मृत्यु शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह से ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनके पास पांडवों में से कौन पहुँचा? - mrtyu shaiyya par pade bheeshm pitaamah se gyaan praapt karane ke lie unake paas paandavon mein se kaun pahuncha?

एक बार उपदेश के बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए द्रौपदी ने कहा- आपके ये उपदेश उस समय कहां गए थे, जब मेरा चीरहरण किया जा रहा था? द्रौपदी के इस प्रश्न पर पितामह भीष्म ने कहा- 'बेटी, उस समय मैंने दुर्योधन का दूषित अन्न खा रखा था इसलिए मेरी बुद्घि में उस समय दोष था, पर अब इतने लंबे समय तक बाणों की शैया पर रहने से मेरा दूषित रक्त बह गया है अत: अब मेरी बुद्घि भी निर्मल हो गई  है। ...जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन।'

महाभारत अनंत ज्ञान का भंडार है। उसी में धर्म, नीति, राजनीति, ज्ञान, विज्ञान, योग, इतिहास, मानवशास्त्र, रहस्य, दर्शन, व्यवस्था आदि की संपूर्ण बातों का समावेश है। यह धर्मिक ग्रंथ होने के साथ-साथ इतिहास और समाज का ग्रंथ भी है। दुनिया के सभी धर्म, दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, वास्तु के सिद्धांत सभी महाभारत से ही प्रेरित हैं।

महाभारत युद्ध और काल की विषम परिस्थितियों में भी ज्ञान की गंगाएं बही। यह ज्ञान आज हमारे समक्ष 1.भीष्म नीति, 2.विदुर नीति, 3.गीता और 4.यक्ष प्रश्न के नाम से प्रचलित है। यह सभी महाभारत के ही हिस्से हैं। इसके अलावा भी हमें महाभारत में हजारों तरह के ज्ञान की बातें पढ़ने को मिलती है। महाभारत को घर मे रखना चाहिए।

भीष्म और युद्धिष्ठिर संवाद हमें भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में मिलता है। इसमें केवल 2 अध्याय (167 और 168) हैं। इसमें भीष्म के पास युधिष्ठिर का जाना, युधिष्ठिर की भीष्म से बात, भीष्म का प्राणत्याग, युधिष्ठिर द्वारा उनका अंतिम संस्कार किए जाने का वर्णन है।

अठारह दिनों के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके भीष्म ने पाण्डव पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में शिखण्डी के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। उनके शरशैया पर लेटने के बाद युद्ध 8 दिन और चला। लेकिन भीष्म पितामह ने शरीर नहीं त्यागा था, क्योंकि वे चाहते थे कि जब सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे शरीर का त्याग करेंगे। भीष्म पितामह शरशय्या पर 58 दिन तक रहे। उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया तब माघ महीने का शुक्ल पक्ष था।

कहते हैं कि इस युद्ध के समय अर्जुन 55 वर्ष, श्रीकृष्ण 83 वर्ष और भीष्म पितामह150 वर्ष के थे। उस काल में 200 वर्ष की उम्र होना सामान्य बात थी। बौद्धों के काल तक भी भारतीयों की सामान्य उम्र 150 वर्ष हुआ करती थी। इसमें शुद्ध वायु, वातावरण, उचित आहार और योग-ध्यान का बड़ा योगदान था।

बाद में जब सूर्य के उत्तरायण होने पर युधिष्ठिर आदि सगे-संबंधी, पुरोहित और अन्यान्य लोग भीष्म के पास पहुंचते हुए। उन सबसे पितामह ने कहा कि इस शरशय्या पर मुझे 58 दिन हो गए हैं। मेरे भाग्य से माघ महीने का शुक्ल पक्ष आ गया। अब मैं शरीर त्यागना चाहता हूं। इसके पश्चात उन्होंने सब लोगों से प्रेमपूर्वक विदा मांगकर शरीर त्याग दिया। सभी लोग भीष्म को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को चंदन की चिता पर रखा तथा दाह-संस्कार किया।

भीष्म सामान्य व्यक्ति नहीं थे। वे मनुष्य रूप में देवता वसु थे। उन्होंने ब्रह्मचर्य का कड़ा पालन करके योग विद्या द्वारा अपने शरीर को पुष्य कर लिया था। दूसरा उनको इच्छामृत्यु का वरदान भी प्राप्त था। माना जाता है कि भीष्म ही युद्ध में सबसे अधिक उम्र के थे। उन्हें राजनीति का ज्यादा अनुभव होने के कारण वेदव्यास ने संपूर्ण महाभारत में भीष्म को राजनीति का केंद्र बनाकर राजनीति के बारे में उन्होंने जो भी कहा, उसका प्राथमिकता से उल्लेख किया।

जब पितामह भीष्म बाणों की शैया पर लेते हुए थे तब युधिष्ठिर उनसे मिलने आए। युधिष्ठिर बहुत दुखी एवं शर्मिंदा थे। अपने पितामह की हालत का जिम्मेदार खुद को मानकर अत्यंत ग्लानि महसूस कर रहे थे। उनकी यह स्थिती देख पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को अपने समीप बुलाकर पूछा– हे पुत्र! तुम इतना दुखी क्यूं हो क्या तुम मेरी इस स्थिती का उत्तरदायी खुद को समझ रहे हो? तब युधिष्ठिर ने नम आंखों के साथ हां में उत्तर दिया। जिस पर पितामह ने उन्हें एक कथा सुनाई। इस कथा में उन्होंने बताया कि क्यों मुझे तीरों की शैया नसीब हुई।

भीष्म के मृत्यु शैया पर लेटे होने के अवसर पर वहां उपस्थित लोगों के सामने गंगाजी प्रकट होती हैं और पुत्र के लिए शोक प्रकट करने पर श्रीकृष्ण उन्हें समझाते हैं। भीष्म यद्यपि शर शय्या पर पड़े हुए थे फिर भी उन्होंने श्रीकृष्ण के कहने से युद्ध के बाद युधिष्ठिर का शोक दूर करने के लिए उपदेश दिया।

भीष्म पितामह शर शय्या पर 58 दिन तक रहे। उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया तब माघ महीने का शुक्ल पक्ष था। इन 58 दिनों में भीष्म के समक्ष सभी संध्या को एकत्रित होते थे और उनसे ज्ञान की बाते सुनते थे।

अगले पन्ने पर भीष्म और युद्धिष्ठिर के बीच हुआ संवाद...

शर शय्या पर पहुँचने के बाद भी भीष्म जिन्दा कैसे रहे?

महाभारत का भीषण युद्ध समाप्त हो चुका था। विजेता पांडव शर शैय्या पर पड़े पितामह भीष्म का आशीर्वाद लेकर लौटने लगे तो पितामह ने श्रीकृष्ण को अपने पास बुलाया।

भीष्म जब शर शैय्या पर पड़े थे तो उन्होंने अर्जुन से क्या मांगा 1 Point?

पितामह भीष्म एक बड़े योद्धा थे शांतनु और गंगा के पुत्र उन्हें इच्छा मृत्यु मिली थी। उनको हराने वाला कोई योद्धा पूरे ब्रह्मांड में ना था स्वयं श्री कृष्ण भी उनका आदर और सम्मान करते थे। उनका एक ही कुसूर था उन्होंने द्रौपदी वस्त्र हरन में कुछ नहीं किया क्योंकि वो वचनबद्ध थे जो कि धर्म से बड़ा नहीं हो सकता।

3 भीष्म पितामह जब शर शैय्या पर थे तब उनकी प्यास बुझाने का कार्य किसने किया और कैसे?

दुर्योधन ने सिपाहियों को आदेश देकर जल लाने के लिए कहा। इस पर भीष्म बोले- 'जिसने मुझे ये शरशैय्या दी है, वही मुझे जल पिलाये। ' इस पर अर्जुन ने गांडीव धनुष पर बाण चढ़ाकर धरती में मारा और वहाँ से जल धारा फूट पड़ी। इसी जल से पितामह भीष्म ने अपनी प्यास बुझाई।

भीष्म पितामह ने बाणों की शैया पर कितने दिन पड़े पड़े अनेक उपदेश दिए?

बाणों की शय्या पर ५८ दिन तक पड़े पड़े इन्होंने अनेक उपदेश दिए। अपनी तपस्या और त्याग के ही कारण ये अब तक भीष्म पितामह कहलाते हैं।