तानसेन के गुरु कौन थे उत्तर बताइए? - taanasen ke guru kaun the uttar bataie?

ग्वालियर. मुगल काल में अकबर के नवरत्नों में एक थे 'तानसेन'। वह शास्त्रीय संगीत के एक महान संगीतज्ञ थे। ब्राह्मण परिवार में जन्मे तानसेन ने बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। वह 511 साल पहले जन्में थे। DainikBhaskar.com इस मौके पर बताने जा रहा है तानसेन से जुड़ी कही-अनकहीं बातें...

गुरु हरिदास थे उनके गुरु, इस वजह से अपनाया था इस्लाम 
- तानसेन का वास्तविक नाम रामतनु पाण्डेय था। अकबर से मिलने के बाद उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया और वह तानसेन के नाम से पहचाने गए। 
- 5 साल की आयु तक तानसेन गूंगे थे, उस समय के महान संगीतज्ञ गुरु हरिदास ने उन्हें अपना शिष्य बनाया और उनको संगीत की शिक्षा दी। 
- इसके बाद कला प्रेमी अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में स्थान देकर सम्मानित किया था। कहते हैं उनके सामाजिक व्यवहार के कारण उनका बहिष्कार कर दिया गया था। यही वो कारण ता जिसके कारण उन्होंने हिंदू धर्म से इस्लाम धर्म के अनुयायी बन गए। 
- अकबर के दरबार में वह नए राग बनाते थे। तानसेन की सूरदास से भी मित्रता थी और वो अमूमन उनके भजन गाया करते थे।
- कहते हैं एक बार आगरा में संगीत से जुड़ी प्रतियोगिता हुई जिसमें वह बैजू बावरा से पराजित हो गए थे। 

आगे की स्लाइड में जानें माता-पिता ने की यहां मन्नत, तब हुआ था तानसेन का जन्म... 

who was teacher guru of Tansen in hindi तानसेन name के गुरु कौन थे , के गुरु का नाम क्या था

उत्तर : प्रसिद्ध व्यक्ति “तानसेन” के गुरू का नाम “शेख मुहम्‍मद गौस” था |

question : guru name of famous person “Tansen”

answer : “Sheikh Muhammad Ghaus” was the guru or teacher of “Tansen”.

प्रश्न : तानसेन को शिक्षा किसने दी थी अर्थात तानसेन के शिक्षक का नाम बताइए ?

उत्तर : शेख मुहम्‍मद गौस ने तानसेन को शिक्षा प्रदान की थी | कहने का तात्पर्य है तानसेन के शिक्षक का नाम “शेख मुहम्‍मद गौस” था |

question : who teaches to Tansen in hindi ?

answer : famous personality Tansen was taught by guru “Sheikh Muhammad Ghaus”.

प्रश्न : तानसेन और शेख मुहम्‍मद गौस का सम्बन्ध क्या था ?

उत्तर : तानसेन और शेख मुहम्‍मद गौस का सम्बन्ध गुरु और शिष्य का था |

question : what was the relation between Tansen and Sheikh Muhammad Ghaus in hindi ?

answer : Tansen and Sheikh Muhammad Ghaus has the relation of teacher and a student.

तानसेन

पृष्ठभूमि

तानसेन या रामतनु हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक महान ज्ञाता थे। उन्हे सम्राट अकबर के नवरत्नों में भी गिना जाता है।

संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर के लिए कहावत प्रसिद्ध है कि यहाँ बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुढ़कते हैं तो ताल में। इस नगरी ने पुरातन काल से आज तक एक से बढ़कर एक संगीत प्रतिभाएं संसार को दी हैं और संगीतकार सूर्य तानसेन इनमें सर्वोपरि हैं।[1]

तानसेन को संगीत का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ? तानसेन हरिदास के साथ वृन्दावन संगीत की शिक्षा ग्रहण की। तानसेन ने मानसिंह की विधवा पत्नी मृगनयनी से संगीत की शिक्षा प्राप्त की।

प्रारम्भ से ही तानसेन मे दूसरों की नकल करने की अपूर्व क्षमता थी। बालक तानसेन पशु-पक्षियों की तरह- तरह की बोलियों की सच्ची नकल करता था और हिंसक पशुओं की बोली से लोगों को डराया करता था। इसी बीच स्वामी हरिदास से उनकी भेंट हो गयी । उनसे मिलने की भी एक मनोरंजक घटना है।

उनकी अलग-अलग बोलियों को बोलने की प्रतिभा को देखकर वो काफी प्रभावित हुए। स्वामी जी ने उन्हें उनके पिता से संगीत सिखाने के लिए माँग लिया।इस तरह तानसेन को संगीत का ज्ञान हुआ। 1586 में तानसेन की मृत्यु आगरा में हो गई। और संगीतकार तानसेन की इच्छा अनुसार मोहम्मद गौस के मकबरे के समीप तानसेन का मकबरा बनाया गया जो ग्वालियर में हैं।

वैवाहिक जीवन[संपादित करें]

तानसेन की पत्नी का नाम हुसेनी था,वह रानी मृगनयनी की दासी थी। तानसेन के चार पुत्र हुए- सुरतसेन, शरतसेन, तरंगसेन और विलास ख़ान तथा सरस्वती नाम की एक पुत्री।

घटना[संपादित करें]

एक दिन जलने वालों ने तानसेन के विनाश की योजना बना डाली। इन सबने बादशाह अकबर से तानसेन से 'दीपक' राग गवाए जाने की प्रार्थना की। अकबर को बताया गया कि इस राग को तानसेन के अलावा और कोई ठीक-ठीक नहीं गा सकता। बादशाह राज़ी हो गए, और तानसेन को दीपक राग गाने की आज्ञा दी। तानसेन ने इस राग का अनिष्टकारक परिणाम बताए बिना ही राग गाने से मना कर दिया, फिर भी अकबर का राजहठ नहीं टला, और तानसेन को दीपक राग गाना ही पड़ा। दीपक राग गाने से जब तानसेन के अंदर अग्नि राग भी शुरू हुआ, गर्मी बढ़ी व धीरे-धीरे वायुमंडल अग्निमय हो गया। सुनने वाले अपने-अपने प्राण बचाने को इधर-उधर छिप गए, किंतु तानसेन का शरीर अग्नि की ज्वाला से दहक उठा। ऐसी हालत में तानसेन वडनगर पहुंचे, वहाँ भक्त कवि नरसिह मेहता कि बेटि कुवरबाई कि बेटि शर्मिष्ठा कि बेटियों ताना-रिरि ने मल्हार राग गाकर उनके जीवन की रक्षा की। इस घटना के कई महीनों बाद तानसेन का शरीर स्वस्थ हुआ। शरीर के अंदर ज्वर बैठ गया था। आखिरकार वह ज्वर फिर उभर आया, और फ़रवरी, 1586 में इसी ज्वर ने उनकी जान ले ली।

जगह[संपादित करें]

तानसेन के संगीत से प्रसन्न होकर अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया।

शिक्षा दीक्षा[संपादित करें]

ग्वालियर से लगभग 45 कि॰मी॰ दूर ग्राम बेहट में श्री मकरंद बघेल के यहाँ तानसेन का जन्म ग्वालियर के तत्कालीन प्रसिद्ध फ़क़ीर हजरत मुहम्मद गौस के वरदान स्वरूप हुआ था। कहते है कि श्री मकरंद बघेल के कई संताने हुई, लेकिन एक पर एक अकाल ही काल कवलित होती चली गई। इससे निराश और व्यथित श्री मकरंद बघेल सूफी संत मुहम्मद गौस की शरण में गये और उनकी दुआ से सन् 1500 में तन्ना उर्फ तनसुख उर्फ त्रिलोचन का जन्म हुआ, जो आगे चलकर तानसेन के नाम से विख्यात हुआ। तानसेन के आरंभिक काल में ग्वालियर पर कलाप्रिय राजा मानसिंह तोमर का शासन था। उनके प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत कला का विख्यात केन्द्र था, जहां पर बैजूबावरा, कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गण एकत्र थे और इन्हीं के सहयोग से राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की ध्रुपद गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। तानसेन की संगीत शिक्षा भी इसी वातावरण में हुई। राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के कारण यहाँ के संगीतज्ञों की मंडली बिखरने लगी। तब तानसेन भी वृन्दावन चले गये और वहां उन्होनें स्वामी हरिदास जी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। संगीत शिक्षा में पारंगत होने के उपरांत तानसेन शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत ख़ाँ के आश्रय में रहे और फिर बांधवगढ़ (रीवा) के राजा रामचन्द्र के दरबारी गायक नियुक्त हुए। मुग़ल सम्राट अकबर ने उनके गायन की प्रशंसा सुनकर उन्हें अपने दरबार में बुला लिया और अपने नवरत्नों में स्थान दिया।

अकबर के नवरत्नों तथा मुग़लकालीन संगीतकारों में तानसेन का नाम परम-प्रसिद्ध है। यद्धपि काव्य-रचना की दृष्टि से तानसेन का योगदान विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता, परन्तु संगीत और काव्य के संयोग की दृष्टि से, जो भक्तिकालीन काव्य की एक बहुत बड़ी विशेषता थी, तानसेन साहित्य के इतिहास में अवश्य उल्लेखनीय हैं। तानसेन अकबर के नवरत्नों में से एक थे। एक बार अकबर ने उनसे कहा कि वो उनके गुरु का संगीत सुनना चाहते हैं। गुरु हरिदास तो अकबर के दरबार में आ नहीं सकते थे। लिहाजा इसी निधि वन में अकबर हरिदास का संगीत सुनने आए। हरिदास ने उन्हें कृष्ण भक्ति के कुछ भजन सुनाए थे। अकबर हरिदास से इतने प्रभावित हुए कि वापस जाकर उन्होंने तानसेन से अकेले में कहा कि आप तो अपने गुरु की तुलना में कहीं आस-पास भी नहीं है। फिर तानसेन ने जवाब दिया कि जहांपनाह हम इस ज़मीन के बादशाह के लिए गाते हैं और हमारे गुरु इस ब्रह्मांड के बादशाह के लिए गाते हैं तो फर्क तो होगा न।

रचनायें[संपादित करें]

तानसेन के नाम के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ का कहना है कि 'तानसेन' उनका नाम नहीं, उनकों मिली उपाधि थी। तानसेन मौलिक कलाकार थे। वे स्वर-ताल में गीतों की रचना भी करते थे। तानसेन के तीन ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है-

1. 'संगीतसार',

2. 'रागमाला'

3. 'श्रीगणेश स्तोत्र'।

भारतीय संगीत के इतिहास में ध्रुपदकार के रूप में तानसेन का नाम सदैव अमर रहेगा। इसके साथ ही ब्रजभाषा के पद साहित्य का संगीत के साथ जो अटूट सम्बन्ध रहा है, उसके सन्दर्भ में भी तानसेन चिरस्मरणीय रहेंगे।

संगीत सम्राट तानसेन अकबर के अनमोल नवरत्नों में से एक थे। अपनी संगीत कला के रत्न थे। इस कारण उनका बड़ा सम्मान था। संगीत गायन के बिना ‍अकबर का दरबार सूना रहता था। तानसेन के ताऊ बाबा रामदास उच्च कोटि के संगीतकार थे। वह वृंदावन के स्वामी हरिदास के शिष्य थे। उन्हीं की प्रेरणा से बालक तानसेन ने बचपन से ही संगीत की शिक्षा पाई। स्वामी हरिदास के पास तानसेन ने बारह वर्ष की आयु तक संगीत की शिक्षा पाई। वहीं उन्होंने साहित्य एवं संगीत शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की।

संगीत की शिक्षा प्राप्त करके तानसेन देश यात्रा पर निकल पड़े। उन्होंने अनेक स्थानों की यात्रा की और वहाँ उन्हें संगीत-कला की प्रस्तुति पर बहुत प्रसिद्धि तो मिली, लेकिन गुजारे लायक धन की उपलब्धि नहीं हुई।

एक बार वह रीवा (मध्यप्रदेश) के राजा रामचंद्र के दरबार में गाने आए। उन्होंने तानसेन का नाम तो सुना था पर गायन नहीं सुना था। उस दिन तानसेन का गायन सुनकर राजा रामचंद्र मुग्ध हो गए। उसी दिन से तानसेन रीवा में ही रहने लगे और उन्हें राज गायक के रूप में हर तरह की आर्थिक सुविधा के साथ सामाजिक और राजनीतिक सम्मान दिया गया। तानसेन पचास वर्ष की आयु तक रीवा में रहे। इस अवधि में उन्होंने अपनी संगीत-साधना को मोहक और लालित्यपूर्ण बना लिया। हर ओर उनकी गायकी की प्रशंसा होने लगी।

अकबर के ही सलाहकार और नवरत्नों में से एक अब्दुल फजल ने तानसेन की संगीत की प्रशंसा में अकबर को चिट्ठीु लिखी और सुझाव दिया कि तानसेन को अकबरी-दरबार का नवरत्न होना चाहिए। अकबर तो कला-पारखी थे ही। ऐसे महान संगीतकार को रखकर अपने दरबार की शोभा बढ़ाने के लिए बेचैन हो उठे।

उन्होंने तानसेन को बुलावा भेजा और राजा रामचंद्र को पत्र लिखा। किंतु राजा रामचंद्र अपने दरबार के ऐसे कलारत्न को भेजने के लिए तैयार न हुए। बात बढ़ी और युद्ध तक पहुँच गई। और बहुत मान मनब्बल के बाद भी राजा रामचंद्र नहीं माने तो अकबर ने मुगलिया सल्तनत की एक छोटी से टुकड़ी तानसेन को जबरजस्ती लाने के लिए भेज दिया पर राजा राम चंद्र जूदेव और अकबर के सैनिको के बीच युद्ध हुआ और अकबर के सभी सैनिक मारे गए, इसमें रीवा राजा के भी कई सैनिक मारे गए  ! इससे अकबर क्रुद्ध होकर एक बड़ी सैनिक टुकड़ी भेजी  और रीवा के राजा फिर से युद्ध के लिए तैयार हुए तब तानसेन रीवा के राजा के पास पहुंचे और युद्ध न करने की अपील किया , पर राजा बहुत जिद्दी थे नहीं माने ! और अकबर के दरबार में संदेस भेज दिया की ''यदि बादशाह याचना पात्र भेजे तो मैं तानसेन को भेज दूंगा'' अकबर भी छोटी-छोटी सी बात पर राजपूतो से युद्ध नहीं करना चाहते थे ! तब अकबर ने याचना पात्र भेज दिया तब राजा रामचंद्र जूदेव ने सहर्ष, ससम्मान  तानसेन को दिल्ली भेज दिया और एक बड़ा युद्ध टल गया ! अकबर के दरबार में आकर तानसेन पहले तो खुश न थे लेकिन धीरे-धीरे अकबर के प्रेम ने तानसेन को अपने निकट ला दिया।

चाँद खाँ और सूरज खाँ स्वयं न गा सकें। आखिर मुकाबला शुरू हुआ। उसे सुनने वालों ने कहा 'यह गलत राग है।' तब तानसेन ने शास्त्रीय आधार पर उस राग की शुद्धता सिद्ध कर दी। शत्रु वर्ग शांत हो गया।

संगीत सम्राट तानसेन अकबर के अनमोल नवरत्नों में से एक थे। तानसेन को अपने दरबार में लाने के लिए अकबर की सेना और रीवा के बाघेला राजपूतो के बीच में भयानक युद्ध हुआ था ! अकबर के दरबार में तानसेन को नवरत्न की ख्यायति मिलने लगी थी। इस कारण उनके शत्रुओं की संख्यार भी बढ़ रही थी। कुछ दिनों बाद तानसेन का ठाकुर सन्मुख सिंह बीनकार से मुकाबला हुआ। वे बहुत ही मधुर बीन बजाते थे। दोनों में मुकाबला हुआ, किंतु सन्मुख सिंह बाजी हार गए। तानसेन ने भारतीय संगीत को बड़ा आदर दिलाया। उन्होंने कई राग-रागिनियों की भी रचना की। 'मियाँ की मल्हार' 'दरबारी कान्हड़ा' 'गूजरी टोड़ी' या 'मियाँ की टोड़ी' तानसेन की ही देन है। तानसेन कवि भी थे। उनकी काव्य कृतियों के नाम थे - 'रागमाला', 'संगीतसार' और 'गणेश स्रोत्र'। 'रागमाला' के आरंभ में दोहे दिए गए हैं।

सुर मुनि को परनायकरि, सुगम करौ संगीत।

तानसेन वाणी सरस जान गान की प्रीत।

चरित्र-चित्रण[संपादित करें]

तानसेन के पुराने चित्रों से उनके रूप-रंग की जानकारी मिलती है। तानसेन का रंग सांवला था। मूँछें पतली थीं। वह सफेद पगड़ी बाँधते थे। सफेद चोला पहनते थे। कमर में फेंटा बाँधते थे। ध्रुपद गाने में तानसेन की कोई बराबरी नहीं कर सकता था। तानसेन का देहावसान अस्सी वर्ष की आयु में हुआ। उनकी इच्छा थी कि उन्हें उनके गुरु मुहम्मद गौस खाँ की समाधि के पास दफनाया जाए। वहाँ आज उनकी समाधि पर हर साल तानसेन संगीत समारोह आयोजित होता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Stuart Cary Welch; Metropolitan Museum of Art (1985). India: Art and culture, 1300-1900. Metropolitan Museum of Art. पपृ॰ 171–172. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-03-006114-1. मूल से 13 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 जुलाई 2020.

देखें[संपादित करें]

  • हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत
  • कर्नाटक शास्त्रीय संगीत
  • स्वामी हरिदास

सहायक ग्रन्थ[संपादित करें]

१ संगीतसम्राट तानसेन (जीवनी और रचनाएँ): प्रभुदयाल मीतल, साहित्य संस्थान, मथुरा;

२ हिन्दी साहित्य का इतिहास: पं॰ रामचन्द्र शुक्ल:

३ अकबरी दरबार के हिन्दी कबि: डा॰ सरयू प्रसाद अग्रवाल।)

तानसेन के गुरु का क्या नाम है?

गुरु हरिदास थे उनके गुरु, इस वजह से अपनाया था इस्लाम - 5 साल की आयु तक तानसेन गूंगे थे, उस समय के महान संगीतज्ञ गुरु हरिदास ने उन्हें अपना शिष्य बनाया और उनको संगीत की शिक्षा दी। - इसके बाद कला प्रेमी अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में स्थान देकर सम्मानित किया था।

तानसेन का धर्म क्या है?

ग्वालियर। देश के महान संगीतकार तानसेन ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। कहा जाता है कि बाद में उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया।