दल-बदल विरोधी कानून का संबंध किस संविधान संशोधन अधिनियम से है - dal-badal virodhee kaanoon ka sambandh kis sanvidhaan sanshodhan adhiniyam se hai

भारत के संविधान का अनुच्छेद 102 उन आधारों को निर्धारित करता है, जिनके तहत एक विधायक को सदन का सदस्य होने से अयोग्य ठहराया जा सकता है. अनुच्छेद 102 का पहला भाग ऐसे कई उदाहरणों का जिक्र करता है, जिनसे ऐसी अयोग्यता की जा सकती है. 

अगर कोई व्यक्ति सरकार के अधीन लाभ के लिए कोई अघोषित पद धारण करता है, यदि उसे सक्षम न्यायालय द्वारा विकृतचित्त घोषित किया जाता है या वह अनुन्मोचित दिवालिया आदि हो जाता है. अनुच्छेद 102 का दूसरा भाग संविधान की दसवीं अनुसूची को किसी भी सदस्य को अयोग्य घोषित करने का अधिकार देता है. यह दसवीं अनुसूची ही है जिसे दलबदल विरोधी कानून के रूप में जाना जाता है.

दलबदल को "निष्ठा या कर्तव्य का सचेत परित्याग" के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसे आम भाषा में वफादारी और फर्ज को छोड़ देना कह सकते हैं. दरअसल, भारत में 1967 के आम चुनावों के बाद राज्यों में विधायकों द्वारा बड़ी संख्या में दलबदल किया गया और इन दलबदलों के परिणामस्वरूप कई राज्यों में सरकारों को सत्ता से हटा दिया गया. तब तत्कालीन सांसदों ने इस मामले पर लोकसभा में गंभीर चिंता जताई. 

नतीजतन समस्या की जांच के लिए तत्कालीन गृह मंत्री वाईबी चव्हाण की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया. कुछ ही समय बाद समिति ने इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें न केवल यह परिभाषित किया गया कि दलबदल क्या है, बल्कि उन मामलों के लिए अपवाद भी प्रदान किया जहां दलबदल वास्तविक था. इस समस्या से निपटने के लिए एक कानून लाने के दो असफल प्रयासों के बाद, आखिरकार 1985 में संविधान (52वां संशोधन) अधिनियम के माध्यम से दसवीं अनुसूची अस्तित्व में आई.

  दसवीं अनुसूची ने उस समय यथास्थिति में तीन बड़े बदलाव किए-

1. इसने एक विधायक के खिलाफ सदन के अंदर और बाहर दोनों जगह उनके आचरण के लिए अयोग्यता की कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दी. इससे विधायकों को सदन में अपनी सीट गंवाने का खतरा हो सकता है.

2. सदन के अध्यक्ष ही एकमात्र प्राधिकारी थे, जो अयोग्यता कार्यवाही पर निर्णय ले सकते थे.

3. एक पार्टी के भीतर विभाजन या किसी अन्य पार्टी के साथ विलय के मामलों में, विधायकों को अयोग्यता से सुरक्षित रखा गया था.

इस कानून के अस्तित्व में आने के कुछ समय बाद, विधायकों और राजनीतिक दलों ने इसे तनाव-परीक्षण के अधीन करना शुरू कर दिया. 1992 में, दसवीं अनुसूची की वैधता और संवैधानिकता को किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू और अन्य के ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी. एक अध्यक्ष की शक्तियों की सीमा और सदन के बाहर एक विधायक के कृत्यों को तय करने के लिए न्यायपालिका को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया गया था, जो अयोग्यता कार्यवाही को आकर्षित कर सकता था. उस समय, सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्यता कार्यवाही पर निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष की शक्ति को बरकरार रखा, लेकिन यह भी निर्धारित किया कि अध्यक्ष द्वारा लिया गया निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा.

साल 2003 में, संसद में संविधान (91वां संशोधन) अधिनियम पेश किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप दसवीं अनुसूची के तहत पार्टी में विभाजन के मामलों में विधायकों को दी गई सुरक्षा के प्रावधान हटा दिए गए थे. प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली एक समिति ने पाया कि लाभ के पद का लालच दलबदल और राजनीतिक खरीद-फरोख्त को प्रोत्साहित करने में एक बड़ी भूमिका निभाता है. नए कानून में यह भी कहा गया है कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य ठहराए गए किसी भी व्यक्ति को केंद्र या राज्य स्तर पर मंत्री पद से स्वचालित रूप से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. हालांकि संशोधन दलबदल विरोधी कानून को मजबूत करने के इरादे से लाया गया था, फिर भी इसके साथ कुछ बड़ी दिक्कतें थीं.

  ये कानून वो समय अवधि परिभाषित नहीं करता है, जिसके भीतर एक विधायक के खिलाफ अयोग्यता कार्यवाही का फैसला किया जाना चाहिए. इस कानून के आधार पर सदन के अध्यक्ष की भूमिका अधिक से अधिक राजनीतिक हो रही है, अयोग्यता का निर्णय या तो तुरंत किया गया या अनिश्चित काल तक लंबित रखा गया था, जो इस बात पर निर्भर करता था कि दोनों में से कौन सा राजनीतिक दल के अनुकूल था, जिससे अध्यक्ष पहले से संबद्ध था.

इसके अतिरिक्त, अयोग्यता कार्यवाही पर न्यायालयों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होने के कारण, केवल अध्यक्ष के निर्णय के खिलाफ या अयोग्यता कार्यवाही का निर्णय लेने में उनकी निष्क्रियता पर न्यायिक उपाय की मांग की जा सकती है. इसने दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही को काफी हद तक बेकार बना दिया और विधायकों को जहाज से कूदने से हतोत्साहित नहीं किया. हालांकि 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा कि स्पीकर को "उचित समय" के भीतर उनके सामने लंबित अयोग्यता की कार्यवाही पर फैसला करना चाहिए.

2020 के कीशम मेघचंद्र सिंह बनाम माननीय अध्यक्ष मणिपुर के मामले में न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन का निर्णय दलबदल विरोधी कानून के लिए महत्वपूर्ण रहा है. न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने फैसले में दलबदल के मामलों से निपटने के लिए एक बाहरी तंत्र स्थापित करने की बात कही थी.

  हालांकि, दसवीं अनुसूची को बिना दांत वाले बाघ के रूप में छोड़कर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए गंभीर सुझावों को लागू करने के लिए संसद द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया है.

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  • दल बदल विरोधी कानून- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
  • समाचारों में दल-बदल विरोधी कानून
  • दल बदल विरोधी कानून से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
  • दल बदल विरोधी कानून पर न्यायपालिका

दल बदल विरोधी कानून- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

दल बदल विरोधी कानून: दल बदल विरोधी कानून उन सांसदों/विधायकों को निरर्ह घोषित करने का एक तंत्र है जो अपनी आधिकारिक पार्टी लाइन के विरुद्ध कार्य करते हैं। दल बदल विरोधी कानून यूपीएससी मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के पेपर 2 (भारतीय संविधान- संसद एवं राज्य विधानमंडल – संरचना, कार्यकरण, कार्यों का संचालन, शक्तियां तथा विशेषाधिकार एवं इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दों) का हिस्सा है।

दल-बदल विरोधी कानून का संबंध किस संविधान संशोधन अधिनियम से है - dal-badal virodhee kaanoon ka sambandh kis sanvidhaan sanshodhan adhiniyam se hai

समाचारों में दल-बदल विरोधी कानून

  • महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक संकट ने इस प्रश्न को जन्म दिया है कि क्या शिवसेना के बागी दल-बदल विरोधी कानून के तहत निरर्हता से बच सकते हैं।
  • दल बदल विरोधी कानून को लागू करने का आह्वान इस आधार पर है कि ये विधायक आधिकारिक बैठक में सम्मिलित नहीं हुए तथा व्हिप का पालन नहीं किया।
    • यद्यपि, एक व्हिप मात्र विधायिका के कार्य तक ही सीमित है।

दल बदल विरोधी कानून से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • 52वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1985: दल बदल विरोधी प्रावधान को समाविष्ट किया। इसने दल बदल के आधार पर संसद एवं राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की निरर्हता/अयोग्यता का प्रावधान किया। दल-बदल विरोधी कानून के तहत, एक विधायिका के सदस्य को निरर्ह घोषित किया जा सकता है-
    • यदि उसने स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता त्याग दी है; तथा
    • यदि वह अपनी पार्टी (या पार्टी द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकरण) द्वारा जारी किसी भी निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करता है अथवा मतदान से दूर रहता है।
  • दसवीं अनुसूची: 52 वें संविधान संशोधन अधिनियम ने एक नई दसवीं अनुसूची को भी जोड़ा जिसमें दल बदल विरोधी कानून के बारे में विवरण सम्मिलित हैं।
  • 91वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003: यह प्रावधान करता है कि यदि दो-तिहाई सदस्य किसी अन्य दल/पार्टी के साथ विलय हेतु सहमत होते हैं, तो उन्हें निरर्ह/अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
    • इसने निरर्हता से उन्मुक्ति को समाप्त कर दिया यदि एक तिहाई सदस्य एक पृथक समूह (संशोधन से पूर्ण का नियम) बनाते हैं।
    • निरर्हता प्राधिकरण: दल बदल विरोधी कानून के तहत किसी सदस्य को निरर्ह घोषित करने की बात आने पर राज्य विधान सभा का अध्यक्ष अंतिम प्राधिकार होता है।

दल-बदल विरोधी कानून का संबंध किस संविधान संशोधन अधिनियम से है - dal-badal virodhee kaanoon ka sambandh kis sanvidhaan sanshodhan adhiniyam se hai

दल बदल विरोधी कानून पर न्यायपालिका

  • गिरीश चोडनकर बनाम अध्यक्ष, गोवा विधानसभा:  बंबई उच्च न्यायालय (बॉम्बे हाईकोर्ट) ने माना कि 10 कांग्रेस विधायक और दो एमजीपी विधायक, जो 2019 में भाजपा में शामिल हो गए थे, उन्हें निरर्हता से उनमुक्ति प्रदान की गई है।
    • इसने माना कि कांग्रेस विधायकों के इस समूह का विलय भाजपा के साथ मूल राजनीतिक दल का “विलय माना जाता है”।
  • राजेंद्र सिंह राणा बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य (2007): सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने “एक राजनीतिक दल की स्वेच्छा से सदस्यता त्यागने” शब्द की व्याख्या की।
    • इसने निर्धारित किया कि “एक व्यक्ति के बारे में कहा जा सकता है कि उसने स्वेच्छा से एक मौलिक पार्टी की सदस्यता त्याग दी है, भले ही उसने पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र नहीं दिया है” तथा यह कि सदस्य के आचरण से एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
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दल बदल क्या है इस पर नियंत्रण लगाने के लिए भारतीय संविधान संविधान संशोधन किया गया है?

पर यदि किसी पार्टी के एक साथ दो तिहाई सांसद या विधायक (पहले ये संख्या एक तिहाई थी)(2/3) पार्टी छोड़ते हैं तो उन पर ये कानून लागू नहीं होगा पर उन्हें अपना स्वतन्त्र दल बनाने की अनुमति नहीं है वो किसी दूसरे दल में शामिल हो सकते हैं।

दलबदल विरोधी कानून का अर्थ क्या है?

प्रशासन में स्थिरता लाकर लोकतंत्र को मजबूत करना और सरकार के विधायी कार्यक्रमों को सुनिश्चित करना एक दलबदल सांसद द्वारा खतरे में नहीं है। संसद सदस्यों को उन राजनीतिक दलों के प्रति अधिक जिम्मेदार और वफादार बनाना, जिनके साथ वे चुनाव के समय गठबंधन में थे।

भारत के संविधान के निम्नलिखित में से कौन सी एक अनुसूची में दल बदल विरोधी कानून विषयक प्रावधान है?

दल-बदल विरोधी कानून भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची में निहित है।

10अनुसूची क्या है?

दसवीं अनुसूची: यह संविधान में 52वें संशोधन, 1985 के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है. ग्यारहवीं अनुसूची: यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किए गए हैं.