मनुष्य मरता है तो क्या होता है? - manushy marata hai to kya hota hai?

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: श्वेता सिंह Updated Sun, 12 Jun 2022 12:17 AM IST

Death Signs: मृत्यु शाश्वत है। जिस प्रकार एक शिशु का जन्म 9 महीने के उपरांत माता के गर्भ से होता है। ठीक उसी प्रकार मृत्यु भी अपने आने का संकेत देती है। मनुष्य के जीवन में जब कुछ विचित्र ऐसी घटनाएं होने लगें तो समझ लीजिए कि यह मृत्यु का संकेत दे रही है। हालांकि ये संकेत इतने सूक्ष्म होते हैं कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उन पर ध्यान ही नहीं देते और जब मृत्यु एकदम करीब आ जाती है तो पता लगता है कि अब देर हो चुकी है, कई काम अधूरे रह गए हैं।  ऐसी स्थिति में अंतिम क्षण में मन भटकने लगता है और मृत्यु के समय कष्ट की अनुभूति होती है। पुराणों के अनुसार अगर मृत्यु के समय मन शांत और इच्छाओं से मुक्त हो तो बिना कष्ट से प्राण शरीर त्याग देता है और ऐसे व्यक्ति की आत्मा को परलोक में सुख की अनुभूति होती है। लोग हमेशा यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि मरते समय या मरने से पहले व्यक्ति कैसा महसूस करता है। हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में इस बारे में विस्तार से बताया गया है। शिवमहापुरण में मृत्यु से पूर्व के संकेत बताएं गए हैं। आइए जानते हैं क्या हैं वो संकेत। 

मरने से पहले मिलते हैं ऐसे संकेत 

  • शिव पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के कुछ महीनों पहले जिस इंसान को मुंह, जीभ, आंखे, कान और नाक पत्थर के जैसी होती महसूस होने लगे, तो यह व्यक्ति की जल्द मौत होने का इशारा समझा जाता है। 

  • शिवपुराण में भगवान शिव के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति का शरीर नीला या पीला पड़ जाए या फिर उसके शरीर पर ढेर सारे लाल निशान दिखाई देने लगें तो यह इस ओर इशारा करता है कि व्यक्ति की मौत नजदीक है। 

  • शिव महापुरण के अनुसार यदि आपकी परछाई आपको नहीं दिख रही है तो यह मृत्यु करीब आने के सूचक माने गए हैं।  वहीं ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार अधिक आयु वाले व्यक्ति को जब अपनी छाया धड़ रहित दिखाई देने लगे, तो उस व्यक्ति की मौत बहुत जल्द होने वाली होती है। 

  • जब कोई व्यक्ति चंद्रमा, सूर्य और अग्नि के प्रकाश को देखने में असमर्थता महसूस करने लगे तो ये संकेत है कि जीवन के उसके पास कुछ क्षण ही शेष हैं।  कहते हैं मृत्यु से कुछ समय पूर्व  पहले व्यक्ति को ध्रुव तारा या सूर्य दिखना बंद हो जाता है साथ ही रात में इंद्रधनुष दिखाई देने लगता है।  

क्या मरने के तुरन्त बाद एक नया शरीर मिल जाता है? या फिर कुछ समय के बाद प्राणी नया शरीर धारण कर पाता है? कैसे तय होती है समय की अवधि?

सद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि जिन लोगों की दुर्घटना में मरने होती है, वे लम्बे समय तक बिना शरीर के रहते हैं, जिन्हें भूत-प्रेत कहा जाता है, आइये पढ़ते हैं आगे...

आदित्य: क्या रीति-रिवाज इसीलिए होते हैं, सद्‌गुरु? उन्हें शांत करने के लिए?

सद्‌गुरु: हां, उसे शांत करने के लिए, क्योंकि वह तब भी जीवंत होता है। उसका प्राणिक-शरीर अभी भी इच्छाएं, लालसाएं लिए घूमता रहता है - इसलिए वह शांत नहीं हो पाएगा। वह उस रूप में एक लंबे समय तक बना रहता है। उसे अपना यह दौर पूरा करना होता है। जब वे किसी दुर्घटना में मरते हैं, तो शुरुआत में वे काफी जीवंत होते हैं। उस दौरान वे बहुत प्रभावी तरीके से महसूस किए जाते हैं। फि र जब प्राण अपनी जीवंतता खो देता है, तब वह बस मंडराता रहता है। इस दौर को छोटा करने के लिए भारतीय संस्कृति में कुछ कर्मकांड और प्रक्रियाएं हैं, ताकि उसे वहां पर मंडराना न पड़े। जो इंसान यह कर्मकांड कराता है, अगर वह उसके बारे में जानता है, तो उस प्राणी के भटकने की अवधि कम कर सकता है। वह उसके शांत होने की प्रक्रिया को तीव्र कर सकता है, ताकि उस प्राण को लंबे समय तक भटकना न पड़े।

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पूर्ण जीवन के बाद की मरने

अगर इन प्राणिक और सूक्ष्म शरीरों को एक दूसरा भौतिक-शरीर धारण करना है, तो उनमें एक खास तरह की स्थिरता की जरूरत होती है। जब वे स्थिरता या जीवंतता के निम्न स्तर में होते हैं, केवल तभी प्राणी को दूसरा शरीर मिलता है; वरना उसे यह नहीं मिलता। अगर वह पूरी तरह से जीवंत है, तो वह दूसरा शरीर प्राप्त नहीं कर सकता। उसे पहले शांत होना होगा। जब कोई इंसान एक लंबा और पूर्ण जीवन जी लेता है और शांतिपूर्वक मरता है तो यह माना जाता है कि उसके प्राण ने अपना दौर पूरा कर लिया और सहजता से बंधन से अलग हो गया।

यह कुछ ऐसा ही है जैसे एक पके फल का पेड़ से टपकना। पका फ ल जैसे ही पेड़ से टपकता है, उसका बीज जल्दी ही मिट्टी से मिलकर अपनी जड़ें ढूंढ लेता है। उस बीज के लिए उसका गूदा ही जरूरी खाद बन जाता है। उसी तरह जब एक इंसान अपना जीवन-चक्र पूरा कर के अपने आखिरी क्षण तक पहुंचता है तो हम कहते हैं कि उसकी मरने शांतिपूर्वक हुई। बिना किसी बीमारी या बिना किसी दुर्घटना के जब किसी की स्वाभाविक मरने होती है तो प्राण की जीवंतता एक हद तक शांत हो चुकी होती है, और उसको शरीर से मुक्त होने के लिए कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता।

मरने के कुछ समय बाद मिलता है नया प्रारब्ध कर्म

आदित्य: सद्‌गुरु, जब एक इंसान बुढ़ापे की वजह से मरता है, तो हम कहते हैं कि प्राण ने अपनी जीवंतता खो दी। अब अगर हम यह मान लेते हैं कि वह एक दूसरा शरीर धारण करता है, तो क्या इसका मतलब है कि प्राण फिर से जीवंत होना शुरू होता है?

सद्‌गुरु: हां, यह फिर से जीवंतता प्राप्त करता है। शरीर में प्रवेश करने के लिए इसमें निष्क्रियता की एक खास अवस्था का होना जरूरी है। केवल तभी यह एक शरीर को हासिल कर सकता है। एक बार जब प्रारब्ध-कर्म खत्म या अपने आप क्षीण हो जाता है, तब बिना किसी कार्मिक-तत्व के, प्राण अपनी जीवंतता, अपनी गतिशीलता खो देता है। जब प्रारब्ध-कर्म पूरी तरह से खत्म हो जाता है, तब समय के एक छोटे दौर के बाद, प्रारब्ध-कर्म की एक नयी किस्त फि र से प्रकट होनी शुरू हो जाएगी। जैसे ही एक नया प्रारब्ध जाहिर होना शुरू होता है, प्राण अपनी जीवंतता फिर प्राप्त कर लेता है, और तब यह फिर एक शरीर धारण कर लेगा।

इंसान मरने के बाद कितने दिन में जन्म लेता है?

वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक अगर 100 लोगों की मृत्यु होती है तो उनमें से 85 लोगों का पुर्नजन्म 35 से 40 दिनों के भीतर हो जाता है।

जब कोई व्यक्ति मरता है तो उसके बाद क्या होता है?

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो यमराज के यमदूत उसे अपने साथ यमलोक ले जाते हैं। यहां उसके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब होता है और फिर 24 घंटे के अंदर यमदूत उस प्राणी की आत्मा को वापिस घर छोड़ जाते हैं।

मरने से पहले क्या दिखाई देता है?

- मृत्‍यु से 4 से 6 महीने पहले से व्‍यक्ति को अपनी परछाई पानी या तेल में दिखनी बंद हो जाती है. - जिस व्‍यक्ति को आग की रोशनी दिखाई देनी बंद हो जाए उसकी भी 6 महीने में मृत्यु हो सकती है. - इसी तरह मरने से 6 महीने पहले व्‍यक्ति को ध्रुव तारा या सूर्य दिखना बंद हो जाता है साथ ही रात में इंद्रधनुष दिखाई देने लगता है.

क्या मृत्यु के समय दर्द होता है?

उनकी राय है कि मौत के समय दर्द नहीं होता लेकिन अप्राकृतिक मौत के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता. आम तौर पर मौत के समय दांत दर्द से भी कम दर्द हो सकता है.