ओजोन परत के क्षय के कारण मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा - ojon parat ke kshay ke kaaran maanav shareer par kya prabhaav padega

16 दिसम्बर, 1987 को सयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिंता निवारण हेतु कनाडा के मांट्रियाल शहर में 33 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे “मांट्रियाल प्रोटोकाल” कहा जाता है। इस सम्मेलन में यह तय किया गया कि ओजोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाए। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए। इसका कारण व समाधान एक अत्यंत जटिल एवं गंभीर विषय है। यह विषय अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों, नीति निर्धारकों व अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच बहस वा चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। इस विषय पर लगातार खोज जारी है।

ओजोन क्या है

ओजोन एक वायुमण्डलीय गैस है या आॅक्सीजन का एक प्रकार है। आॅक्सीजन (O) के दो परमाणुओं (Atoms) से जुड़ने से आॅक्सीजन गैस (O2) गैस बनती है, जिसे हम सांस लेते समय फेफड़ों के अंदर खींचते हैं। तीन आॅक्सीजन परमाणुओं के जुड़ने से ओजोन (O3) का एक अणु बनता है। इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे तीव्र गंध आती है।

ओजोन गैस ऊपर वायुमण्डल (Stratosphere) में अत्यंत पतली एवं पारदर्शी परत बनाते हैं। वायुमंडल में व्याप्त समस्त ओजोन का कुल 90 प्रतिशत भाग समताप मंडल में पाया जाता है। वायुमंडल में ओजोन का कुल प्रतिशत अन्य गैसों की तुलना में बहुत ही कम है। प्रत्येक दस लाख वायु अणुओं में दस से भी कम ओजोन अणु होते हैं।

ओजोन की कुछ मात्रा निचले वायुमंडल (क्षोभमण्डल) में भी पाई जाती है। रासायनिक रूप से समान होने पर भी दोनों स्थानों पर ओजोन की भूमिका महत्वपूर्ण है।

समताप मंडल में यह पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (Utraviolet Radiation)से बचाने का काम करती है।

क्षोभमण्डल में ओजोन हानिकारक संदूषक (Pollutants) के रूप में कार्य करती है और कभी-कभी प्रकाश रासायनिक धूम भी बनाती है।

क्षोभमण्डल में यह गैस बहुत कम मात्रा में भी मानव के फेफड़ों, तंतुओं तथा पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचा सकती है।

मानव जनित औद्योगिक प्रदूषण के फलस्वरूप क्षोभमण्डल में ओजोन की मात्रा बढ़ रही है और समताप मंडल में जहाॅं इसकी आवश्यकता है, ओजोन की मात्रा घट रही है।

ओजोन परत का महत्व


समताप मंडल में स्थित ओजोन परत समस्त भूमण्डल के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करती है। यह सूर्य की हानिकारक बैंगनी किरणों को ऊपरी वायुमण्डल में ही रोक लेती है, उन्हें पृथ्वी की सतह तक नहींं पहुंचने देती। पराबैंगनी विकिरण मनुष्य, जीव जंतुओं और वनस्पतियों के लिए अत्यंत हानिकारक है।

पराबैंगनी किरणों का दुष्प्रभाव

1. पराबैंगनी किरणों से त्वचा का कैंसर होने की संभावना रहती है। यह मनुष्य और पशुओं की डी.एन.ए. (D.N.A.) संरचना में बदलाव लाती है।
2. इनके कारण आंखो में मोतियाबिन्द की बीमारी उत्पन्न होती है और यदि समय से उपचार ना किया जाए तो मनुष्य अंधा भी हो सकता है।
3. पराबैंगनी किरणें मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता (Immune Efficiency) को कम करती हैं, जिसके कारण वह कई संक्रामक रोगों का शिकार हो सकता है।
4. पराबैंगनी किरणें पेड़-पौधों की प्रकाश संश्लेेषण क्रिया को प्रभावित करती हैं।

5. एक विशेष प्रकार की पराबैंगनी किरणें (UV-B) समुद्र में कई किलोमीटर तक प्रवेश कर समुद्री जीवन को क्षति पहुॅंचाती हैं।

6. यदि कोई गर्भवती महिला इनके संपर्क में आ जाए तो गर्भस्थ शिशु (Foetus) को अपूर्णीय क्षति हो सकती है।

समस्या -निराकरण में विश्व भर के देशों के प्रयास

ओजोन परत के संरक्षण हेतु 1985 में आस्ट्रिया की राजधानी में “वियना कन्वेंशन” संपन्न हुई, जो कि ओजोन क्षरण पदार्थों (Ozone Depletion Substances) पर नियंत्रण हेतु एक सार्थक प्रयास था।

ओजोन परत के क्षरण की समस्या पर विश्व भर का ध्यान आकर्षण हेतु संयुक्त राष्ट्र ने 16 दिसम्बर का दिन “विश्व ओजोन दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

16 दिसम्बर, 1987 को सयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिंता निवारण हेतु कनाडा के मांट्रियाल शहर में 33 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे “मांट्रियाल प्रोटोकाल” कहा जाता है। इस सम्मेलन में यह तय किया गया कि ओजोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाए। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए।

नीचे की तालिका में विभिन्न पदार्थों और उनके समाप्त करने हेतु समय सारिणी को दर्शाया गया है।

यौगिक (Compound)

ओजोन क्षरण क्षमता (Ozone Depleting Potantia)

पुर्ण फेज आउट (Complete Phase-out)

पूर्ण विकसित देशों द्वारा साल की जनवरी तक

विकासशील देशों द्वारा साल की जनवरी तक

ब्रोमो मीथेन

0.12

2002

N.A.

कार्बन टेट्रा क्लोराइड (C.T.C.)

1.1

1996

2010

क्लोरो फ्लोरो कार्बन्स (CFCs)

0.6-1.0

1996

2010

हैलोनस

3-10

1994

2010

हाइड्रो ब्रोमो फ्लोरो कार्बन्स (HBFC)

0.1-14

2005

2010

हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन्स (HCFC)

0.05

2010

2030

मिथाइल ब्रोमाइड

0.6

2005

2015

ट्राई क्लोरो ईथेन

0.1

1996

2015

ओजोन परत के छह के कारण मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

ओज़ोन परत के क्षरण की वज़ह से सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सकती हैं और पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं के लिये हानिकारक भी होती हैं। मानव शरीर में इन किरणों की वज़ह से त्वचा का कैंसर, श्वास रोग, अल्सर, मोतियाबिंद जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।

ओजोन परत का क्षरण क्या है और इसके प्रभाव?

ओजोन परत का क्षरण मानव स्वास्थ्य, जानवरों, पर्यावरण और समुद्री जीवन के लिए खतरनाक है। ओजोन परत का क्षरण ऊपरी वायुमंडल की ओजोन परत का पतला होना है। यह तब होता है जब वातावरण में क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु ओजोन के संपर्क में आते हैं और इसे नष्ट कर देते हैं। एक क्लोरीन परमाणु 100,000 ओजोन अणुओं को नष्ट कर सकता है।

ओजोन परत के क्षय नुकसान होने का क्या कारण है?

Solution : ओजोन के क्षय होने का मुख्य कारण मनुष्य द्वारा बनाये गये क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन यौगिक है, ये बहुत स्थायी होते हैं जो वायुमण्डल में पहुँच जाते हैं जहाँ ओजोन परत होती है, जिसे समताप मण्डल कहते हैं। यही सूर्य से आते पराबैंगनी किरणों को तोड़कर क्लोरीन बनाती हैं।

ओजोन स्तर के क्षरण का मुख्य कारण क्या है?

क्लोरोफ्लोरोकार्बन या सीएफसी ओजोन परत की कमी का मुख्य कारण हैं। ये साबुन, सॉल्वैंट्स, स्प्रे एरोसोल, रेफ्रिजरेटर, एयर-कंडीशनर, आदि द्वारा जारी किए जाते हैं। समताप मंडल में क्लोरोफ्लोरोकार्बन के अणु पराबैंगनी विकिरणों से टूट जाते हैं और क्लोरीन परमाणुओं को छोड़ते हैं।