उत्तर: कई तानाशाह देशों के उदाहरण से पता चलता है कि ऐसी शासन व्यवस्था में आर्थिक विकास ठीक से होता है लेकिन कुछ ऐसे लोकतांत्रिक देश भी हैं जहाँ की अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है। कई गरीब देशों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हुए भी तरक्की की है; हाँ उनकी वृद्धि की दर थोड़ी धीमी जरूर है। यदि हम लाभ और हानि की तुलना करें तो कह सकते हैं केवल धनी बनने की आकांछा से तानाशाह को अपनाना सही विकल्प नहीं हो सकता है। लोकतान्त्रिकशासन-व्यवस्था में जनता का पूर्ण विश्वास राजनीतिक दलों में होता है।लोकतान्त्रिक राजनीति का संचालन राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है। अतशासन की गलतियों के कारण जनता को जो कठिनाई होती है, उसका दोषारोपणराजनीतिक दलों के ऊपर किया जाता है। सामान्य जनता की अप्रसन्नता तथाआलोचना राजनीतिक दलों के काम-काज के विभिन्न पहलुओं पर केन्द्रित होतीहै। 2. आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव– यद्यपि राजनीतिक दल लोकतन्त्रकी दुहाई देते हैं, परन्तु उनमें आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव देखने को मिलता है।राजनीतिक दलों के संगठनात्मक चुनाव नियमित रूप से नहीं होते हैं। दल कीसम्पूर्ण शक्ति कुछ व्यक्तियों के हाथों में सिमट जाती है। दलों के पास अपनेसदस्यों की सूची भी नहीं होती है। इन्हें भी पढ़ें:- राजनीतिक दलों के समक्ष विभिन्न चुनौतियां- 3. साधारण सदस्यों की उपेक्षा– यह भी देखा गया है कि दलों मेंसाधारण सदस्यों की उपेक्षा की जाती है, उसे दल की नीतियों के निर्माण मेंसहभागिता प्रदान नहीं की जाती है, वह दल के कार्यक्रमों के बारे में अनभिज्ञ बनारहता है। जो सदस्य दल की नीतियों का विरोध करते हैं उन्हें दल की प्राथमिकसदस्यता से वंचित कर दिया जाता है। 4. वंशवादी उत्तराधिकार-भारत सहित विश्व के अनेक राष्ट्रों में यहदेखा गया है कि दलों में भी वंशवादी उत्तराधिकार की परम्परा पड़ गई है। कांग्रेसकी बागडोर पहले पं० नेहरू के हाथ में थी, उनके बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी,राजीव गांधी, सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के हाथों रही। 5. धन की महत्ता-वर्तमान में राजनीतिक दलों में भी धन की महत्ताबढ़ती जा रही है। चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा अपने प्रत्याशियों कोआर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। सभी राजनीतिक दल चुनावों में विजय प्राप्तकरना चाहते हैं। अत राजनीतिक दल चन्दों के माध्यम से धन का संग्रह करते हैं।है। सम्पूर्ण विश्व में लोकतन्त्र के समर्थक देशों ने लोकतान्त्रिक राजनीति में अमीरकी लोग तथा बड़ी कम्पनियों की बढ़ती भूमिका के प्रति चिन्ता व्यक्त की है। इन्हें भी पढ़ें:- लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका- 6. सार्थक विकल्प का अभाव-राजनीतिक दलों के समक्ष महत्त्वपूर्ण। चुनौती राजनीतिक दलों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति की है। सार्थक विकल्पका तात्पर्य यह है कि राजनीतिक दलों की नीतियों तथा कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्णअन्तर हो। वर्तमान विश्व के विभिन्न दलों के बीच वैचारिक अन्तर कम होता गयाहै तथा यह प्रवृत्ति सम्पूर्ण विश्व में दिखाई देती है। 7. राजनीति का अपराधीकरण-वर्तमान में राजनीति का अपराधीकरणहो रहा है। राजनीतिक दलों के समक्ष उनमें अपराधी तत्त्वों की बाहरी घुसपैठ तथाप्रभाव है। राजनीतिक दल चुनावों में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की सहायता लेतेहैं। राजनीतिक दल उन्हें अपनी पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार भी बनाने में संकोच नहीं करते हैं। राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? Questions › Category: Questions › राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? 0 Vote Up Vote Down Questins Staff asked 3 years ago राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?राजनीतिक निर्माण की चुनौतियां क्या है? Raajnitik Nirmaan Ki Chunautiyaan Kya Hai राजनीतिक दल का क्या अर्थ होता है’ ,राजनीतिक दलों के सम्मुख प्रमुख चुनौतियों की परख कीजिए। Question Tags: सामान्य ज्ञान 1 Answers 0 Vote Up Vote Down Madan Verma Staff answered 3 years ago (क) आंतरिक लोकतंत्र की कमी: यह ठीक है कि लोकतंत्र राजनीतिक दलों की सहायता से चलता है परंतु राजनीतिक दलों में ही आंतरिक लोकतंत्र की कमी है। साधारणतया दलों में सत्ता एक अथवा दो नेताओं के हाथों में ही होती है। यहाँ तक कि यह अपने दल में हमेशा चुनाव भी नहीं करवाते हैं तथा यह सदस्यता रजिस्टर भी नहीं रखते हैं। साधारण सदस्यों को तो दल के आंतरिक मामलों की कोई सूचना भी नहीं होती है तथा सदस्य आमतौर पर केंद्रीय नेतागणों से असंतुष्ट ही रहते हैं। |