ओजोन क्षरण (Ozone deplation)- ओजोन परत को पृथ्वी का रक्षा कवच या पृथ्वी का छाता कहते हैं क्योंकि यह गैस सौर्थिक विकिरण की पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है तथा उन्हें पृथ्वी तल तक पहुँचने से रोकती है। इसका परिणाम यह है कि ओजोन परत भूतल को अत्यधिक गर्म होने से बचाती है। सूर्य से निकलने वाली उसकी पराबैगनी किरणें जैवमंडल के लिए बहुत ही हानिकारक होती हैं। यह हमारे सौभाग्य की बात है कि प्रकृति ने हमें सूर्य की पराबैगनी किरणों से बचाने के लिए Show वायुमण्डल में ओजोन परत को छतरी के रूप में जान रखा है। समताप मण्डल (Stratosphere). में स्थित यह ओजोन परत जैवमंडल में सभी प्रकार के जीवों (पौधे, जन्तु, सूक्ष्म जीव तथा मनुष्य) को सूर्य की पराबैगनी किरणों से बचाती है। इस गैस परत के अभाव में जैव मंडल में किसी भी प्रकार का जीवन सम्भव नहीं हो सकता क्योंकि इस ओजोन परत के अभाव से सौर्थिक विकिरण की सभी पराबैगनी किरणें भूतल तक पहुँच जाएंगी जिस कारण भूतल का तापमान इतना अधिक हो जाएगा कि जैव मंडलीय (Biosphere) जैविक पट्टी धमाका पट्टी में बदल जाएगी अर्थात् सभी जीव नष्ट हो जाएंगे। पृथ्वी के धरातल से लगभग 50 कि०मी० से आगे के वायुमण्डल में ओजोन के अणु स्वतः ही घनी मात्रा में पाए जाते हैं। ये अणु यहाँ पर सूर्य रश्मियों की अधिकांश पराबैगनी किरणों को सोखने का कार्य करते हैं। औद्योगिक क्रियाओं तथा स्वचालित इंजनों एवं बिजलीघरों के स्टीम ब्वायलरों से नाइट्रिक ऑक्साइड नामक एक गैस उत्पन्न होती है। नाइट्रिक ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन वर्ग के गैसीय रसायन सूर्य की किरणों की सहायता से वायुमण्डल की आक्सीजन को ओजोन के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। वायुमण्डलीय प्रदूषण का ओजोन परत पर बड़ा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है क्योंकि इसके कारण ओजोन परत में छेद हो गया है। ओजोन परत को वायुमंडलीय प्रदूषण ने तो नुकसान पहुँचाया ही है, लेकिन इसके साथ हो जीवन को सुखमय बनाने के लिए दैनिक जीवन में प्रयुक्त किए जाने वाले फ्रिज, एअरकण्डीशनर, फोन व अनेक प्रकार के स्प्रे ने मानव जाति के समक्ष एक बहुत गम्भीर संकट पैदा कर दिया है। बात यह है कि भोग-विलास की इन वस्तुओं में जो ‘क्लोरोफ्लोरो कार्बन” प्रयुक्त किया जाता है उससे पृथ्वी के ऊपर 40 से 50 किलोमीटर पर स्थित ओजोन परत को इतना नुकसान हुआ है कि इससे ओजोन परत में यूरोप के बराबर छेद हो गया है और इससे होकर सूर्य की घातक पराबैगनी किरणें सीधे पृथ्वी तक पहुँच रही हैं। एक अनुमान यह है कि ओजोन परत में एक प्रतिशत की कमी होने पर 2 से 3 प्रतिशत अल्ट्रावायलेट किरणें पृथ्वी पर अधिक पहुँच सकती हैं। निर्णीत वादों की सहायता से भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 की संवैधानिकता की परीक्षा कीजिए। Examine the constitutional validity of Section 309 of I.P.C. in the light of decided cases. ओजोन के क्षरण को रोकने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निम्नलिखित प्रयास किये गये हैं
भारत में हर वर्ष 16 सितम्बर को ओजोन परत संरक्षण दिवस (Ozone Layer Protection Day) मनाया जाता है तथा विश्व उष्णता, विश्व चेतावनी (Global warming, Glocbal warning) का नारा दिया जाता है। उत्तर : वायुमंडल में अनेक गैसें मौजूद हैं। ताप मंडल के ऊपरी भाग में लगभग 25 किलोमीटर ओजोन गैस की एक परत है जिसे ओजोन मंडल भी कहते हैं । पृथ्वी के जीवधारियों एवं पेड़–पौधों हेतु सौर्य ऊर्जा से बचाव लिए यह रक्षा कवच का कार्य करती है । वैज्ञानिकों ने यह ज्ञात किया है कि धीरे–धीरे ओजोन गैस कम होती जा रही है। दो प्रतिशत गैस कम होने से एक डिग्री ताप पृथ्वी पर बढ़ जाता है। ओजोन की कमी से पर्यावरण हेतु गंभीर संकट उत्पन्न हो रहा है। ऑक्सीजन गैस ही ओजोन गैस में बदल जाती है तथा वायुमंडल में इसकी मोटी परत बन जाती है। यह पृथ्वी के चारों तरफ फैली है जो सूर्य के प्रकाश और ऊर्जा हेतु छलनी का कार्य करती है। सूर्य विकिरणों का ओजोन गैस की परत शोषण कर पृथ्वी के जीवधारियों तथा पेड़–पौधों की सुरक्षा करती है। 1970 के दशक में वैज्ञानिकों को ज्ञात हुआ कि वायुमंडल में उपस्थित ओजोन गैस का धीरे–धीरे क्षरण हो रहा है, जिससे पृथ्वी के पर्यावरण के लिए गंभीर संकट उत्पन्न हो रहा है | ओजोन का अणु सूत्र O2 है। रासायनिक भाषा में इसे ट्राइऑक्सीजन भी कहते हैं। ऑक्सीजन के तीन अणुओं से ओजोन के दो अणुओं का निर्माण होता है । 3O2→ 2O3 सामान्य तापक्रम पर ओजोन एक रंगहीन गैस है। यह गैस जल में घुलनशील होती है। द्रव अवस्था में इसका रंग गहरा नीला होता है। समतापमंडल में ऑक्सीजन से ओजोन प्रकाश रासायनिक क्रिया द्वारा निम्नलिखित ढंग से बनती है। O2 + प्रकाश →O + O O + O2 + (N2 या O2) → O3 इस प्रतिक्रिया के कारण बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन ओजोन गैस में परिवर्तित होकर वायुमंडल में गैस की एक मोटी परत का निर्माण करती है, जिसे ओजोन मंडल कहते हैं। ओजोन की यह परत पृथ्वी के चारों तरफ विद्यमान है जो सूर्य के प्रकाश हेतु फिल्टर का कार्य करती है। सूर्य के अदृश्य प्रकाश में उपस्थित पराबैंगनी किरणों का ओजोन परत अवशोषण कर पृथ्वी सतह पर वनस्पति एवं प्राणी की रक्षा करती है। ओजोन छिद्र पृथ्वी के किसी भू–भाग के ऊपरी वायुमंडल की ओजोन परत में ओजोन गैस के घनत्व के कम होने की घटना को ओजोन छिद्र कहते हैं। मानव द्वारा कुछ रासायनिक प्रदूषकों को उत्पन्न करने से इस प्राकृतिक रक्षा कवच में छिद्र पैदा हो रहे हैं । एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार ओजोन छिद्र में एक सेंटीमीटर वृद्धि होने से 40 हजार व्यक्ति पराबैंगनी किरणों के विनाशकारी प्रभाव की चपेट में आ जाते हैं। सन् 1984 में वैज्ञानिकों ने दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत में 4 किलोमीटर व्यास के ओजोन छिद्र का पता लगाया। अब यह छिद्र न्यूजीलैंड तथा आस्ट्रेलिया की ओर बढ़ रहा है । यहाँ मनुष्यों और पशुओं के शरीर में लाल चकत्ते, त्वचा कैंसर आदि व्याधियाँ बढ़ रही हैं एवं तापमान में वृद्धि हो रही है। ओजोन छिद्र के कारण। वैज्ञानिकों ने ओजोन परत के क्षरण के लिए जिम्मेदार निम्न कारणों की खोज की है। 1. वायुमंडल में प्राकृतिक रूप में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) / 2. ज्वालामुखियों के विस्फोट से निकली क्लोरीन गैस । 3. बमों के विस्फोट से निकली गैस । 4. परमाणु केन्द्रों से उत्सर्जित विकिरण । 5. मानव निर्मित फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी) यौगिक । ओजोन परत के क्षरण हेतु सी.एफ.सी. यौगिकों का उपयोग निम्न उद्योगों में होता है। 1. रेफ्रीजरेटर उद्योग में प्रशीतक के रूप में। 2. वातानुकूलन में। 3. इलेक्ट्रॉनिक तथा ऑप्टिकल उद्योग में। 4. प्लास्टिक तथा फार्मेसी उद्योग में व्यापक रूप में। 5. परफ्यूम तथा फोम उद्योग में। सी.एफ.सी. पृथ्वी के निचले वातावरण में बिना अपघटित हुए 100 वर्ष तक मौजूद रह सकते हैं जब ये समताप मंडल में पहुँचते हैं तो वहाँ सूर्य के पराबैंगनी विकिरण द्वारा प्रकाशीय विघटन प्रक्रिया द्वारा क्लोरीन परमाणु मुक्त करते हैं। ये क्लोरीन परमाणु ही ओजोन परत के प्रमुख शत्रु हैं। क्लोरीन परमाणु ओजोन अणु को विघटित कर ऑक्सीजन एवं क्लोरीन मोनो– ऑक्साइड बनाते हैं । क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन गैस के एक लाख अणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं । यही रासायनिक अभिक्रिया ओजोन छिद्र का कारण है । यह रासायनिक अभिक्रियाएं कम ताप पर संपन्न होती हैं। इसके लिए तापमान शून्य से 80 डिग्री कम होना चाहिए। ध्रुवों पर तापमान काफी कम होता है। यही कारण है कि ओजोन छिद्र ध्रुव के ऊपर पैदा हुआ। ओनाल्ड के अनुसार ध्रुवीय चक्रवात भी ओजोन के विनाश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उत्तरी ध्रुव पर ध्रुवीय चक्रवात देर तक नहीं ठहरते । दक्षिण ध्रुवीय चक्रवात महाद्वीप की ऊपरी सतह पर बनते हैं एवं देर तक ठहरते हैं। चक्रवात ओजोन से भरी धारा को उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की तरफ ले जाते हैं दक्षिण ध्रुव के ऊपर ओजोन छिद्र बनने का कारण वहाँ के शक्तिशाली ध्रुवीय चक्रवात भी हैं। भारत के ऊपर ओजोन सतह अभी सुरक्षित है। भारतीय भू– भाग के ऊपर ओजोन परत की मोटाई उन देशों से तीन गुना ज्यादा है, जिनके ऊपर ओजोन छिद्र बन चुका है। भारत में ओजोन स्तर 240 से 350 डाब्सन यूनिट के बीच है। दुनियाँ के तमाम देशों के ऊपर ओजोन 110 से 115 डाब्सन यूनिट पहुँच गया है। एक डाब्सन इकाई 760 मिलीमीटर पारा दाब एवं शून्य डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर 0.1 मिलीमीटर से पीड़ित गैस के बराबर होती है। सी.एफ.सी. का उत्पादन तथा उपयोग पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ा है, जो भारी चिंता का विषय है । विश्व में सी.एफ.सी. वार्षिक उपयोग 7 लाख 50 हजार मीट्रिक टन है, जिसमें 90% सी.एफ.सी. का उपयोग विकासशील देशों द्वारा किया जाता है। भारत में रेफ्रीजरेटर की संख्या लगभग 10 लाख थी। 80 के दशक में चीन ने 5 लाख रेफ्रीजरेटर का उत्पादन प्रतिवर्ष किया। अब वह 80 लाख रेफ्रीजरेटर का उत्पादन प्रतिवर्ष कर रहा है। अमेरिका में यह उत्पादन 20 गुना अधिक है। भारत में प्रतिव्यक्ति सी.एफ.सी. खपत 10 ग्राम है जबकि अमेरिका में यह खपत 3000 ग्राम प्रति व्यक्ति है। सी.एफ.सी. के उत्पादन तथा उपयोग रोकने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास ओजोन परत के क्षरण के प्रति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से जागरुकता पैदा की गयी है। सितंबर 1987 में 34 औद्योगिक देशों ने मांट्रियल में एक समझौते पर हस्ताक्षर कर सन् 2000 तक सी.एफ.सी. को वायुमंडल में जाने से रोकने का संकल्प किया था। जून 1990 में लंदन में हुई एक बैठक में विकासशील देशों हेतु यह समय सीमा सन् 2010 कर दी गई है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNPP) की अनुशंसा पर विकसित देशों द्वारा 24 करोड़ डालर कोष की व्यवस्था विकासशील देशों द्वारा सी.एफ.सी. विकल्प के विकास हेतु सहायतार्थ की गई है। मार्च 1992 में यूरोपीय समुदाय के देशों ने सन् 1995 तक सी.एफ.सी. उत्पादन 25 प्रतिशत कम करने का संकल्प किया है। विश्व स्तर पर वैज्ञानिक सी.एफ.सी. के विकल्प की खोज में तेजी से प्रयास कर रहें। सी.एफ.सी. के विकल्प– अभी तक के वैज्ञानिक प्रयासों से सी.एफ.सी. के निम्नलिखित विकल्प खोजे गये हैं– (अ) हाइड्रोक्लोरोफ्लोरो कार्बन, (ब) हाइड्रोफ्लोरो कार्बन, (स) हाइड्रो कार्बन, (द) अमोनिया ओजोन परत के विघटन से संभावित दुष्प्रभाव ओजोन परत के विघटन से या न होने से कितने ही तरह के दुष्प्रभाव मनुष्य जीवन एवं उससे संबंधित क्रिया– कलापों पर हो सकते हैं– (i) कई प्रकार की फसलों की मात्रा तथा गुणवत्ता में कमी, (ii) समुद्रीय परितंत्र का विघटन, अनेक वनस्पतियों तथा जलचरों के समाप्त होने की आशंका, (iii) मनुष्य पर कई जान लेवा रोगों का आक्रमण, जैसे त्वचा कैंसर, आँखों का मोतियाबिन्द, इम्यून सिस्टम बिगड़ना आदि । (iv) भवनों की सामग्री का क्षय, (v) स्मोग के बनने में योगदान आदि। ओजोन परत को बचाने के लिए प्रयास यह जनसाधारण से संबंधित बहुत बड़ी विश्वस्तरीय ऐसी समस्या है, जिसके भविष्य में बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं । इसलिए जनसाधारण से तो यही अपील है कि वे शनैः शनैः उन उपकरणों का प्रयोग कम कर दें, जिनमें क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स का उपयोग होता है। घर में विशेषतः ऐसे उपकरण रेफ्रीजरेटर एवं एअर कंडीशनर्स हैं। वैसे परफ्यूम में काम आने वाले ऐरोसोल्स, खेतों में छिड़काव की दवाइयाँ आदि भी प्रतिबंधित होती हैं, क्योंकि एक बार इनमें की CFC जब वायुमंडल में पहुँच जाती है तब वह कालांतर तक नष्ट नहीं होती। इस समस्या से जूझने हेतु विश्व स्तर पर प्रयास सन् 1985 से ही वियना समारोह, आस्ट्रिया से प्रारंभ हो गये थे,जहाँ पर इस बात पर विशद चर्चा हुई कि ओजोन परत के विघटन को रोकने के लिए विश्व के सभी देशों को मिलकर प्रयत्न करना चाहिए। सन् 1987 में मांट्रियल कनाडा में एक पुनः बैठक (सम्मेलन) में दस्तावेज तैयार किया गया, जिसे मांट्रियल प्रोटोकॉल के नाम से प्रसारित किया गया। भारत ने उस समय इस सम्मेलन में केवल प्रेक्षक की भूमिका निबाही थी, लेकिन बाद में उसने इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर कर दिये । यह प्रोटोकॉल जून 1990 से स्वीकृत माना गया। सन् 1989 में हेलसिंकी– डेनमार्क में एक सभी यूरोपियन देशों तथा 82 अन्य देशों ने एक सम्मेलन आयोजन कर ओजोन परत के बचाने एवं सुरक्षित रखने हेतु समयबद्ध कार्यक्रम तैयार किया, जिससे CFC's के उत्पादन को और प्रयोग को रोका जा सके। भारत ने इस प्रोटोकॉल पर नवंबर 1992 में हस्ताक्षर किये और 17.9.92 से इसको अपने देश में लागू माना गया। अंतर्राष्ट्रीय ओजोन परत सुरक्षा दिवस को प्रति वर्ष 16 सितंबर को राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर मनाया जाता है । जनसाधारण को इस समस्या से अवगत कराने हेतु अन्य कई सेमीनार, गोष्ठियाँ, सिम्पोजियम आदि आयोजित किये जाते हैं। एक द्विमाही पत्रिका (वातिस, VATIS) का प्रकाशन भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय स्तर पर नियमित रूप से किया जाता है। ओजोन क्षरण क्या है इसके कारण एवं प्रभाव को समझाइए?ओजोन परत का क्षरण मानव स्वास्थ्य, जानवरों, पर्यावरण और समुद्री जीवन के लिए खतरनाक है। ओजोन परत का क्षरण ऊपरी वायुमंडल की ओजोन परत का पतला होना है। यह तब होता है जब वातावरण में क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु ओजोन के संपर्क में आते हैं और इसे नष्ट कर देते हैं। एक क्लोरीन परमाणु 100,000 ओजोन अणुओं को नष्ट कर सकता है।
ओजोन क्षरण का प्रमुख कारण क्या है?ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण के लिये क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि रासायनिक पदार्थ भी ओज़ोन को नष्ट करने में योगदान दे रहे हैं।
ओजोन क्षरण किसे कहते हैं पृथ्वी पर इसका क्या प्रभाव है?यही कमी ओजोन-क्षरण, ओजोन-विहीनता कहलाती है और जो रसायन इसे उत्पन्न करने के कारक हैं, वे ओजोन-क्षरक पदार्थ कहलाते हैं। ओजोन परत में छिद्रों का निर्माण, पराबैंगनी विकिरण को आसानी से पृथ्वी के वायुमंडल में आने का मार्ग प्रदान कर देता है। इसका मानवीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
ओजोन परत के छह होने के कारण क्या है?Solution : ओजोन के क्षय होने का मुख्य कारण मनुष्य द्वारा बनाये गये क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन यौगिक है, ये बहुत स्थायी होते हैं जो वायुमण्डल में पहुँच जाते हैं जहाँ ओजोन परत होती है, जिसे समताप मण्डल कहते हैं। यही सूर्य से आते पराबैंगनी किरणों को तोड़कर क्लोरीन बनाती हैं।
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