राम ने कितने दिन तक समुद्र से प्रार्थना की थी? - raam ne kitane din tak samudr se praarthana kee thee?

रामायण में एक प्रसंग आता है जब भगवान राम लंका जाने के लिए समुद्र से रास्ता माँगते हैं और उन्हें रास्ता नहीं मिलता। नाराज़ होकर राम ने अपना धनुष उठा लिया और समुद्र को सुखाने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाने का मन बनाया। इतने में ही समुद्र देवता भागते हुए आए और उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा माँगा और बताया कि राम चाहें तो वानरों की सेना की सहायता से समुद्र पर लंका तक के लिए पुल बना सकते हैं। हालाँकि तब तक भगवान राम ने ब्रह्मास्त्र को अपने धनुष पर साध लिया था। उन्होंने समुद्र देवता से पूछा कि अब तो यह बाण कहीं न कहीं चलाना ही होगा। इस पर समुद्र ने उन्हें द्रुमकुल्य नाम के देश में बाण छोड़ने का सुझाव दिया। समुद्र का कहना था कि द्रुमकुल्य पर भयंकर दस्यु (डाकू) रहते हैं जो उसके जल को भी दूषित करते रहते हैं। इस पर राम ने ब्रह्मास्त्र चला दिया। वाल्मीकि रामायण में दिए वर्णन के अनुसार “ब्रह्मास्त्र की गर्मी से द्रुमकुल्य के डाकू मारे गए। लेकिन इसकी गर्मी इतनी ज़्यादा थी कि सारे पेड़-पौधे सूख गए और धरती जल उठी। इसके कारण पूरी जगह रेगिस्तान में बदल गई और वहाँ के पास मौजूद सागर भी सूख गया।” यह वर्णन बेहद आश्चर्यजनक है और जिस तरह से लंका तक बनाए गए रामसेतु को भगवान राम की ऐतिहासिकता के सबूत के तौर पर माना जाता है उसी तरह इस घटना को भी सही माना जाता है।

कहां पर है द्रुमकुल्य?

माना जाता है कि यह जगह आज का कजाकिस्तान है। कजाकिस्तान में ऐसी ढेरों विचित्रताएँ हैं जो इशारा करती हैं कि उसका संबंध रामायण काल से हो सकता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम ने उत्तर दिशा में द्रुमकुल्य के लिए बाण चला दिया। वो जानते थे कि इसके असर से वहाँ डाकू तो मर जाएँगे लेकिन निर्दोष जीवजंतु भी मारे जाएँगे और पूरी धरती रेगिस्तान बन जाएगी। इसलिए उन्होंने यह आशीर्वाद भी दिया कि कुछ दिन बाद वहाँ सुगंधित औषधियाँ उगेंगी, वह जगह पशुओं के लिए उत्तम, फल मूल मधु से भरी होगी। कजाकिस्तान में जिस जगह पर राम का बाण गिरा वो जगह किजिलकुम मरुभूमि (Kyzylkum Desert) के नाम से जाना जाता है। यह दुनिया का 15वां सबसे बड़ा रेगिस्तान है। स्थानीय भाषा में किजिलकुम का मतलब लाल रेत होता है। माना जाता है कि ब्रह्मास्त्र की ऊर्जा के असर से यहां की रेत लाल हो गई। किजिलकुम में कई दुर्लभ पेड़-पौधे पाए जाते हैं। पास में अराल सागर है। जो दुनिया का इकलौता समुद्र है जो समय के साथ-साथ सूख रहा है। आज यह अपने मूल आकार का मात्र 10 फीसदी बचा है। किजिलकुम का कुछ हिस्सा तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान में भी है। रामेश्वरम तट से इस जगह की दूरी करीब साढ़े चार हजार किलोमीटर है। यह प्रश्न है कि क्या उस जमाने में ब्रह्मास्त्र से इतनी दूरी तक वार किया जा सकता था?

जगह को लेकर है विवाद

द्रुमकुल्य के कजाकिस्तान में होने के अलावा कई और जगहों को लेकर भी दावे किए जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि राम ने राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में बाण छोड़ा था। लेकिन राम के आशीर्वाद के मुताबिक़ वहाँ ऐसी कोई जड़ी-बूटी वग़ैरह के निशान नहीं मिलते। राजस्थान के आसपास कोई समुद्र भी नहीं है। राजस्थान के रेगिस्तान होने की एक भौगोलिक वजह है, जबकि कजाकिस्तान का किजिलकुम इलाक़ा वनस्पतियों के लिहाज़ से काफ़ी समृद्ध है। यहाँ कई ऐसे जानवर पाए जाते हैं जो और कहीं नहीं मिलते। यहाँ दो नदियाँ भी बहती हैं। राजस्थान के अलावा बंगाल और ओड़िशा में बाण गिरने के भी अनुमान लगाए जाते हैं। लेकिन उनका भी कोई ऐसा आधार नहीं दिखाई देता। ज़्यादातर विद्वान कजाकिस्तान की किजिलकुम मरुभूमि के दावे को ही सही मानते हैं। उनके अनुसार इस बात की संभावना है कि हज़ारों साल पहले इस इलाक़े में जलदस्यु रहते रहे हों। जिन्हें वाल्मीकि ने आभीर नाम से संबोधित किया है। इस बात की संभावना है कि वो जलदस्यु पूरे अरब सागर और हिंद महासागर के इलाकों में लूटपाट करते रहे हों, जिसकी कहानी को रामायण में इस तरह से बताया गया है।

भारत में कुछ लोग दावा करते हैं कि द्रुमकुल्य में जिस आभीर जाति पर ब्रह्मास्त्र चलाने की बात कही गई है वो दरअसल अहीर जाति है। इस आधार पर यह बताने की कोशिश होती है कि भगवान राम ने अहीरों का समूल नाश करने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था। हालाँकि यह थ्योरी किसी की मनगढ़ंत कल्पना से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि अहीर जाति का निवास स्थान हमेशा से भारत ही रहा है। यह मुख्यतः: पशुपालक और शासक जाति रही है। अहीरों का इतिहास कभी भी मध्य एशिया से नहीं जुड़ता है। कुछ विद्वानों की राय में यह थ्योरी 70 के दशक में ईसाई मिशनरियों ने गढ़ी है ताकि जातीय वैमनस्य पैदा करके इसका फ़ायदा उठाया जा सके।

नीचे आप वाल्मीकि रामायण का वह हिस्सा देख सकते हैं जिसमें ब्रह्मास्त्र को द्रुमकुल्य पर चलाए जाने की घटना का वर्णन किया गया है।

राम ने कितने दिन तक समुद्र से प्रार्थना की थी? - raam ne kitane din tak samudr se praarthana kee thee?

किजिलकुम रेगिस्तान अपनी लाल रेत के लिए जाना जाता है। कहते हैं कि यहाँ की धरती में आज भी रेडियोएक्टिव गुण मिलते हैं जो यहाँ ब्रह्मास्त्र यानी परमाणु विस्फोट की गवाही देते हैं।

राम ने कितने दिन तक समुद्र से प्रार्थना की थी? - raam ne kitane din tak samudr se praarthana kee thee?

नीचे आप अराल सागर की सैटेलाइट तस्वीर देख सकते हैं। बायीं तस्वीर क़रीब 40 साल पुरानी है और दायीं तस्वीर 2018 की है। अराल कभी विशाल सागर हुआ करता था आज ये झील की तरह बचा है।

राम ने कितने दिन तक समुद्र से प्रार्थना की थी? - raam ne kitane din tak samudr se praarthana kee thee?

किजिलकुम रेगिस्तान में जानवरों के पीने के लिए खूब पानी मिलता है और यहाँ काफ़ी जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। जबकि गर्मी के दिनों में यहाँ पारा 50 डिग्री के भी ऊपर पहुँच जाता है।

राम ने कितने दिन तक समुद्र से प्रार्थना की थी? - raam ne kitane din tak samudr se praarthana kee thee?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम ने ब्रह्मास्त्र को उत्तर दिशा में चलाया था। उस समय वो रामेश्वरम में थे। वहाँ से किजिलकुम बिल्कुल सीध में तो नहीं, लेकिन उत्तर दिशा में ही है। दोनों के बीच की दूरी क़रीब साढ़े चार हज़ार किलोमीटर है।

राम ने कितने दिन तक समुद्र से प्रार्थना की थी? - raam ne kitane din tak samudr se praarthana kee thee?

(न्यूज़लूज़ टीम)

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राम ने कितने दिनों तक समुद्र की पूजा की?

समुद्र से आग्रह करते हुए श्रीराम को तीन दिन बीत गए। लेकिन समुद्र का उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ, तब भगवान राम समझ गए कि अब अपनी शक्ति से उसमें भय उत्पन्न करना अनिवार्य है। वहीं लक्ष्मण तो पहले से ही आग्रह के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि वे श्रीराम के बाण की अमोघ शक्ति से परिचित थे।

समुद्र से रास्ता के लिए राम ने कितने दिन तक प्रार्थना किया?

भगवान राम को लंका जाना था और समुद्र ने 3 दिन तक रास्ता नहीं दिया था.

भगवान राम धरती पर कितने वर्षों तक रहे?

श्रीराम पृथ्वी पर 11 हजार वर्षों तक रहे, इतने वर्षों में उन्‍होंने असंख्‍य दुष्‍टों का संहार किया. Lord Rama Story: हिंदू धर्म श्रीराम की व्यापक तौर पर आराधना करते हैं. श्रीराम भगवान (विष्‍णु) का मनुष्‍यावतार थे, जो त्रेतायुग में पृथ्वी पर अवतरित हुए. वह यहां 11 हजार वर्षों तक रहे.

भगवान राम की उम्र कितनी थी?

कहते हैं कि वे 11 हजार वर्षों तक जिंदा वर्तमान रहे। परंपरागत मान्यता अनुसार द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष + राम की वर्तमानता के 11,000 वर्ष + द्वापर युग के अंत से अब तक बीते 5,121 वर्ष = कुल 8,80,111 वर्ष।