पंजाबी साहित्य के संस्थापक कौन थे? - panjaabee saahity ke sansthaapak kaun the?

लुधियाना जिले के गांव आंडलू में रहने वाले कुलवंत सिंह के खूबसूरत से मकान के आगे एक अटपटी-सी बैठकी है जो इस आधुनिक मकान की बनावट से बिल्कुल मेल नहीं खाती. मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि यह बैठकी ठीक वैसी ही है जैसी 1947 से पहले इस मकान में रहने वाला मुस्लिम परिवार छोड़ गया था. सिंह कहते हैं, “मैंने यह इसलिए किया की कभी  अगर लहंदे पंजाब (पाकिस्तानी पंजाब) से इस मकान के पुराने मालिकों की नई पीढ़ी यह मकान देखने आए तो उसे अपने बुजुर्गों की कोई तो निशानी मिले.” वह आगे कहते हैं, “खुद मेरा परिवार 1947 में लायलपुर (फैसलाबाद) से उजड़ कर यहां आया था. मुझे अपना पुराना घर देखने का मौका नहीं मिला, पर किसी और को तो नसीब हो.”

कुलवंत सिंह के मोहल्ले का गुरुद्वारा, 1947 से पहले मस्जिद की जमीन पर बना है लेकिन आज भी मस्जिद गुरुद्वारा का हिस्सा बनी हुई है. इस मस्जिद की देखरेख खुद कुलवंत करते हैं. उनके मुताबिक, “मैं इस गुरुद्वारे का कई सालों से अध्यक्ष हूं, जितना ख्याल मैं गुरुद्वारे का रखता हूं उतना ही इस मस्जिद का भी. पिछले साल विदेश में रहने वाले मेरे भतीजे ने धार्मिक कार्यों के लिए आठ लाख रुपए भेजे थे, मैंने चार लाख रुपए गुरुद्वारा साहिब पर और चार लाख रुपए मस्जिद पर खर्च कर दिए. आखिर हैं तो दोनों एक ही सच्चे रब्ब के घर.”  

लुधियाना जिले के ही हलवारा गांव के जगजीत सिंह ने 2009 में बनाई अपनी शानदार कोठी के सामने 1947 से पहले मौजूद मुस्लिम राजपूत की हवेली को वैसे का वैसा ही रखा है. वह कहते हैं, “मुझे मेरे बहुत से रिश्तेदारों ने कहा कि इतनी खूबसूरत कोठी के आगे पुरानी हवेली अच्छी नहीं लगती इसको तुड़वा दो. लेकिन मैं इसे नहीं तोडूंगा. बेशक मेरा परिवार पाकिस्तान से उजड़ कर नहीं आया, लेकिन अपने पुराने साझे पंजाब की तस्वीर मेरे मन में बसी हुई है. मैं पंजाबियत से मोहब्बत करने वाला इंसान हूं. मैं मानता हूं कि यह हवेली मुझे विरासत में मिली है. कैसे कोई आदमी अपनी विरासत को अपने से दूर कर दे?”

दोनों पंजाबों में ऐसी बहुत सी मिसालें हैं जो वहां बसने वाले पंजाबियों के साझेपन को दर्शाती हैं.

पंजाब सीमावर्ती राज्य है. पाकिस्तान के साथ भारत के खराब संबंधों का सीधा असर पंजाब पर पड़ता है. यहां के सरहदी इलाकों के लोगों को बार-बार उजड़ना पड़ता है. फिर भी पंजाब में पाकिस्तान के प्रति शत्रुता का वह भाव नहीं मिलता जैसा देश के उन हिस्सों में देखा जाता है जहां जंग दूरदर्शन और आकाशवाणी की खबर से ज्यादा कुछ नहीं है. पिछले सालों में जब-जब पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते खराब हुए (पठानकोट हमला, दीनानगर आतंकवादी हमला और पुलवामा जैसी घटनाएं) पंजाब से उठने वाली आवाज पूरे मुल्क से अलग थी. और जब भी भारतीय और पाकिस्तानी नेताओं ने दोस्ती की बात की, तो पंजाबियों ने इसका पुरजोर स्वागत किया. कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार हो या प्रकाश सिंह बादल की, पाकिस्तान से मेहमान सरकारी कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. और जब परवेज मुशर्रफ के सैन्य शासन में नवाज़ शरीफ को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था और उन्हें सजा होने वाली थी, तब भारतीय पंजाब में स्थित नवाज़ शरीफ के पुश्तैनी गांव के गुरुद्वारे में उसकी लंबी उम्र के लिए अरदासें की गई थीं.

जासं, अमृतसर: देश की आजादी के लिए साहित्य की रचना करने के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं के लेखकों को एक संयुक्त प्लेटफार्म पर लाने का प्रयास करने वाले साहित्यकारों में डा. भाई वीर सिंह का अहम योगदान रहा है। डा. भाई वीर सिंह आधुनिक पंजाबी कविता के संस्थापक थे। उन्होंने पंजाबी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में भी साहित्य की रचना की। भाई वीर ने साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया है। यह आज पंजाबी नाटक, पंजाबी नावल और पंजाबी कहानी के नए स्वरूप में हमारे समक्ष है।

भाई वीर सिंह ने सांस्कृतिक और प्राकृति के बेहद नजदीक रहते हुए साहित्य की रचना करके नाम चमकाया है। उन्होंने महान रचयिता रवींद्र नाथ टैगोर जैसे देश के प्रमुख साहित्यकारों के साथ बैठकें की और उन दिनों के भारतीय लोगों की जीवनशैली पर आधारित वार्तालाप करके साहित्य में उन्हीं समस्याओं को उजागर किया था। भाई वीर सिंह प्राकृति के बहुत नजदीक थे। तब शहर में लारेंस रोड स्थित उनकी रिहायश पर अनेकों ही मौसमी फूल महकते थे, जो आज भी खुशबू बिखेर रहे हैं। उसी समय से उनके रिहायशी बगीचे से हर रोज एक ताजे फूलों का गुलदस्ता हरिमंदिर साहिब में चढ़ाया जाता था, वो परंपरा आज भी उसी तरह से चल रही है। पंजाबी साहित्य में सबसे पहला बड़ा सम्मान मिला था

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पांच दिसंबर 1872 को जन्मे डा. भाई वीर सिंह शहर के पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें पंजाबी साहित्य में भारतीय साहित्य अकादमी से सबसे पहला बड़ा सम्मान पुरस्कार हासिल हुआ था जबकि भाषा विभाग पंजाब से सबसे पहले शिरोमणि पुरस्कार साल 1952 में उन्हें ही देकर उसका आगाज किया गया था। व्यक्तिगत रूप से वह संगीत और कला प्रेमी थे। पंजाब विश्वविद्यालय ने उनको डीलिट की उपाधि देकर सम्मानित किया था। उनकी रचनाएं भाषा विभाग पंजाब और साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने देश के प्रमुख पुरस्कार से साल 1956 में साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया। कई उपन्यास लिखे, पीयू ने डाक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा था

साहित्यकार व कहानीकार दीप दविदर सिंह ने डा. भाई वीर सिंह के विषय में बताया कि साल 1899 में अमृतसर में उन्होंने एक साप्ताहिक अखबार खालसा समाचार निकाला था। यह आज भी प्रकाशित हो रहा है। उनके उपन्यासों में 17वीं शताब्दी के गुरु गोबिद सिंह के जीवन पर आधारित उपन्यास कलगीधर चमत्कार व सिख धर्म के संस्थापक की जीवन कथा गुरु नानक चमत्कार, दो संस्करण शामिल हैं। उनके अन्य उपन्यासों में सुंदरी, बिजय सिंह और बाबा नौध सिंह प्रमुख हैं। उनकी कविता द विजिल (चौकसी) साल 1957 को उनके मरणोपरांत प्रकाशित हुई। पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) चंडीगढ़ ने उनके साहित्यिक योगदान को देखते हुए उन्हे डाक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित भी किया। जनवरी 2008 में वारिस शाह फाउंडेशन ने उनके जीवन काल की रचनाओं का संकलन प्रकाशित किया है।

पंजाबी साहित्य का संस्थापक कौन था?

डा. भाई वीर सिंह आधुनिक पंजाबी कविता के संस्थापक थे। उन्होंने पंजाबी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में भी साहित्य की रचना की। भाई वीर ने साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया है।

पंजाबी साहित्य का प्रथम इतिहास ग्रंथ कौन सा है?

फरीद को पंजाबी का आदि कवि कहा जाता है ; किंतु यदि इस बात को स्वीकार किया जाय कि जिन फरीद की बाणी "आदि ग्रंथ" में संगृहीत है वे फरीद सानी ही थे तो कहना पड़ेगा कि 16वीं शती से पहले का पंजाबी साहित्य उपलब्ध नहीं है। इस दृष्टि से गुरु नानक को ही पंजाबी का आदि कवि मानना होगा। "आदि ग्रंथ" पंजाबी का आदि ग्रंथ है।

पंजाबी नाटक का जन्मदाता कौन है?

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पंजाबी भाषा का इतिहास कितना पुराना है?

पंजाबी भाषा का इतिहास 15 वीं शताब्दी में, सिख धर्म की उत्पत्ति पंजाब और पंजाबी नामक क्षेत्र में हुई और यह सिखों की प्रमुख भाषा बन गई। पंजाबी उन भाषाओं में से एक है, जिसका इस्तेमाल अतीत में सिख धर्मग्रंथों को लिखने के लिए किया जाता था। गुरुमुखी लिपि में पंजाबी भाषा गुरु ग्रंथ साहिब में स्पष्ट है।