पिछड़े वर्गों से आप क्या समझते हैं पिछड़े वर्गों के आधारों पर चर्चा करें? - pichhade vargon se aap kya samajhate hain pichhade vargon ke aadhaaron par charcha karen?

ओबीसी वर्गीकरण का औचित्य एवं प्रभाव

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ओबीसी की केंद्रीय सूची के वर्गीकरण के लिये आयोग बनाने के फैसले को मंज़ूरी दी है। यानी इस वर्ग में भी पिछड़ेपन की सीमा आधार पर आरक्षण दिया जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो एक तरह से यह कोटे के अंदर कोटा होगा। सरकार के राजनैतिक उद्देश्यों से परे हटकर विचार करें तो सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। इस लेख में हम ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण, सरकार के इस प्रयास के निहितार्थों एवं संभावित प्रभावों तथा इसकी ज़रूरतों के बारे में चर्चा करेंगे।

ओबीसी आरक्षण की पृष्ठभूमि

  • मंडल आयोग का गठन वर्ष 1979 में "सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान” के उद्देश्य से किया गया था। इस आयोग का नेतृत्व भारतीय सांसद बी.पी. मंडल द्वारा किया गया था।
  • जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिये आरक्षण एवं कोटा निर्धारण की व्यवस्था की गई। लेकिन सवाल यह था कि किन समूहों को यह लाभ दिया जाए अर्थात् समूहों के पिछड़ेपन का निर्धारण कैसे हो।
  • गौरतलब है कि समूहों के पिछड़ेपन का निर्धारण के लिये मंडल आयोग द्वारा ग्यारह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक संकेतकों का इस्तेमाल किया गया। वर्ष 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिये सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई।
  • मंडल आयोग ने यह भी सिफारिश की कि केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन चलने वाली वैज्ञानिक, तकनीकी तथा प्रोफेशनल शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिये ओबीसी वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिये 27% आरक्षण लागू किया जाए।
  • वर्ष 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा लागू किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया। हालाँकि कई जगह व्यापक विरोध भी देखने को मिला, लेकिन इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी।
  • विदित हो कि इंद्रा साहनी मामले में ही सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी थी कि पिछड़े वर्गों को पिछड़ा या अति-पिछड़ा के रूप में श्रेणीबद्ध करने में कोई संवैधानिक या कानूनी बाधा नहीं है। अतः राज्य सरकारें ऐसा करना चाहें तो कर सकती हैं।
  • तब से भारतीय राजनीति में आरक्षण इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है कि इसके जिक्र मात्र से सरकारे बन और बिगड़ जाती हैं।

क्या है ओबीसी में वर्गीकरण का मामला

  • भारतीय सामाजिक व्यवस्था कुछ ऐसी हैं कि ओबीसी में आने वाली कुछ जातियाँ ओबीसी में ही शामिल कुछ अन्य जातियों से सामाजिक और आर्थिक दोनों ही रूपों में बेहतर स्थिति में हैं।
  • दरअसल, मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था तो कर दी गई, लेकिन ओबीसी में ही अत्याधिक कमज़ोर वर्ग के लिये कुछ विशेष नहीं किया गया। यही कारण है कि ओबीसी आरक्षण का लाभ भी ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाली कुछ ताकतवर जातियों के हाथों में ही सिमटकर रह गया है।
  • ऐसे में ओबीसी वर्ग के अन्दर ही वर्गीकरण की माँग लगातार की जाती रही है और अब तक नौ राज्यों-आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुडुचेरी, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने पहले ही ओबीसी वर्गीकरण को लागू कर दिया है।
  • ओबीसी आरक्षण से संबंधित केन्द्रीय सूची में इस प्रकार के वर्गीकरण की व्यवस्था नहीं की गई है।
  • हालाँकि ‘पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्ज़ा देने का फैसला कर चुकी सरकार ने अब ओबीसी कोटे के अंदर कोटे की व्यवस्था कर उन पिछड़ी जातियों को राहत देने की तैयारी की है, जिन्हें आरक्षण का समुचित लाभ नहीं मिल पाता है।

केन्द्रीय ओबीसी सूची वर्गीकरण आयोग का कार्य

  • इस आयोग का नाम 'अन्य पिछड़ा वर्ग उप-वर्गीकरण जाँच आयोग' होगा। यह ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल जातियों को आरक्षण के लाभ के असमान वितरण की जाँच करेगा। साथ ही असमानता दूर करने के तौर-तरीके और प्रक्रिया भी तय करेगा।
  • यह ओबीसी के भीतर उप-वर्गीकरण के लिये वैज्ञानिक और उचित दृष्टिकोण पर आधारित व्यवस्थात्मक मानदंडों के निर्माण का कार्य भी करेगा। यह आयोग अध्यक्ष की नियुक्ति की तारीख से 12 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
  • दरअसल, पिछड़ा वर्ग आयोग ने तीन वर्गों में वर्गीकरण का सुझाव दिया था- पिछड़ा वर्ग, अधिक पिछड़ा वर्ग और अति-पिछड़ा वर्ग। यह आयोग उन जातियों की संख्या और पिछड़ेपन को ध्यान में रखकर नई सूची तैयार करेगा।

आगे की राह

  • यदि सच में हम हाशिए पर ठेल दिये गए समूहों के जीवन में आरक्षण के ज़रिये महत्त्वपूर्ण बदलाव लाना चाहते हैं, तो हमारे पास केवल दो विकल्प हैं-या तो सरकार को सरकारी नौकरियों और विश्वविद्यालयों में सीटों की उपलब्धता में व्यापक रूप से वृद्धि करनी चाहिये या फिर इन लाभों को प्राप्त करने योग्य आबादी का आकार कम करना चाहिये।
  • इन दो विकल्पों में से सबसे व्यवहार्य विकल्प दूसरा है। लेकिन इसके लिये हमें ज़रूरत है जाति संबंधित मानद आँकड़ों की।
  • जातिगत जनगणना के संबंध में हमारे पास आँकड़ों का अभाव है, अब जबकि वर्ष 2021 की जनगणना की तैयारियाँ चल रही हैं तो जातिगत के आँकड़ों को इकट्ठा करने के लिये अब एक विशेषज्ञ समूह बनाने का समय है। बिना इन आँकड़ों के यह आयोग अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में उतना सफल नहीं रहेगा।

निष्कर्ष

  • इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि भारत की जातीय और सामाजिक व्यवस्था काफी जटिल है। ओबीसी वर्ग के अंतर्गत ही कुछ ऐसी जातियाँ हैं जो इसी वर्ग से संबंध रखने वाली अन्य जातियों के उत्पीडन में शामिल हैं। ऐसे में ओबीसी आरक्षण का लाभ कुछ सीमित समूहों तक ही सीमित हो जाना लाज़िमी है।
  • ऐसे में सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है, क्योंकि ओबीसी आरक्षण कोटे में एक कोटा बनाकर इस आरक्षण वर्ग में लाभ से वंचित अन्य जातियों को राहत दी जा सकती है।
  • दरअसल, मंडल आयोग की सिफारिशों का उद्देश्य आरक्षण के ज़रिये सामाजिक न्याय के लक्ष्य को पूरा करना था, लेकिन पिछले कुछ समय से इस व्यवस्था को इस रूप में देखा जाने लगा है जैसे यह सरकारी नौकरियाँ हासिल करने का आसान ज़रिया हो।
  • यही कारण है कि वोट बैंक के लालच में कई राज्यों ने ओबीसी वर्ग के अन्दर वर्गीकरण करते हुए 50 प्रतिशत की तय सीमा से आगे जाकर भी आरक्षण की व्यवस्था की, जिसे सुप्रीम कोर्ट को खारिज़ करना पड़ा। इस आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वर्गीकरण की एक केन्द्रीय सूची मिल जाएगी, जिससे आरक्षण के नाम पर आए दिन होने वाले दंगा-फसादों से मुक्ति मिल सकती है।