जिस बिन्दु पर सीमान्त आगम व सीमान्त लागत बराबर होती है उस बिन्दु से पहले सीमान्त आगम सीमान्त लागत से ज्यादा होता है। अत: फर्म अपना उत्पादन बढ़ाकर अपना लाभ और बढ़ाने का प्रयत्न करेगी लेकिन यदि साम्य बिन्दु से आगे उत्पादन किया जाता है तो MR से MC ज्यादा हो जाता है अर्थात् कुल लाभ में कमी होने लगती है। इसलिए कोई भी फर्म इस स्थिति में नहीं जाना चाहेगी। उसके लिए सबसे अच्छी स्थिति वही होगी जहाँ पर MR = MC है। Show इस स्थिति को रेखाचित्र द्वारा और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है – उपरोक्त रेखाचित्र में x अक्ष पर वस्तु की उत्पादन मात्रा तथा y अक्ष पर सीमान्त आगम तथा सीमान्त लागत दर्शायी गई है। MC सीमान्त लागत वक्र है तथा MR सीमान्त आगम वक्र है। अपूर्ण प्रतिस्पर्धा एवं एकाधिकारी बाजार में MR वक्र नीचे गिरता हुआ होता है जबकि सीमान्त लागत वक्र U आकार का होता है क्योंकि प्रारम्भ में सीमान्त लागत उत्पादन बढ़ने पर गिरती है तथा बाद में यह बढ़ती जाती है। E बिन्दु साम्य बिन्दु है। यहाँ MR = MC है। अत: उत्पादन की OQ मात्रा आदर्श है क्योंकि इसी अवस्था में फर्म का लाभ अधिकतम रहता है। यदि फर्म OQ से कम OM उत्पादन करती है तो सीमान्ते आगम (TM) सीमान्त लागत (T,M) से ज्यादा होती है। इस कारण कोई भी उत्पादक इस बिन्दु पर नहीं रुकना चाहेगा। वह इससे आगे तब तक बढ़ेगा जब तक कि MR और MC बराबर नहीं हो जाते हैं। यदि फर्म अपने उत्पादन को OQ से बढ़ाकर ON करती है तो E बिन्दु के आगे MC, MR से ज्यादा हो जाती है। इसका आशय है कि फर्म को उन अतिरिक्त इकाइयों (QN) से हानि हो रही है जिसे तीर द्वारा दिखाया गया है। कोई भी फर्म ऐसा नहीं करना चाहेगी। अत: फर्म के लिए आदर्श स्थिति OQ उत्पादन की ही है क्योंकि यहीं पर उसका लाभ अधिकतम होता है। E बिन्दु उसका साम्य बिन्दु है। पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में फर्म के साम्य के लिए उपरोक्त शर्त के साथ एक शर्त और पूरी करनी होती है। वह है कि सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आगम वक्र को नीचे से काटता हो। यह निम्न रेखाचित्र से स्पष्ट किया जा सकता है – चित्र में E बिन्दु साम्य बिन्दु है क्योंकि इस बिन्दु पर साम्य की दोनों शर्ते पूरी हो रही हैं – (i) MR और MC बराबर है तथा (ii) MC वक्र MR वक्र को नीचे से काट रहा है। इस अवस्था में ही फर्म को अधिकतम लाभ होगा। चित्र में R बिन्दु पर भी MR और MC बराबर है लेकिन इस बिन्दु पर MC वक्र MR वक्र को ऊपर से काट रहा है। अत: यह साम्य बिन्दु नहीं है और न ही इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होगा। जैसा कि चित्र से स्पष्ट है इस बिन्दु के बाद उत्पादन बढ़ाने पर MR, MC से ज्यादा रहता है। अत: फर्म इस लाभ को प्राप्त करना चाहेगी तथा उत्पादन को 09 तक बढ़ायेगी जिससे सम्पूर्ण लाभ अर्जित किया जा सके। यदि फर्म अपना उत्पादन OM से कम रखती है तो उसे हानि उठानी पड़ेगी क्योंकि इसे अवस्था में MC, MR से ज्यादा है। इसी प्रकार यदि फर्म उत्पादन OQ से ज्यादा करती है तो भी E बिन्दु के बाद MC, MR से ज्यादा हो जाता है जिससे कुल लाभ में कमी आयेगी। अत: दोनों ही स्थिति फर्म के लिए लाभदायक नहीं हैं। उसको अधिकतम लाभ तो साम्य बिन्दु E पर ही होगा। प्रश्न 2. उपरोक्त चित्र में कुल आगम तथा कुल लागत वक्रों को क्रमश: TR व TC द्वारा दिखाया गया है। कुल आगम (TR) वक्र शून्य से। प्रारम्भ होता है जिसका आशय है कि उत्पादन के शून्य होने पर कुल आगम भी शून्य होता है। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता जाता है कुल आगम में भी वृद्धि होती जाती है। इस कारण कुल आगम वक्र उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ बायें से दाईं ओर ऊपर उठता जाता है। कुल लागत वक्र (TC) T बिन्दु से प्रारम्भ होता है न कि मूल बिन्दु से, क्योंकि T कुल स्थिर लागत है और उत्पादन न होने की अवस्था में भी यह तो होती ही है। प्रारम्भिक अवस्था में जब फर्म का उत्पादन OQ1 से कम है, फर्म को हानि होती है क्योंकि इस अवस्था में TR से TC ज्यादा है। R बिन्दु पर कुल आगम (TR) तथा कुल लागत (TC) बराबर हो जाते हैं जबकि उत्पादन की मात्रा OQ1 होती है। अत: R बिन्दु को समस्थिति बिन्दु (Break-even Point) कहते हैं जो न लाभ और न ही हानि की अवस्था को दर्शाता है। जब फर्म अपना उत्पादन OQ1 से अधिक बढ़ाती है तो फर्म को लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है क्योंकि इस बिन्दु के बाद कुल आगम कुल लागत से अधिक हो जाता है लेकिन फर्म को लाभ अधिकतम OQ मात्रा में उत्पादन करने पर ही होगा क्योंकि OQ मात्रा में उत्पादन पर उसके कुल आय वक्र तथा कुल लागत वक्र के बीच अन्तर अधिकतम है। अतः फर्म OQ उत्पादन मात्रा पर ही सन्तुलन की स्थिति में होगी। TP वक्र, जोकि कुल लाभ को दर्शाता है, वो TR व TC वक्र के अन्तर के आधार पर बनाया या व्युत्पन्न किया गया है। TR व TC वक्र के बीच अधिकतम अन्तर को ज्ञात करने के लिए दोनों वक्रों पर स्पर्श रेखाएँ खींचनी होती हैं। ये स्पर्श रेखाएँ जिस बिन्दु पर स्पर्श करती हैं (चित्र के अनुसार E व F पर) उस स्तर पर TC व TC के बीच की दूरी अधिकतम होती है। इसलिए इस स्तर पर लाभ भी अधिकतम होता है। चित्र के अनुसार अधिकतम लाभ की मात्रा GQ है। QQ2, के मध्य उत्पादन पर भी लाभ प्राप्त होता है लेकिन TR व TC के मध्य अन्तर निरन्तर कम होता जाता है। इस कारण कुल लाभ भी घटने लगता है। इस अवस्था में कुल लाभ वक्र (TP) नीचे की ओर गिरने लगता है। s बिन्दु पर पुनः कुल आगम व कुल लागत बराबर हो जाते हैं, यह समस्थिति बिन्दु है। यहाँ पर TP वक्र x अक्ष को स्पर्श करता है। इसके आगे उत्पादन बढ़ाने पर TR से TC ज्यादा हो जाता है। अतः फर्म को हानि होने लगती है। कुल लाभ वक्र (TP) इस अवस्था में x अक्ष के नीचे चला जाता है जो ऋणात्मक लाभ को दर्शाता है जिसका आशय है कि फर्म को हानि हो रही है। अत: कोई भी फर्म OQ से ज्यादा उत्पादन नहीं करना चाहेगी। यही उसका सन्तुलन बिन्दु है। इस अवस्था में ही व्युत्पन्न लाभ वक्र (TP) अपने शीर्ष बिन्दु पर होता है जो अधिकतम लाभ मात्रा को दर्शाता है। RBSE Class 12 Economics Chapter 10 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नRBSE Class 12 Economics Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. उत्तरमाला:
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. RBSE Class 12 Economics Chapter 10 लघु उत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. रेखाचित्र में ‘E’ साम्य बिन्दु है तथा OQ साम्य मात्रा है। E बिन्दु पर MR = MC हैं। प्रश्न 12. यदि फर्म का आगम उसकी लागत से ज्यादा होता है तो फर्म लाभ की स्थिति में होती है। जब फर्म का आगम लागत से कम होता है तो फर्म हानि की स्थिति में होती है। जब ये दोनों बराबर होते हैं तो फर्म न लाभ और न ही हानि की स्थिति में होती है। प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. RBSE Class 12 Economics Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्नप्रश्न 1.
कुल आगम एवं कुल लागत विधि एक सरल तथा तर्कसंगत विधि है। अधिकांश फर्मे इस विधि का प्रयोग करती हैं लेकिन इस विधि में निम्न कमियाँ भी हैं –
सीमान्त आगम व सीमान्त लागत विधि को श्रेष्ठ विधि माना जाता है क्योकि इसके द्वारा अधिकतम लाभ वे उत्पादन मात्रा को ज्ञात करना आसान होता है। फर्म के औसत आगम व औसत लागत वक्रों का प्रयोग करके प्रति इकाई कीमत भी ज्ञात की जा सकती है। प्रश्न 2. सीमान्त लागत वक्र अन्य बाजार की तरह पूर्ण स्पर्धात्मक बाजार में भी U आकार का होता है क्योकि यह उत्पादन के नियमों से प्रभावित होता है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा वाले बाजार में फर्म का सन्तुलन उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर निम्न दो शर्ते पूरी होती हैं –
इस स्थिति को निम्न रेखाचित्र द्वारा और स्पष्ट किया जा सकता है- चित्र को स्पष्टीकरण – E: बिन्दु पर सीमान्त आगम (MR) तथा सीमान्त लागत (MC) बराबर है। साथ ही इस बिन्दु पर MC वक्र MR वक्र को नीचे से काट रहा है। अतः इस बिन्दु पर साम्य की दोनों शतें पूरी हो रही हैं। इसे ही फर्म की साम्य बिन्दु कहते हैं तथा OQ साम्य मात्रा है। इसके विपरीत यदि फर्म उत्पादन ON के बराबर करती है तो साम्य की पहली शर्त तो पूरी हो रही है क्योंकि इस बिन्दु पर भी सीमान्त आगम सीमान्त लागत के बराबर है लेकिन दूसरी शर्त पूरी नहीं हो रही है क्योंकि इस बिन्दु पर सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आगम वक्र को नीचे से नहीं काट रहा है। अतः इस बिन्दु पर फर्म अधिकतम लाभ अर्जित नहीं कर सकती है। अत: यह साम्य की अवस्था नहीं है। उत्पादक के संतुलन से आप क्या समझते हैं?उत्पादक के संतुलन का तात्पर्य एक वस्तु के उत्पादन के उस स्तर से होता है जिस पर उसके उत्पादन को अधिकतम लाभ मिले। कुल संप्राप्ति और कुल लागत का अन्तर लाभ होता है। अतः उत्पादन का वह स्तर संतुलन स्तर कहलाता है जिस पर कुल संप्राप्ति और कुल लागत का अन्तर अधिकतम हो । उत्पादक के संतुलन की स्थिति ज्ञात करने की यह एक विधि है।
संतुलन से क्या तात्पर्य है?संतुलन या साम्य या साम्यावस्था (इक्विलिब्रिअम) से तात्पर्य किसी निकाय की उस अवस्था से है जब दो या अधिक परस्पर विरोधी वस्तुओं या बलों के होने पर भी 'स्थिरता' (अगति) का दर्शन हो। बहुत से निकायों में साम्यावस्था देखने को मिलती है। १. अच्छी तरह तौलने की क्रिया या भाव।
संतुलन के दो प्रकार कौन से हैं?संतुलन दो प्रकार के होते है;. स्थिर संतुलन. गतिशील संतुलन. कुल उत्पादन से क्या अर्थ होता है?कुल उत्पाद (TP) : कुल उत्पाद से अभिप्राय किसी वस्तु के उस कुल उत्पादन से है जो एक आगत जैसे श्रम के रोजगार के एक निश्चित स्तर द्वारा प्राप्त होता है, जबकि अन्य आगतों की मात्रा अपरिवर्तित रहती है । कुल उत्पाद को श्रम की इकाईयों को बढ़ाने और घटाने से बढ़ाया और घटाया जा सकता है ।
|