Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका स्वागत है और आज हम जानेंगे राजनीति विज्ञान में समाजवाद (What is Socialism) के बारे में । समाजवाद एक आर्थिक सामाजिक विचारधारा है । इस Post में हम जानेंगे समाजवाद क्या है ? इसकी विशेषताएं और इसका महत्व और साथ ही साथ इस की आलोचनाओं के बारे में जानेंगे चलिए जानते हैं, आसान भाषा में । Show समाजवाद क्या है ? समाज में सभी तरह के लोग रहते हैं, अमीर, ग़रीब, इसी तरह इनके अलग अलग धर्म, जाति होती है । अलग रंग, रूप, खान पान आदि के आधार पर सभी तरह के लोग समाज मे निवास करते हैं । जिसके कारण इनमें आपस में संघर्ष चलता रहता है । इसी संघर्ष को दूर करने के लिए समाजवाद की आवश्यकता पड़ती है । समाजवाद आर्थिक असमानता को दूर करना चाहता है । आर्थिक सामाजिक और वैचारिक आधार पर, निजी संपत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है । नागरिकता पर टी. एच. मार्शल (T.H. Marshall) के विचारों को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें । समाजवाद बताता है, और इसकी प्रमुख धारणा यह है कि संपत्ति के उत्पादन और वितरण पर समाज का स्वामित्व होना चाहिए । आधुनिक अर्थों में समाजवाद को पूंजीवाद तथा मुक्त बाजार के विपरीत सिद्धांत के रूप में भी देखा जाता है । वास्तव में राजनीतिक विचारधारा के रूप में समाजवाद यूरोप में 18वीं और 19वीं शताब्दी में उभरे व्यक्तिवाद, औद्योगिकरण और औद्योगिक शोषण, आर्थिक शोषण के विरोध में उठाया गया एक राजनैतिक आंदोलन है । राजनीति के मार्क्सवादी दृष्टिकोण के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें । संपत्ति के उत्पादन तथा वितरण पर व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक स्वामित्व समाजवाद का मूल है । आइए अब जानते हैं, समाजवाद के विकास के बारे में । समाजवाद का विकास वैज्ञानिक समाजवाद, समाजवाद को वैज्ञानिक स्वरूप देने तथा एक सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय कार्ल मार्क्स को जाता है । कार्ल मार्क्स ने कहा है कि-
कार्ल मार्क्स एक समाजवादी वैज्ञानिक और एक यूटोपियन के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें । मार्क्स के वर्ग संघर्ष सिद्धांत पढ़ने के लिए यहाँ Click करें । इसी तरीके से अपने अपने समय में अनेक विचारको ने समाजवाद के विकास के लिए बहुत सारे कदम उठाए । जैसे प्राचीन समाजवादी विचारको में मैसेज तथा प्लेटो के समाजवाद को लेकर विचार महत्वपूर्ण माने जाते हैं । इसी तरह से यूटोपियन समाजवाद में स्वपनवादी और कल्पनावादी पाया जाता है । जिसमें सबसे पहले सर टॉमस मूर ने ‘Utopia’ और किकेम्प्नेला ने ‘द सिटी ऑफ द सन’ के द्वारा समाजवाद में योगदान दिया । इसी तरह से दूसरे इस वर्ग के समाजवादीयों में कल्पना को साकार रूप दिया । प्लेटो का न्याय सिद्धान्त पढ़ने के लिए यहाँ Click करें । इसके अलावा अनेकों विद्वानों जैसे रोबोट ओवन, फोरियर और सेंट साइमन ने मज़दूरों की दशा और जीवन को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । समाजवाद की परिभाषा आइए अब जानते हैं, समाजवाद की परिभाषा के बारे में । समाजवाद की परिभाषा अनेकों विद्वानों ने अलग-अलग तरीके से बताई हैं । अगर हम बात करें सी. ई. एम. जोड ने समाजवाद को कहा है कि-
इसी तरीके से समाज को केंद्र मानकर एक ऐसे राज्य का समर्थन किया जाता है, जिसको अधिक से अधिक उत्तरदायित्व दिया जाए । इस प्रकार समाजवाद एक राजनीतिक शब्द के साथ ही आर्थिक शब्द बना हुआ है । लास्की (Laski) का सम्पत्ति सिद्धांत के बारे में जानने के लिए यहाँ Click करें । इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार-
सेलर्स के अनुसार-
प्रोफेसर एनी के अनुसार-
समाजवाद के तत्व या सिद्धांत आइये अब समाजवाद के सिद्धांत और तत्वों के बारे में जान लेते हैं । समाजवाद के तत्व व्यक्तिवाद के दोषों को दूर करता है । यह संपत्ति पर सामाजिक स्वामित्व स्थापित करता है । यह लोकतंत्र का समर्थक सिद्धान्त है । समाजवाद का सिद्धान्त न्याय और सहयोग की भावना पर आधारित है । समाजवाद का सिद्धांत निजी संपत्ति का अंत करता है और समानता की स्थापना करता है । जे. एस. मिल (J.S. Mills) के विचारों को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें । निष्कर्ष के तौर पर कहा जाए तो, यह विभिन्न परिभाषाओं तथा उन्हीं तत्वों के आधार पर कहा जा सकता है कि उत्पत्ति के साधन तथा वितरण पर निजी स्वामित्व को समाप्त करके सामूहिक स्वामित्व को स्थापित करना और यह स्वामित्व राज्य में हो । जो संपूर्ण समाज के हित में कार्य करें । यह इसका महत्वपूर्ण उद्देश्य है । समाजवाद का महत्व आइए अब जानते हैं, समाजवाद के महत्व के बारे में । समाजवाद व्यक्तिगत संपत्ति तथा शोषण व अन्याय पर आधारित व्यवस्था को समाप्त करके । समानता और न्याय आधारित समाज की स्थापना करना चाहता है । यह एक प्रकार से व्यक्तिवाद का ही संगठित रूप है । वास्तव में अगर देखा जाए तो समाजवाद एक राजनीतिक अथवा आर्थिक सिद्धांत नहीं, बल्कि यह तो जीवन जीने का एक तरीका और जीवन दर्शन है । समाजवाद केवल धन का सामाजिकरण नहीं है, बल्कि यह तो जीवन और हृदय का भी परिवर्तन माना जाता है । संपत्ति के मार्क्सवादी सिद्धांत के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें । समाजवाद की आलोचना जिस तरह से हमने समाजवाद का अर्थ, उसकी परिभाषा उसके तत्वों सिद्धांतों के बारे में जाना, इस तरह से ही समाजवाद की आलोचना भी की गई है । समाजवादी व्यक्तिवादी स्वतंत्रता का अंत करता है । समाजवाद के द्वारा उत्पादन की क्षमता में कमी आती है । राज्य पर कार्यों पर अत्यधिक दबाव भी समाजवाद की आलोचना में सम्मिलित किया जाता है । समाजवाद के द्वारा समय और धन का फिजूल खर्चा होता है । समाजवाद से नैतिक पतन और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है । यह एक संगठित लूट मानी जाती है । साथ ही साथ समाजवाद अनुचित समानता की बात करता है । विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें । तो दोस्तों यह था समाजवाद का अर्थ, परिभाषा, महत्व और उसकी आलोचना । अगर आपको Post अच्छी लगी हो तो, अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें । तब तक के लिए धन्यवाद !! समाजवाद क्या है और इसकी विशेषताएं?वेकर कोकर के अनुसार - ''समाजवाद वह नीति या सिद्धांत है जिसका उद्देश्य एक लोकतांत्रिक केन्द्रीय सत्ता द्वारा प्रचलित व्यवस्था की अपेक्षा धन का श्रेष्ठ कर वितरण और उसके अधीन रहते हुए धन का श्रेृठतर उत्पादन करना है।'' बर्नार्ड शॉ के अनुसार - ''समाजवाद का अभिप्राय संपत्ति के सभी आधारभूत साधनों पर नियंत्रण से है।
समाजवाद की मुख्य विशेषता क्या है?मारिस डाब के अनुसार," समाजवाद की आधारभूत विशेषता यह है की इसमे सम्पन्न वर्ग की संपत्ति का अधिग्रहण एवं भूमि तथा पूंजी का समाजीकरण करके उन वर्ग संबंधों को समाप्त कर दिया जाता है, जो पूंजीवादी उत्पादन का आधार है।" श्री जयप्रकाश नारायण के शब्दों में," समाजवादी समाज एक ऐसा वर्गविहीन समाज होगा, जिसमें सब श्रमजीवी होगें।
समाजवाद का जनक कौन है?कार्ल हेनरिख मार्क्स वैज्ञानिक समाजवाद के जनक थे. इनके अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और राजनीति के सिद्धांतों की समझ को 'मार्क्सवाद' कहा जाता है.
भारतीय समाजवाद का उद्देश्य क्या है?भारतीय समाजवादी विचारधारा के अनुसार नि:स्वार्थ सेवा, त्याग और आध्यात्मिक प्रवृत्ति - इनमें शोषक और शोषित के लिए कोई स्थान नहीं। यदि किसी के पास कोई संपत्ति है तो वह समाज की धरोहर मात्र है, देखा जाये तो इसके अनुसार सभी लोग एक समान स्थिति में होने चाहिए। सबके लिए समानता।
|