रूस की 1917 के अक्टूबर क्रांति का क्या परिणाम हुआ? - roos kee 1917 ke aktoobar kraanti ka kya parinaam hua?

रूसी क्रांति बीसवीं सदी के इतिहास की सर्वाèािक केंद्रीय घटना थी। यह शीत युद्ध के रूप में अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँचे विचारèाारात्मक संघर्ष के युग में घटित हुर्इ और एक ‘विशेषरूप से राजनीतिकरण कर दी गर्इ ऐतिहासिक घटना के रूप में विधमान रही। 1991 में सोवियत संघ के विघटन मात्रा ने ही अंतत: रूसी क्रांति को एक ऐतिहासिक तथ्य के रूप में रूपांतरित किया। 1917 की रूसी क्रांति वस्तुत: जारशाही रूस में घटनाओं की एक श्रृंखला को संदर्भित है जो 1917 में सोवियत राज्य की स्थापना के साथ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची जिसे सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ ;यूनियन आपफ सोवियत सोशलिस्ट रिपबिलक – यूएसएसआरद्ध के नाम से जाना गया। 1917 की दो सपफलतापूर्ण क्रांतियां सामूहिक रूप से रूसी क्रांति को संदर्भित हैं। पहली क्रांति ने निरंकुश षारशाही राजतंत्रा को उखाड़ पेंफका। यह तत्कालीन रूस में प्रचलित जूलियार्इ अथवा प्राचीनशैली के तिथिपत्राक ;कैलेंडरद्ध के मुताबिक 23 से 27 पफरवरी 1917 तक के विद्रोह के साथ प्रारंभ हुर्इ।1 दूसरी क्रांति अस्थायी सरकार के विरुद्ध बोलशेविक दल के नेतृत्व में 24 व 25 अक्टूबर को सशस्त्रा विद्रोह के साथ प्रारंभ हुर्इ और इसने रूसी समाज में आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक संबंèाशीलता में परिवर्तनों को प्रभावित किया। इसे अक्सर बोल्शेविक या अक्टूबर क्रांति कहा जाता है।

रूसी क्रांति के कारण

रूस की 1917 के अक्टूबर क्रांति का क्या परिणाम हुआ? - roos kee 1917 ke aktoobar kraanti ka kya parinaam hua?

हालांकि रूसी क्रांति की घटनाएं आकसिमक रूप से घटित हुइ± किन्तु इसके कारण पीछे की लगभग एक शताब्दी में खोजे जा सकते हैं। 1917 से पूर्व रूसी समाज उल्लेखनीय परिवर्तनों से गुजर रहा था जो पुरानी व्यवस्था के लिये संकट में परिणमित हुए। इन परिवर्तनों द्वारा उत्पन्न नर्इ सामाजिक और आर्थिक ताकतें भिन्न रुचियां और इच्छाएं रखती थीं। इस प्रकार 1917 तक पुराने और नए रूस के बीच अतिरेकी असंगति और भिन्नताओं का आविर्भाव हुआ। रूसी क्रांति ने इन नर्इ ताकतों की प्रजातांत्रिक महत्त्वाकांक्षाओं का प्रतिनिèाित्व किया। दूसरी तरपफ रूसी राज्य प्राचीन शासक वगो± के हितों का प्रतिनिèाित्व करता था। रूसी तानाशाही ;जारशाहीद्ध जागीरदार कुलीनों के समर्थन पर सुदृढ़ बनी हुर्इ थी। अतएव 1917 तक न केवल पुरानी और नर्इ ताकतों के बीच बलिक नर्इ ताकतों और रूसी राज्य के मèय भी संकट उभर आया। रिचर्ड पाइप्स के अनुसार ”1917 की रूसी क्रांति कोर्इ एक घटना या एक प्रक्रिया भी नहीं थी बलिक विघटनकारी और हिंसक कायो± का एक सिलसिला था जो न्यूनाèािक सहवर्ती रूप में उपसिथत हुआ लेकिन जिसमें विभिन्न और किन्हीं अथो± में परस्पर विरोèाी उíेश्यों वाले कर्ताèार्ता समिमलित थे। इसलिये इतिहास के इस मील के पत्थर की ओर ले जाने वाले कौन से अल्प अथवा दीर्घकालिक कारण थे? हम इसका विस्तृत परीक्षण करेंगे।

1. निरंकुश शासन और जार की अकुशलता

रूस में सरकार कुशल हुए बगैर निरंकुश थी। जार का प्रशासन निर्बल र्आर भ्रष्ट था। उसका स्वेच्छाचारी शासन अपने लक्ष्य से अèािक समय तक जीवित रहा। पशिचमी विचारों के प्रसार ने लोगों के मèय प्रगतिशील विचार के विकास का नेतृत्व किया। 

——————————————————

1. 31 जनवरी 1918 को सोवियत सरकार ने ग्रेगोरी निर्मित अथवा नर्इ शैली का तिथिपत्राक ;कैलेंडरद्ध अंगीकार किया जिससे तिथियाँ तेरह दिन आगे सरक गइ±, अतएव नर्इ शैली के तिथिपत्राक में प्रथम क्रांति की तिथियाँ 8 से 12 मार्च की होंगी।      

—————————————————–                            

लोगों की आवश्यकताओं की संतुषिट के लिये पर्याप्त शकितयों के साथ वास्तविक प्रतिनिèाित्व वाले निकाय के लिये मांग एक समूहनकारी शकित थी। लोगों की मांगों को पूरा करने के बजाय रोमानोव वंश के जार निकोलस द्वितीय ने घोषित किया कि वह निरंकुश एकतंत्रा के सिद्धांतों का संरक्षण उसी कठोरता और दृढ़ता से करेगा जैसा उसके पूर्वजों द्वारा किया गया। उसने रूस के कुबुद्धिमान कान्स्टैन्टाइन प्रोबेदोनोस्तेव2 को ताकतवर बनाए रखा। जार के प्रशासन पर अत्यèािक प्रभाव रखने वाला एक अन्य कुबुद्धिमान जार्ज रासपुतिन3 था। शासन का संचालन नौकरशाही ;अपफसरशाहीद्ध करती थी जो अकुशल तथा नमनीय थी। यह सच है कि रूस ने 1906 में अपनी पहली संसद ;डयूमाद्ध स्थापित की किंतु यह अंग्रेज प्रतिदर्श के अनुसार संसदीय संस्थानों की स्थापना की ओर नहीं ले जा सकी। इसे विèाायन और वित्त पर संपूर्ण अèािकारिता प्राप्त नहीं थी। मंत्रिमंडल पर भी इसका कोर्इ नियंत्राण नहीं था। यहां तक कि बजट भी संसदीय हस्तक्षेप से सुरक्षित रखा गया था। निर्वाचनों में शाही सरकार के लगातार हस्तक्षेप के कारण डयूमा केवल प्रतिक्रियात्मक निकाय बन कर रह गर्इ थी। व्यकितगत स्वतंत्राता के साथ ही साथ समाचार माèयमों की स्वतंत्राता पर भी सभी तरह के प्रतिबंèा थोप दिये गए थे।

इस एकतंत्रा की एक और निर्बलता स्वयं अंतिम रूसी जार निकोलस द्वितीय का व्यकितत्व था। अल्पशिक्षित, बौद्धिक परिप्रेक्ष्य में संकुचित, लोगों की गलत या बुरी पहचान, रूसी समाज के बड़े हिस्से से कटा हुआ और केवल सेना और अपफसरशाही के संकीर्ण दायरों के संपर्क में रहनेवाला, अपने प्रभावशाली पिता के प्रेत से अभित्रास्त और अंतहीन रूप से अभागी पत्नी के विèवंसक अंत:प्रभाव के अèाीन असहाय निकोलस द्वितीय अपनी उच्च सिथति की मांगों के प्रति स्पष्ट तौर पर अयोग्य था और यह एक ऐसी अपर्याप्तता थी जिसकी जिसकी क्षतिपूर्ति किसी आकर्षण, किसी शिष्टाचार के सौजन्य की कोमलता की किसी मात्राा से नहीं हो सकती थी। वह अदूरदर्शी था और देश के जीवन की वास्तविकताओं को समझने में उसकी चूक ने राजनैतिक प्रक्रियाओं में ऐसा हस्तक्षेप किया जो उसके लिये असंदिग्èा रूप से आत्मघाती था।

2. Ñषक-वर्ग का असंतोष

रूस के किसान अपने जीवनयापन की परिसिथतियों से असंतुष्ट थे। वे बंèानमुकित बंदोबस्त4 की शतो± से खुश नहीं थे जिसने उन्हें 1861 में Ñषिदासता से मुक्त तो किया किन्तु जो श्रमिक अèािकारों की क्षति के लिये भूस्वामियों को उनके द्वारा मुआवजा दिये जाने की अपेक्षा करता था। यह समस्या 1900 के दशक के आरंभ में विटटे द्वारा किये गए भूमि-सुèाारों की असपफलता से और जटिल हो गर्इ। Ñषिदासों ने दावा किया कि 18वीं शताब्दी में उनकी सैन्य वचनबद्धता से भूमिपतियों की मुकित उन्हें उन समयबद्ध दायित्वों से स्वयंमेव मुक्त कर देती है जो भूमिपतियों के प्रति उनकी देनदारी थी। अत: उन्होंने श्रमभार के बदले में वित्तीय भार के आरोपण के प्रति संविदा के निहितार्थ के उल्लंघन के रूप में नाराजगी दिखलार्इ। इन क्षतिपूर्ति ;निमर्ुकितद्ध भुगतानों5 की बलात वसूली 1907 तक जारी रही। बाद में किसानों को उनके द्वारा पहले से अèािÑत भूमि की अपेक्षा कम भूमि आवंटित की गर्इ। उनके द्वारा अèािÑत भूमि का सर्वोत्तम उपयोग करने में उनकी असमर्थता से परिसिथतियां और भी बदतर हो गइ±। रूस में Ñषि पद्धति बहुत पिछड़ी हुर्इ थी। सघन Ñषि की प्रविèाियों को अपनाकर Ñषि को उच्चतर स्तर तक ल जाने के लिए किसानों के पास पंूजी और तकनीक का अभाव था। मीर6 को आवंटित भू-स्वामित्व की पद्धति द्वारा कर्इ कब्जेदारों में वितरित उपखंडों के अंतर्मिश्रण द्वारा और सभी संपत्ति संबंèाों में इसके सदस्यों के कानूनी प्रतिनिèाित्व के रूप में किसान परिवारों की सिथति द्वारा व्यकितगत प्रयासों व कायो± की संभावना और घटा दी गर्इ थी।

—————————————————–

2. प्रोबेदोनोस्तेव एक सशक्त राजतंत्रावादी था जिसे रूस के सर्वोतम हितों के लिये किसी भी मार्ग में उत्साही विश्वास था। वह एक प्रतिक्रियावादी था और उसने इन विश्वासों को पहले अलेक्जेंडर और पिफर निकोलस द्वितीय को अंतरित किया। उसके अनुसार राजा की निरपेक्ष सत्ता र्इश्वर द्वारा सुनिशिचत थी। उसे यकीन था कि इस शकित का कोर्इ अतिलंघन र्इश्वर की इच्छाआें के विरुद्ध था। उसने निकोलस के मन में यह विश्वास भर दिया कि उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य अपने उत्तराधिकारी को निरपेक्ष सत्ता का वैसा ही रूप हस्तांतरित करने का था जैसी उसे हस्तांतरित की गर्इ थी। ”प्रोबेदोनोस्तेव निकोलस के मसितष्क में अपने कुछ विचार भर दने में सपफल रहा, विशेषरूप से यह विचार कि : यह जार शासक का कत्र्तव्य था कि वह अपने पुत्रा को अपनी समस्त अखंडित सत्ता का हस्तांतरण करे।

3. एक अन्य शखिसयत जिसने रूसी क्रांति की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभार्इ। वह रूसी रूढि़वादी ;आर्थोडाक्सद्ध गिरजे में साèाु था और जार पर वृद्धिशील प्रभाव तथा महत्त्व रखता था।

4. इसका प्रारंभ रूसी जार अलेक्जेंडर द्वितीय ;1855-1881द्ध द्वारा किया गया था।

5. किसानों को एक वार्षिक राशि 49 वषो± तक सरकार को अदा करनी होती थी। इस समय की समापित पर भूमि उनकी निजी संपत्ति हो जाती थी।   

—————————————————-          

रूसी किसानों के असंतोष का मूल कारण भूमि की कमी थी। किसानों की भूखी आँखें बड़े भूमिपतियों की विशाल भूसंपदा पर गड़ गर्इ। क्रांति के बहुत पहले उन्होंने भूमि के पिफर से वितरण के लिए दबाव डाला। 1906 से 1911 के दौरान प्रèाानमंत्राी रहे पीटर स्टालिपिन ने यह विश्वास करते हुए किसानों पर विजय हासिल करने के सुनिशिचत प्रयास किए कि शांति के बीस वषो± के बाद क्रांति का कोर्इ प्रश्न ही नहीं बचेगा। क्षतिपूर्ति ;निमर्ुकितद्ध भुगतानों को निरस्त कर दिया गया और किसानों को उनकी अपनी भूमि खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया गया ;1916 तक 2 लाख लोगों ने ऐसा किया और 3.5 लाख लोग साइबेरिया में प्रवास कर गए जहाँ वे उनके अपने खेत रख सकते थेद्ध परिणामस्वरूप कमाते-खाते किसानों के ;कुलक नामकद्ध वर्ग का आविर्भाव हुआ जिन पर स्टालिपिन ने आशा की कि विद्रोह के विरुद्ध समर्थन के लिये सरकार भरोसा कर सकती थी। 1911 तक यह स्पष्ट होता जा रहा था कि स्टालिपिन के भूमि सुèाार वांछनीय परिणाम नहीं देंगे, अंशत: इसलिये क्योंकि उसकी योजनाओं के मुकाबले किसानों की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही थी। ;1.5 लाख प्रति वर्ष की दर सेद्ध और क्योंकि खेती की विèाियां बढ़ती जनसंख्या के सहज समर्थन के लिये अकुशल थीं। 1911 में स्टालिपिन की हत्या ने जार के कुछ वास्तविक योग्य मंत्रियों में एक और संभवतया उस अकेले आदमी को मिटा दिया जो राजतंत्रा को बचा सकता था।

3. कर्मचारियों की अतृपित

19वीं शताब्दी के अंतिम वषो± के दौरान रूसी उधोग विशाल परिमाण में विकसित हुए। यह कर्इ घटकों को समर्पित था। Ñषिदासों की बंèानमुकित ने उधोगों के लिये सस्ते श्रमिकों की बहुलतापूर्ण आपूर्ति उपलब्èा करा दी। रेलमागो± के निर्माण ने संचार के साèानों को खोल दिया और परिवहन की सुविèााओं में वृद्धि की। विदेशी )णों ने विशाल औधोगिक उपक्रमों के लिये आवश्यक आèाार उपलब्èा कराया। उधोग की अपवादात्मक वृद्धि के परिणामस्वरूप कारखाना प्रणाली तीव्रता से विकसित हुर्इ। औधोगिक कर्मचारी हमेशा ही ग्रामीण श्रमिकों की अपेक्षा अपनी प्रÑति में कम रूढि़वादी और अèािक बुद्धिमान होते हैं। कारखाना प्रणाली ने कर्मचारियों के पृथक्करण को दूर कर दिया और लोगों के विशाल समूह को एक साथ ले आर्इ। इसने उन्हें उनकी आर्थिक शकित की अंतदर्ृषिट भी प्रदान की। कर्मचारी काम के लंबे घंटों, कम मजदूरी, क्रूरता, और लोलुप अर्थदंड प्रणाली से पीडि़त थे। सरकार कर्मचारियों की पीड़ाओं के प्रति सामान्यतया अंèाी थी। पूंजीपतियों ने कारखानों के सुèाार का मार्ग उस आèाार पर अवरुद्ध कर रखा था जिसे वे लोगों के श्रम की स्वतंत्राता के रूप में परिभाषित करते थे जिसका वास्तविक अर्थ निर्बलों के शोषण के लिये सबलों की स्वतंत्राता से था। हड़तालों के द्वारा रूसी कर्मचारियों ने अपनी शिकायतों के निवारण की तलाश की।

उधोगों के विस्तार ने न केवल एक औधोगिक सर्वहारा वर्ग का निर्माण किया बलिक समृद्ध निर्माताओं के वर्ग को भी असितत्व प्रदान किया। इस प्रकार रूस पूंजीवाद के चरण में प्रविष्ट हो गया। वह पशिचमी औधोगीकरण के साथ पंकितबद्ध हो गया। तीव्रता से विकासशील उधोगों के लिये श्रमिक लगातार ग्रामीण जनसंख्या से नियुक्त होते रहे। भूमि से उनका आकसिमक संबंèा विच्छेद और शिक्षित वर्ग से उनका अलगाव रूसी कर्मचारियों को क्रांतिकारी विचारों के लिए सत्कारशील बनाता था किंतु यह अनुकूल सिथति उनकी अशिक्षा, पिछड़ेपन, संगठनात्मक योग्यताओं के अभाव तथा श्रम में व्यवस्था की अनुपसिथति द्वारा विस्थापित हो जाती थी।

इससे अलग रूसी उधोग अपनी तकनीकों और पूंजीवादी संरचना में उन्नत देशों के स्तर पर खड़ा हो गया और कुछ मामलों में तो इसने उन्हें बाहर कर दिया। रूस में उधोगों की कापफी सघनता थी। एक हजार से अèािक कामगारों की नियुकित करने वाले उपक्रमों ने रूसी श्रमिकों के 41.4 प्रतिशत की नियुकित की जिसका अर्थ था कि पूंजीपतियों और कामगारों के मèय कोर्इ अंतर्वर्ती परत मौजूद नहीं थी।      

——————————————————

  6. ग्रामीण समुदाय    

——————————————————                               

अपनी पुस्तक ‘द रशियन रिवोल्यूशन में शीला पिफटजपैटि्रक उल्लेख करती हैं कि ” … जब स्वामी या प्रबंèाक ने संयंत्रा का परित्याग कर दिया या इसे बंद करने की चेतावनी दी क्योंकि यह èान का नुकसान कर रहा था तब कर्मचारियों को बेरोजगारी से बचाने ;के क्रम में कारखानोंद्ध को कारखाना समितियों ने अèािग्रहीत कर लिया। जब ऐसी घटनाएं कापफी सामान्य हो गइ± तब कामगारों के नियंत्राण की परिभाषा कामगारों के स्व-प्रबंèान जैसी किसी वस्तु के समीप आ गर्इ। वे लिखती हैं कि सरकार और कामगारों के बीच बढ़ते हुए मतभेदों की वजह से वास्तविक शिकायतें भी बढ़ गइ± और कामकाजी वगो± की निगाहों में स्व-प्रबंèान का कार्यक्रम हर हालत में अèािक आवश्यक बन गया। कामगारों का समर्थन हासिल करने के षडयंत्रा रच रहे विदेशी अराजकतावादी तत्त्वों के बजाय ये पेत्राोग्राद की परिसिथतियां थीं जो कामगारों के अèािक विद्रोही बनने का कारण बनीं। ”कामगार … बोलशेविकों जिन्होंने कारखाना समितियों में प्रभाव अर्जित कर लिया …. ;द्वारा उत्तेजित किये गएद्ध …. कामगार वगो± में यह भाव उभर रहा था कि ‘सोवियत शकित का अर्थ जिले, शहर और शायद सारे देश में कामगारों का संंपूर्ण स्वामित्व होना है ….. यह बोलशेविकवाद की अपेक्षा अराजकतावाद अथवा अराजक-श्रमिकसंघवाद के समीपतर था और बोल्शेविक नेता वास्तविकता में इस विचार के सहभागी नहीं हो पाए कि सोवियतों और कारखाना समितियों के जरिये कामगारों का प्रत्यक्ष प्रजातंत्रा दलीय नेतृत्व में सर्वहारा की तानाशाही की उनकी अपनी अवèाारणा का युकितसंगत अथवा वांछनीय विकल्प था।

4. समाजवाद का प्रसार

जैसे ही रूस के औधोगीकरण की तीव्र प्रगति प्रारंभ हुर्इ, औधोगिक कामगारों की एक नर्इ पीढ़ी उभरी जिसे भीड़ भरे शहरों में उन परिसिथतियों में कठोर श्रम करना पड़ता था जो उनके जीवन को असहनीय समस्या बना देते थे। स्वाभाविक रूप से इसी वर्ग से समाजवाद के संदेश को सर्वाèािक प्रत्युत्तर प्राप्त हुए। 1890 के दशक में कार्ल माक्र्स7 के विचार उपन्यासकार मैकिसम गोर्की जैसे घोर परिवर्तनवादियों द्वारा प्रचारित और प्रसारित किये गए और क्रांतिकारी समाजवाद ने अपने उíेश्यों के लिये बहुत से प्रबुद्ध लोगों पर विजय प्राप्त करते हुए कारखाना-कामगारों के मèय त्वरित प्रगति प्राप्त की। 1895 में कामगारों के सामाजिक प्रजातांत्रिक दल की स्थापना हुर्इ जिसके कार्यक्रम अन्य देशों के समाजवादियों के समान थे। अब मèयवर्गीय परिवर्तनवादियों के नेतृत्व में किसानवर्ग ने शहरी सर्वहाराओं के उदाहरण की प्रतिस्पèर्ाा की और 1901 में ऐसे मंच के साथ सामाजिक क्रांतिकारी दल गठित किया जिसमें अभिजातों की विशाल भूसंपदा की जब्ती और उनका छोटी व्यकितगत कब्जेदारियों में वितरण समिमलित था। यह दल एक हथियार के रूप में आतंकवाद में विश्वास रखता था हालांकि वर्तमान में इसे आरक्षित रखा गया था। इस प्रकार एक क्रांतिकारी आंदोलन का पदार्पण हुआ जो समाजवादी सिद्धांतों के आèाार पर रूस की सामाजिक व राजनैतिक प्रणाली के पुनर्निर्माण का लक्ष्य रखता था। 1903 में सामाजिक प्रजातांत्रिक दल में दलीय अनुशासन और कार्यविèाि के प्रश्न पर विभाजन हुआ और लेनिन के नाम से विख्यात ब्लादिमीर इलियच उल्यानोव के नेतृत्व में इसका उग्रवादी èाड़ा मुख्य काया से अलग हो गया। यह èाड़ा बोल्शेविकों ;बहुसंख्यक लोगोंद्ध के रूप में जाना गया और दल का अèािक नरमपंथी èाड़ा मेन्शेविकों ;अल्पसंख्यक लोगोंद्ध के नाम से जाना गया। एक दल के रूप में मेन्शेविकों से बोल्शेविक संख्याबल में बहुत कम बने रहे हालाँकि उन्होंने उन प्रश्नों पर बहुमत अर्जित किया जो उनके अलगाव का कारण थे। दोनों ही हड़तालों और क्रांति में यकीन रखते थे किंतु बोल्शेविकों ने महसूस किया कि औधोगिक कामगारों के साथ-साथ किसानों का समर्थन हासिल करना अनिवार्य था जबकि मेन्शेविकों ने किसानों के समर्थन की मूल्यवत्ता पर संदेह करते हुए मèयवर्ग के साथ घनिष्ठ सहयोग का पक्ष लियाऋ लेनिन इसके तगड़े विरोèाी थे। 1912 में नया बोल्शेविक समाचार पत्रा प्रावदा ;सत्यद्ध प्रकाशित होने लगा जो बोल्शेविक विचारों के प्रचार और पहले से विकासशील हड़तालों की लहर के राजनैतिक दिशानिर्देश के साèान के रूप में अत्यèािक महत्त्वपूर्ण था।  

——————————————————-

  7. कार्ल माक्र्स ने ‘कम्यूनिस्ट मैनीपेफस्टो ;साम्यवादी घोषणापत्राद्ध का लेखन किया जिसे रूसी क्रांति का ध्र्मग्रंथ कहा जाता है। अपनी पुस्तक में माक्र्स ने घोषित किया कि अब तक मौजूद सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है। उन्होंने भविष्यवाणी की कि बुजर्ुआ और सर्वहारा के मèय जारी इस संघर्ष में उत्तरवर्ती विजय के लिये बाèय है जो सर्वहारा की तानाशाही की ओर ले जाते हुए अंतत: वर्गविहीन समाज को स्थान प्रदान करेगा।  

——————————————————-

 5. नव मèयवगो± द्वारा उदारवादी सुèााराें की मांगें

जब बीसवीं शताब्दी ने रूस में राजतंत्रा को चुनौती का उदघाटन किया तो यह समाजवाद की अपेक्षा उदारवाद की ओर से अèािक थी। औधोगिक क्रांति ने सुविकसित और उफर्जावान मèयवर्ग का निर्माण किया तथा व्यापारियों, कारखाना मालिकों एवं अन्य व्यवसायियों ने प्रतिनिèािपरक सरकार की किसी प्रणाली की मांग कर रहे बुद्धिजीवी उदारवादियों से हाथ मिला लिये। जेम्स्त्वा8 भी सक्रिय हो गइ± और सुèाारों के सुनिशिचत कार्यक्रम का खाका तैयार किया गया जो निष्पक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रीय विèाायिका, उत्तरदायी मंत्राालय, सभी नागरिकों की समता और समाचार जगत, èार्म व भाषण की स्वतंत्राता की मांग करता था। किंतु जार निकोलस द्वितीय जो प्रतिक्रियावादी मंत्राी प्लेहवे के प्रभाव की अèाीन था, इन मांगों के प्रति कानों से बहरा बन गया। रूसी सरकार इस पहचान में विपफल रही कि लोग राजा की अनिवार्यता को पीछे छोड़ चुके हैं और पुरानी बोतलों में नर्इ मदिरा नहीं रखी जाएगी। इसलिये यह संगठित हो रहे विप्लव के प्रति कापफी लापरवाही के साथ लगातार उत्पीड़क और दमनकारी बनी रही। जार के दुराग्रही स्वभाव और उसके आसपास हिलोरें मारती नर्इ शकितयों की निगूढ़ क्षमता के प्रति उसका अंèाापन उन महत्त्वपूर्ण कारणों में थे जिन्होंने रूसी क्रांति को जन्म दिया।

6. 1905 की क्रांति

1905 की क्रांति 1917 की क्रांति का बावर्दी पूर्वाभ्यास सिद्ध हुर्इ। आसवित होता रहा विप्लव आगे 1905 में पफट पड़ा जब सरकार रूस-जापानी युद्ध में विपफलता द्वारा साख गँवा बैठी। युद्ध में रूसी सेना को भारी पराजय का सामना हुआ। इसने रूस में क्रांतिकारी आंदोलन को और मजबूती दी। समूचे देश में आंदोलन और उपद्रव हो रहे थे। 9 जनवरी 1905 को सेंट पीटर्सबर्ग में अपनी पतिनयों व बच्चों के साथ जार को याचिका देने शीत महल ;विन्टर पैलेसद्ध जा रहे कर्मचारियों के शांतिपूर्ण समूह पर गोलियां चलार्इ गइ±। एक हजार से अèािक लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। यह काला दिन रकितम रविवार ;ब्लडी संडेद्ध के रूप में विख्यात है। हत्याओं के समाचार ने समूचे रूस में अभूतपूर्व उपद्रव उकसा दिया। यहाँ तक कि थल और नौ सेना के कुछ हिस्से भी विद्रोही हो गए। कामगारों के प्रतिनिèाियों की परिषद अथवा ‘सोवियत कहा जाने वाला एक नया संगठन इस क्रांति में विकसित हुआ जो 1917 के महापरिवर्तन में निर्णायक सिद्ध हुआ। किसानों की सोवियतें भी गठित हुइ±। जेम्स्त्वों ने सुèाारों की मांग की, कामगारों ने काम छोड़ दिया और किसानवर्ग भूमिपतियों को लूटने लगे। बढ़ती हुर्इ अव्यवस्था के शमन में असमर्थ जार ने सुèाारों का वादा किया और डयूमा अथवा राष्ट्रीय विèाायिका9 आहूत करने की घोषणा की। किंतु राजतंत्रा के साथ संसदीय सरकार का प्रयोग विपफलता में समाप्त हुआ। विपक्ष की श्रेणी में विभाजन का लाभ उठाते हुए जार ने डयूमा को विशुद्ध सलाहकार निकाय तक सीमित कर दिया था और राजतंत्रा की जीत की सुरक्षित रखने में समर्थ था। 1906 तक क्रांतिकारी लहर अपनी मुख्य शकित व्यय कर चुकी थी और प्रतिक्रिया अपने पूरे जोर पर थी। स्टालिपिन के प्रभाव के तहत सरकार ने दमन और रियायत की वैकलिपक ;कभी-कभी संयुक्तद्ध नीतियों को जारी रखा और पहले के द्वारा उत्पन्न किये गये द्वेष ने दूसरे से प्राप्त किसी लाभ को और अèािक नाकारा कर दिया।

7. डयूमा ;रूसी संसदद्ध की शकितयों के ßास के लिये प्रयास

1905 की क्रांति की मृत्यु की अपेक्षा पफौरन से पेश्तर निकोलस द्वितीय ने लोगों से उदारवादी रियायतें वापस लेने का विचार बना लिया। पहली डयूमा की बैठक से पूर्व सरकार ने आèाारभूत कानूनों वाले संविèाान की घोषणा कर दी। इस संविèाान में जार ‘सर्वोच्च निरंकुश शकित के रूप में वर्णित था। उसके पास सेना और विदेश नीति के नियंत्राण, डयूमा के विघटन और मंत्रियों को पदच्युत करने के अèािकार सहित वृहत कार्यकारी और विèाायी शकितयां थी।

———————————————————–

8. 1864 के सुधरों ने जनपदीय एवं प्रादेशिक विधयिकाओं ;जेम्स्त्वाद्ध का गठन किया। जनपदीय विधयिकाओं के सदस्य प्रत्येक ग्रामीण जनपद के निवासियों, किसानों व अभिजातों, द्वारा एक समान रूप से चुने जाते थे। तदुपरांत जनपदीय विधयिकाओं के सदस्यगण प्रादेशिक विधयिकाओं के प्रतिनिधियों का चयन करते थे। निर्वाचन की यह प्रणाली अभिजातों की शकितयों में कटौती करने तथा गैर-अभिजात वगो± को अधिक राजनैतिक अधिकार देने की प्रवृत्ति रखती थी।

9. यह एक संभावित ‘संसद थी जो जार को केवल सलाह दे सकती थी जिसे उपेक्षित कर दिया जाता था- जो सदस्य जार का विरोध् करते थे मृत्युदंडित या कैद कर दिये जाते थे।  

—————————————————   

डयूमा में उच्च और निम्न सदन समिमलित थे। उच्च सदन के आèो सदस्य जार द्वारा मनोनीत होते थे। हालाँकि निम्न सदन व्यापक पुरुष मताèािकार और गुप्त मतदान द्वारा निर्वाचित होता था, अप्रत्यक्ष मतदान की जटिल प्रणाली समृद्धतर वगो± की पक्षपाती थी। मतदाता पहले निर्वाचकों के लिये मतदान करते थे जो अंतत: डयूमा के सदस्यों के लिये मतदान करते थे। निर्वाचन की यह प्रणाली समृद्धतर वगो± का पक्ष लेती थी जो निर्वाचनो की इस पूरी श्रंृखला में भाग लेने में सक्षम थे। समृद्धतर वर्ग अपने राजनैतिक दृषिटकोण में सामान्य तौर पर अनुदारवादी थे और जार के समर्थन का रुझान रखते थे। इस प्रकार जार की निरंकुश शकितयां संविèाान के अलोकतांत्रिक प्रावèाानों द्वारा भलीभाँति सुरक्षित थीं।

पहली डयूमा ने मर्इ-जुलार्इ 1906 में स्थान ग्रहण किया। हालाँकि अप्रत्यक्ष मतदान समृद्धतर और राजनैतिक रूप से अनुदार वगो±10 का पक्षपाती था, डयूमा में पदासीन होने के लिये निर्वाचित होने वालों की बहुसंख्या सरकार विरोèाी थी। पहली डयूमा में निम्नलिखित समूहों के सदस्य समिमलित थे: संवैèाानिक प्रजातंत्रावादी अथवा कैडेट11, अक्टूबरवादी12 राष्ट्रीय समूह, श्रमिक समूह, किसान सदस्य13 और कुछ सामाजिक प्रजातंत्रावादी ;समाजवादी दलों ने प्रथम निर्वाचन का बहिष्कार किया क्योंकि वे सेंट पीटर्सबर्ग और मास्को सोवियत का दमन विस्मृत नहीं कर पाये थे। किंतु कुछ सामाजिक प्रजातंत्रावादियों ने दल के आदेश का उल्लंघन कर निर्वाचनों में भाग लिया थाद्ध कैडेटगण सबसे बड़ा दल थे। इन राजनैतिक समूहों व दलों ने कराèाान सहित राज्य के सभी मामलों पर पूर्ण नियंत्राण और मंत्रिमंडलीय उत्तरदायित्व की मांग की। दूसरे शब्दों में वे संवैèाानिक राजतंत्रा चाहते थे। जार ने तत्परता पूर्वक डयूमा को भंग कर दिया। कुल मिलाकर पहली डयूमा 73 दिनों तक चली।

दूसरी डयूमा के निर्वाचनों में जार ने बहुत से सरकार विरोèाी मतदाताओं को अपनी प्रत्याशिता अथवा मताèािकार को छोड़ देने के लिये अभित्रास्त किया। किन्तु यह अभित्राास व्यर्थ था। बहुत से सरकार विरोèाी प्रत्याशी दूसरी डयूमा के लिये निर्वाचित हुए। जार को गंभीर चेतावनी के रूप में 65 सामाजिक प्रजातंत्रावादी चुने गए। सामाजिक प्रजातंत्रावादियों ने जार की सरकार के उदारीकरण की मांग उठार्इ। परिणामस्वरूप दूसरी डयूमा भी पहली डयूमा के समान नियति को प्राप्त हुर्इ। तीन महीनों के भीतर ;मार्च-जून 1907द्ध यह जार द्वारा पुन: भंग कर दी गर्इ।

जार विद्रोही डयूमा का पिफर से सामना नहीं करने पर दृढ़ था। उसने बहुत से किसानों और गैर रूसी राष्ट्रीयता वालों को मतों से वंचित करने और वे सारे मत समृद्ध भूमिपतियों को देने के लिये मताèािकार को रूपांतरित कर दिया जिससे डयूमा के 60 प्रतिशत स्थान उनके द्वारा ग्रहण किया जाना सुनिशिचत किया जा सके।14 नर्इ मताèािकार प्रणाली की वजह से डयूमा में निर्वाचित अèािकतम लोग सरकार के समर्थक थे।

तीसरी डयूमा ;1907-1912द्ध और चौथी डयूमा ;1912-1917द्ध ने पांच वषो± का अपना निèर्ाारित कार्यकाल पूरा किया। उनमें अक्टूबरवादियों और राजतंत्रावादियों का प्रभुत्व था। कैडेट और मुटठीभर समाजवादी मिलकर डयूमा के लगभग एक चौथार्इ स्थानों पर ही कब्जा रखते थे। जैसे-जैसे डयूमा अपने संयोजन में अनुदारवादी हुर्इ डयूमा में रूसी आम जनता की कुंठाओं की अभिव्यकित के अवसर कमतर होते गए। बहुत से रूसी लोग पुन: जारवाद के विरोèाी बन गए।

—————————————————–

10. अनुदार वगो± में भूमिपति, समृद्ध व्यापारी और जार-समर्थक समिमलित थे।

11. कैडेटों में उदारवादियों की गणना थी जो विधयिका शकितयों सहित संसद की स्थापना की मांग करते थे। उनके विचार बहुत हद तक बि्रतानी उदारवादियों के समान थे।

12. अक्टूबरवादी दक्षिणपंथी उदारवादी थे। वे अक्टूबर घोषणापत्रा से पर्याप्तरूपेण संतुष्ट थे तथा और अधिक राजनैतिक अधिकारों की मांग नहीं करते थे।

13. राष्ट्रीय ;देशीयद्ध समूह देशीय अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधि था। श्रमिक समूह और Ñषक सदस्य उन किसानों व कामगारों के प्रतिनिधि थे जिन्होंने सामाजिक क्रांतिकारी दल अथवा सामाजिक प्रजातंत्रावादी दल की सदस्यता ग्रहण नहीं की थी।

14. 1907 की सरकारी आज्ञपित के अनुसार डयूमा को निर्वाचक मंडलों की संख्या द्वारा वर्गीय आधर पर निर्वाचित होना चाहिये। समृद्धतर भूस्वामी 60 प्रतिशत, किसान 22 प्रतिशत, व्यापारी 15 प्रतिशत और कामगार 3 प्रतिशत निर्वाचकों को चुनते थे।    

———————————————

   अक्टूबर घोषणापत्रा में लोगों को नागरिक स्वतंत्राताएं स्वीÑत करने के वायदे के बावजूद 1906 से 1911 तक प्रèाानमंत्राी रहे स्टालिपिन द्वारा दमनकारी नीतियाँ अपनार्इ गइ±। वह यहूदियों के उत्पीड़न और ग्रामीणक्षेत्राों में दंगाइयों के प्रति निर्दयतापूर्ण बर्ताव के लिये कुख्यात था। पिफनलैंड के राष्ट्रवादियों को दंडित करने के लिये उसने पिफनलैंड को स्वतंत्राता से वंचित कर दिया। लेनिन सहित कर्इ सामाजिक प्रजातंत्रावादी निर्वासित कर दिये गए।

8. गैर रूसी राष्ट्रीयता वाले अल्पसंख्यकों का असंतोष

रूसी साम्राज्य एक बहु-देशीयता वाला साम्राज्य था। रूस की लगभग आèाी जनसंख्या पोलैंडवासियों पिफनलैंडवासियों, यहूदियों, लातवियाइयों और लिथुवानियाइयों जैसे राष्ट्रीय ;देशीयद्ध अल्पसंख्यकों से निर्मित होती थी। यदि रूसी सरकार चाहती तो वह उन्हें रूसी राज्य के साथ सामंजस्यपूर्ण करने और सर्वèािक क्षमतावान विद्रोही केंद्रीय विशाल रूसी समूह के विरुद्ध खड़ा करने के लिये सबकुछ कर सकती थी। किंतु जार की सरकार ने कुछ भी नहीं किया उल्टा इसने उनके प्रति जबरिया ‘रूसीकरण15 की नीति का अनुसरण किया। गैर-रूसी राष्ट्रीयताओं की भाषाओं में पुस्तकों व समाचारपत्राों का प्रकाशन पूर्णतया प्रतिबंèाित था। विधालयों में विधार्थियों को उनकी मातृभाषा में कोर्इ निर्देश प्रदान करना संभव नहीं था। रूसी सरकार ने गैर रूसियों के लिये द्वेष और अपमान को इरादतन प्रोत्साहित किया। रूसी जनसंख्या उन्हें भिन्न्ग्रहीय और निम्नतर जातियों के रूप में देखने की अभ्यस्त बनार्इ गर्इ थी। उच्चपदस्थ सरकारी अèािकारी अèािकतम रूसी थे और प्रशासन के असंख्य विभागों के संपूर्ण क्रियाकलाप रूसी भाषा में परिचालित होते थे। रूसी अèािकारी गैर रूसी राष्ट्रीयताओं का अपमान, मानमर्दन और उत्पीड़न करने में किसी प्रयास का विस्तार नहीं करते थे। वे जारशाही के हाथों अकथनीय दुर्दशा झेलने को बाèय थे जिसे गैर रूसी लोगों का जल्लाद और उत्पीड़क ठीक ही कहा जाता है। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय ;देशीयद्ध अल्पसंख्यकों के सदस्यों का उच्च प्रतिशत क्रांति का प्रतिभागी रहा।

जारशाही साम्राज्य में राष्ट्रगत उत्पीड़न से मुकित समाजवादी क्रांति की विजय-सहवर्ती थी। राजनैतिक और सांस्Ñतिक पूर्वाग्रहों के परिणाम के रूप में बालिटक क्षेत्रा, मèय एशिया, काकेशसपार और अन्य क्षेत्राों के लोगों द्वारा महसूस किये जा रहे परायेपन के अतिरिक्त इन क्षेत्राों के लिये जारशाही आर्थिक नीतियों द्वारा निèर्ाारित आर्थिक पिछड़ेपन ने सुनिशिचत किया कि वे भूमि के प्रश्नों में सशक्त भाग के साथ प्राथमिकत: Ñषि आèाारित बने रहें। उनकी अपनी भाषा, संस्Ñति, समान अवसर और एक भिन्न राजनैतिक पहचान की भी मांग करते हुए राष्ट्रीय स्व-निèर्ाारण के लिये सशक्त आंदोलन सतह पर आये। बोल्शेविकों ने किसानों के लिये भूमि के साथ ही विलगाव के अèािकार और स्वैचिछक संघ का समर्थन किया। इन क्षेत्राों के किसान वर्ग ने जारशाही राजतंत्रा पर समाजवादी विकल्प की विजय में जीवंत भूमिका अदा की और राष्ट्रवादी उíेश्यों के सभी उदारवादी समाèाानों की पूर्णरूप से उपेक्षा कर दी।

9. आर्थिक संकट

रूसी क्रांति के आर्थिक कारण प्रथम विश्वयुद्ध द्वारा चक्रवèर्ाित जार के दुष्प्रबंèान पर मुख्यतया आèाारित थे। 15 लाख से अèािक लोग सेना में शामिल हो गए, इससे कारखानों में और खेतों पर कामगारों की अपर्याप्त संख्या ही बची रह गर्इ। इसका परिणाम खाध और पदाथो± की व्यापक कमी के रूप में सामने आया। कारखाना कामगारों को दारुण कार्यसिथतियों में, कम मजदूरी पर बारह से चौदह घंटे काम करना पड़ता था। बेहतर परिसिथतियों और उच्चतर मजदूरी के लिये कर्इ दंगे और हड़तालें हुइ±। हालाँकि कर्इ कारखाने उच्चतर मजदूरी देने को राजी हो गए किंतु युद्ध-कालीन मंदी ने इस वृद्धि को बेअसर कर दिया। कीमते उफँची हो गइ± क्योंकि युद्ध के दौरान सभी प्रकार के सामान और खाधान्न दुर्लभ हो गए। सामान्य तौर पर 1914 और 1917 के मèय कीमतें 500-700 प्रतिशत तक    

———————————————————-

  15. इसका अर्थ अन्य राष्ट्रीयताओं ;देशीयताओंद्ध की भाषा, साहित्य व संस्Ñति का दमन था।

————————————————–

 बढ़ गइ±। खाधान्न और सभी प्रकार की वस्तुओं की कमी निम्नलिखित कारणों की वजह से थी : ;1द्ध रूस केंद्रीय शकितयों की नाकाबंदी के कारण सभी प्रकार की बाहरी सहायता से विचिछन्न हो गया था। ;2द्ध परिवहन व्यवस्था लचर थीऋ ;3द्ध युद्ध के आरंभिक दौर में ही गेहूँ उत्पादक यूक्रेन तबाह हो गया थाऋ ;4द्ध कारखाने अस्वाभाविक रूप से विशाल सेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सैन्य साजोसामान के निर्माण हेतु बाèय थे।16 रोटी की कीमतों में बेहिसाब वृद्धि के कारण बहुत से रूसी लोगों को भूख का सामना करना पड़ा था। भूख कामगारों को हड़तालों की लहरों की ओर ले गर्इ जिनके नारों में केवल आर्थिक माँगें ही नहीं बलिक राजनैतिक माँग भी शामिल थी: जारशाही का नाश हो।

एक विरोèा प्रदर्शन के उत्तर में निकोलस द्वितीय ने हिंसक प्रत्युत्तर दिया, औधोगिक कामगार हड़ताल पर चले गए और रेलमागो± तथा परिवहन संजालों को प्रभावी रूप से अपंग बना दिया गया। जो कुछ आपूर्ति उपलब्èा भी थी उसका प्रभावकारी परिवहन नहीं हो सकता था। जैसे-जैसे वस्तुएँ दुर्लभ होने लगीं कीमतें भी आसमान छूने लगीं। 1917 तक अकाल ने कर्इ विशाल नगरों को अपनी चपेट में ले लिया। अपने देश की आर्थिक पीड़ा के समाèाान में निकोलस की विपफलता और तत्काल समाèाान का साम्यवादियों का वादा क्रांति के सारभाग में समाविष्ट था।

10. प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव

अगस्त 1914 में युद्ध का प्रारंभ प्रभावी सामाजिक और राजनैतिक विरोèा प्रदर्शनों के तात्कालिक रूप से शांत होने का कारण बन गया जिससे समान बाहरी शत्राु का सामना किया जा सके किंतु यह देशभकितपूर्ण एकता अèािक दिनों तक टिकी नहीं रह सकी। निष्कर्षहीन रूप से खिांचते हुए युद्ध से उत्पन्न युद्ध-क्लांति ने èाीरे-èाीरे अपना शुल्क वसूल करना प्रारंभ कर दिया। उसके उफपर यह आंतरिक टूटन अत्यèािक महत्त्वपूर्ण थी: हालांकि बहुत से सामान्य रूसियों ने युद्ध के प्रारंभिक कुछ हफ्रतों तक जर्मनी-विरोèाी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया किंतु संदेहवाद और भाग्यवाद सर्वाèािक प्रचलित प्रतिक्रिया के रूप में सामने आए जर्मनी के विरुद्ध शत्राुभाव और अपने जीवन व भूमि की रक्षा की इच्छा जार अथवा सरकार के प्रति समर्थन में आवश्यक रूप से अनूदित नहीं हुर्इ।

युद्ध में रूस की पहली मुख्य भिड़ंत विनाशकारी थी: 1914 के टैन्नेनबर्ग के युद्ध में 120,000 से अèािक रूसी सैनिक मारे गए, घायल हुए अथवा पकड़े गए जबकि जर्मनी के हताहतों की संख्या केवल 20,000 रही। 1915 के शरदकाल में निकोलस द्वितीय ने रूस के मुख्य युद्ध क्षेत्रा पर व्यकितगत रूप से दृषिट रखने के लिए सेना का प्रत्यक्ष नेतृत्व किया और सरकार का कार्यभार अपनी महत्त्वाकांक्षी किंतु अयोग्य पत्नी अलेक्जेंड्रा को सौंप दिया। शाही सरकार में भ्रष्टाचार और अक्षमता की सूचनाआें का आविर्भाव आरंभ हो गया और शाही परिवार पर ग्रेगोरी रासपुतिन के बढ़ते प्रभाव ने व्यापक विद्वेष भड़काया। 1915 में चीजों ने और बुरी अवस्था की ओर गंभीर मोड़ ले लिया जब जर्मनी ने अपने आक्रमण का केन्द्रबिंदु पूर्वी मोर्चे को स्थानांतरित कर दिया। श्रेष्ठतर जर्मन सेना जो बेहतर नेतृत्व, प्रशिक्षण व आपूर्ति से लैस थी दु:सजिजत रूसी सेना के विरुद्ध भयानक रूप से प्रभावकारी थी और अक्टूबर 1916 के अन्त तक रूस ने 1,600,000 से 1,800,000 के बीच सैनिकों को खोया, इसके अतिरिक्त 2,000,000 सैनिक युद्धबंदी हुए और 1,000,000 लापता थे, कुल मिलाकर यह संख्या लगभग 5,000,000 थी। इन विचलित कर देने वाली क्षतियों ने सैनिक विद्रोह में सुनिशिचत भूमिका निभार्इ जो उपसिथति दर्ज कराने लगे थे और 1916 में शत्राु के साथ भ्रातृभाव स्थापन की सूचनाएं प्रसारित होनी प्रारंभ हो गइ±। सैनिक भूखे थे और उनके पास जूतों, गोला-बारुद, तथा हथियारों तक का अभाव था। व्यापक विस्तृत असंतोष ने नैतिक साहस में कमी की और आगे सैन्य पराजयों की श्रृंखला ने उसकी जड़ें खोद दीं।

—————————————————-    

16. चूंकि रूस औधोगिक रूप से पिछड़ा हुआ था अत: यह आवश्यक पाया गया कि जर्मनी के विरुद्ध लड़ने के लिये एक विशाल सेना की नियुकित की जाए जिससे संख्याबल में उसकी श्रेष्ठता उपकरणों में उसकी अक्षमता की क्षतिपूर्ति कर सके। 1917 तक कामकाजी आयु की पुरुष जनसंख्या के 37», लगभग एक सौ पचास लाख, लोग नियुक्त किये जा चुके थे। यह श्रमिकों की कमी और कारखानों में कम उत्पादन की ओर ले गया।

————————————————————-

हताहत होने की दरें विनाश का जीवंत चिहन थीं। पहले से ही युद्ध के केवल पाँच महीनों में, 1914 के अन्त तक 400,000 रूसी लोग अपना जीवन बलि चढ़ा चुके थे और लगभग 1,000,000 घायल थे। उम्मीद से कहीं पहले ही अल्प-प्रशिक्षित रंगरूटों को सक्रिय सेवा के लिए बुला लिये जाने की प्रक्रिया समूचे युद्ध के दौरान जारी रही तथा विचलित करने वाली क्षतियों का आरोपण भी जारी रहा। अèािकारी वर्ग ने भी असाèाारण हेर-पफेर के दर्शन किये, विशेषतया निचले सोपानकों की पर जिन्हें सैनिकों की पदोन्नति के जरिये शीघ्रतापूर्वक भर दिया जाता था। सामान्यतया किसान या कामगार पृष्ठभूमि के इन लोगों को 1917 में सैन्यदलों के राजनीतिकरण में विशाल भूमिका अदा करनी थी।

युद्ध की विशाल क्षतियां केवल लोगों तक सीमित नहीं थीं। सेना को शीघ्र ही राइपफलों और गोलाबारुद के साथ ही वर्दियों और राशन की कमी झेलनी पड़ी और 1915 के मèय तक ऐसे लोग मोचो± पर भेजे जाने लगे जिनके हाथों में हथियार नहीं होते थेऋ उम्मीद की जाती थी कि वे युद्ध के मैदान में खेत रहे दोनों पक्षों के सिपाहियों के हथियारों को हासिल कर स्वयं को शस्त्रासजिजत कर सकते हैं।

प्रत्यक्षतया पर्याप्त कारणों के साथ सैनिकों ने कभी यह अनुभव नहीं किया कि उन्हें मानवजीव अथवा एक मूल्यवान सैनिक माना गया हो बलिक इसके बजाय उन्हें समृद्ध और सत्तासंपन्नों के स्वाथो± के लिये अपव्यय किया जाने वाला कच्चामाल माना गया। 1915 की वसंत )तु तक सेना मंथर गति से पीछे हट रही थी – और यह हमेशा व्यवसिथत नहीं था- पलायन, लूटमार और अव्यवसिथत पलायन असामान्य नहीं थे। हालांकि 1916 तक परिसिथतियां कर्इ संदभो± में बेहतर हो गइ±। रूसी सेनाओं ने पीछे हटना बंद कर दिया और यहां तक कि कुछ आक्रमणों में कुछ छुट-पुट जीतें भी हासिल हुइ± अगरचे अनगिनत इंसानी जिंदगियों की कीमत पर। इसके अलावा कमी की समस्या घरेलू उत्पादन में बढ़ोत्तरी के गंभीर प्रयासों द्वारा बहुत हद तक सुलझा ली गर्इ। हालांकि 1916 के अंत तक सैनिकों का नैतिक बल 1915 की विशाल वापसी के दौरान रहे हुए स्तर से भी अèािक नीचे आ गया था। मनोबल में कमी ;जैसा युद्ध और क्रांति में रूसी सेना के अग्रणी इतिहासकार एलन वाइल्डमैन द्वारा तर्क दिया गयाद्ध ”आèाारभूत रूप से इस परम हताशा की अनुभूति में जड़ जमाए हुए थी कि क्या यह नरबलि कभी समाप्त होगी और क्या विजय से मिलती-जुलती कोर्इ चीज हासिल की जा सकेगी।

निस्संदेह युद्ध विनाशकारी था और ऐसा केवल सैनिकों के लिये नहीं था। 1915 के अंत तक ऐसे लक्षण दिखने लगे थे कि युद्धकालीन मांगों के उच्चीÑत दबाव के अèाीन अर्थव्यवस्था ठप होती जा रही है। खाधान्न की कमी और बढ़ती हुर्इ कीमतें मुख्य समस्याएँ थीं। मुद्रास्पफीति चेतावनीपरक त्वरित दर से वास्तविक आय को नीचे ला चुकी थी और वस्तुओं की कमी ने उन्हें भी खरीदना मुशिकल बना दिया था जिन्हें कोर्इ वहन कर सकता था। राजèाानी पेत्राोग्राद17 में यह कमी विशेष तौर पर एक समस्या थी जहाँ आपूर्ति स्थलों से दूरी और लचर परिवहन संजाल ने मामलों को विशिष्ट तौर पर बुरा बना दिया था। रोटी, चीनी, मांस और अन्य आवश्यक वस्तुओं के अभाव के कारण दुकानें जल्दी या पूरी तरह बंद होने लगी थी और जो कुछ बचा हुआ था उसे पाने के लिये कतारें लंबी होती जा रही थीं। खाना खरीदने में समर्थ होने और उसे वास्तविक रूप से खरीदने दोनों की कठिनाइयाँ बढ़ती ही जा रही थीं। बिना किसी आश्चर्य के 1915 के मèय से हड़तालों में मंथर वृद्धि होने लगी और अपराèाों के साथ भी ऐसा ही हुआ किंतु देश के अèािकांश भागों में लोग दु:ख भोगते और सहते रहे-खाने के लिये शहर में èाूमकेतु की तरह घूमते रहे-पेत्राोग्राद में कामकाजी महिलाएं कथित तौर पर सप्ताह में चालीस घंटे खाने की कतारों में खर्च करती थीं – भिक्षावृत्ति करते हुए, वेश्यावृत्ति अथवा अपराèा की ओर उन्मुख होते हुए, गरमाहट हेतु अंगीठियों को जलाने के निमित्त लकड़ी की चारदीवारियों को उखाड़ते हुए, समृद्धों की भत्र्सना और यह सोचते हुए कि यह सब कुछ कब और कैसे समाप्त होगा। सार्वजनिक व्यवस्था के लिये उत्तरदायी सरकारी अèािकारी पर्याप्त कारणों से इस बात के लिये चिंतित थे कि लोगों का èौर्य कब तक बना रहेगा। अक्टूबर 1916 में सुरक्षा आरक्षी ओखराना की पेत्राोग्राद शाखा का एक प्रतिवेदन ”दैनिक जीवन की परेशानियों से आग बबूला हो रहे साम्राज्य के निम्नतर वगो± द्वारा निकट भविष्य में दंगों की संभावना के बारे में बड़े मुँहपफट तरीके से चेतावनी देता है।   

——————————————————

17. पूर्वतया सेंट पीटर्सबर्ग नगर      

——————————————————

     इन सभी संकटों के लिये निकोलस द्वितीय को दोषी करार दिया गया और जो अल्पसमर्थन उसे प्राप्त था वह भी छीजने लगा। जैसे ही असंतोष बढ़ा नवंबर 1916 में डयूमा ने निकोलस को चेतावनी जारी की। इसमें कहा गया कि यदि सरकार का संवैèाानिक रूप से सामने नहीं लाया गया तो एक भयंकर विनाश देश को अपरिहार्य रूप से अपनी चपेट में ले लेगा। हालाँकि यथाप्रचलित रीति के अनुसार निकोलस ने उनकी उपेक्षा कर दी और कुछ महीनों के बाद 1917 की पफरवरी क्रांति के दौरान रूस का जारशाही शासन ढह गया। एक साल बाद जार और उसका संपूर्ण परिवार मौत के घाट उतार दिये गए।

अंतत: अपने देश और युद्ध के जार के अनुपयुक्त संचालन ने जारशाही को विनष्ट कर दिया और यह अंत उसके शासन व जीवन दोनों की कीमत पर हुआ।

निष्कर्ष

निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि रूस में क्रांति के कर्इ कारण मौजूद थे। कुछ राजनैतिक तो कुछ सामाजिक व आर्थिक थे-किंतु उन सबमें कुछ चीजें एक समान थीं- उन सबने जार निकोलस द्वितीय को राज्यच्युत करने में सहायता दी। आरंभिक 20वीं शती में रूस एक विशाल क्षेत्रा को आच्छादित करता था जिसमें एशियार्इ महाद्वीप का बड़ा हिस्सा था और एक बहुत शकितशाली व्यकित जार निकोलस द्वितीय इस समूचे भाग पर शासन करता था। अèािकतम देश अतिजनसंख्या वाले क्षेत्राों में, गरीबी में निवास करता था, मèयकालीन युग के समान परिसिथतियों में काम करता था और अत्यèािक अल्प भुगतान प्राप्त करता था। पेत्राोग्राद और मास्को जैसे केवल दो औधोगिक शहर मौजूद थे और शेष देहाती झुग्गी बसितयां थीं। दसियों करोड़ की जनसंख्या के साथ लगभग 8000 किमी लंबे चौड़े इस विशाल देश पर जो पोलैंड से लगभग अलस्का तक विस्तृत था, शासन करते हुए निकोलस द्वितीय को कापफी कठिन समय का सामना करना पड़ा। उसके साम्राज्य के विशाल आकार की वजह से हम उसके प्रति थोड़े सहानुभूतिपूर्ण हो सकते हैं किंतु उसकी कुछ समस्याएं उसकी अपनी गलतियों के कारण उत्पन्न हुर्इं। वह एक कठोर निरंकुश राजा था जो लोगों को उनके अपने जीवन पर कोर्इ शकित अथवा नियंत्राण नहीं देता था। 1914 में युद्ध पर जाने का उसका निर्णय शाही शासन के लिये विनाशकारी सिद्ध हुआ।

रिचर्ड पाइप्स के अनुसार -”यदि प्रथम विश्वयुद्ध नहीं हुआ होता तो शायद रूसी शाही सरकार ;शेष गड़बडि़यों सेद्ध किसी तरह पार पा लेती और समय के साथ संसदीय शासन के किसी रूप में विकसित होती।

रूस की 1917 की अक्टूबर क्रांति का क्या परिणाम?

सन 1917 की रूस की क्रान्ति विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इसके परिणामस्वरूप रूस से ज़ार के स्वेच्छाचारी शासन का अन्त हुआ तथा रूसी सोवियत संघात्मक समाजवादी गणराज्य (Russian Soviet Federative Socialist Republic) की स्थापना हुई।

रूस की क्रांति के क्या परिणाम थे?

रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप सर्वप्रथम निरंकुश-तंत्र, अभिजात वर्ग और चर्च की शक्ति का अंत हो गया। ज़ार के राज्य का अंत कर उसे सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ में बदल दिया गया। राज्य की आर्थिक नीतियों को समाजवादी आदर्शों के माध्यम से चलाने का प्रयास किया गया।

रूसी क्रांति के कारण और परिणाम क्या थे?

रूसी क्रांति ( Russian Revolution )1917 के कारण निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी जारशाही : राजत्व के दैवीय सिद्धान्त पर आधारित था , कुलीन एवं सामतों का वर्चस्व बढ़ा हुआ था , जार निकोलस- II पूर्ण निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासक था । औद्योगिक क्रांति और उसके परिणाम : श्रमिकों की दयनीय दशा , अस्तित्व ही चेतना का निर्धारण करता है ।

1917 की रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण क्या था?

1905 में रूस-जापान युद्ध में रूस की पराजय ने रूस में पहली क्रान्ति 1917 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बनी। युद्ध में कृषि तथा उद्योग से जुड़े लोग भी सैनिक कार्य हेतु भेजे गये जिसका प्रतिकूल असर अनाज एवं अन्य उत्पादों के उत्पादन पर पड़ा। जनता के बीच दुर्भिक्ष की स्थिति हो रही थी।