भौतिकी का गणित से क्या संबंध है तो दोस्तों बहुत ही हकीकत संबंधाम गणित से देख रहे तो यहां पर क्या बता सकते हैं कि बहुत ही की पूरी तरीके से गणित पर निर्भर है हालांकि गणित भौतिकी पर निर्भर नहीं करता ठीक है गणित क्या है घटना है और घटना जो है वह भौतिक विज्ञान पर निर्भर नहीं करता लेकिन अगर हम बहुत ही की विज्ञान का अध्ययन करेंगे ठीक है तो किसी भी पदार्थ या प्रकृति के भौतिक अवस्था का यहां पर अध्ययन करेंगे और उस भौतिक अवस्था को व्यक्त करने के लिए अथवा गणना करने के लिए बिना गणित के संभव है नहीं है ठीक है तो भौतिकी विज्ञान का कुछ भी चीज का अगर हम अनुमान लगाया आकलन करें गन्ना करे समाकलन तेरे जो भी करें गणित का आना अनिवार्य है ठीक है दोस्तों अगर हमको गणित नहीं आता तो हमको भौतिक ही नहीं आती यह भी हम कह सकते हैं ठीक है क्योंकि पूरी तरीके से गणित से संबंधित है भौतिकी ठीक भौतिकी विज्ञान में विभिन्न अनुप्रयोगों समस्या आंकड़ों प्रायिकता व भौतिक अवस्था एवं भौतिक राशियों को भी विमाओं को भी और अधिक राशि ज्योति उनको समझने तथा प्रदर्शित करने के लिए अब जो हम यहां पर दोस्तों भौतिक में समझ रहे हो उसको सामने वाले को समझाना चाहते हैं तो हम गणित का अत्यंत प्रयोग करेंगे ठीक है गरीब की अत्यंत आवश्यक होगी बिना घड़ी के हम जो भी छोरी देंगे जो भी सिद्धांत देंगे उसको समझना जो है दोस्तों वह नागवार गुजरता है ठीक है यह सब आसानी से समझ नहीं आएगी जब तक हम इसको घड़ी थी रूप में ना समझे ठीक है या फिर सूत्र ना देश का और सूत्र भी कहां से प्राप्त होता है दोस्तों गणिती रूप से ठीक है विवेचना कहां से करते गणिती से ठीक है समा कल आना कल यह सारी चीजें गणित से ही हम कर पाते क्योंकि यह सारी चीजें क्या है दोस्तों गणित की तो देन है ठीक है अब इसके बाद बात कर लेते भौतिकी विज्ञान में गणित से संबंध का तो हम यहां तक कह सकते कि भौतिक विज्ञान गणित की ऐसी शाखा है जहां पर हम विभिन्न पदार्थों वस्तु पर कृतियों के भौतिक अवस्था का अध्ययन करते हैं ठीक है तो बहुत ही को भी गणित की एक शाखा माना जा सकता है क्योंकि बहुत ही में हम सिर्फ बहुत ही कम अध्ययन नहीं करते उस में गणित का अनुप्रयोग भी करते हैं ठीक है दोस्तों से ही दिए गए प्रश्न के लिए हमारा भौतिकी और गणित के लिए संबंध था धन्यवाद “यथा शिखा मयूराणां, नागानां मणयो यथा। अर्थात्, जैसे मोरों की कलगी और नागों में मणि की स्थिति सबसे ऊपर मूर्धा पर है, वैसे ही वेदांग शास्त्रों में गणित का स्थान है। कुछ लोग मानते हैं कि ईश्वर एक गणितज्ञ है, या शायद वह एक गणितज्ञ के आदेश पर काम करता है। महान जर्मन गणितज्ञ गाउस का मत था कि गणित विज्ञान के विषयों की साम्राज्ञी है| वेदांग से लिए गए श्लोक से हमें लगेगा कि यह हमारे पूर्वज ऋषियों के संचित ज्ञान का सार है जो हमें विरासत में मिला है और गणित के बारे में ऐसी सोच शायद उस समय की सर्वसम्मत मान्यता थी। फिर भी, हम यह पूछ सकते हैं कि प्राचीन या मध्यकालीन भारत में, किसी भी एक समय पर, कितने लोगों को गणितज्ञ कहा जा सकता था। यहाँ हम किसी ऐसे व्यक्ति या महिला को गणितज्ञ कहेंगे जो न केवल भास्कराचार्य या माधव का नाम जानता/जानती हो, बल्कि उनके काम से भी परिचित हो, और इसे किसी छात्र को समझा सके, चाहे उसने अपने आप गणित पर कोई ग्रन्थ न लिखा हो। यह संख्या 5 के आसपास होगी, या 50 के आसपास, या फिर 500 के आसपास? इस विषय पर हमारे इतिहास के जानकार लोगों के अनुसार, यह संख्या 5 के निकट होने की सम्भावना अधिक है, न कि 50 के निकट। अतः, हमें यह मानना पड़ेगा कि यद्यपि वेदांग में उपरोक्त श्लोक जैसा कुछ कहा गया है और भारतीय गणितज्ञों की कई बड़ी जानी-मानी और प्रसिद्ध उपलब्धियाँ हैं, भारतीय दर्शन परम्परा में व्यवहारिक रूप में गणित को इतना ऊँचा दर्जा नहीं दिया गया। गाउस का कथन शायद उनके विचारों को ठीक ही व्यक्त करता है, पर उसे निष्पक्ष तो नहीं कहा जा सकता। इस लेख में हम गणित के मानवीय ज्ञान के अन्य क्षेत्रों के साथ सम्बन्ध पर नारेबाज़ी और पूर्वाग्रह से मुक्त एक नज़र डालना चाहते हैं। चलिए, हम अपनी बात इस प्रश्न से शुरू करते हैं: क्या गणित के अंक π का अब से एक लाख वर्ष पूर्व कोई अस्तित्व था? मेरा अनुमान है कि अधिकांश पाठक सोच रहे हैं, “हाँ, बेशक।” यहाँ पर मैं यह कहना चाहूँगा कि यह मामला इतना साफ नहीं है, यदि आप इस विषय पर कुछ देर सोचने के बाद उत्तर दें। पहले तो यह समझना ज़रूरी है कि यहाँ ‘अस्तित्व’ शब्द का क्या अर्थ है। यह तो स्पष्ट है कि अंक π कोई भौतिक वस्तु, जैसे मेज़ या बृहस्पति ग्रह, नहीं है। अतः, अंक π का अस्तित्व उसी अर्थ में तो नहीं हो सकता है जिस अर्थ में मेज़ का अस्तित्व है। भौतिक वस्तुओं का कुछ द्रव्यमान होता है, और वे कुछ समय के लिए अन्तरिक्ष में कुछ सुनिश्चित स्थान घेरती हैं । अंक π एक मानसिक निर्मिति (मेंटल कन्सट्रक्ट) है और इसका अस्तित्व केवल एक मानसिक निर्मिति जैसा हो सकता है । उदाहरण के तौर पर, मैं किसी आठ सर वाले ज़ेब्रा की बात करूँ। इस तरह का कोई पशु जगत में कहीं नहीं है। पर, इन शब्दों को एक साथ लाकर मैंने एक मानसिक निर्मिति बना ली, और अब विचारों के संसार में इस विचार का अस्तित्व शुरू हो जाता है। अब इस तरह के ज़ेब्राओं के कुछ गुण-धर्म हम स्थापित कर सकते हैं। जैसे, अगर हम पूछें कि ऐसे आठ सर वाले ज़ेब्रा की कितनी आँखें होती हैं? तो उत्तर है कि सोलह क्योंकि हर एक सर पर दो आँखें हैं। जो बात आठ सर वाले ज़ेब्रा के सम्बन्ध में सच है, वही बात युक्लिडीय ज्यामिति की संरचनाओं, जैसे त्रुटिहीन वृत्त (perfect circle) पर भी लागू होती हैं। भौतिक जगत में कहीं भी कोई त्रुटिहीन वृत्त नहीं मिलेगा। पर त्रुटिहीन वृत्त के सम्बन्ध में अनेक प्रमेय इसकी परिभाषा का प्रयोग करके ही
स्थापित किए जा सकते हैं, जैसा कि ज्यामिति की पाठ्यपुस्तकों में किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, ओम के नियम के लिए ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक जॉर्ज ओम, ने बिजली के तारों में विद्युत प्रवाह विषय पर लिखी अपनी पुस्तक में कहा कि उनका विश्वास है कि उनकी शोध भौतिक विज्ञान के एक क्षेत्र को गणित का भाग बना देगी, जो अब तक गणित का भाग नहीं था।6 यह बात अब से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व ही लिखी गई थी, पर यह बात आज के पाठक को काफी अटपटी लगती है। ओम का नियम तो भौतिक विज्ञान का नियम है। यह गणित का भाग कब से हो गया? स्पष्ट रूप से, ओम द्वारा प्रयुक्त गणित शब्द का अर्थ आज के प्रयोग से भिन्न है। हमें स्पष्ट करना पड़ेगा कि हम किस ‘गणित’ की बात कर रहे हैं। मेरा अनुमान है कि ओम ने ‘गणित’ का उसी अर्थ में प्रयोग किया जिस अर्थ में आज के कुछ विद्यार्थी करते हैं जब वे कहते हैं कि समीकरण ‘s=(gt2)/2’ तो गणित है पर इसी का समानार्थी वाक्य ‘मुक्त रूप से गिरते हुए पिण्ड के लिए त्वरण अचर है’ गणित नहीं है। यहाँ पर
ये विद्यार्थी भौतिक शास्त्र के नियमों के वर्णन में समीकरणों के उपयोग को गणित कहते हैं। पर यह सिर्फ गणित की भाषा का प्रयोग है; वर्णन का विषय गणित नहीं है। हम ‘गणित’ शब्द का प्रयोग इस अर्थ में नहीं करेंगे। विज्ञान के सम्बन्ध में विगनेर नोट करते हैं कि, हमारे चारों तरफ फैला जगत
ज़्यादातर समझ के परे है, पर इस सिरदर्द देने वाली जटिलता के बीच कुछ नियम देखे जा सकते हैं। यह ही प्रकृति के नियम हैं, जैसे ग्रहों की गति से सम्बन्धित केपलर के नियम। विगनेर के अनुसार, यह चमत्कार ही है, और पूरी तरह से अनपेक्षित है, कि ऐसे कुछ नियम हैं और वे सब जगह, सब समय लागू रहते हैं। इससे भी अधिक विस्मय की बात है कि मनुष्य इन नियमों को खोज पाता है। इन नियमों के अध्ययन को ही विगनेर विज्ञान कहते हैं।
इस विचार श्रखला के अनुसार, गणितीय आकार और संरचनाएँ, जैसे कि पूर्णांक इस वास्तविक बाह्य संसार का अंश हैं और उनका अस्तित्व है, चाहे कोई छाया को देखे या न देखे। इसी तरह, गणितीय अंकों, जैसे 7 और π का अस्तित्व तब भी था जब मानव जाति पृथ्वी पर अस्तित्व में भी नहीं थी। मैंने लेख की शुरुआत में एक लाख वर्ष का अन्तराल इसीलिए चुना था। यह अन्तराल बिग बैंग की आयु या पृथ्वी की आयु से बहुत कम है (पृथ्वी की आयु लगभग 400 करोड़ वर्ष है)। अब से एक लाख वर्ष पहले अधिकतर डायनासॉर मर चुके थे, पर मानव जाति और अन्य वानरों में ज़्यादा फर्क नहीं था। इसके विपरीत दृष्टिकोण है कि हमारा सारा गणित मानव जाति के सांस्कृतिक विकास का ही फल है। गणित के सारे आकार और निर्मितियाँ भौतिक जगत के वर्णन के लिए मनुष्य द्वारा ही बनाई गई हैं। किसी प्लेटोविरोधी के मतानुसार, इस अखिल ब्रम्हाण्ड में कोई भी त्रुटिहीन वृत्त नहीं है, और अंक πसिर्फ एक उपयोगी मानसिक निर्मिति है। एबट के अनुसार, उनके अनुमान में गणितज्ञों में लगभग 80 प्रतिशत लोग प्लेटोवादी होते हैं, पर इंजीनियरिंग या तकनीकी क्षेत्रों में काम करने वाले अक्सर प्लेटोविरोधी होते हैं। वह कहते हैं कि भौतिकी के वैज्ञानिक अक्सर ‘छुपे हुए प्लेटोविरोधी’ होते हैं: ऊपरी दिखावे में औरों के सामने वे अपने को प्लेटोवादी कहते हैं, पर अपने दिल में उनका विश्वास इस बात पर पक्का नहीं है। प्लेटोविरोधी मत के अनुसार, गणित मानव जाति की कल्पना का फल है। हमारे समस्त भौतिक विज्ञान द्वारा प्रतिपादित ‘प्रकृति के नियम’ एक सरलीकरण/ आदर्शीकरण/ सन्निकटन (simplification/ idealization/ approximation) की प्रक्रिया पर आधारित हैं और इस प्रकार वे कभी अपने आप में पूर्णतया त्रुटिरहित या अपरिवर्तनीय होने का दावा नहीं करते। प्रकृति की नियमितताओं (regularities) का वर्णन करने के लिए गणित को मनुष्य द्वारा ईजाद किया गया है और वह ब्रह्माण्ड की नियमितताओं के वर्णन की एक उपयोगी युक्ति मात्र है। मेरा दृष्टिकोण अन्य जन्तुओं के जीवन में गणित के सम्भव रोल की चर्चा करने के पहले, यह उपयोगी होगा कि हम गणित के विभिन्न स्तरों के मध्य फर्क कर लें। तीसरे स्तर के गणित में बीजगणित में संकेत चिन्हों का प्रयोग, प्रमेय (theorem) और उपपत्ति (proof) के अर्थ, और √2 जैसे अपरिमेय (irrational) अंकों का ज्ञान शामिल है। इसे मैं हाईस्कूल स्तर का गणित कहूँगा। यह वह गणित है जो अब हम हाईस्कूल के छात्र-छात्राओं को पढ़ाते हैं और अब से कुछ हज़ार वर्ष पूर्व तक मानव जाति भी सिर्फ इतना ही गणित जानती थी। यह वाणिज्य और अभियांत्रिकी के लिए उपयोगी गणित है। चीज़ें खरीदने और बेचने के लिए हमारे लिए अंकों को जोड़ने और गुणा करने आदि की जानकारी ही पर्याप्त है। ऐसे घर या महल बनाने के लिए जो गिर न जाएँ, हमें ज्यामिति की कुछ अवधारणाओं के प्रयोग की ज़रूरत पड़ सकती है। कोई खम्भा या छत कितना भार सँभाल सकेगी, यह उसकी मोटाई या लम्बाई की कुछ घातों पर निर्भर करता है और इसमें हम तृतीय स्तर के गणित का उपयोग करते हैं। इस उपयोग में गणित बहुत कारगर है, पर शायद यह कारगर होना अनपेक्षित नहीं है। इसके ऊपर के स्तर को मैं उच्चतर गणित कहूँगा। इसमें वह सब विषयवस्तु
शामिल है, जिन्हें निचले स्तरों में नहीं लिया गया। स्पष्टतः, विभिन्न स्तरों की सीमाएँ निश्चित करने में हमें कुछ हद तक चयन की स्वतंत्रता है। उदाहरण के तौर पर, मैंने अवकलन या समाकलन (differentiation or integration) को तृतीय स्तर में शामिल नहीं किया पर मैं कर सकता था । किसी चीज़ को देखने पर पहचानने, और देखी हुई वस्तु में कुछ फर्क को नज़रअन्दाज़ करने (noise filtering), या उसके एक आदर्श प्रतिरूप की कल्पना कर लेने (idealization) की सामर्थ्य मानव जाति ने जैव-विकास से पाई है। यह सामर्थ्य अत्यन्त जन्मजात है और इसका एक जाना-पहचाना उदाहरण है कनिषा त्रिभुज के नाम से विख्यात दृष्टिभ्रम (चित्र-5)। दोषयुक्त आँकड़ों (data) से एक उपयोगी जानकारी छानकर निकाल लेने की क्षमता निश्चय ही लाभदायक है, और अन्य जानवरों में भी पाई जाती है। अगर कोई हिरण आंशिक रूप से घास में छुपे शेर को पहचान लेता है तो यह उसे जीवित रहने में लाभकर है। ग्रहों की कक्षाओं में दीर्घवृत्त को देखना, इसकी सन्निकटता और आदर्श प्रतिरूप ढूँढ़ना (approximation and idealization) भी इसी प्रवृत्ति का उदाहरण है। फिर भी, शायद हिरण में इस सामर्थ्य को गणित कहना ठीक नहीं होगा। मुझे लगता है कि विगनेर जिस ‘गणित की अनपेक्षित उपयोगिता’ की बात कर रहे थे, वह उच्चतर गणित था। जीव विज्ञान, मनोविज्ञान और भूगर्भ विज्ञान जैसे क्षेत्रों में गणित बहुत ज़्यादा उपयोगी नहीं है। अतः, मैं मान लेता हूँ कि यद्यपि विगनेर ‘विज्ञान’ की बात कर रहे थे, वे मुख्यतः भौतिक विज्ञान के बारे में ही सोच रहे थे। भौतिक विज्ञान में भी, कई क्षेत्रों में हम गणित के उपयोगी होने की आशा कर सकते हैं, जैसे क्रिकेट के खेल में आने वाली बॉल की गति के अनुमान के लिए। पर यह जानने के लिए कि क्रिकेट के खेल में गणित बहुत उपयोगी नहीं है, आपके लिए तेंदुलकर या कोहली होना ज़रूरी नहीं है। मैं एबट से पूरी तरह से सहमत हूँ कि गणित की अनपेक्षित उपयोगिता, अपने विचारक्षेत्र को बहुत सीमित करने का ही परिणाम है। यदि हम केवल उन विषयों की बात करें, जहाँ गणित बहुत उपयोगी है, तो यह उपयोगिता तो अपेक्षित ही है, अनपेक्षित नहीं। इससे पहले हमने समीकरण s=(gt2)/2 की बात की थी। इस समीकरण में अन्तर्निहित एक महत्वपूर्ण पूर्वधारणा (assumption) है कि चली गई दूरी को एक वास्तविक संख्या (real number) द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है। सवाल उठता है कि हवा में उड़ती हुई एक बॉल द्वारा चली गई दूरी के बारे में क्या यह सच है? यदि दूरी को सेंटीमीटर में लिखें, तो क्या इसे दशमलव के 15वें स्थान तक निर्धारित करना सम्भव है? यहाँ हम प्लांक लेन्थ स्केल (10-35 मीटर) की बात नहीं कर रहे हैं जब गुरुत्वाकर्षण के क्वाण्टम सिद्धान्त के अनुसार अन्तरिक्ष की संरचना में बहुत फर्क आ जाता है। फिर भी, यह एक परमाणु के आकार का भी 105वाँ अंश है। थोड़ा-सा सोचने पर हम यह समझ पाएँगे कि इस परिशुद्धता तक बॉल के द्रव्यमान केन्द्र की परिभाषा भी कठिन है। उसको उपकरणों द्वारा नापने की तो बात ही छोड़ दें। बॉल परमाणु उष्मीय गति के कारण इधर-उधर हिलते-डुलते रहते हैं और इस गति का आयाम 10-11 मीटर है। जब बॉल हवा में चलती है, तो हवा के साथ घिसने के कारण कुछ परमाणु बॉल से अलग होकर हवा के साथ बह जाते हैं, और यह कहना मुश्किल है कि द्रव्यमान केन्द्र के आकलन में इनका भी योगदान होना चाहिए या नहीं। हम यहाँ इसी बात के महत्व को दिखा रहे हैं कि हम भौतिक जगत की समस्या का सरलीकरण करते हैं और उसका एक आदर्श प्रतिरूप (idealized model) बनाते हैं जिसमें चली गई दूरी को एक वास्तविक संख्या द्वारा निरूपित करते हैं। इसके बाद ही कुछ गणित की युक्तियों द्वारा इस सरलीकृत प्रश्न का हल निकाला जा सकता है। विगनेर इस बात की गम्भीरता से वाकिफ थे कि जिन प्रश्नों का हल गणित की मदद से मिल सकता है, वे सब सम्भव प्रश्नों का एक छोटा-सा अंश हैं। उसी लेख में विगनेर ने लिखा, “प्रकृति के समस्त नियम कुछ कथन हैं जो वर्तमान की स्थिति की कुछ जानकारी के आधार पर आगे भविष्य में क्या होगा, इस की जानकारी देते हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति ऐसी क्यों है? संसार की वर्तमान स्थिति, जैसे कि पृथ्वी ग्रह का वेग कितना है, और सूरज क्यों है और हमारे
चारों ओर का जगत ऐसा क्यों है, इस विषय में प्रकृति के नियम कुछ नहीं कहते।” समापन मुझे यह कहानी पसन्द है क्योंकि यह भौतिकी के वैज्ञानिकों की गणितज्ञों से अपेक्षित मदद न मिलने पर उनके मन में पैदा हुई कुण्ठा को दिखाती है। अक्सर किसी भी प्रश्न पर गणितज्ञों और भौतिक वैज्ञानिकों के सोचने का ढंग अलग होता है। विज्ञान और गणित में क्या संबंध है?गणित में आंकड़ों की प्रधानता है और विज्ञान में तत्वों की और ये दोनों प्रकृति से जुड़े हुए है। वैसे गणित का उपयोग प्राचीन समय से ब्रम्हांड में तारा एवम् ग्रहों की दूरी के लिए कर रहे है। विज्ञान हमारे दैनिक जीवन से जुड़ी हुई द्रव्य है। जिसका उपयोग प्राचीन समय से ही कर रहे है।
विज्ञान में गणित का क्या महत्व है?गणित, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का एक महत्वपूर्ण उपकरण (टूल) है। भौतिकी, रसायन विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि गणित के बिना नहीं समझे जा सकते। ऐतिहासिक रूप से देखा जाय तो वास्तव में गणित की अनेक शाखाओं का विकास ही इसलिये किया गया कि प्राकृतिक विज्ञान में इसकी आवश्यकता आ पड़ी थी। कुछ हद तक हम सब के सब गणितज्ञ हैं।
गणित कौन सा विज्ञान है?गणित संरचना, क्रम, और संबंध का एक विज्ञान है जो वस्तुओं की आकृतियों की गणना, माप और वर्णन से विकसित हुआ है। यह तार्किक तर्क और मात्रात्मक गणना से संबंधित है।
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