ऋषि मुख पर्वत कौन से राज्य में स्थित है? - rshi mukh parvat kaun se raajy mein sthit hai?

ऋष्यमूक वाल्मीकि रामायण में एक पर्वत का नाम है।[1] रामायण के अनुसार ऋष्यमूक पर्वत में ऋषि मतंग का आश्रम था। वालि ने दुंदुभि असुर का वध करने के पश्चात् दोनों हाथों से उसका मृत शरीर एक ही झटके में एक योजन दूर फेंक दिया। हवा में उड़ते हुए मृत दुंदुभि के मुँह से रक्तस्राव हो रहा था जिसकी कुछ बूंदें मतंग ऋषि के आश्रम पर भी पड़ गयीं। मतंग यह जानने के लिए कि यह किसकी करतूत है, अपने आश्रम से बाहर निकले। उन्होंने अपने दिव्य तप से सारा हाल जान लिया। कुपित मतंग ने वालि को शाप दे डाला कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन के पास भी आयेगा तो अपने प्राणों से हाथ धो देगा। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब वालि ने सुग्रीव को देश-निकाला दिया तो उसने वालि के भय से अपने अनुयायियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत में जाकर शरण ली।[2]

नोट:- बाली ने दुदुभि असुर को चार योजन दूर फेका था।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "ऋष्यमूक". मूल से 9 जुलाई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-05-08.
  2. "वालि का शाप". मूल से 17 फ़रवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-05-08.

यह लेख रामायण में वालि के राज्य के बारे में है। नाटक के लिए, किष्किन्धा (नाटक) देखें।

किष्किन्धा जो कि आज हम्पी है, वाल्मीकि रामायण में पहले वालि का तथा उसके पश्चात् सुग्रीव का राज्य बताया गया है।
आज के संदर्भ में यह राज्य तुंगभद्रा नदी के किनारे वाले कर्नाटक के हम्पी शहर के आस-पास के इलाके में माना गया है। रामायण के काल में विन्ध्याचल पर्वत माला से लेकर पूरे भारतीय प्रायद्वीप में एक घना वन फैला हुआ था जिसका नाम था दण्डक वन। उसी वन में यह राज्य था। अतः यहाँ के निवासियों को वानर कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है वन में रहने वाले लोग। रामायण में किष्किन्धा के पास जिस ऋष्यमूक पर्वत की बात कही गयी है वह आज भी उसी नाम से तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है।

ऋषि मुख पर्वत कौन से राज्य में स्थित है? - rshi mukh parvat kaun se raajy mein sthit hai?

किष्किन्धा का विहंगम दृश्य

ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्री राम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबलि बालि ने अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था।

राम-हनुमान मित्रता स्थल

ऋष्यमूक पर्वत रामायण की घटनाओं से सम्बद्ध दक्षिण भारत का पवित्र पर्वत है। विरूपाक्ष मन्दिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहीं सुग्रीव और राम की मैत्री हुई थी। यहाँ तुंगभद्रा नदी धनुष के आकार में बहती है। सुग्रीव किष्किंधा से निष्कासित होने पर अपने भाई बालि के डर से इसी पर्वत पर छिपकर रहता था। उसने सीता हरण के पश्चात् राम और लक्ष्मण को इसी पर्वत पर पहली बार देखा था-

'तावृष्यमूकस्य समीपचारी चरन् ददर्शद्भुत दर्शनीयौ,
शाखामृगाणमधिपस्तरश्ची वितत्रसे नैव विचेष्टचेष्टाम्'[1]

अर्थात् "ऋष्यमूक पर्वत के समीप भ्रमण करने वाले अतीव सुन्दर राम-लक्ष्मण को वानर राज सुग्रीव ने देखा। वह डर गया और उनके प्रति क्या करना चाहिए, इस बात का निश्चय न कर सका।"

तीर्थ स्थल

तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्री राम मन्दिर है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था। पास ही चित्रकूट और जालेन्द्र नाम के शिखर भी हैं। यहीं तुंगभद्रा के उस पार दुन्दुभि पर्वत दिखाई देता है, जिसके सहारे सुग्रीव ने श्री राम के बल की परीक्षा करायी थी। इन स्थानों में स्नान और ध्यान करने का विशेष महत्त्व है। श्रीमद्भागवत में भी ऋष्यमूक का उल्लेख है-

'सह्योदेवगिरिर्ऋष्यमूक: श्रीशैलो वैंकटो महेन्द्रो वारिधारो विंध्य:।'[2]

तुलसीरामायण, किष्किंधा कांड में ऋष्यमूक पर्वत पर राम-लक्ष्मण के पहुँचने का इस प्रकार उल्लेख है-

'आगे चले बहुरि रघुराया, ऋष्यमूक पर्वत नियराया।'

दक्षिण भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के खंडहरों अथवा हम्पी में विरूपाक्ष मन्दिर से कुछ ही दूर पर स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता है। जनश्रुति के अनुसार यही रामायण का ऋष्यमूक है। मंदिर को घेरे हुए तुंगभद्रा नदी बहती है। ऋष्यमूक तथा तुंगभद्रा के घेरे को चक्रतीर्थ कहा जाता है। चक्रतीर्थ के उत्तर में ऋष्यमूक और दक्षिण में श्री राम का मंदिर है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। प्राचीन किष्किंधा नगरी की स्थिति यहाँ से 2 मील (लगभग 3.2 कि.मी.) दूर, तुंगभद्रा नदी के वामतट पर, अनागुंदी नामक ग्राम में मानी जाती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 108- 109| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

  1. किष्किंधा., 1,128
  2. श्रीमद्भागवत 5,19,16

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ऋषि मुख पर्वत कौन से प्रदेश में है?

माना जाता है कि रामायण में जिस ऋष्यमूक पर्वत का उल्लेख है, वह कर्नाटक प्रदेश के हम्पी में है।

किष्किंधा कौन से राज्य में पड़ता है?

किष्किन्धा जो कि आज हम्पी है, वाल्मीकि रामायण में पहले वालि का तथा उसके पश्चात् सुग्रीव का राज्य बताया गया है। आज के संदर्भ में यह राज्य तुंगभद्रा नदी के किनारे वाले कर्नाटक के हम्पी शहर के आस-पास के इलाके में माना गया है।

राम और लक्ष्मण ऋषि मुख पर्वत के शिखर पर कैसे पहुंचे?

राम और लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान जी की सहायता से पहुंचे थे। हनुमान जी उन्हें अपने कंधों पर बिठाकर ऋष्यमूक पर्वत के शिखर पर ले कर गए। ऋष्यमूरक पर्वत पर वानर राज सुग्रीव रहते थे, जिन्हें उनके भाई बाली ने राज्य से निकाल दिया था। वह अपने भाई बाली जान की रक्षा के लिए ऋष्यमूक पर्वत पर रहते थे।

ऋषि मुख पर्वत की ऊंचाई कितनी है?

झारखंड राज्य की यह सबसे ऊंची पहाड़ी है। गिरिडीह स्थित इस पहाड़ी की ऊंचाई लगभग 4,440 फीट है।