब तथा हरियाणा में किए गए उत्खनन कार्यों के फलस्वरूप वहाँ भी अनेक पुरास्थलों के बारे में जानकारी ई। कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, बणावली, धौलावीरा आदि हड़प्पा स्थल प्रकाश में आए हैं। नई खोजें अब भी जारी हैं। (3) नये प्रश्नों का महत्त्वपूर्ण होना- इन दशकों में नए प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। कुछ पुरातत्वविद प्रायः सांस्कृतिक उपक्रम को जानने के इच्छुक रहते हैं जबकि अन्य पुरातत्वविद विशेष पुरास्थलों की भौगोलिक स्थिति के पीछे निहित कारणों को जानने का प्रयास करते हैं। (4) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रुचि बढ़ना 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्वों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि निरन्तर बढ़ती जा रही है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दोनों स्थानों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से अन्वेषण सम्बन्धी कार्य करते रहे हैं। प्रश्न 13. पुरातत्वविदों
द्वारा खोजों का वर्गीकरण – पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ – (2) पुरातत्वविद किसी पुरावस्तु की उपयोगिता को समझने का प्रयास उस संदर्भ में भी करते हैं जिसमें वह मिली थी। उदाहरणार्थ, क्या वह वस्तु घर में मिली थी या नाले में, या कब्र में या भट्टी में मिली थी। अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना कभी-कभी पुरातत्त्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ हड़प्पा स्थलों से कपास के टुकड़े मिले हैं। परन्तु उनकी वेशभूषा के विषय में जानने के लिए हमें अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है, जैसे मूर्तियों में चित्रण इन चित्रों को देखकर हमें तत्कालीन लोगों की वेशभूषा में जानकारी मिलती है। संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना – पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है। उत्खनन में प्राप्त पहली हड़प्पाई मुहर को तब तक नहीं समझा जा सका, जब तक पुरातत्वविदों को उसे समझने के लिए सही संदर्भ नहीं मिला। सांस्कृतिक अनुक्रम जिसमें वह मुहर प्राप्त हुई थी तथा मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना, दोनों के सम्बन्ध में। प्रश्न
14. (2) आनुष्ठानिक महत्त्व की संरचनाएँ कुछ अन्य मामलों में संरचनाओं को आनुष्ठानिक महत्त्व का माना गया है। इनमें विशाल स्नानागार तथा कालीबंगा और लोथल से मिली वेदियाँ सम्मिलित हैं। (3) वृक्षों की पूजा कुछ मुहरों पर पेड़-पौधों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी प्रकृति (वृक्षों) की पूजा करते थे। (4) शिव की पूजा कुछ मुहरों पर एक आकृति को पालथी मारकर ‘योगी’ की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। उसे हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप कहा गया है। (5) लिंग की पूजा- उत्खनन में पत्थर की शंक्वाकार वस्तुएँ मिली हैं। इन्हें लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी लिंग की भी पूजा करते थे। (6) आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताओं के आधार पर हड़प्पाई धर्म के पुनर्निर्माण- हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर अग्रसर होते हैं। (7) ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण उदाहरण के लिए हम ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण करते हैं। आर्यों के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ ऋग्वेद (लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित) में रुद्र नामक एक देवता का उल्लेख मिलता है जो बाद की पौराणिक परम्पराओं में शिव के लिए प्रयुक्त हुआ है। प्रश्न
15. उन्होंने हड़प्पा से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 ई. में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र – हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष केवल मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से ही नहीं बल्कि अन्य स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल निम्नलिखित प्रान्तों से प्राप्त हुए हैं –
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, गंगाघाटी तक फैली हुई थी। डॉ. विमल चन्द्र पाण्डेय ने लिखा है कि ” इस सभ्यता के क्षेत्र के अन्तर्गत बलूचिस्तान, उत्तर- पश्चिमी सीमा प्रान्त, पंजाब, सिन्ध, काठियावाड़ का अधिकांश भाग, राजपूताना और गंगाघाटी का उत्तरी भाग शामिल था।” प्रो. रंगनाथ राव के अनुसार, “हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में था।” प्रश्न 16. (2) निचला शहर निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। निचले शहर के अनेक भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था, जो नींव का कार्य करते थे। इन भवनों के निर्माण में बहुत बड़े पैमाने पर मजदूरों की आवश्यकता पड़ी होगी। एक अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा, तो केवल आधारों को बनाने के लिए ही चालीस लाख श्रम- दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी। इससे स्पष्ट होता है कि मोहनजोदड़ो के भवनों के निर्माण के लिए बहुत बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी होगी। (3) नगर का नियोजन किया जाना शहर का समस्त भवन निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। इससे ज्ञात होता है कि पहले मोहनजोदड़ो शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार निर्माण कार्य किया गया था। नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटों का भी महत्त्व है। इन ईंटों को धूप में सुखाकर या भट्टी में पकाकर बनाया गया था। ये ईंटें निश्चित अनुपात की होती थीं इनकी लम्बाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी तथा दोगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटों का प्रयोग हड़प्पाई सभ्यता के सभी नगरों में किया गया था। प्रश्न 17. (2) सड़कें नगरों की सड़कें तथा गलियों एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। (3) नालियाँ – शहरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में पक्की नालियाँ बनी हुई थीं। नालियों की जुड़ाई तथा प्लास्तर में मिट्टी, चूने तथा जिप्सम का प्रयोग किया जाता था ये नालियाँ ईंट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। समय-समय पर इन नालियों की सफाई की जाती थी। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं, जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था। (4) कुएं हड़प्पा सभ्यता काल में प्राय: प्रत्येक पर में एक कुआँ होता था। पानी रस्सी की सहायता से निकाला जाता था कुछ कुओं के अन्दर सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। (5) भवन निर्माण हड़प्पा सभ्यता के मकान एक निश्चित योजना के अनुसार बनाए जाते थे। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे।
(6) विशाल स्नानागार-मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है। इसमें नीचे उतरने के लिए पक्की ईंटों की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इसकी दीवारें और फर्श पक्की ईंटों के बने हैं। स्नानकुंड के चारों ओर गैलेरी, बरामदा और कमरे बने हुए हैं। स्नानकुंड के निकट ही एक कुआँ है जिससे स्नानकुंड में पानी भरा जाता होगा। स्नानकुंड के तीन ओर बरामदे थे। स्नानागार के भवन के उत्तर में आठ स्नानकक्ष थे। प्रश्न 18. (2) पशुपालन उत्खनन में अनेक मुहरें मिली हैं जिन पर अनेक पशु-पक्षियों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पावासी गाय, बैल, भैंस, सूअर, भेड़, बकरी, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। ये लोग व्याघ्र, हाथी, गैंडा, भैंसा, हिरण, घड़ियाल आदि जानवरों से परिचित थे। (3) उद्योग-धन्धे हड़प्पा सभ्यता काल में अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित थे। यहाँ सूती तथा उनी दोनों प्रकार के वस्त्र तैयार किए जाते थे। यहाँ के कुम्भकार | मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थे। हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि धातुओं का प्रयोग करते थे। यहाँ मनके बनाने, शंख की कुटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे। सीप, घाँचा, हाथीदांत आदि के काम में भी निपुण थे। (4) व्यापार हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था व्यापार जल तथा धल दोनों मार्गों से होता था। जल यातायात के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का एवं थल यातायात के लिए पशु गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था। आन्तरिक व्यापार उन्नत अवस्था में था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत अवस्था में था उनका ओमान, मेसोपोटामिया, ईरान, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था। मेसोपोटामिया में हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। मोहनजोदड़ो में भी मेसोपोटामिया की मुहरें मिली हैं। (5) तोल तथा माप के साधन – हड़प्पा निवासी बाटों का प्रयोग करना भी जानते थे। मोहनजोदड़ो की खुदाई में छोटे-बड़े सभी प्रकार के बाट मिले हैं। ये बाट सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे और प्रायः ये किसी भी प्रकार के चिह्न से रहित घनाकार होते थे। (6) यातायात के साधन स्थल मार्ग से जाने के लिए बैलगाड़ियों, इक्कों आदि का प्रयोग होता था। जलमार्ग से जाने के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का प्रयोग किया जाता था। प्रश्न 19. (2) परिवार – उत्खनन में जो भवन मिले हैं, उनसे प्रतीत होता है कि उनमें पृथक् पृथक् परिवार रहते होंगे। हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक था। ऐसी स्थिति में स्थियों का परिवार एवं समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा। (3) भोजन – हड़प्पा निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे। वे गेहूं, जौ, चना, दाल, तिल, बाजरा, चावल आदि का सेवन करते थे। वे मांस, मछली तथा अण्डों का भी सेवन करते थे। वे भेड़, बकरी, सूअर, भैंस, हिरण, कछुआ, घड़ियाल आदि के मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे। (4) वेशभूषा हड़प्पावासी सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। पुरुष प्रायः धोती तथा शाल का प्रयोग करते थे। स्त्रियाँ प्रायः घाघरे की तरह एक पेरेदार वस्त्र का प्रयोग करती थीं। (5) आभूषण- हड़प्पा के स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। स्वी और पुरुष दोनों ही अंगूठी, कंगन, हार, भुजबन्द, कड़े आदि आभूषण पहनते थे आभूषण सोने, चाँदी, तांबे, काँसे, हाथीदाँत, मनकों तथा विविध बहुमूल्य पत्थरों के बने होते थे। (6) सौन्दर्य प्रसाधन-स्विय बड़ी शृंगारप्रिय थीं तथा वे दर्पण, कंधी, काजल, सुरमा सिन्दूर, इत्र, पाउडर, लिपस्टिक आदि का प्रयोग करती थीं। (7) आमोद-प्रमोद के साधन-शिकार करना, शतरंज खेलना, संगीत-नृत्य में भाग लेना, जुआ खेलना, पशु- पक्षियों की लड़ाइयाँ आदि हड़प्पावासियों के मनोरंजन के साधन थे। अनेक प्रकार के खिलौने बच्चों के मनोरंजन के साधन थे। (8) मृतक संस्कार हड़प्पा निवासी अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –
प्रश्न 20. (2) शिव की उपासना हड़प्पा की खुदाई में एक मुहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति अंकित है। यह देव पुरुष योगासन में बैठा है। इस देवता के तीन मुख और दो सौंग हैं। उसे एक हाथी, एक व्याघ्र एक भैंसा तथा एक गैंडा से घिरा हुआ दिखाया गया है। आसन के नीचे हिरण अंकित है, इसे ‘आद्य शिव’ अर्थात् हिन्दू के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप की संज्ञा दी गई है। (3) लिंग पूजा- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से हमें पत्थर, फॉन्स, सीप आदि से बने हुए छोटे-बड़े आकार के लिंग मिले हैं शिव के प्रतीक होने के कारण ये लिंग पवित्र समझे जाते थे तथा इनकी पूजा की जाती थी। (4) योनि-पूजा – हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में बहुत से छाले मिले हैं। पुरातत्वविद जॉन मार्शल इन छल्लों को योनि का प्रतीक मानते हैं उनका मत है कि हड़प्पा सभ्यता में योनि-पूजा का भी प्रचलन था। (5) पशु-पूजा – हड़प्पा से प्राप्त मुहरों पर बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडा आदि के चित्र मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा निवासी बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडे आदि की उपासना करते थे। हड़प्पावासी नाग की भी पूजा करते थे। (6) वृक्ष-पूजा मुहरों पर पीपल के वृक्ष के चित्र पर्याप्त मात्रा में अंकित हुए मिले हैं। हड़प्पावासी पीपल, बबूल, तुलसी, खजूर, नीम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे। (7) अग्नि वेदिकाएँ- कालीबंगा, लोथल, बणावली और राखीगढ़ी की खुदाई से हमें अनेक अग्निवेदिकाएँ मिली हैं। (8) जल-पूजा – हड़प्पावासियों को पवित्र स्नान तथा जल पूजा में गहरा विश्वास था। (9) प्रतीक पूजा हड़या से प्राप्त मुहरों पर स्वस्तिक, चक्र, स्तम्भ आदि के चित्र मिले हैं। ये सम्भवत: मंगल- चिह्न थे। सम्भवतः इनका कुछ धार्मिक महत्व था। (10) जादू-टोने में विश्वास हड़प्पावासी भूत-प्रेत आदि में विश्वास करते थे तथा ये लोग पशु बलि में भी विश्वास करते थे। प्रश्न 21. (2) मुहर निर्माण कला-हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई गई इन मुहरों पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा हड़प्पा लिपि में लेख मिलते हैं। इन मुहरों का प्रयोग पत्र अथवा पार्सल पर छाप लगाने के लिए किया जाता था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा लोथल से विशाल संख्या में मुहरें मिली हैं। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें फयॉन्स (काँचली मिट्टी), गोमेद, चर्ट और मिट्टी की भी हैं। अनेक मुहरों पर हाथी, व्याघ्र गैंडे तथा कूबड़दार बैल आदि का अंकन मिलता है। (3) चित्रकला खुदाई में अनेक बर्तन तथा मुहरें मिली हैं जिन पर चित्र अंकित हैं। ये चित्र बड़े सुन्दर और सजीव हैं। इनमें सांड तथा बैल के चित्र विशेष रूप से बड़े आकर्षक हैं। (4) मिट्टी के बर्तन बनाने की कला-मिट्टी के बर्तन कुम्हार के चाक पर बनाए जाते थे तथा उन्हें भट्टियों पर पकाया जाता था। (5) धातुकला हड़प्पावासी सोना, चाँदी आदि के सुन्दर आभूषण बनाते थे ये लोग धातुओं की मूर्तियाँ भी बनाते थे। धातुओं के बर्तनों पर नक्काशी भी की जाती थी। (6) लेखन कला – सामान्यतः हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाता है। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं। यह लिपि रहस्यमय बनी हुई है क्योंकि यह आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है। विद्वानों के अनुसार निश्चित रूप से हड़प्या लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है- 400 के बीच ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाव से बायीं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दायीं ओर चौड़ा अन्तराल है और बायीं ओर यह संकुचित है जिससे जान पड़ता है कि लिखने वाले व्यक्ति ने दायीं ओर से लिखना शुरू किया और बाद में बायीं ओर स्थान कम पड़ गया। प्रश्न 22. (2) पर्यावरण का सूखा होना – ताँबे तथा काँसे के उत्पादन के लिए ईंट पकाने के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए हड़प्पा निवासी बहुत अधिक लकड़ी जलाते थे, जिससे आस-पास के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई। (3) बाड़ों का प्रकोप कुछ विद्वानों के अनुसार सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं। (4) भूकम्प कुछ इतिहासकारों का मत है कि सम्भवतः किसी शक्तिशाली भूकम्प के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का विनाश हुआ होगा। (5) संक्रामक रोग-कुछ विद्वानों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता का विनाश मलेरिया अथवा किसी अन्य संक्रामक रोग के बड़े पैमाने पर फैलने से हुआ होगा। (6) प्रशासनिक शिथिलता कुछ विद्वानों का विचार है कि शासक का अपने अधिकारियों पर नियन्त्रण नहीं रहा होगा ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई सभ्यता का अंत हो गया होगा। (7) हड़प्पा के नगरों का समुद्र तट से दूर होना- डेल्स के अनुसार अनेक कारणों से हड़प्पा के अनेक नगर समुद्र तट से दूर होते चले गए। परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता के नगरों के व्यापार की प्रगति अवरुद्ध हो गई और उनकी सम्पन्नता नष्ट होती चली गई। (8) आर्द्रता की कमी घोष के अनुसार कुछ स्थानों पर आर्द्रता की कमी तथा भूमि की शुष्कता के कारण भी हड़प्पा सभ्यता का अन्त हुआ। (9) नदियों का दिशा परिवर्तन-डेल्स के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का दिशा परिवर्तन उस क्षेत्र में संस्कृति के विनाश का प्रमुख कारण रहा होगा। (10) विदेशी आक्रमण कुछ विद्वानों का विचार है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने हड़प्पा प्रदेश पर आक्रमण करके अपना अधिकार कर लिया होगा। सम्भवतः ये आक्रमणकारी आर्य लोग थे। प्रश्न 23. (2) भौतिक संस्कृति में परिवर्तन विद्वानों के अनुसार उत्तर हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई.पूर्व के पश्चात् भी अस्तित्व में रहे कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में बदलाव आया था जैसे हड़प्पा सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुओं-बायें, मुहरों तथा विशिष्ट मनकों का समाप्त हो जाना लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई। प्रायः थोड़े सामान के निर्माण के लिए थोड़ा ही माल प्रयुक्त किया जाता था। इसके अतिरिक्त भवन निर्माण की तकनीकों का अन्त हुआ और बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण अब बन्द हो गया। इस प्रकार पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ इन संस्कृतियों में एक ग्रामीण जीवन शैली को उजागर करती हैं। इन संस्कृतियों को ‘उत्तर हड़प्पा’ अथवा ‘अनुवर्ती संस्कृतियों’ की संज्ञा दी गई। (3) हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के कारण विद्वानों के अनुसार हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के सम्भावित कारण निम्नलिखित थे-
मनके के लिए प्रसिद्ध बस्ती कौन सी थी?Explanation: हड़प्पा स्थल से बनावली और लोथल दोनों में मनके कारखानों की खोज की गई है।
मनके के निर्माण में क्या उपयोग में लाया जाता था?मनकों के निर्माण में प्रयुक्त पदार्थों की विविधता उल्लेखनीय हैः कार्नीलियन (सुंदर लाल रंग का), जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज़ तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर; ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ; तथा शंख, फ़यॉन्स और पकी मिट्टी, सभी का प्रयोग मनके बनाने में होता था।
मनके बनाने का कारखाना कहाँ से मिला है?मनके बनाने के कारखाने लोथल और चन्हूदड़ों में मिले हैं.
मनका कैसे बनाया जाता है?मनके बनाने के लिए कई प्रकार के पदार्थ प्रयोग में लाए जाते थे-कार्जीलियन, जैस्पर, स्फटिक, क्वाटर्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ तथा फयॉन्स और पकी मिट्टी आदि। कुछ मनके दो या दो से अधिक पत्थरों को मिलाकर भी बनाए जाते थे। कुछ मनकों पर सोने का टोप होता था।
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