Surdas Ke Pad Class 10 Explanation , Surdas Ke Pad Class 10 Explanation Hindi Kshitij , सूरदास के पद कक्षा 10 का भावार्थ हिन्दी क्षितिज , Note – “सूरदास के पद” कविता के प्रश्नों के उत्तर देखने के लिए Next Page में Click कीजिए। “सूरदास के पदों” का भावार्थ हमारे YouTube channel में देखने के लिए इस Link में Click कीजिए । – (Padhai Ki Batein /पढाई की बातें) यहां सूरदास के “सूरसागर के भ्रमरगीत” से चार पद लिए गए हैं। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों को सन्देश भेजा था। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया । लेकिन गोपियाँ ज्ञान मार्ग के बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थी। इसी कारण उन्हें उद्धव का यह संदेश पसंद नहीं आया और वो उद्धव पर तरह – तरह के व्यंग बाण छोड़ने लगी। Surdas Ke Pad Class 10पद 1 . ऊधौ , तुम हौ अति बड़भागी। अर्थ – उपरोक्त पंक्तियों व्यंगात्म्क हैं जिसमें गोपियाँ श्री कृष्ण के परम् सखा उद्धव से अपने मन की व्यथा को व्यंग रूप में कह रही हैं। गोपियाँ उद्धव पर व्यंग करते हुए कह रही हैं कि.. हे !! उद्धव तुम बड़े ही भाग्यशाली हो क्योंकि तुम कृष्ण के इतने निकट रहते हुए भी उनके प्रेम के बंधन में नहीं बँधे हो। तुम्हें कृष्ण से जरा सा भी मोह नहीं है और तुम अभी तक उनके प्रेम रस से भी अछूते हो। अगर तुम कभी कृष्ण के स्नेह के धागे से बंधे होते तो , तुम हमारी विरह वेदना की अनुभूति अवश्य कर पाते या हमारी विरह वेदना को समझ पाते । लेकिन हे उद्धव !! तुम कमल के उस पत्ते की तरह हो , जो जल के भीतर रहकर भी गीला नहीं होता है। और जिस प्रकार तेल से भरी हुई गागर को पानी में डुबो देने पर भी , उसमें पानी की एक बूँद नहीं ठहरती है , ठीक उसी प्रकार कृष्ण रुपी प्रेम की नदी के पास रह कर भी , उसमें स्नान करना तो दूर , तुम पर तो उनके प्रेम का एक छींटा भी नहीं पड़ा हैं। तुमने कभी कृष्ण रूपी प्रेम की नदी में अपने पैर तक नहीँ डुबाये और न ही कभी उनके रूप–सौंदर्य का दर्शन किया। इसीलिए हे उद्धव !! तुम विद्वान हो , जो कृष्ण के प्रेम में बंधे नहीं हो। लेकिन हम गोपियाँ तो बहुत भोली- भाली हैं। हम तो कृष्ण के प्रेम में कुछ इस तरह से बँध गईं हैं जैसे गुड़ में चींटियाँ चिपक जाती हैं। पद 2 . मन की मन ही माँझ रही। अर्थ उपरोक्त पंक्तियों में गोपियां उद्धव से कहती हैं कि कृष्ण के गोकुल से चले जाने के बाद उनके मन की सारी अभिलाषाएं मन में ही रह गई है। वो अपने मन की सभी बातें कृष्ण को बताना चाहती थी लेकिन कृष्ण के गोकुल न लौट कर आने की वजह से अब वो कभी भी अपने मन की बात कृष्ण से नहीं कह पाएंगी। गोपियां उद्धव के हाथ कृष्ण को संदेश भी नहीं भेजना चाहती हैं । गोपियां उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव ! वो इतने लंबे समय से तन-मन और हर प्रकार की विरह बेदना को सिर्फ इसलिए सहन कर रही थी क्योंकि उन्हें विश्वास था कि एक न एक दिन श्रीकृष्ण गोकुल अवश्य आएंगे और उनके सब दुख दूर हो जायेंगे। परंतु श्रीकृष्ण ने खुद आने के बजाय , हमारे लिए यह योग संदेश भेजकर हमें और दुखी कर दिया है। हम बिरह की अग्नि में और भी ज्यादा जलने लगी हैं। हे उद्धव ! जब भी किसी के जीवन में दुख आता है तो वह अपने रक्षक को पुकारता है परंतु हमारे रक्षक ही आज हमारे दुख का कारण हैं। अब तुम्ही बताओ कि हम कैसे धीरज धरें , जब हमें पता हैं कि अब श्री कृष्ण कभी नहीं आएंगे। आज हमारी एकमात्र आशा भी टूट गई हैं। वैसे प्रेम की मर्यादा तो यह कहती है कि प्रेम के बदले प्रेम ही दिया जाए परंतु श्रीकृष्ण ने हमारे साथ छल किया है। उन्होंने हमें धोखा दिया हैं। पद 3. हमारैं हरि हारिल की लकरी। अर्थ उपरोक्त पंक्तियों में गोपियां उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव ! जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पंजों से लकड़ी को मजबूती के साथ पकड़े रहता है। लकड़ी को ही अपने जीवन का आधार समझ कर उसे कभी गिरने नहीं देता हैं। ठीक उसी प्रकार कृष्ण भी हम गोपीयों के जीने का आधार है। हमने अपने मन , कर्म व वचन से नंद बाबा के पुत्र श्री कृष्ण को ही अपने जीने का आधार माना है। हमारा रोम रोम सोते-जागते , दिन-रात , स्वप्न में भी कृष्ण का ही नाम जपता रहता है। इसीलिये गोपियों को उद्धव का योग संदेश किसी कड़वी ककड़ी के सामान लगता है। गोपियां आगे कहती हैं कि हे उद्धव ! हमें तो कृष्ण के प्रेम का रोग लग चुका है। अब हमें तुम्हारे इस योग संदेश का रोग नहीं लग सकता। हमने ना कभी इसके बारे में सुना है , ना जाना है और ना ही कभी इसको देखा है। इसीलिए हे उद्धव ! तुम जो यह योग संदेश लाए हो। वह जाकर किसी और को सुनाओ , जिसे कृष्ण के प्रेम का रोग न लगा हो और जिसका मन चंचल हो। हमें तो कृष्ण के प्रेम का रोग लग चुका है। और हमारा मन कृष्ण के चरणों में स्थिर हो चुका हैं। इसीलिए अब इस योग संदेश का हम पर कोई असर नहीं होने वाला है। पद 4 . Surdas Ke Pad Class 10 Hindi Kshitij हरि हैं राजनीति पढ़ि आए। अर्थ उपरोक्त पंक्तियों में गोपियां कहती हैं कि उद्धव तो पहले से ही चालाक है और कृष्ण के द्वारा उसे राजनीति का पाठ पढ़ाने से वह और भी चतुर हो गया है। अब वह हमें छल-कपट के माध्यम से बड़ी चतुराई के साथ श्री कृष्ण का योग संदेश सुना रहा है। गोपियां व्यंगपूर्ण तरीके से कहती हैं कि कृष्ण ने भी बहुत अधिक राजनीति पढ़ ली है और अब वो किसी चतुर राजनीतिज्ञ की तरह हो गये हैं । इसीलिए स्वयं न आकर उन्होंने उद्धव को हमारे पास भेज दिया है। वो कहती हैं कि वैसे तो कृष्ण पहले से ही बहुत चलाक थे लेकिन अब उन्होंने बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ लिए हैं जिनसे उनकी बुद्धि काफी बढ़ गई है। इसीलिए उन्होंने उद्धव को हमारे पास योग संदेश देकर भेजा है और वो उद्धव से ही यहां के सारे समाचार प्राप्त कर लेते हैं। वैसे उद्धवजी की भी इसमें कोई गलती नहीं है क्योंकि उनको तो दूसरों का कल्याण करने में बड़ा आनंद आता है। गोपियां उद्धव से कहती हैं कि आप जाकर श्रीकृष्ण को यह संदेश दीजिए कि जब वो गोकुल से मथुरा गए थे , तो हमारा हृदय भी अपने साथ लेकर गए थे । अब वो हमें हमारा हृदय वापस कर दें। वो अत्याचारियों को दंड देने के लिए गोकुल से मथुरा गए थे। लेकिन अब वो खुद ही अत्याचार करने में लगे हैं। सो हे उद्धव !! आप कृष्ण से जाकर कहिए कि एक राजा को हमेशा अपनी प्रजा के हित में कार्य करना चाहिए। उसको कभी दुख नहीं देना चाहिए । यही राज धर्म है। सूरदास का जीवन परिचय सूरदास का जन्म सन 1478 में हुआ था । एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था। दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। वह मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट में रहते थे और श्रीनाथजी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे। सन 1583 में पारसौली में उनका निधन हुआ था। रचनाएँ उन्होंने तीन ग्रंथों की रचना की थी।
सूरदास को वात्सल्य और श्रृंगार रस का श्रेष्ठ कवि माना जाता हैं। इनकी कविताओं में बृज भाषा का निखरा हुआ रूप मिलता है। Surdas Ke Pad Class 10 Explanation “सूरदास के पदों” का भावार्थ हमारे YouTube channel में देखने के लिए इस Link में Click कीजिए । – (Padhai Ki Batein /पढाई की बातें) Note –Class 8th , 9th , 10th , 11th , 12th के हिन्दी विषय के सभी Chapters से संबंधित videos हमारे YouTube channel (Padhai Ki Batein /पढाई की बातें) पर भी उपलब्ध हैं। कृपया एक बार अवश्य हमारे YouTube channel पर visit करें । सहयोग के लिए आपका बहुत – बहुत धन्यबाद। You are most welcome to share your comments . If you like this post . Then please share it . Thanks for visiting. यह भी पढ़ें…… कक्षा 10 (हिन्दी क्षितिज 2) बालगोबिन भगत पाठ का सार बालगोबिन भगत पाठ के प्रश्न उत्तर नेताजी का चश्मा का सारांश नेताजी का चश्मा के प्रश्न व उनके उत्तर मानवीय करुणा की दिव्या चमक पाठ का सार मानवीय करुणा की दिव्य चमक के प्रश्न व उनके उत्तर सूरदास के पद के प्रश्न व उनके उत्तर उत्साह कविता का अर्थ व प्रश्न व उनके उत्तर अट नहीं रही है कविता का अर्थ व प्रश्न उत्तर यह दंतुरित मुस्कान कविता का भावार्थ यह दंतुरित मुस्कान कविता के प्रश्न उत्तर फसल कविता का भावार्थ फसल कविता के प्रश्न उत्तर छाया मत छूना कविता का भावार्थ छाया मत छूना कविता के प्रश्न उत्तर सवैया और कवित्त का भावार्थ सवैया और कवित्त के प्रश्न उत्तर आत्मकथ्य का भावार्थ आत्मकथ्य के प्रश्न उत्तर कक्षा 10 (हिन्दी कृतिका 2) माता का आँचल का सारांश माता का आँचल के प्रश्न उत्तर साना साना हाथ जोड़ि का सारांश साना साना हाथ जोड़ि के प्रश्न उत्तर जार्ज पंचम की नाक का सारांश जार्ज पंचम की नाक के प्रश्न उत्तर हिन्दी व्याकरण Slogan Writing (नारा लेखन) सूचना लेखन (Suchana Lekhan) , Notice Writing In Hindi Message Writing (सन्देश लेखन संदेश लेखन का प्रारूप व उदाहरण) विज्ञापन लेखन क्या हैं। उदाहरण सहित पढ़िए। औपचारिक पत्र लेखन के उदाहरण (Example of Formal Letter in Hindi) Letter Writing in Hindi अनौपचारिक पत्रों के 10+ उदाहरण पढ़ें Essay On Online Education Essay On Corona Virus सूरदास में कितने पद है?हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं।
सूरदास के पद में किसका वर्णन है?सूर ने अपनी कल्पना और प्रतिभा के सहारे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है। बालकों की चपलता, स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में विश्व व्यापी बाल-स्वरूप का चित्रण किया है। १ सूरसागर - जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे।
सूरदास के पद पाठ से क्या सीखा?सूरदास के पद से शिक्षा मिलती है कि भक्ति तथा प्रेम में बहुत शक्ति होती है। योग साधना मनुष्य को प्रेम और भक्ति का महत्व नहीं समझा सकती है।
सूरदास के पद का मूल भाव क्या है इसे अपने शब्दों में व्यक्त करें?उत्तर-: सूरदास द्वारा रचित इन पदों में गोपियों की कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम, भक्ति, आसक्ति और स्नेहमयता प्रकट हुई है जिस पर किसी अन्य का असर अप्रभावित रह जाता है । गोपियों पर श्री कृष्ण के प्रेम का ऐसा रंग चढ़ा है की खुद कृष्ण का भेजा योग संदेश कड़वी ककड़ी और रोग व्याधि के समान लगता है।
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