फ्रिज हमारी रसोई का एक अभिन्न अंग है। चीजों को ठंडा करना हो या फिर उन्हें लंबे समय तक संभाल कर रखना, इन सभी कामों में फ्रिज हमारी मदद करता है। लेकिन फ्रीज के फ्रीजर में अकसर हमें एक समस्या का सामना करना पड़ता है। वह है फ्रीजर में बर्फ का पहाड़ जमना। एक बार फ्रीजर में बर्फ का पहाड़ जम जाए तो फिर वह कोई काम नहीं आता और ये बर्फ
पिघलने तक आप इसमें कोई सामन भी नहीं कर सकती हैं। और तो और इसमें पहले से रखी हुई चीजों को बाहर निकालना भी मुश्किल हो जाता है। अगर आपके फ्रिज का थर्मोस्टैट सही तापमान पर नहीं है तो इससे फ्रीजर
में अतिरिक्त बर्फ बनने लगती है। इसलिए आप हर 15 दिन के भीतर थर्मोस्टैट का तापमान जांच लें। और अगर सही नहीं है तो इसे सही करें। फ्रिज को सही जगह पर रखें – अगर आपकी रसोई में एक्सॉस्ट फैन नहीं है या हवा निकासी का पर्याप्त इंतजाम नहीं है तो फ्रिज को रसोई में न रखें। फ्रिज को कभी भी दीवार से छिपका कर न रखें। दीवार से छिपकने के कारण फ्रिज का कंप्रेसर जल्दी ठंडा नहीं होता। फ्रिज को अतिरिक्त न भरे – कभी भी अपने फ्रिज में उसकी क्षमता से
अधिक सामान नहीं रखना चाहिए। हम जाने-अनजाने में फ्रिज को भरते ही जाते हैं। फ्रिज को उसकी क्षमता से अधिक भरने से उसके खराब होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। फ्रिज के दरवाजे को हमेशा सही से बंद करें – जल्दबाजी में या काम की अधिक व्यस्तता के चलते हम फ्रिज से सामान निकालने के बाद उसे सही ढंग से बंद नहीं करते हैं। कई बार हमें लगता है कि फ्रीक बंद हो गया है लेकिन वह खुला ही छूट जाता है। ऐसा करने से आपको बचना चाहिए। फ्रिजर में आपको जैसे ही
बर्फ जमते हुए दिखाई दें उसे तुरंत हटाने की कोशिश करें। लेकिन ये ध्यान रखें कि आप जिस भी वस्तु के सहारे उस बर्फ को हटा रही हैं वह धातु का नहीं होना चाहिए, धातु की चीजों से बर्फ निकालने से फ्रिज को नुकसान हो सकता है या अंदर खरोंच आ सकती हैं। पहला कदम – फ्रिज में बहुत ज्यादा बर्फ है इसलिए सबसे पहले फ्रिज को अनप्लग कर दें। और बर्फ के थोड़े पिघलने का इंतजार करें। इसके लिए आप थोड़े से गरम पानी का छिड़काव भी कर सकती हैं। दूसरा कदम – आपने फ्रीज को बंद किया है
इसलिए बर्फ पिघलने लगेगी और आस-पास पानी होने लगेगा। इसलिए फ्रिज के पास फ़ोम या फिर पुराने कपड़े लगा दें। ऐसा नहीं करने से घर में पानी-पानी हो जाएगा जिसको साफ करते-करते आपकी पीठ में दर्द होने लगेगा। तीसरा कदम – इस पानी से दुर्गंध आने की संभावना काफी अधिक है इसलिए हाथ में दस्ताने पहन लें और मास्क लगा लें। चौथा कदम – इसके बाद फ्रीजर से बर्फ निकालें और उसे अंदर से अच्छे से पोंछ लें। आखिरी स्टेप – अब जब फ्रिजर पूरी तरह से खाली हो गया है तो इसे फिर से चालू करें। लेकिन अभी इसमें कोई भी वस्तु न रखें। 30 मिनट बाद आप अपना समान रख सकती हैं। कुछ जरूरी सावधानियाँबर्फ को हमेशा आराम से ही निकाले और ध्यान दें कोई ऐसी जगह से खींच कर या तोड़ कर बर्फ नहीं निकाले जहां पर कोई वायर हो। फ्रिज से निकलता हुआ पानी विभिन्न जगह जा सकता है। इसलिए सावधानी जरूर रखें। फ्रिज में बर्फ को पिघालने के लिए एक बटन दिया हुआ होता है, उसे नियमित तौर पर इस्तेमाल करने से फ्रीजर में इतना बर्फ इकट्ठा नहीं होगा। Reader Interactions
[Hindi PDF, 141 kB] सवाल: उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में ही बर्फ का जमावड़ा क्यों होता है? जवाब: वैसे बर्फ का जमावड़ा उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में सबसे ज़्यादा तो है लेकिन वर्तमान में
उष्णकटिबन्धीय हिमालय पर्वत माला और भूमध्य रेखा पर स्थित तंज़ानिया की किलिमंजारो पर्वत पर भी बर्फ का जमावड़ा दिखता है। यानी कि अधिकतर उच्च अक्षांश और पहाड़-पठार की ऊँचाइयों पर ही बर्फ का जमावड़ा दिखता है। यह इसलिए कि ऐसी जगहों पर अन्य जगहों की तुलना में ठण्ड ज़्यादा होती है और सालभर का औसत तापमान इतना कम होता है कि जो बर्फ गिरती है वह पूरी तरह से पिघल नहीं पाती। इतना ही नहीं, साल में कुछ महीनों के लिए ध्रुवों पर सूरज उगता ही नहीं है - चौबीसों घण्टे अँधेरा रहता है। पृथ्वी का एक गोलार्ध जब सूरज से विपरीत झुका होता है, तो कुछ समय के लिए उस गोलार्ध के ध्रुव पर सूरज की किरणें बिलकुल नहीं पड़ती हैं (चित्र-2)। यह पृथ्वी के अक्ष के झुकाव के कारण होता है और ऐसे में उस ध्रुव पर सर्दी होती है। इन महीनों में बर्फ गिरती-जमती जाती है। जब यही ध्रुव साल के कुछ महीनों के लिए सूरज की तरफ झुका रहता है तब यहाँ लम्बे समय के लिए सूर्यास्त नहीं होता। ऐसे में वहाँ गर्मी का मौसम होता है और बर्फ पिघलती है।जब पृथ्वी का औसत तापमान इतना गिरता है कि सर्दियों में काफी ज़्यादा बर्फबारी होती है जो गर्मियों में पूरी तरह पिघलती नहीं है, तो अगली सर्दी में इस न पिघले बर्फ के कारण वहाँ का तापमान पहले से कम हो जाता है। यह इसलिए कि सफेद रंग के कारण सूरज की किरणें काफी हद तक बर्फ से परावर्तित हो जाती हैं। इसे ऐल्बीडो इफेक्ट कहते हैं (समुद्र का पानी सिर्फ 6 प्रतिशत रोशनी परावर्तित करता है और बर्फ 50 से 70 प्रतिशत)। तो इस इफेक्ट के कारण अगली सर्दी में गिरने वाली बर्फ इस बर्फ के ऊपर जमती जाती है। ऐसे साल-दर-साल बर्फ का जमावड़ा बढ़ता है और इसके बढ़ते क्षेत्रफल के साथ, ऐल्बीडो इफेक्ट की वजह से परावर्तन ज़्यादा होता है, और इस तरह बर्फ का जमावड़ा बढ़ता जाता है। यह एक पोज़िटिव फीडबैक चक्र का बहुत ही स्पष्ट उदाहरण है। ऊँचाइयों पर ज़्यादा ठण्ड क्यों? सतह से जितना ऊँचा जाते हैं, हवा का दबाव कम होता जाता है, हवा कम घनी होती जाती है। और जितनी विरल हवा, उसमें उतना कम पदार्थ। गर्मी की मात्रा, पदार्थ की मात्रा से जुड़ी है। ऊँचाइयों पर हवा की इकाई में कम पदार्थ और कम गर्मी होती है। जब कम गर्मी के कारण बर्फ गिरती-जमती है तो उसका जमावड़ा होने लगता है, कुछ ऐसे ही जैसे ध्रुवों पर होता है। इसी कारण हिमालय और किलिमंजारो पर, जो बहुत ही ऊँची पर्वत ाृंखलाएँ हैं, बर्फ का जमावड़ा पाया जाता है। तो हमने देखा कि बर्फ तो किसी भी अक्षांश पर जम सकती है। और पृथ्वी पर बर्फ का जमावड़ा सालभर या कई सालों के अर्से में कहाँ-कहाँ पाएँगे, इसका हमें पता चलता है स्नो-लाइन की अवधारणा से। जलवायु स्नो-लाइन स्नो-लाइन वह काल्पनिक रेखा है जिससे हम टिकाऊ बर्फ (permanent snow cover) की सीमा को जान सकते हैं। स्नो-लाइन मानचित्रों पर उन जगहों को जोड़ते हुए एक लकीर के रूप में बनाई जाती है जहाँ सालभर में जितनी बर्फ गिरती है, उतनी ही पिघलती या वाष्पित होती है। तो धरती हो या समुद्र, बर्फ के जमावड़े का आखिरी छोर है स्नो-लाइन। ऐसा भी कह सकते हैं कि किसी जगह पर यह रेखा वो ऊँचाई है जिससे अधिक ऊँचाई पर सालभर थोड़ा-बहुत बर्फ ज़मीन पर रहता ही है।
तालिका-1: विभिन्न अक्षांशों पर स्नो-लाइन की ऊँचाई। आम तौर पर अक्षांश बढ़ने के साथ-साथ स्नो-लाइन कम ऊँचाई पर पाई जाती है। परन्तु कहीं-कहीं कम अक्षांश (जैसे माउन्ट कैन्या) पर स्नो-लाइन अपेक्षाकृत कम ऊँचाई पर मिल जाती है क्योंकि वहाँ पर बारिश ज़्यादा होती है यानी मौसम अधिक गीला रहता है। स्नो-लाइन हर अक्षांश पर बन सकती है। भूमध्य रेखा पर स्नो-लाइन काफी ऊँचाई पर होगी और ध्रुवों पर कम ऊँचाइयों पर। लेकिन किसी एक जगह पर स्नो-लाइन ऊँचाई ही नहीं, कई अन्य कारकों से प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, ध्रुवों पर - जहाँ तापमान आम तौर पर कम रहता है - स्नो-लाइन कम ऊँचाइयों पर पाई जाती है और भूमध्य रेखा पर ज़्यादा ऊँचाई पर (तालिका-1)। पहाड़ियों पर जहाँ दोपहर में सूरज की किरणें पड़ती हैं और जहाँ पानी कम गिरता है, वहाँ स्नो-लाईन अधिक ऊँचाइयों पर होती है। व्यापक स्तर और हज़ारों-लाखों सालों के समय-अन्तराल पर यह लाइन तापमान में बदलाव के साथ जुड़े पृथ्वी के घटते-बढ़ते बर्फ के आवरणों के बारे में हमें बताती है (जैसे चित्र-3 में दिया गया है)।आइस-कोर से पृथ्वी की जलवायु का इतिहास उथले आइस-कोर (100-300 मीटर) से हमें पिछले कुछ सैकड़ों सालों कीजलवायु का पता चलता है। सबसे लम्बे आइस-कोर 3 कि.मी. की गहराई से लिए गए हैं। ऐसे आइस-कोर को ड्रिल करने के लिए एक साल से भी अधिक समय लगता है। आइस-कोर की रासायनिक जाँच भी काफी जटिल होती है क्योंकि आम तौर पर उसमें मौजूद पदार्थ काफी कम मात्रा में पाए जाते हैं।
पृथ्वी के इतिहास पर हुए शोध से हमें यह पता है कि हमारा यह ग्रह पाँच हिमयुगों से गुज़र चुका है। आज भी हम एक हिमयुग से ही गुज़र रहे हैं जो कुछ 25 लाख साल पहले शु डिग्री हुआ था। किसी भी हिमयुग में अधिक व कम ठण्डक के काल बारी-बारी से आते-जाते हैं। ये हिमाच्छादन व अन्तर-हिमानी काल (glaciations and inter-glacial periods) कहलाते हैं। इस हिमयुग में भी शु डिग्री के 15 लाख साल में हर 41,000 साल मौसम काफी हद तक बदलता था। हिमानी काल में बर्फ की परतें बढ़ती-फैलती थीं फिर 41,000 साल बाद पिघलती-घटती थीं। लेकिन पिछले 10 लाख सालों से मौसम इसी चक्रीय तरीके से ज़्यादा अवधि पश्चात् - हर एक लाख साल में बदलता रहा है। यानी कि हर लाख साल बर्फ की परतें बढ़ती हैं, फिर घटती हैं। ऐसा है कि हर 41,000 साल पृथ्वी के अक्ष का झुकाव 21.5 डिग्री से 24.5 डिग्री हो जाता है और अगले 41,000 सालों में वापिस 21.5 डिग्री पर आ जाता है। हर 1,00,000 साल पृथ्वी का सूरज के चक्कर काटने वाला कक्ष 5% कम या ज़्यादा अण्डाकार हो जाता है। तो ऐसा लगता है कि तापमान में ये परिवर्तन खगोलीय चक्रों पर निर्भर हैं। पिछले कुछ 12,000 सालों से हम एक अन्तर-हिमानी काल से
गुज़र रहे हैं। यह एक प्रमुख कारण है पृथ्वी के तापमान के बढ़ने और ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने-घटने का। शोध से हमें यह भी पता है कि मनुष्यों द्वारा प्रदूषण के कारण हो रहे ग्लोबल वॉर्मिंग का भी ध्रुवों की बर्फ पिघलने में योगदान है। इस जवाब को विनता विश्वनाथन ने तैयार किया है। विनता विश्वनाथन: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं। इस बार का सवाल सवाल: दर्द निवारक दवाएँ कैसे काम करती हैं? इस सवाल के बारे में आप क्या सोचते हैं, आपका क्या अनुमान है, क्या होता होगा? इस सवाल को लेकर आप जो कुछ भी सोचते हैं, सही-गलत की परवाह किए बिना हमारे पास लिखकर भेज दीजिए। पहाड़ों में बर्फ क्यों गिरती है?वातावरण में मौजूद ओजोन की गर्म परतों के बीच से जब बर्फ के कण गुजरते हैं तो यह बर्फ पिघल जाती है और बारिश के पानी में बदल जाती है, जबकि ऊंचे पहाड़ों में तापमान पहले से ही शून्य डिग्री से काफी कम होता है, इसलिए वहां पर बर्फबारी होती है।
पहाड़ों पर बर्फ कैसे गिरती है?– बर्फबारी होने वाले बादलों को निंबोस्ट्रैटस बादल कहते हैं और ये बादल पानी से भरे होंगे और अगर ये ठंडे होंगे तो पानी की जगह इन बादलों से बर्फ गिरेगी. ये बादल पहाड़ों पर ही होते हैं. साथ ही समुद्री तल से ज्यादा ऊंचाई होने की वजह से और काफी कम तापमान होने की वजह से यह बर्फबारी के रूप में बर्फ गिरती है.
पहाड़ों पर मिलने वाली बर्फ को क्या कहते हैं?पहाड़ की ऊंचाई से बर्फ पिघलने के पिंड को ग्लेशियर कहा जाता है। हिमनदियों में गति होती है, इसकी खोज सर्वप्रथम ह्याजी नामक विद्वान ने किया था। हिमालयी ग्लेशियर्स सिंधु, ब्रह्मपुत्र एवं गंगा जैसी नदियों के प्रमुख जलस्रोत हैं।
पहाड़ों में बर्फ क्यों नहीं पिघलती?चूंकि पहाड़ पर बहुत अधिक मात्रा में बर्फ मौजूद है। इसलिए द्रव्यमान बहुत अधिक है। चूंकि पहाड़ों में मौजूद द्रव्यमान बहुत बड़ा है, इसलिए संलयन की संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा बहुत बड़ी है और ऊष्मा की इस भारी मात्रा को एक बार में सूर्य द्वारा वितरित नहीं किया जा सकता है। इसलिए बर्फ एक बार में नही पिघलती है।
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