सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब हुई थी? - sindhu ghaatee sabhyata kee khoj kab huee thee?

पहले की खुदाई और शोध के आधार पर माना जाता था कि 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4617 वर्ष पूर्व हड़प्पा और मोहनजोदेडो नगर सभ्यता की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल लगभग 2700 ई.पू. से 1900 ई. पू. तक का माना जाता है।

आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर नए तथ्‍य सामने रखे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह सभ्यता 5500 साल नहीं बल्कि 8000 साल पुरानी थी। इस लिहाज से यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है। मिस्र की सभ्यता 7,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि मोसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी। शोधकर्ता ने इसके अलावा हड़प्पा सभ्यता से 1,0000 वर्ष पूर्व की सभ्यता के प्रमाण भी खोज निकाले हैं।

सिंधु घाटी के लोग मनाते थे दीपावली!

वैज्ञानिकों का यह शोध प्रतिष्ठित रिसर्च पत्रिका नेचर ने प्रकाशित किया है। 25 मई 2016 को प्रकाशित यह लेख दुनियाभर की सभ्यताओं के उद्गम को लेकर नई बहस छेड़ गया है। वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी की पॉटरी की नई सिरे से पड़ताल की और ऑप्टिकली स्टिम्यलैटड लूमनेसन्स तकनीक का इस्तेमाल कर इसकी उम्र का पता लगाया तो यह 6,000 वर्ष पुराने निकले हैं। इसके अलावा अन्य कई तरह की शोध से यह पता चला कि यह सभ्यता 8,000 वर्ष पुरानी है। इसका मतलब यह कि यह सभ्यता तब विद्यमान थी जबकि भगवान श्रीराम (5114 ईसा पूर्व) का काल था और श्रीकृष्ण के काल (3228 ईसा पूर्व) में इसका पतन होना शुरू हो गया था।

सिंधु सभ्यता का विस्तार : वैज्ञानिकों की इस टीम के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार हरियाणा के भिर्राना और राखीगढ़ी में भी था। उन्होंने भिर्राना की एकदम नई जगह पर खुदाई शुरू की और बड़ी चीज बाहर लेकर निकले। इसमें जानवरों की हड्डियां, गायों के सिंग, बकरियों, हिरण और चिंकारे के अवशेष मिले। डेक्कन कॉलेज के अराती देशपांडे ने बताया इन सभी के बारे में कार्बन 14 के जरिये जांच की गई। जिससे यह पता चला की उस दौर में सभ्यता को किस तरह की पार्यावरणीय स्थितियों का सामना करना पड़ा था। सिंधु सभ्यता की जानकारी हमें अंग्रेजों के द्वारा की गई खुदाई से ही प्राप्त होती है जबकि उसके बाद अन्य कई शोध और खुदाईयां हुई है जिसका जिक्र इतिहास की किताबों में नहीं किया जाता।

इसका मतलब यह कि इतिहास के ज्ञान को कभी अपडेट नहीं किया गया, जबकि अन्य देश अपने यहां के इतिहास ज्ञान को अपडेट करते रहते हैं। यह सवाल की कैसे सिंधु सभ्यता नष्ट हो गई थी इसके जवाब में वैज्ञानिक कहते हैं कि कमजोर मानसून और प्राकृति परिस्‍थितियों के बदलाव के चलते यह सभ्यता उजड़ गई थी। सिंधु घाटी में ऐसी कम से कम आठ प्रमुख जगहें हैं जहां संपूर्ण नगर खोज लिए गए हैं। जिनके नाम हड़प्पा, मोहनजोदेड़ों, चनहुदड़ो, लुथल, कालीबंगा, सुरकोटदा, रंगपुर और रोपड़ है।

हड़प्पा के नष्ट होने का समय वही है जो कि महाभारत के युद्ध का समय है। महाभारत का युद्ध के दौरान गुरु द्रोण के पुत्र अश्‍वत्थामा ने भगवान कृष्ण के मना करने के बावजूद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलाना तो जानता था, पर उसे लौटाना नहीं जानता था। उस अतिप्रचंड तेजोमय अग्नि को अपनी ओर आता देख अर्जुन भयभीत हो गया और उसने श्रीकृष्ण से विनती की। श्रीकृष्ण बोले, 'है अर्जुन! तुम्हारे भय से व्याकुल होकर अश्वत्थामा ने यह ब्रह्मास्त्र तुम पर छोड़ा है। इस ब्रह्मास्त्र से तुम्हारे प्राण घोर संकट में हैं। इससे बचने के लिए तुम्हें भी अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा, क्योंकि अन्य किसी अस्त्र से इसका निवारण नहीं हो सकता।'

कहते हैं कि अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी छोड़ा। अश्वत्थामा ने पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था और अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए। दोनों द्वारा छोड़े गए इस ब्रह्मास्त्र के कारण लाखों लोगों की जान चली गई थी।

आज जिस हिस्से को पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है, महाभारतकाल में उसके उत्तरी हिस्से को गांधार, मद्र,
कैकय और कंबोज की स्थली कहा जाता था। अयोध्या और मथुरा से लेकर कंबोज (अफगानिस्तान का उत्तर इलाका) तक आर्यावर्त के बीच वाले खंड में कुरुक्षेत्र होता था, जहां यह युद्ध हुआ। उस काल में कुरुक्षेत्र बहुत बड़ा क्षेत्र होता था। आजकल यह हरियाणा का एक छोटा-सा क्षेत्र है।

उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। सिन्धु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कुरु रहते थे। यहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर बसे थे, जो मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी तक फैले थे। सिन्धु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की प्राचीनता और उनके रहस्यों को आज भी सुलझाया नहीं जा सका है। मोहन जोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।

जब पुरातत्वशास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहन जोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्होंने देखा कि वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे, मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था।

उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहन जोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।

हम जानते हैं कि हङप्पा सभ्यता भारत की सबसे प्राचीनतम नगरीय सभ्यता थी। यह भारत के प्रथम नगरीकरण को दर्शाती है। आज हड़प्पा सभ्यता भारत के लिए गौरवमयी सभ्यता कही जा सकती है।

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब हुई थी? - sindhu ghaatee sabhyata kee khoj kab huee thee?

Contents

  • 1 हङप्पा सभ्यता के खोज की कहानी : Discovery of Harappan Civilization
  • 2 आखिर कैसी थी हड़प्पा सभ्यता ?
  • 3 हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे हुई ?
  • 4 हड़प्पा सभ्यता की खोज कब व कैसे हुई ?
  • 5 सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज कैसे हुई :
  • 6 हड़प्पा सभ्यता की खोज किसने की ?
    • 6.1 टीलो पैंथर (Tilo panther) : 18वीं शताब्दी
    • 6.2 चार्ल्स मैसन (Charles masson) : 1826 ई०
    • 6.3 अलेक्जेंडर बर्न्स : 1831 ई०
    • 6.4 अलेक्जेंडर कनिंघम : 1853 ई०
    • 6.5 बर्टन बंधु : 1856 ई०
    • 6.6 अलेक्जेंडर कनिंघम : 1856 ई०
    • 6.7 अलेक्जेंडर कनिंघम : 1875 ई०
    • 6.8 जॉन मार्शल व उनके सहयोगी : (1920 का दशक)
  • 7 निष्कर्ष :
      • 7.0.1 Tag:
  • 8 Important links for Study material :

हङप्पा सभ्यता के खोज की कहानी : Discovery of Harappan Civilization

आधुनिक खोजों के परिणामस्वरूप दिन प्रतिदिन हड़प्पा सभ्यता के विषय में अन्य रोचक जानकारियां हमें प्राप्त हो रही हैं। किन्तु एक समय ऐसा भी था जब इस लुप्त प्राय सभ्यता के विषय में किसी को जानकारी नहीं होती ही। आज हम उसी दौर के बारे में जानने का प्रयास करेंगे जब हड़प्पा सभ्यता की खोज हुई थी। अर्थात हम आज के इस article (लेख) में जानेंगे कि हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे और कब हुई।

हड़प्पा सभ्यता के विषय में हमने बहुत सी जानकारियां दी हैं। आप इन्हें अवश्य देखें 👇

● हड़प्पा सभ्यता (एक दृष्टि में सम्पूर्ण)

● हड़प्पा सभ्यता का विस्तार

● हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएँ (विस्तृत जानकारी)

● हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल|sites of Indus valley civilization| (Part 1)  चन्हूदड़ो, सुतकागेंडोर, बालाकोट, अल्लाहदीनो, कोटदीजी, माण्डा, बनावली

● हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल|sites of indus valley/harappan civilization (Part 2)| रोपड़, भगवानपुरा, कालीबंगन, लोथल, सुरकोटदा, धौलावीरा, देसलपुर, कुंतासी, रोजदी, दैमाबाद, हुलास, आलमगीरपुर, माण्डा, सिनौली

● सिन्धु घाटी सभ्यता के पुरास्थल(Sites of indus valley civilization)Part 3 |हड़प्पा(Harappa), मोहनजोदड़ो(Mohenjodaro)|हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल

आखिर कैसी थी हड़प्पा सभ्यता ?

हड़प्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी जोकि अपने समकालीन मिस्र , मेसोपोटामिया व अन्य सभ्यताओं से लगभग सभी क्षेत्रों में काफी विकसित थी।

इसका विस्तार भी इन सभी सभ्यताओं से कहीं अधिक था।  ये सभ्यता आज से लगभग 4500 वर्ष पूर्व में उद्भूत हुई थी तथा लगभग 3500 वर्ष पूर्व पतन को प्राप्त होकर नष्ट हो गई। इस सभ्यता के उद्भव व पतन से संबंधित प्रमाणित कारणों को जानने के लिए निम्न पोस्ट को ध्यानपूर्वक पढ़ें।

● हड़प्पा सभ्यता का उद्भव/उत्पत्ति

हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे हुई ?

हङप्पा सभ्यता की खोज की कहानी बहुत रोचक है। क्योंकि इस सभ्यता के खोज में एक लंबा दौर गुजर गया। हड़प्पा सभ्यता के खोज के विषय में अगर संक्षेप में कहना चाहें तो हम यह अवश्य कह सकते हैं कि 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक पुरास्थल का उत्खनन कराकर इस सभ्यता की खोज की।

किन्तु इस सभ्यता के खोज का दौर इससे कहीं अधिक व्यापक और विस्तृत है। यहां जाने आखिर कैसे हुई लुप्तप्राय हड़प्पा सभ्यता की खोज ? 

हड़प्पा सभ्यता की खोज कब व कैसे हुई ?

हड़प्पा सभ्यता की खोज कब व कैसे हुई? यह विस्तार से समझने का विषय है। क्योंकि इससे संबंधित प्रश्न भी अक्सर परीक्षाओं में पूछे जाते रहते हैं। आईये इसे विस्तार से समझने का एक छोटा सा प्रयास करते हैं–

सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज कैसे हुई :

आज हड़प्पा सभ्यता के विषय में जो कुछ भी हमें विस्तारपूर्वक जानकारी है उसे प्राप्त करने में एक लंबा समय और बहुत सारी मेहनत लगी। एक के बाद एक पुरातत्वशास्त्री , विद्वान व अन्य अंग्रेज अधिकारी समय समय पर सिन्धु घाटी सभ्यता के पुरास्थलों के टीलों का दौरा करते रहे किन्तु वे इस सभ्यता के बारे में जानना तो दूर कल्पना भी नहीं कर सके।

हड़प्पा टीले का भ्रमण करने वाले अधिकारियों से लेकर उसके खोज तक का विवरण निम्नलिखित है–

हड़प्पा सभ्यता की खोज किसने की ?

हड़प्पा सभ्यता की खोज किसने की हम निम्न घटनाओं को पढ़कर समझ सकते हैं―

टीलो पैंथर (Tilo panther) : 18वीं शताब्दी

18वीं शताब्दी में टीलो पैंथर (Tilo panther) नामक अंग्रेज ने सर्वप्रथम हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न क्षेत्रों से कुछ पुरावशेष प्राप्त किये। किन्तु वे इतनी कम मात्रा में थे जिससे कुछ भी समझना मुमकिन नहीं था। इस कारण उन अवशेषों को ध्यान नहीं दिया गया।

चार्ल्स मैसन (Charles masson) : 1826 ई०

सर्वप्रथम एक ब्रिटिश यात्री चार्ल्स मैसन (Charles Masson) का ध्यान हड़प्पा स्थित टीलों की ओर गया। उसने 1826 ई. में इस स्थान की यात्रा की थी। उसने 1842 ई. में प्रकाशित अपने एक लेख नैरेटिव ऑफ जर्मनी (Narrative of Journeys) में इस बात का उल्लेख किया। उसका अंदाजा था कि ये टीले किसी पुराने राजमहल के अवशेष हैं।

Note : टीलो पैंथर को भले ही सबसे पहले सिन्धु घाटी की सभ्यता के पुरावशेषों को प्राप्त करने वाला माना जाता है किंतु चार्ल्स मैसन वह प्रथम व्यक्ति था जिसने हड़प्पा क्षेत्र की यात्रा की और वहां गया था।

अलेक्जेंडर बर्न्स : 1831 ई०

सन् 1831 ई. में जब कर्नल अलेक्जेण्डर बर्न्स पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह से मिलने जा रहा था तब उसकी नजर हड़प्पा स्थित टीले पर पड़ी थी। उसका अनुमान था कि ये टीले किसी पुराने किले के अवशेष हैं। वे भी इस सभ्यता के विषय मे कल्पना भी नहीं कर सका। इससे अंग्रेज विद्वानों व अधिकारियों की दूरदर्शी दृष्टि का अभाव साफ दिखाई पड़ता है।

अलेक्जेंडर कनिंघम : 1853 ई०

अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) ने 1853 में हड़प्पा की यात्रा की। उसने वहां से एक मुहर प्राप्त किया जिसमें साँड़ अंकित था। कनिंघम भी उस टीले के महत्व को समझ न सका।

➲ हम जानते हैं कि भारत में पहली यात्री ट्रेन अंग्रेजों द्वारा 16 अप्रैल 1853 ई० में गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के काल में मुम्बई से ठाणे तक चलाई गयी थी। अंग्रेजों ने भारत मे ट्रेन किस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु चलवाई यह एक अन्य लेख का विषय है ।

किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक व प्रशासनिक सुविधा के स्वार्थ हेतु भारत में रेलवे का विकास किया था।

➲ भारत में प्रथम ट्रेन के संचालन के बाद अंग्रेजों ने इसका विस्तार पूरे भारत मे करना प्रारंभ किया।

➲ इसी उद्देश्य के तहत पश्चिमोत्तर भारत में लाहौर से कराची तक पटरी बिछाने का कार्य 1856 ई० में शुरू हुआ था।

बर्टन बंधु : 1856 ई०

जेम्स बर्टन व विलियम बर्टन नामक दो भाइयों को बर्टन बंधु कहा जाता है। ये दोनों भाई अभियंता (Engineer) थे। इन्हें ही लाहौर से कराची तक के टेलवे लाइन को बिछाने का कार्य सौंपा गया था।

जब वे हड़प्पा क्षेत्र में पटरी बिछा रहे थे तभी उन्हें कुछ ईंटो की आवश्यकता पड़ी। स्थानीय लोगों के बताने पर उन्होंने हड़प्पा पुरास्थल के टीले से ही ईंटो को निकलवाने लगे। धीरे धीरे काफी मात्रा में ईंटें वहां से निकली गयीं जो कि हड़प्पा शहर के घरों की ईंटें थीं।

ईंटे निकलवाते समय उन्हें यहां किसी सभ्यता के अस्तित्व का आभास हुआ। क्योंकि ईंटें निकालते समय वहां से सभ्यता के कुछ अवशेष भी प्राप्त हुए। किन्तु तब उनका ये आभास मात्र आभास ही रहा और इन अवशेषों की तरफ ध्यान न देकर ईंटें निकालने के तरफ ध्यान दिया गया।

अलेक्जेंडर कनिंघम : 1856 ई०

1856 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने एक बार पुनः हड़प्पा की यात्रा की और वहां अनेक टीलों के गर्भ में किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की संभावना व्यक्त की।

1856 ई० में ही कनिंघम में हड़प्पा से कुछ अवशेष प्राप्त किये और उन पर रिसर्च (Research) करना प्रारंभ किया।

कनिंघम ने तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी से अपील की कि हड़प्पा (वर्तमान लरकाना जिला पाकिस्तान) नामक स्थान से किसी अति प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिल रहे हैं हमें इस पर Research करना चाहिए। किन्तु अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने इससे साफ इंकार कर दिया।

इस प्रकार सरकार का बिल्कुल भी सहयोग न मिलने के कारण 1856 ई० में कनिंघम किसी निष्कर्ष तक न पहुँच सका और हङप्पा सभ्यता अभी भी धरातल के नीचे दबी रही।

➲ 1856 ई० में लॉर्ड कैनिंग गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। कनिंघम ने उससे भी कहा कि हड़प्पा टीले से प्राप्त अवशेषों पर हमें रिसर्च करना चाहिए। किन्तु कैनिंग ने भी उस ओर ध्यान न दिया।

कैनिंग उस ओर ध्यान तो न दिया पर इतना अवश्य किया कि कलकत्ता में एक संग्रहालय की स्थापना की जो आज भारत का सबसे बड़ा संग्रहालय है और भारतीय पुरातत्व का मुख्यालय भी है।

➲ उसने कहा कि वहां से प्राप्त बहुमूल्य वस्तुओं को इंग्लैंड पहुंचा दिया जाय और शेष सामग्री इस संग्रहालय (Museum) में रख दिया जाय।

अलेक्जेंडर कनिंघम : 1875 ई०

1875 ई० में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता अलेक्जेंडर कनिंघम की दृष्टि एक बार पुनः हड़प्पा के पुरातात्विक अवशेषों की तरफ आकृष्ट हुई।

1875 ई० में ही कनिंघम ने पुरातात्विक सर्वेक्षक (Archaeological Surveyor) की हैसियत से हड़प्पा के बसावट (Settlement of Harappa) पर एक रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी।

➠ इस संदर्भ में कनिंघम बताता है कि हड़प्पा की स्थापना इसी नाम के एक राजा ‘हड़प्पा’ ने अज्ञात काल में की थी। यह राजा बहुत ही दुष्ट था। फलतः यह देवताओं का कोपभाजन बनना इसी कारण अनेक शताब्दियों तक यह स्थल वीरान रहा।

कुल मिलाकर उसका मूल अनुमान यह था कि यहां महात्मा बुद्ध के जमाने या इंडो बैक्ट्रियन शासकों के जमाने की कोई बस्ती रही होगी।

➲ 1899 ई० में लार्ड कर्जन (Lord Curzon) भारत का वायसराय बनकर भारत आया।

➲ इसी के बाद 1905 में ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) का गठन किया गया और इसके प्रथम चैयरमैन जॉन मार्शल को बनाया गया।

जॉन मार्शल व उनके सहयोगी : (1920 का दशक)

अन्य की तुलना में जान मार्शल ने हड़प्पा सभ्यता को लेकर थोड़ा अधिक रुचि दिखाई। उसने रायबहादुर दयाराम साहनी और राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में 2 टीमों का गठन किया।

अंततः अब समय आ गया था भारत की गौरवमयी सभ्यता के उजागर होने का। 1920 का दशक भारतीय इतिहास की धारा को पूर्ण रूप से बदल दिया और भारत के इतिहास को 3000 ई०पू० तक ले गया।

1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल की खुदाई कर सभ्यता को विस्मृति के गर्भ से बाहर निकाला। अतः हड़प्पा सभ्यता को खोजने का श्रेय निश्चय ही राय बहादुर दयाराम साहनी को प्राप्त है।

इसी के अगले वर्ष 1922 ई० में राखल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो स्थल की खुदाई करके हड़प्पा सभ्यता की खोज में अगला महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया।

इसके पश्चात इसके बाद एक के बाद एक पुरातत्वविदों जैसे- N.G. मजूमदार , M.S. वत्स , मैके , ह्वीलर , S.R. राव तथा अन्य अनेक देशी एवं विदेशी पुरातत्ववेत्ताओं ने हड़प्पा सभ्यता से सम्बद्ध अनेक स्थलों की खुदाई करके महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त की और इसे सभ्यता के रूप में व्याख्यायित किया।

आज इस सभ्यता के विषय में अधिक से अधिक जानकारियां प्राप्त हो चुकी है तथा इसके 1500 से अधिक स्थल प्रकाश में आ चुके हैं।

निष्कर्ष :

इस प्रकार हम देखते हैं कि एक लंबे समय के संघर्ष व मेहनत के बाद हड़प्पा सभ्यता विश्व के पटल पर आई। सिंधु सभ्यता की खोज ने भारत को विश्व के मानचित्र पर अंकित कर दिया और उसे विश्व के प्राचीनतम सभ्यताओं की जन्मस्थली मेसोपोटामिया , मिस्त्र के समकक्ष ला खड़ा किया। आज इस सभ्यता के विषय में हमें इतनी जानकारी प्राप्त हो चुकी है कि इसे विश्व की सबसे विकसित सभ्यता का दर्जा दिया जा चुका है , जोकि भारतीयों के लिए गर्व की बात है।

धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब और किसने की?

रेडियो कार्बन c14 जैसी विलक्षण-पद्धति के द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई पू से 1750 ई पूर्व मानी गई है. सिंधु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की. सिंधु सभ्यता को प्राक्ऐतिहासिक (Prohistoric) युग में रखा जा सकता है. इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ और भूमध्यसागरीय थे.

सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत कब हुई थी?

सिन्धु घाटी सभ्यता (पूर्व हड़प्पा काल : ३३००-२५०० ईसा पूर्व, परिपक्व काल: २६००-१९०० ई॰पू॰; उत्तरार्ध हड़प्पा काल: १९००-१३०० ईसा पूर्व) विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है।

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब हुई थी answer?

यह प्राचीन 'सरस्वती नदी' के तट पर स्थित था। इस स्थल की खोज 1953 ईस्वी में अमलानंद घोष द्वारा की गई थी

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कैसे हुई?

इसकी खोज का श्रेय दयाराम साहनी को जाता है। जिन्होंने इसकी खोज सन् 1921 में की थी। ये पाकिस्तान के मोंटगोमरी जिला (पंजाब प्रान्त ) में रावी नदी के किनारे स्थित है। इस सिंधु घाटी की सभ्यता का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है।