रक्त का तरल पदार्थ क्या कहलाता है? - rakt ka taral padaarth kya kahalaata hai?

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HP JBT TET 2021 Official Paper

150 Questions 150 Marks 150 Mins

Last updated on Sep 22, 2022

The Himachal Pradesh Board of School Education has released the provisional answer key for HP TET for the June Cycle. The exam was held on 24th July, 31st July, 7th August, and 13th August 2022. The answer key is released for Arts, Punjabi, Medical, L.T, Shastri, D.El.Ed, and Non-Medical subjects separately. Candidates can also raise objections to any issue regarding the HP TET Answer Key to the official email ID [email protected] The last day to raise any objections for the answer key is 5th September 2022 through the official portal.

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रक्त का तरल पदार्थ क्या कहलाता है? - rakt ka taral padaarth kya kahalaata hai?

मानव शरीर में लहू का संचरण
लाल - शुद्ध लहू
नीला - अशु्द्ध लहू

लहू या रुधिर या खून(Blood) एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं।

मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती।

मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दूसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है

कार्य

  • ऊतकों को आक्सीजन पहुँचाना।
  • पोषक तत्वों को ले जाना जैसे ग्लूकोस, अमीनो अम्ल और वसा अम्ल (रक्त में घुलना या प्लाज्मा प्रोटीन से जुडना जैसे- रक्त लिपिड)।
  • उत्सर्जी पदार्थों को बाहर करना जैसे- यूरिया कार्बन, डाई आक्साइड, लैक्टिक अम्ल आदि।
  • प्रतिरक्षात्मक कार्य।
  • संदेशवाहक का कार्य करना, इसके अन्तर्गत हार्मोन्स आदि के संदेश देना।
  • शरीर पी. एच नियंत्रित करना।
  • शरीर का ताप नियंत्रित करना।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • रक्तदान

सन्दर्भ[संपादित करें]

प्लाविका या रक्त प्लाज्मा, रक्त का पीले रंग का तरल घटक है, जिसमें पूर्ण रक्त की रक्त कोशिकायें सामान्य रूप से निलंबित रहती हैं। यह कुल रक्त की मात्रा का लगभग 55% तक होता है। इसका अधिकतर अंश जल (90to 92% आयतन अनुसार) होता है और इसमें प्रोटीन, शर्करा, थक्का जमाने वाले कारक(फरिनोजन)प्रोटीन(फरिनोजन अबुयबिं, गलोरोमिन), खनिज आयन, हार्मोन और कार्बन डाइऑक्साइड (प्लाविका उत्सर्जित उत्पादों के निष्कासन का प्रमुख माध्यम है) घुले रहते हैं। इसमें अब्यबिन कितना प्लाज्मा में पानी आएगा कितना अमीनो एसिड आएगा इसको ब्लैंस रखता है और गलोरोबिन प्रति रक्षा को बढ़ाता है। प्लाविका को रक्त से पृथक करने के लिए एक परखनली मे ताजा रक्त लेकर उसे सेंट्रीफ्यूज़ (अपकेंद्रिक) में तब तक घुमाना चाहिए जब तक रक्त कोशिकायें नली के तल मे बैठ न जायें, इसके बाद ऊपर बचे प्लाविका को उड़ेल कर अलग या तैयार कर लें।[1] प्लाविका का घनत्व लगभग 1025 kg/m3, या 1.025 kg/l. होता है।[2]

यदि प्लाविका से फाइब्रिनोजेन तथा अन्य थक्का जमाने वाले कारकों को निकाल दें तो बचा हुआ पदार्थ रक्त सीरम कहलाता है। (यानी, पूर्ण रक्त - रक्त कोशिकायें - थक्का जमाने वाले कारक)।[1]

प्लाज़्माफेरेसिस एक चिकित्सीय उपचार है जिसमे प्लाविका का निष्कर्षण, उपचार और पुन:एकीकरण शामिल है। इसमें 6-8% प्रोटीन पाया जाता है जिसमें अमीनो एसिड विटामिन फैटी एसिड ग्लूकोस nacl,fe,mg,na शामिल है यह एक निर्जीव है

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ↑ अ आ Maton, Anthea; Jean Hopkins, Charles William McLaughlin, Susan Johnson, Maryanna Quon Warner, David LaHart, Jill D. Wright (1993). मानव जीवविज्ञान और स्वास्थ्य (Human Biology and Health). Englewood Cliffs, New Jersey, USA: Prentice Hall. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-13-981176-1.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  2. "The Physics Factbook - Density of Blood". मूल से 19 सितंबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 सितंबर 2009.

रक्त के तरल पदार्थ को क्या कहते हैं?

इस प्रकार, रक्त के तरल भाग को प्लाज्मा कहा जाता है।

रक्त के तरल भाग कौन सा है?

प्लाविका या रक्त प्लाज्मा, रक्त का पीले रंग का तरल घटक है, जिसमें पूर्ण रक्त की रक्त कोशिकायें सामान्य रूप से निलंबित रहती हैं। यह कुल रक्त की मात्रा का लगभग 55% तक होता है।

खून के पानी जैसे तरल भाग को क्या कहते हैं?

प्लाज्मा रक्त में उपलब्ध एक तरल पदार्थ होता है। इसका 92 फीसदी भाग पानी होता है। प्लाज्मा में पानी के अलावा प्रोटीन, ग्लूकोस मिनरल, हार्मोंस, कार्बन डाइऑक्साइड होते हैं। शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन रक्त के प्लाज्मा द्वारा होता है।

रक्त का तरल घटक क्या है?

प्लाज्मा रक्त का तरल घटक है। प्लाज्मा रक्त का स्पष्ट, स्ट्रा-कलर का तरल हिस्सा है जो लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट्स और अन्य सेलुलर घटकों को हटाने के बाद रहता है।