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ग्राफ जिसमें उपभोक्ता अधिशेष (लाल) और उत्पादक अधिशेष (नीला) एक आपूर्ति और माँग वक्र पर दिखाया गया है।
अर्थशास्त्र में आर्थिक अधिशेष (economic surplus) दो मात्राओं का नाम है:[1][2][3]
कुल आर्थिक अधिशेष इन दोनों का जोड़ होता है:
उदाहरण[संपादित करें]किसी बाज़ार में स्वेटर बिकते हैं। इसमें पाँच उत्पादक स्वेटर बेचने आए हैं और पाँच उपभोक्ता स्वेटर खरीदने आए हैं। बाज़ार की स्थिति इस प्रकार हैं:
इस स्थिति में आपूर्ति और माँग के आधार पर में अब बाज़ार में आर्थिक संतुलन बनेगा, जिस से स्वेटरों की कीमत उत्पन्न होगी। यह इस प्रकार होगा:
अब उत्पादक अधिशेष और उपभोक्ता अधिशेष का हिसाब लगाया जा सकता है:
देखा जा सकता है कि इस बाज़ार में उत्पादक अधिशेष ₹2000 और उपभोक्ता अधिशेष ₹4500 है, तथा आर्थिक अधिशेष इनका जोड़, अर्थात ₹6500 है। ध्यान दें कि इस व्यापार से उत्पादक और उपभोक्ता दोनों का लाभ हो रहा है और मुक्त बाज़ार में ऐसा ही देखा जाता है। लम्बे समय तक इस प्राकर की प्रक्रियाएँ स्वतंत्रता से चलने देने से समाज में सम्पन्नता उत्पन्न होती है। वक्रों के प्रयोग के साथ उदहारण[संपादित करें]उपभोक्ता अधिशेष[संपादित करें]अवलोकन[संपादित करें]किसी चीज़ को खारीदते समय, एक उपभोक्ता एक निर्धारित राशि देने के लिये तैयार रेहता है, और अधिकांश समय वह एक अन्य ही राशि देता है। इन दोनो के अंतर को ही 'उपभोक्ता अधिशेष' कहलाया जाता है।[4] इस परिभाषा को स्पष्ट करने के लिये, एक उदाहरण प्रस्तुत है। मान लीजिए कि अनिल बाजार से एक किताब खरीदना चाहता है, और वह इस किताब के लिए २०० रुपये देने के लिए तैयार है। बाजार पहुँचने पर उसे पता चलता है कि उस पुस्तक की वास्तविक कीमत केवल १५० रुपए है, और इसलिए वह उस पुस्तक को खुशी-खुशी खरीदता है। इस उदाहरण में उपभोक्ता २०० रुपये देने के लिए तैयार था, पर उसे सिर्फ १५० रुपये ही देने पडा। अत: इस उदाहरण में अनील को ५० रुपए की उपभोक्ता अधिशेष प्राप्त होती है। मांग वक्र और उपभोक्ता अधिशेष[संपादित करें]
उपभोक्ता अधिशेष पर कीमत का प्रभाव[संपादित करें]
उत्पादक अधिशेष[संपादित करें]अवलोकन[संपादित करें]उत्पादक को दिया गया शोध और उत्पादक के खुद की खर्च के बीच के अंतर को 'निर्माता अधिशेष' कहा जाता है। निर्माता अधिशेष तभी उतपन्न होती है जब उत्पादक की उम्मीद की कीमत बाजार की कीमत से कम होता है।[7] इस परिभाषा को स्पष्ट करने के लिये, एक उदाहरण प्रस्तुत है। मान लीजिए कि अनिल ने १५० रुपये खर्च करके एक पुस्तक छापा है। अब वह उस पुस्तक को बाजार में बेचना चाहता है। बाजार पहुँचने पर उसे पता चलता है कि उस पुस्तक की वास्तविक कीमत २०० रुपए है, और इसलिए वह उस पुस्तक को खुशी-खुशी बेचता है। इस उदाहरण में उत्पादक की खुद की खर्चा १५० रुपए है, पर बाजार कि कीमत २०० रुपए है। अत: इस उदाहरण में अनील को ५० रुपए की उत्पादक अधिशेष प्राप्त होती है। आपूर्ति वक्र और उत्पादक अधिशेष[संपादित करें]
उत्पादक अधिशेष पर कीमत का प्रभाव[संपादित करें]
आर्थिक अधिशेष का सूत्र और प्रतिनिधित्व[संपादित करें]मांग और आपूर्ति वक्रो द्वारा आर्थिक अधिशेष का प्रतिनिधित्व
अब, खरीदारों द्वारा भुगतान राशि और विक्रेताओं द्वारा प्राप्त राशि, दोनों बराबर हैं। इसलिए, आर्थिक अधिशेष = खरीददारों के लिए मूल्य - विक्रेताओं के लिए लागत। मांग और आपूर्ति वक्र के ग्राफ में, मांग और आपूर्ति वक्रों के बीच के क्षेत्र (मांगी गयी मात्रा तक) आर्थिक अधिशेष का प्रतिनिधित्व करती है।[10] इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी जोड़[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
उपभोक्ता की बचत विचार के प्रतिपादक कौन थे?उपभोक्ता की बचत सिद्धांत का प्रतिपादन सन 1844 ई0 मैं फ्रांसीसी अर्थशास्त्री आर0 जे0 ड्यूगिट ने किया।
उपभोक्ता की बचत का दूसरा नाम क्या है?'उपभोक्ता की बचत' अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण विचार है। उपभोक्ता की बचत का विचार सबसे पहले सन् 1844 में फ्रांस के एक सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री ड्यूपिट ने दिया था, लेकिन उन्होंने उपभोक्ता की बचत को 'सापेक्षिक उपयोगिता' के नाम से संबोधित किया था।
उपभोक्ता का बचत क्या है?(1) डॉ० मार्शल के अनुसार, “किसी वस्तु के उपभोग से वंचित रहने की अपेक्षा कोई उपभोक्ता उसके लिए जो कीमत देने को तैयार रहता है तथा जो कीमत वह वास्तव में देता है, उनका अन्तर ही अतिरिक्त सन्तुष्टि का आर्थिक माप है। इसे उपभोक्ता की बचत कह सकते हैं।
उपभोक्ता की बचत को कैसे मापा जाता है?उपभोक्ता की बचत की मान्यताये. उपयोगिता को मुद्ररुपी पैमाने से ज्ञात किया जा सकता है|. किसी वस्तु की उपयोगिता केबल उस वस्तु की पूर्ति पर निर्भर है कोई भी वस्तु अन्य वस्तुओ की पूर्ति से प्रभावित नहीं होता |. द्रव्य की सीमांत उपयोगिता स्थिर रहती है वस्तु को खरीदने पर उसके मूल्य मव परिवर्तन नही होता है|. |