UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity (विद्युत धारा) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity (विद्युत धारा). Show UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity (विद्युत धारा)अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. हल- दिया है, R1 = 1 Ω; R2 = 2 Ω; R3 = 3 Ω (a) यदि श्रेणी संयोजन में तुल्य प्रतिरोध R हो, तो R = R1 + R2 + R3 = 1 + 2 + 3 = 6 ओम (b) दिया है, बैटरी का वै० वा० बल E = 12 वोल्ट बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध r = 0 तथा बाह्य प्रतिरोध R = 6 ओम यदि संयोजन द्वारा परिपथ में प्रवाहित धारा i हो, तो प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. श्रेणी-प्रतिरोध बाह्य D.C. सप्लाई से ली गई धारा को सीमित करता है। बाह्य प्रतिरोध की अनुपस्थिति में संचायक बैटरी द्वारा अनुमेय सुरक्षित धारा के मान से अधिक धारा प्रवाहित हो सकती है। प्रश्न 12. प्रश्न 13. अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. स्पष्ट है कि ऐलुमिनियम के तार का द्रव्यमान, कॉपर के तार के द्रव्यमान का आधा है अर्थात् ऐलुमिनियम का तार हल्का है। यही कारण है कि ऊपर से जाने वाले बिजली (UPBoardSolutions.com) के केबिलों में ऐलुमिनियम के तारों का प्रयोग किया जाता है। यदि कॉपर के तारों का प्रयोग किया जाए तो खम्भे और अधिक मजबूत बनाने होंगे। प्रश्न 17. हल- दी गई सारणी के प्रत्येक प्रेक्षण से स्पष्ट है कि [latex s=2]\frac { V }{ i }[/latex] = 19.7 Ω इससे स्पष्ट है कि मैंगनिन का प्रतिरोधक लगभग पूरे वोल्टेज परिसर में ओम के नियम का पालन करता है, अर्थात् मैंगनिन की प्रतिरोधकता पर ताप का बहुत कम प्रभाव पड़ता है। प्रश्न 18.
हल-
प्रश्न 19.
उत्तर-
प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. हल- (a) विभवमापी के तार की समान विभव प्रवणता के लिए, दो सेलों के वै० वा० बलों की तुलना करने का सूत्र निम्न है। (b) उच्च प्रतिरोध का प्रयोजन धारामापी में धारा को कम करना है जबकि जौकी संतुलन बिन्दु से दूर है। इससे प्रमाणिक सेल नुकसान (damage) से बचा रहता है। (c) संतुलन बिन्दु उच्च प्रतिरोध से प्रभावित नहीं होता है, क्योंकि संतुलन की स्थिति में सेल के द्वितीयक परिपथ में धारा नहीं बहती। (d) परिचालक सेल के आन्तरिक प्रतिरोध से संतुलन बिन्दु प्रभावित नहीं होता क्योंकि हमने तार पर विभव प्रवणता पहले से ही नियत रख दी है। (e) नहीं, क्योंकि विभवमापी के कार्य करने के लिए परिचालक सेल का वै० वी० बल, द्वितीयक परिपथ के सेल के वै० वा० बल (E) से अधिक होना चाहिए। (f) क्योकि संतुलन बिन्दु सिरे A के निकट होगा तथा मापन में त्रुटि बहुत अधिक होगी। इसके लिए परिचालक सेल के श्रेणीक्रम में एक परिवर्ती प्रतिरोध (R) जोड़ते हैं तथा इसका मान इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि तार AB के सिरों के बीच विभवपात द्वितीयक सेल के वै० वा० बल से (UPBoardSolutions.com) थोड़ा ही अधिक हो ताकि संतुलन बिन्दु अधिक लम्बाई पर प्राप्त हो, इससे मापन में त्रुटि कम होगी तथा मापने की यथार्थता बढ़ेगी। प्रश्न 23. हल- कुँजियों K1 तथा K2 को क्रमशः बन्द करके विभवमापी के तार पर सन्तुलन बिन्दु प्राप्त करने पर यदि संगत सन्तुलन लम्बाई क्रमशः l1 तथा l2 हो, तो R के सिरों का विभवान्तर = Kl1 = RI तथा X के सिरों का विभवान्तर = Kl2 = XI जहाँ I = विभवमापी के तार में धारा तथा K = इसकी विभव प्रवणता यदि सन्तुलन बिन्दु प्राप्त नहीं होता है तो इसका अर्थ है कि R या X के सिरों के बीच विभवान्तर विभवमापी के तार AB के सिरों के बीच विभवान्तर से अधिक है। ऐसी स्थिति में बाह्य परिपथ में धारा का मान कम करने के लिए श्रेणीक्रम में एक उचित प्रतिरोध जोड़ना होगा जो बिन्दु C व D के बीच जोड़ा जाएगा। प्रश्न 24. हल- यहाँ वैद्युत वाहक बल E = 1.5 वोल्ट जिसके संगत (जब सेल खुले परिपथ में है) विभवमापी के तार की संगत सन्तुलन लम्बाई l1 = 76.3 सेमी। सेल के साथ बाह्य प्रतिरोध R = 9.5 Ω संयोजित करने पर (अर्थात् जब सेल बन्द परिपथ में है) तो सेल के टर्मिनल विभवान्तर V के संगत लम्बाई l2 = 64.8 सेमी। परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. (i) 12 वोल्ट (ii) 6 वोल्ट (ii) 4 वोल्ट (iv) 0 वोल्ट उत्तर- (iv) 0 वोल्ट प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27.
प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. हल- बिन्दु P पर धारा i1 = बिन्दु P की ओर आने वाली धाराओं का योग – बिन्दु P से दूर जाने वाली धाराओं का योग i1 = 2 + 2 – 1 = 3 A बिन्दु Q पर धारा i2 = i1 – 1 A = 3 – 1 = 2 A बिन्दु R पर धारा i2 + 1 A = i + 1.2 A i = (2 + 1 – 1.2) A = 1.8 A प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. एक चालक में 6.4 ऐम्पियर वैद्युत धारा प्रवाहित होती है। यदि चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 x 1024 प्रति मीटर हो तो उनका अनुगमन वेग ज्ञात कीजिए। (2014) हल- प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. माना धारा i परिपथ में t समय के लिए प्रवाहित की जाती है। अत: परिपथ में प्रवाहित आवेश q = धारा x समय = i x है, सेल सहित पूरे परिपथ में इस आवेश को प्रवाहित कराने में सेल द्वारा किया गया कार्य (अर्थात् सेल द्वारा दी गयी ऊर्जा) w हो, तो यह ऊर्जा सेल सहित पूरे परिपथ में निम्नलिखित दो भागों में प्रयुक्त होती है- ऊर्जा का एक भाग वाडा ; प्रतिरोध R में आवेश १ को प्रवाहित कराने में तथा शेष दूसरा भाग Wआन्तरिक, सेल के आन्तरिक प्रतिरोध r (अर्थात् वैद्युत-अपघट्य) में आवेश q को प्रवाहित कराने में व्यय होता है। यही टर्मिनल विभवान्तर तथा सेल के आन्तरिक प्रतिरोध के बीच सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध से स्पष्ट है कि जब किसी सेल से वैद्युत धारा ली जा रही होती है; अर्थात् (UPBoardSolutions.com) सेल बन्द परिपथ में होती है तो उसका टर्मिनल विभवान्तर V उसके विद्युत वाहक बल E से कम होता है। ऐसा सेल के आन्तरिक प्रतिरोध में विभव पतन ir के कारण होता है। परन्तु जब सेल को धारा दी जा रही होती है तो उपर्युक्त सूत्र (2) निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता है- V = E + ir प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. हल- E = iR – ir [जहाँ r = 0] E = iR [जहाँ R = 4 Ω] i = [latex s=2]\frac { 3 }{ 4 }[/latex] ऐम्पियर 2 Ω प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवान्तर V = iR = [latex s=2]\frac { 3 }{ 4 }[/latex] x 2 = 1.5 वोल्ट प्रश्न 27. हल- प्रश्न में दिए गए चित्र 3.26 में दिए गए प्रतिरोधों को चित्र 3.27 की भाँति व्यवस्थित कर सकते हैं। इस प्रकार यह परिपथ एक सन्तुलित व्हीटस्टोन सेतु के तुल्य है। यदि A व B के बीच सेल जोड़ दी जाए तो भुजा CD में कोई धारा नहीं बहेगी। अत: C व D के बीच जुड़ा प्रतिरोध प्रभावहीन है। ADB में जुड़े प्रतिरोधों का परिणामी प्रतिरोध R1 = R + R = 2R Ω तथा ACB में जुड़े प्रतिरोधों का परिणामी प्रतिरोध R2 = R + R = 2R Ω भुजा ADB तथा ACB में जुड़े प्रतिरोध R1 व R2 परस्पर समान्तर क्रम में हैं। अतः A व B के बीच तुल्य प्रतिरोध [latex s=2]R=\frac { 2R\times 2R }{ 2R+2R } =R\Omega[/latex] प्रश्न 28. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. ओम के नियम का निगमन- माना एक धातु के तार की लम्बाई l तथा अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल A है। जब इसके सिरों के बीच विभवान्तर V लगाया जाता है, तो इसमें वैद्युत धारा i प्रवाहित होने लगती है। यदि तार के प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या (मुक्त इलेक्ट्रॉन-घनत्व) n हो तथा इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग vd हो, तब तार के भीतर मुक्त इलेक्ट्रॉन धातु के धन आयनों से बारम्बार टकराते रहते हैं। किसी धन आयन से टकराने के पश्चात् इलेक्ट्रॉन का वेग वैद्युत-क्षेत्र E की विपरीत दिशा में बढ़ने लगता है। यदि किसी इलेक्ट्रॉन की, धन आयनों से हुई दो क्रमागत टक्करों के बीच का समयान्तराल t है, (UPBoardSolutions.com) तो इलेक्ट्रॉन के वेग में aτ वृद्धि होगी। यदि किसी क्षण वैद्युत-क्षेत्र की अनुपस्थिति में किसी इलेक्ट्रॉन का ऊष्मीय वेग u1 है, तब वैद्युत-क्षेत्र में की उपस्थिति में उसका वेग बढ़कर u1 + aτ1 हो जाएगा; जहाँ τ1 उस इलेक्ट्रॉन का दो क्रमागत टक्करों के बीच का समयान्तराल है। इसी प्रकार, अन्य इलेक्ट्रॉनों के वेग (u2 + aτ2), (u3 + aτ3) होंगे। सभी n इलेक्ट्रॉनों का औसत वेग ही मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग vd है। इस प्रकार प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. i1 + i2 – i3 – i4 – i5 = 0 या i1 + i2 = i3 + i4 + i5 स्पष्ट है कि परिपथ के किसी बिन्दु पर आने वाली धाराओं का योग वहाँ से जाने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है। यह नियम आवेश के संरक्षण को व्यक्त करता है। द्वितीय नियम- किसी वैद्युत परिपथ में प्रत्येक बन्दपाश के विभिन्न भागों में प्रवाहित होने वाली धाराओं एवं संगत प्रतिरोधों के गुणनफलों का बीजगणितीय योग उस पाश में लगने वाले समस्त वि० वा० बलों के बीजगणितीय योग के बराबर होता है। i1R1 – i2R2 = E1 – E2 तथा बन्दपाश (2) के लिए । i2R2 + (i1 + i2) R3 = E2 इन समीकरणों को हल करके i1 व i2 के मान ज्ञात किये जा सकते हैं। यह नियम ऊर्जा के संरक्षण को व्यक्त करता है। प्रश्न 6. प्रश्न 7. E एक सेल है जिसका विद्युत वाहक बल नापना है। इसका धन-ध्रुव तार के A सिरे से जुड़ा होता है। तथा ऋण-ध्रुव एक धारामापी G के द्वारा जौकी J से जुड़ा होता है जो तार पर खिसकाकर कहीं भी स्पर्श करायी जा सकती है। बैटरी से वैद्युत धारा तार के सिरे A से सिरे B की ओर को बहती है। अत: A से B की ओर तार के प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत-विभव गिरता जाता है। तार की प्रति एकांक लम्बाई में विभव-पतन को विभव-प्रवणता कहते हैं तथा इसे K से प्रदर्शित करते हैं। माना जौकी को J1 पर स्पर्श कराते हैं, जबकि A और J1 के बीच विभवान्तर, सेल E के वि० वा० बल से कम है। चूंकि बिन्दु A का विभव J1 से। ऊँचा है; अत: बैटरी B1 की धारा AE J1 मार्ग से धारामापी में प्रवाहित होगी। परन्तु सेल E का धन-ध्रुव, बिन्दु A से जुड़ा है; अतः सेल की धारा AJ1E मार्ग से धारामापी में प्रवाहित होगी। स्पष्ट है। कि ये दोनों धाराएँ परस्पर विपरीत दिशाओं में हैं। परन्तु चूँकि सेल का वि० वा० बल (UPBoardSolutions.com) बैटरी के कारण उत्पन्न A व J1 के बीच विभवान्तर से अधिक है; अत: सेल की धारा की प्रधानता होगी। इस प्रकार AJ1E की दिशा में प्रवाहित एक परिणामी धारा के – कारण धारामापी की सूई एक ओर विक्षेपित हो जाएगी। इसके विपरीत यदि जौकी को J2 पर स्पर्श कराते हैं, जबकि A व J2 के बीच विभवान्तर, सेल E के वि० वा० बल से अधिक हो, तो बैटरी B1 की धारा की प्रधानता होगी। इस दशा में धारामापी में एक परिणामी धारा AEJ2 दिशा में प्रवाहित होगी और धारामापी की सूई पहले से विपरीत दिशा में विक्षेपित हो जाएगी। स्पष्ट है कि जौकी की दोनों स्थितियों J1 व J2 के मध्य में J एक ऐसा बिन्दु होगा, जहाँ पर जौकी को स्पर्श कराने पर धारामापी में कोई विक्षेप नहीं होगा। यह शून्य विक्षेप की स्थिति होगी और ऐसी स्थिति में A व J के मध्य विभवान्तर, सेल के वि० वा० बल के बराबर होगा।
वोल्टमीटर की तुलना में विभवमापी की श्रेष्ठता
प्रश्न 8. कार्यविधि अथवा कार्य सिद्धान्त- उपरोक्त दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 7 में पढ़िए। विभवमापी द्वारा किसी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात करना- इसके लिए विभवमापी के तार AB के सिरों के बीच एक संचायक सेल B1 धारा नियन्त्रक Rh व कुंजी K1 चित्र 3.36 के अनुसार जोड़ देते हैं। सेल B1 का धन-ध्रुव तार के सिरे A से जोड़ा जाता है। अब जिस सेल को आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात करना होता है, उसके धन सिरे को बिन्दु A से तथा ऋण सिरे को एक शण्टयुक्त धारामापी G द्वारा जौकी J (UPBoardSolutions.com) से जोड़ देते हैं। इस सेल के समान्तरक्रम में चित्र 3.36 के अनुसार एक प्रतिरोध बॉक्स व कुंजी K2 डाल देते हैं। सर्वप्रथम कुंजी K2 से प्लग को निकालकर सेल E को खुले परिपथ में रखा जाता है। अब कुंजी K1 का प्लग लगाकर सेल E के लिए शून्य विक्षेप स्थिति ज्ञात कर लेते हैं। मान लीजिए कि इस स्थिति में सिरे A से दूरी l1 सेमी है। चूंकि खुले परिपथ पर सेल की प्लेटों के बीच विभवान्तर V इसके विद्युत वाहक ब्रल E के बराबर है, अतः E = Kl1 …..(1) जहाँ K तार AB की विभव-प्रवणता है। अब प्रतिरोध बॉक्स में से कोई उचित प्रतिरोध R निकालकर कुंजी K2 को बन्द कर देते हैं। इस दशा में प्रतिरोध R के सिरों के बीच लगने वाले विभवान्तर V के लिए तार AB पर शून्य विक्षेप स्थिति ज्ञात करे लेते हैं। माना इस स्थिति की बिन्दु A से दूरी l2 सेमी है, तब इस सूत्र (5) से r के मान का परिकलन किया जा सकता है। l1 व l2 के अनेक प्रेक्षण लेते हैं और प्रत्येक प्रेक्षण से सेल के आन्तरिक प्रतिरोध को परिकलन करके औसत मान ज्ञात कर लेते हैं। प्रश्न 9. यदि इनमें एक सेल प्रमाणिक सेल हो, जिसका विद्युत वाहक बल ज्ञात होता है तो दूसरी सेल का विद्युत वाहक बल ज्ञात किया जा सकता है। विभवमापी में शून्य-विक्षेप की स्थिति में, सेल E, अथवा E, में कोई धारा नहीं बहती अर्थात् सेल खुले। परिपथ में होती है। अतः विभवमापी से सेल का यथार्थ विद्युत वाहक बल प्राप्त होता है। प्रश्न 10. हल- (i) चित्र 3.37 में विभवमापी के तार से जुड़े मुख्य परिपथ का कुल प्रतिरोध = 10 Ω + 15 Ω = 25 Ω तथा परिपथ में जुड़े सेल का वि० वा० बल E = 2 वोल्ट; अतः इस तार में प्रवाहित धारा, We hope the UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction (मानव जनन) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction (मानव जनन), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. विभवमापी की सुग्राहिता कैसे बढ़ाते हैं?विभवमापी की सुग्राहिता विभव-प्रवणता के व्युत्क्रमानुपाती होती है। परन्तु विभव-प्रवणता K = (जहाँ V = विभवमापी के तार के सिरों का विभवान्तर), अत: K ∝ 1/L अर्थात् विभवमापी के तार की लम्बाई L बढ़ाने से K का मान कम हो जाएगा; अर्थात् सुग्राहिता बढ़ जाएगी।
विभवमापी की सुग्राहिता कब बढ़ जाती है?विभव प्रवणता x का मान कम होने पर, विभवमापी की सुग्राहिता अधिक होती है। <br> `:' x = ( E )/( L)` <br> तार पर आरोपित विभवांतर E के नियत मान के लिए, विभव प्रवणता x का मान तार की लम्बाई L अधिक होने पर कम होता है। x का मान कम होने पर विभवमापी के तार पर संतुलन लम्बाई बढ़ जाती है, जिसे अधिक यथार्थता से मापा जा सकता है।
विभवमापी की सुग्राहिता से आप क्या समझते हैं?कि विभवमापी की सुग्राहिता बढ़ाने के लिए विभवमापी के तार की लंबाई बढ़ा देते हैं। जिस कारण विभव प्रवणता कम हो जाती है। और शून्य विक्षेप बिंदु अधिक लम्बाई प्राप्त होता है। अर्थात् आसान शब्दों में — विभवमापी की सुग्राहिता बढ़ाने के लिए प्रतिरोध तार AB की लंबाई बढ़ा दो।
विभवमापी वोल्टमीटर से अधिक सुग्राही होता है क्यों?Solution : विभवमापी की वोल्टमीटर पर श्रेष्ठता - `(i)` विभवमापी अनन्त प्रतिरोध के आदर्श वोल्टमीटर के समतुल्य है। `(ii)` वोल्टमीटर द्वारा विभवान्तर मापने के लिए वोल्टमीटर के संकेतक का विक्षेप पढ़ने में त्रुटि की सम्भावना बनी रहती है, जबकि विभवमापी द्वारा शून्य विक्षेप की स्थिति पढ़ने में त्रुटि की सम्भावना नहीं होती।
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