प्रतिनिधि सरकार की प्रमुख विशेषता है - pratinidhi sarakaar kee pramukh visheshata hai

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सहकारिता के सिद्धान्त

1. पहला सिद्धान्त - स्वैच्छिक तथा खुली सदस्यता

सहकारी सोसायटी ऐसे व्यक्तियों के लिए मुक्त स्वैच्छिक संगठन है, जो उनकी सेवाओं का उपयोग करने में समर्थ है और सदस्यता के उत्तरदायि‍त्व को बिना किसी लिंग, सामाजिक, जातीय, राजनैतिक तथा धार्मिक भेदभाव के रजामंदी से स्वीकार करते है।

2. दूसरा सिद्धान्त - सदस्यों का लोकतांत्रिक नियंत्रण

सहकारी सोसायटी अपने उन सदस्यों द्वारा नियंत्रित लोकतांत्रिक संगठन है, जो उनकी नीतियों के निर्धारण और विनिश्चयों के संधारण में सक्रियता से भाग लेते हैं। प्रतिनिधियों के रूप में निर्वाचित पुरूष तथा स्त्री सदस्यों के प्रति जवाबदार है। प्राथमिक सहकारी सोसाइटियों के सदस्यों को (एक सदस्य एक मत का) समान मताधिकार प्राप्त है तथा सहकारी सोसायटी अन्य स्तरों पर भी लोकतांत्रिक रीति से संगठित होती है।

3. तीसरा सिद्धांत - सदस्यों की आर्थिक भागीदारी

सदस्य अपनी सहकारी सोसाइटियों की पूंजी में अभिदाय करते हैं तथा उसका लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रण करते हैं। उक्त पूंजी का कम से कम एक भाग सहकारी सोसायटी की सार्वजनिक सम्पत्ति होती है। सदस्य प्रायः सदस्यता की शर्त के रूप में अभिदत्त पूंजी पर सीमित प्रतिकार यदि कोई हो, प्राप्त करते हे। सदस्यगण निम्नलिखित मे से किन्हीं प्रयोजनों के लिए अधिशेष आवंटित करते हैं। संभवतः आरक्षित स्थापित उनकी सहकारी सोसाइटी का विकास करने के लिए जिसका कुछ भाग अविभाज्य होगा, सदस्यों को सहकारी सोसाइटियों में उनके संव्यवहारों अनुपात में लाभ पहुचना तथा सदस्यों द्वारा अनुमोदित अन्य क्रियाकलापों का समर्थन करना।

4. चौथा सिद्धांत - स्वायत्ता तथा स्वाधीनता

सहकारी सोसाइटी अपने सदस्यों द्वारा नियंत्रित स्वशासी आत्मनिर्भर संगठन है। यदि वे सरकार सहित दूसरे संगठनों से करार करते हैं, या बाह्य स्त्रोतों से पूजी जुटाते हैं तो वे ऐसा अपने सदस्यों द्वारा लोकतांत्रिक नियंत्रण सुनिश्चित करने और अपनी सहकारी सोसाइटियों की स्वायत्ता बनाये रखने के लिए करते है।

5. पाचवां सिद्धांत - शिक्षा प्रशिक्षण तथा जानकारी

सहकारी सोसाइटी अपने सदस्यों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, प्रबधकों और कर्मचारियों के लिए शिक्षा तथा प्रशिक्षण उपलब्ध कराती है, जिससे वे अपनी सहकारी सोसाइटियों के विकास में प्रभावी योगदान कर सके। वे जन सामान्य विशिष्टतः युवा वर्ग एंव नेतृत्व को सहकारिता की प्रवृति तथा लाभ की जानकारी देवे।

6. छटवां सिद्धांत - सहकारी सोसाइटियों में सहयोग

सहकारी सोसाइटी स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों के माध्यम से कार्य करते हुए अपने सदस्यों की प्रभावी सेवा करती है ओर सहकारी आन्दोलन को सुदृढ़ बनाती है।

7. सातवां सिद्धांत - समुदाय के लिए सरोकार

सहकारी सोसाइटी अपने सदस्यों द्वारा अनुमोदित नीतियों के माध्यम से अपने समुदायों के स्थिर विकास के लिए कार्य करती है।

             सन्दर्भ 

  • परिचय,
  • प्रजातंत्र के पक्ष में तर्क,
  • प्रजातंत्र के प्रकार,
  • प्रतिनिधि शासन का सिद्धांत,
  • सरकार के कार्य,
  • सच्चे प्रजातंत्र के लिए सुझाव,
  • आलोचनाएं,

परिचय – मिल ने प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था पर अपने विचार अपनी पुस्तक प्रतिनिधि शासन (representative government) में व्यक्त किया है। मिल ने शासन की उस प्रणाली को ही श्रेष्ठ माना है, जो नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये और जनसाधारण को अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान कराने में सक्षम हो। उसकी दृष्टि में राज्य का लक्ष्य व्यक्ति की शक्तियों का अधिकतम विकास करना है और वही शासन प्रणाली श्रेष्ठ होती है, जो इनका अधिकतम विकास करे। उसके अनुसार श्रेष्ठ शासन की प्रथम विशेषता यह है कि “वह जनता के गुणों और बुद्धि का विकास करने वाली हो। शासन की उत्तमता की प्रथम कसौटी यह जांचना है कि वह नागरिकों में मानसिक एवं नैतिक गुणों का कहां तक संचार करती है, उनके चारित्रिक एवं बौद्धिक विकास के लिए कितना प्रयास करती है।” इसी प्रकार मिल ने आगे कहा है कि “आदर्श की दृष्टि से सर्वोत्तम सरकार वह है, जिसमें सत्ता समुदाय के समूचे व्यक्तियों में निहित हो, प्रत्येक नागरिक को न केवल इस अंतिम सत्ता का प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त हो, अपितु सार्वजनिक कार्यों में व्यक्तिगत रूप से भाग लेने का भी अधिकार प्राप्त हो।” मिल का कहना है कि जहां शासन की बागडोर एक ही व्यक्ति या विशेष वर्ग के लोगों के हाथ में होती है, वहां बहुमत के हितों की रक्षा कर पाना संभव नहीं है। उसके अनुसार प्रजातंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें सभी के हित सुरक्षित करने का समान अवसर प्राप्त होता है। इसमें व्यक्ति अपने हितों के साथ-साथ दूसरों के हितों का भी ध्यान रखता है।

प्रजातंत्र के पक्ष में तर्क मिल ने प्रतिनिधि शासन का समर्थन कई आधारों पर किया है। इससे उसके प्रजातांत्रिक होने के विचार को बल मिलता है। यह तर्क निम्नलिखित हैं –

1) किसी मनुष्य के अधिकार और हित प्रजातंत्र में ही संभव है।

2) प्रजातंत्र के द्वारा ही लोगों का कल्याण हो सकता है। इसमें सभी की समानता व स्वतंत्रता सुरक्षित रह सकती है।

3) यह प्रणाली मनुष्य में सहयोग और आत्मनिर्भरता की प्रवृत्ति जगाती है।

4) इसमें सभी व्यक्तियों के बौद्धिक और नैतिक विकास की संभावना अधिक रहती है।

5) यह लोगों में देश प्रेम की भावना पैदा करता है। इसे राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होता है।

6) इसमें स्त्री पुरुष सभी वयस्कों को समान मताधिकार प्राप्त होता है।

मिल का मानना है कि अन्य सभी शासन प्रणालियां विशेष वर्गों के स्वार्थ सिद्धि का साधन होती हैं। लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें सभी वर्गों के हित सुरक्षित रहते हैं। लेकिन यह प्रणाली सभी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। जिन व्यक्तियों में सार्वजनिक कर्तव्यों का पालन करने की उपयुक्त भावना और चरित्र न हो तो उनके लिए यह व्यवस्था हितकर नहीं हो सकती। इस प्रकार मिल ने बेंथम के लोकतंत्र संबंधी विचारों से अलग लोकतंत्र को परिस्थितियों के आधार पर श्रेष्ठ माना है।

प्रजातंत्र के प्रकार – मिल ने अपनी पुस्तक प्रतिनिधि शासन में प्रजातंत्र के दो रूपों – नकली प्रजातंत्र (false democracy) और असली प्रजातंत्र(true democracy) का वर्णन किया है। उसने कहा है कि असली प्रजातंत्र गुणों पर आधारित होता है, जबकि नकली प्रजातंत्र संख्या पर आधारित होता है। उसने गुणों पर आधारित असली प्रजातंत्र का ही पक्ष लिया है। लेकिन दोनों प्रजातंत्र के रूपों को मिलाकर (संख्या तथा गुण) विशुद्ध लोकतंत्र के निर्माण का प्रयास भी किया है।

प्रतिनिधि शासन का सिद्धांत – मिल के अनुसार प्रतिनिधि सरकार वह शासन व्यवस्था है, जिसमें संपूर्ण जन समुदाय या उसके अधिकांश अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा अंतिम नियंत्रण शक्ति का प्रयोग करता है। उसने प्रतिनिधि शासन के लिए तीन शर्तें निर्धारित की हैं। जो सरकार इन तीन शर्तों को पूरा करती हो, प्रतिनिधि सरकार होती है।

1) वे लोग जिनके लिए ऐसी सरकार का निर्माण किया जाए, जो ऐसी सरकार को स्वीकार करने के इच्छुक हो या इतने अनिच्छुक न हो कि इसकी स्थापना में बाधाएं पैदा करे।

2) ऐसी सरकार के स्थायित्व के लिए जो कुछ भी करना आवश्यक हो वह सब करने के लिए इच्छुक और योग्य हो।

3) ऐसी सरकार के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐसे लोगों में जो कुछ सरकार चाहे वह करने के लिए तत्पर और योग्य हो। शासन की जो आवश्यक शर्तें हो वह उन्हें पूरा करने के लिए तैयार हो।

सरकार के कार्य – मिल ने प्रतिनिधि सरकार के निम्नलिखित कार्य निर्धारित किए हैं –

1) सरकार को व्यक्तियों के विकास के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण करना चाहिए।

2) सरकार द्वारा कानूनों का निर्माण कम से कम होना चाहिए, क्योंकि कानून व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाते हैं और नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करते हैं।

3) सरकार को आपत्तिजनक कार्यों की समीक्षा करके उनके औचित्य को सिद्ध करना चाहिए।

4) उसे विश्वासघाती शासक-गणों को पद मुक्त करके उनके उत्तराधिकारियों को नियुक्त करना चाहिए।

5) उसे बुरे कार्यों की निंदा करनी चाहिए अर्थात् बचना चाहिए।

6) जनता को राजनीतिक शिक्षा देनी चाहिए।

7) उसे जनकल्याण के कार्यों पर नियंत्रण रखना चाहिए।

सच्चे प्रजातंत्र के लिए सुझाव – मिल प्रजातंत्र के सभी दोषों से परिचित था। इसलिए उसने प्रजातंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए कुछ दोषों को दूर करने के सुझाव दिए हैं। उसके महत्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं –

1) बहुल मतदान ( plural voting) – मिल ने समानता के सिद्धांत पर आधारित “एक व्यक्ति एक वोट” के सिद्धांत को एक बुराई माना है। समाज में गुणी व्यक्ति निकृष्ट व्यक्तियों से ज्यादा महत्व रखते हैं। अतः उन्हें अधिक वोट देने का अधिकार मिलना चाहिए। उसके अनुसार राज्य की रक्षा बुद्धि और चरित्र से ही हो सकती है। इसलिए उसने प्रजातंत्र को सच्चे अर्थ में प्रजातंत्र बनाने के लिए योग्य एवं शिक्षित व्यक्तियों को अशिक्षित और गूढ़ व्यक्तियों की तुलना में अधिक महत्व दिया है।

2) आनुपातिक प्रतिनिधित्व – मिल ने लोकतंत्रिक प्रतिनिधि शासन का सबसे बड़ा दोष बहुमत का अत्याचार और अल्पसंख्यकों की घोर उपेक्षा को माना है। इसलिए अल्पसंख्यकों को बहुमत के अत्याचार से मुक्त रखने के लिए साधारण बहुमत के स्थान पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत का समर्थन किया है। उसका कहना है कि साधारण बहुमत प्रणाली में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की कभी आशा नहीं की जा सकती। उनके प्रतिनिधित्व के अभाव में उनके हित असुरक्षित रहते हैं। आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा अल्पसंख्यकों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है। अतः जनतंत्र के दोषों को दूर करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था होना आवश्यक है।

3) शैक्षिक योग्यता – मिल का कहना है कि देश में अधिकतर जनसंख्या अज्ञानी एवं निरक्षर लोगों की होती है। यदि वोटरों की योग्यता और गुणों को बढ़ाने का प्रयास न किया जाए तो लोकतंत्र में अल्पबुद्धि और कम योग्यता वाले व्यक्ति ही हावी हो जाएंगे। लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए ऐसे व्यक्तियों को मताधिकार से वंचित कर देना चाहिए। उसने विधायकों के संबंध में भी ऐसे बुद्धिमान शिक्षित तथा प्रबुद्ध व्यक्तियों की आवश्यकता पर बल दिया है, जिन्हें विशिष्ट ज्ञान हो तथा जो विधायक का सही अर्थ जानते हों।

4) संपत्ति की योग्यता – मिल ने संपत्ति की योग्यता को भी उतना ही महत्व दिया है, जितना शैक्षिक योग्यता को। उसका विचार है कि संपत्ति रखने वाले व्यक्ति के पास संपत्ति न रखने वाले व्यक्ति की तुलना में उत्तरदायित्व की भावना अधिक होती है। मिल ने कहा है “यह महत्वपूर्ण बात है कि जो सभा कर लगाती है, वह केवल उन्हीं लोगों की होनी चाहिए जो इन करो का भार सहन करते हों। यदि कर न देने वालों को दूसरों पर कर लगाने का अधिकार दिया गया तो वे व्यक्ति आर्थिक मामलों में खूब खर्च करने वाले तथा कोई बचत न करने वाले होंगे।” इस प्रकार के लोगों के हाथ में कर लगाने की शक्ति देना स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांत को चुनौती देना होगा। इसलिए कर लगाने का अधिकार उन्हीं व्यक्तियों को मिलना चाहिए जो स्वयं कर अदा करते हों।

5) खुला मतदान – मिल के समय में गुप्त मतदान प्रणाली का बोलबाला था। गुप्त मतदान के समर्थकों का मत था कि इससे भ्रष्टाचार कम होता है। लेकिन मिल का मानना है कि गुप्त मतदान से व्यक्ति की स्वार्थमयी प्रवृत्तियों का विकास होता है। उसका मानना है कि मतदान का अधिकार सार्वजनिक कर्तव्य है। इसलिए उसने मतदान को लोकतांत्रिक दायित्व मानते हुए खुले मतदान का समर्थन किया है। उसका कहना है कि मतदान एक पवित्र धरोहर है, इसलिए इसका प्रयोग खूब सोच समझकर और समाज हित की भावना को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए।

6) विधि निर्माण – मिल का कहना है कि विधि निर्माण का कार्य योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों के हाथ में ही होना चाहिए। यह कार्य विधानसभा का नहीं है। इस कार्य के लिए विधि आयोग होना चाहिए और इसके सदस्य सिविल सर्विसेज के व्यक्ति होने चाहिए। इन कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने व उन्हें पद से हटाने का अधिकार विधानसभा के पास हो सकता है। कानूनों को पास करने का कार्य विधानसभा का हो सकता है। इस व्यवस्था द्वारा मिल ने शासन के कार्यों का संचालन योग्य व्यक्तियों द्वारा तथा कानून बनाने का अधिकार भी इन्हीं व्यक्तियों के हाथों में सौंपने का समर्थन किया है।

7) वेतन और भत्ता निषेध – मिल का मानना है कि यदि संसद सदस्यों को वेतन और भत्ते दिए गए तो लोग आर्थिक हितों को पूरा करने के लिए संसद सदस्य बनने का प्रयास करने लग जाएंगे। संसद में असक्षम व अयोग्य व्यक्तियों का प्रवेश शुरू हो जाएगा। लोगों की निष्काम सेवा की भावना संसद सदस्यों से दूर हो जाएगी। संसद महत्वकांक्षी लोगों का अखाड़ा बन जाएगी। इसलिए मिल ने संसद सदस्यों के लिए वेतन व भत्तों की व्यवस्था से इनकार किया है।

8) महिला मताधिकार – मिल ने महिला मताधिकार का पूरा समर्थन किया है। उसका कहना है कि न्याय की मांग है कि महिलाओं और पुरुषों दोनों पर शासन केवल पुरुष द्वारा ही संचालित नहीं होना चाहिए। उसका मानना है कि यदि महिलाओं पर से पुरुषों का स्वामित्व समाप्त कर दिया जाए तो वे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। इसलिए उसने कहा है “मैं राजनीतिक अधिकारों के संबंध में लिंग भेद को उसी प्रकार सर्वथा अनुचित मानता हूं, जिस प्रकार बालों के रंग को। यदि दोनों में कोई भेद हो भी तो महिलाओं को पुरुष की अपेक्षा अधिक अधिकारों की आवश्यकता है, क्योंकि वह शारीरिक दृष्टि से अवला और अपनी रक्षा के लिए कानून तथा समाज पर ही आश्रित हैं।” इस तरह मिल ने महिला मताधिकार व महिला शिक्षा का जोरदार समर्थन करके इंग्लैंड में महिलाओं के सुधार की वकालत की है।

आलोचनाएं – तर्कपूर्ण और बौद्धिकता के गुण पर आधारित होते हुए भी मिल के शासन संबंधी विचारों की व्यवहारिक आधार पर अनेक आलोचनाएं हुए हैं। उसकी आलोचना के प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं –

1) यदि मिल के मतदाता की योग्यता का मापदंड लागू किया जाए, तो भारत जैसे बड़े देश में कुछ ही प्रतिशत लोगों को यह अधिकार प्राप्त होगा, क्योंकि यह संभव नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति को इतिहास, भूगोल और गणित की जानकारी हो। अतः इस सिद्धांत को लागू करना न्यायसंगत नहीं हो सकता।

2) मिल का बहुल मतदान का सिद्धांत भी व्यवहार में लागू नहीं हो सकता, क्योंकि राजनीति की योग्यता का कोई औचित्यपूर्ण आधार तलाशना कठिन कार्य होता है।

3) मिल ने संसद सदस्यों के लिए वेतन और भत्तों का निषेध किया है। इससे अमीर व्यक्ति ही संसद सदस्य बनेंगे। गरीब व्यक्ति या मध्यम वर्ग के व्यक्ति प्रतिनिधि बनना नहीं चाहेंगे। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि आर्थिक कारणों से भी व्यक्ति राजनीतिक कार्यकलापों में भाग लेते हैं। मनुष्य सदैव धन संपत्ति में वृद्धि करना चाहता है।

4) मिल का यह विचार की मतों की गणना के साथ-साथ उनका वजन भी किया जाए, बड़ा उचित प्रतीत होता है। परंतु ऐसा तभी संभव है, जब जनता का नैतिक स्तर ऊंचा हो। लोगों में स्वार्थ की भावना के रहते इसे लागू करना कठिन कार्य है।

5) मिल ने मतदाता के लिए शैक्षिक योग्यता को आवश्यक माना है। इसमें कोई संदेह नहीं की शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करती है। परंतु व्यवहारिक अनुभव का भी विशेष महत्व है। सूरदास व कबीर के पास कोई शैक्षिक योग्यताएं न होने पर भी उनके ज्ञान के आगे संसार नतमस्तक होता है।

6) मिल ने आनुपातिक प्रतिनिधित्व का समर्थन किया है। इससे किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होने के कारण स्थायी सरकार की स्थापना कर पाना असंभव है।

7) मिल का खुले मतदान का समर्थन करना सामाजिक द्वेष को जन्म देता है। इसको अपनाने से समाज में सामाजिक सद्भाव समाप्त हो सकता है। इससे प्रजातंत्र आतंकवादी और वर्गतंत्रीय व्यवस्था का रूप ले सकता है।

8) मिल ने संसद के कार्यों को सीमित करके उसे वाद विवाद का केंद्र बना दिया है, जो उचित नहीं है। इसे संसद का कानून बनाने और प्रशासन करने के अधिकारों में कमी आती है।

इन आलोचनाओं के बावजूद भी मिल को लोकतंत्र का सशक्त समर्थक और वफादार सेवक माना जाता है। उसने प्रतिनिधियों के व्यक्तिगत चरित्र पर बल देकर प्रजातंत्र को जो अध्यात्मिक आधार प्रदान करने का प्रयास किया है, वह आधुनिक राजनीतिक वातावरण में मुख्य मांग है। उसने मानव कल्याण की भावना पर आधारित लोकतंत्र को सच्चा लोकतंत्र माना है। उसने लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए जो सुझाव दिए हैं, वह आज भी प्रासंगिक हैं। उसने प्रजातंत्र और प्रशासनिक दक्षता के तत्वों का समन्वय करने का जो सुझाव दिया है, वह उसकी राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचायक है। उसके द्वारा महिला मताधिकार का समर्थन भी नितांत औचित्यपूर्ण है।

प्रतिनिधि सरकार से क्या तात्पर्य है?

प्रतिनिधिक लोकतंत्र (Representative democracy) वह लोकतन्त्र है जिसके पदाधिकारी जनता के किसी समूह द्वारा चुने जाते हैं। यह प्रणाली, 'प्रत्यक्ष लोकतंत्र' (direct democracy) के विपरीत है और इसी लिए इसे अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र (indirect democracy) और प्रतिनिधिक सरकार (representative government) भी कहते हैं।

लोकतंत्र शासन की मुख्य विशेषताएं क्या है?

लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं। एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कौन सा है?

भारत दुनिया का दूसरा (जनसंख्या में) और सातवाँ (क्षेत्र में) सबसे बड़ा देश है। भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, फिर भी यह एक युवा राष्ट्र है। 1947 की आजादी के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इसके राष्ट्रवादी के आंदोलन कांग्रेस के नेतृत्व के तहत बनाया गया था।

लोकतांत्रिक सरकार के मुख्य लक्षण क्या है?

लोकतांत्रिक सरकार के आवश्यक लक्षण इस प्रकार हैं: (1) सरकार अपनी शक्ति लोगों से प्राप्त करती है। ऐसा चुनावों के माध्यम से होता है। (2) सभी व्यस्क नागरिकों को मत देने का अधिकार होता है। (3) सरकार अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदाई होती है।