Show विनय के पदगोस्वामी तुलसीदासलेखक परिचयहिन्दी साहित्य के भक्तिकाल में गोस्वामी तुलसीदास का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। तुलसीदास के जन्म और मृत्यु के विषय में विद्वानों में सरिस - समान द्रवै - पिघल जाते हैं, करुणा करते हैं विराग - वैराग्य अरप - अर्पण सकुच सहित - संकोचपूर्वक कृपानिधि - दया के सागर वैदेही - सीता तजिए - छोड़ दीजिए कंत - पति बनितह्नि - स्त्रियों के द्वारा सुहुद - संबंधी सुसेव्य - सेवा, आराधना करने योग्य अंजन - सुरमा, काजल गीध - जटायु सबरी - भीलनी जाति की स्त्री जिसने राम को जूठे बेर खिलाए पषान - अहल्या नाम की स्त्री जिसे राम ने मोक्ष दिया ब्याध - वाल्मीकि सुसैव्य - अच्छी तरह से पूजने योग्य पदों की व्याख्या
पद - १ऐसो को उदार जग माहीं। बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोउ नाहीं। जो गति जोग विराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी। सो गति देत गीध सबरी कहूँ प्रभु न बहुत जिय जानी। जो सम्पत्ति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ मीन्ही। सो सम्पदा विभीषण कहँ अति सकुच सहित प्रभु दीन्ही॥ तुलसीदास सब भाँति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो। तौ भजु राम, काम सब पूरन कर कृपानिधि तेरो॥1।। प्रस्तुत पद में तुलसीदास के आराध्य देव भगवान राम की बात की जा रही है। राम अत्यंत उदार स्वभाव के हैं। उनके समान उदार और कोई देवी-देवता नहीं है। राम सेवा के बिना भी दीनों-दुखियों पर दया करते हैं। उनकी दशा देखकर ही राम का हृदय द्रवित हो जाता है और वे उनके दुख दूर कर देते हैं, इसीलिए उन्हें दीन-दयालु, दया-निधान, दयासागर आदि नामों से पुकारा जाता है। ज्ञानी-मुनियों को सांसारिक विषयों की इच्छाओं का दमन करके और अनेक प्रयत्न करके भी जो गति प्राप्त नहीं होती, वह राम ने भक्त जटायु तथा शबर जाति की स्त्री को प्रदान किया अर्थात् गीध (जटायु) के आत्मत्याग और सबरी (शबरी) की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान राम ने उन्हें परम मोक्ष प्रदान किया।जिस रावण ने कठिन तपस्या करके भगवान शिव से लंका प्राप्त की थी, वही सम्पत्ति रावण का वध करके राम ने विभीषण को अत्यंत संकोचपूर्वक दे दी। साथ ही साथ भगवान राम ने स्वयं को अत्यधिक उपकारी भी नहीं माना क्योंकि भगवान राम प्रेम और भक्ति के वश में हैं। तुलसीदास कहते हैं कि राम ही सबसे उदार हैं जिनकी आराधना से मोक्ष प्राप्त होता है। अतः सकल सुख पाने की कामना जिसके मन में भी हो, वह सुख उसे राम की आराधना करने से प्राप्त हो जाता है, क्योंकि वे कृपानिधि हैं। पद - 2जाके प्रिय न राम वैदेही। तजिए ताहि कोटि वैरी सम जद्पि परम सनेही।। तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषण बन्धु, भरत महतारी। बलि गुरू तज्यो, कंत ब्रज बनितह्न, भए-मुद मंगलकारी।। नाते नेह राम के मनियत, सुह्रद सुसेव्य जहाँ लौं।। तुलसी सो सब भाँति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो। जासों होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो।।2।। कवि तुलसीदास के अनुसार जिस व्यक्ति को भगवान राम और सीता प्रिय नहीं हैं, जो उनसे विमुख है, जिनकी श्रीराम में आस्था नहीं है, ऐसे व्यक्ति को अपने करोड़ों दुश्मन के समान समझकर त्याग देना चाहिए, चाहे वे आपके निकट संबंधी ही क्यों न हों, क्योंकि इस प्रकार के व्यक्तियों से हमें जीवन दुख ही प्राप्त होगा, सुख नहीं। कवि ने उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि जैसे भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप का त्याग किया था। विभीषण ने अपने भाई रावण का विरोध किया है और राम की शरण ली। इसी प्रकार भरत ने अपनी माँ कैकेयी का विरोध किया, उनके वचन का पालन न किया।राजा बलि ने अपने गुरू शुक्राचार्य का परामर्श स्वीकार नहीं किया। कृष्ण के लिए ब्रज की बालाओं ने अपने पतियों का साथ छोड़ा और कृष्ण की भक्ति में डूब गईं। इसप्रकार ये सभी व्यक्ति आनंदित हुए तथा दुष्टों का त्याग करना इनके लिए कल्याणकारी सिद्ध हुआ। अतः कवि कहते हैं कि सदा राम नाम की भक्ति करो। काजल का प्रयोग आँखों की ज्योति बढ़ाने के लिए किया करते हैं, उस काजल से क्या लाभ जो हमारी आँखों के लिए हानिकारक हो। तुलसीदास के अनुसार वही व्यक्ति हमारा परमहितैषी, शुभचिंतकऔर प्राणों से अधिक प्रिय है जिसने राम के चरणों में स्वयं को स्नेह और भक्ति के साथ अर्पित कर दिया है। पंक्तियों पर आधारित प्रश्न संदर्भ - 1 ऐसो को उदार जग माहीं। बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोउ नाहीं॥ जो गति जोग विराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी। सो गति देत गीध सबरी कहूँ प्रभु न बहुत जिय जानी॥ जो सम्पत्ति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्ही। सो सम्पदा विभीषण कहँ अति सकुच सहित प्रभु दीन्ही॥ तुलसीदास सब भाँति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो। तौ भजु राम, काम सब पूरन कर कृपानिधि तेरो॥ प्रश्न (i) प्रस्तुत पद में किसकी बात की जा रही है? वह कैसे उदार हैं? (ii) गीध और सबरी कौन थे? भगवान ने उनका उद्धार किस प्रकार किया? (iii) भगवान राम ने विभीषण के प्रति किस प्रकार उदारता दिखाई? (iv) तुलसीदास सब भाँति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो। तौ भजु राम, काम सब पूरन कर कृपानिधि तेरो॥ - इन पंक्तियों की व्याख्या कीजिए। उत्तर (i) प्रस्तुत पद में तुलसीदास के आराध्य देव भगवान विष्णु के अवतार राम की बात की जा रही है। तुलसीदास के अनुसार भगवान राम के समान उदार संसार में और कोई नहीं है। राम बिना सेवा के ही दीन-दुखियों पर अपनी कृपादृष्टि रखते हैं और उनका इस भव रूपी सागर से उद्धार करते हैं। (ii) गीध अर्थात् गिद्ध से कवि का तात्पर्य जटायु से है। जब रावण सीता का हरण करके आकाश मार्ग से लंका की ओर जा रहा था तो सीता की दुख-भरी पुकार सुनकर जटायु ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध करते हुए गम्भीर रूप से घायल हो गया। सीता को खोजते हुए जब राम वहाँ पहुँचे तो घायल जटायु ने ही राम को रावण के विषय में सूचना देकर राम के चरणों में अपने प्राण त्याग दिए और मोक्ष की प्राप्ति की। सबरी अर्थात् शबरी एक वनवासी शबर जाति की स्त्री थी। जब उसे पूर्वाभास हुआ कि राम उसी वन के रास्ते से जाएँगे जहाँ वह रहती है तब उसने राम के स्वागत के लिए चख-चखकर मीठे बेर जमा किए। राम ने उनका आथित्य स्वीकार किया और उसके चखे हुए जूठे बेर खाकर उसे परम गति प्रदान की। (iii) विभीषण रावण का छोटा भाई था। वह रामभक्त था। उसने रावण को राम से क्षमा माँगकर उनकी शरण में जाने के लिए समझाने की चेष्टा की, किन्तु रावण ने उसका तिरस्कार किया। रावण की दरबार से अपमानित होकर विभीषण को लंका छोड़कर राम की शरण में आना पड़ा। युद्ध में रावण को पराजित करने के बाद राम ने लंका का सम्पूर्ण राज्य बड़े संकोच के साथ अर्थात् बिना किसी अभिमान के विभीषण को दे दिया। (iv) तुलसीदास भगवान राम का भजन करने के लिए कह रहे हैं क्योंकि राम ही सबसे उदार हैं जिनकी आराधना से मोक्ष प्राप्त होता है। तुलसीदास कहते हैं कि मेरा मन जितने प्रकार के भी सुख चाहता है, वे सब राम की कृपा से प्राप्त हो जाएँगे। अत: हे मन! तू राम का भजन कर। राम कृपानिधि हैं। वे हमारी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करेंगे। जैसे राम ने जटायु को और शबरी को परमगति तथा विभीषण को लंका का राज्य प्रदान किया। संदर्भ - 2जाके प्रिय न राम वैदेही। तजिए ताहि कोटि वैरी सम जद्पि परम सनेही॥ तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषण वन्धु, भरत महतारी। बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रज बनितह्नि, भय-मुद मंगलकारी॥ नाते नेह राम के मनियत, सुहुद सुसेव्य जहाँ लौं। अंजन कहा आँख जेहि फूटे, बहु तक कहौं कहाँ लौं॥ तुलसी सो सब भाँति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो। जासों होय सनेह राम-पद ऐतो मतो हमारो॥ प्रश्न (i) तुलसीदास प्रस्तुत पद में किन्हें त्यागने के लिए कह रहे हैं और क्यों ? (ii) 'अंजन कहा आँख जेहि फूटे, बहु तक कहौं कहाँ लौं' - तुलसीदास ने यह कथन किस संदर्भ में कहा है ? (iii) प्रह्लाद और भरत की क्या कथा है ? (iv) 'विनय के पद' के आधार पर तुलसीदास की भक्ति -भावना का परिचय दीजिए। उत्तर (i) तुलसीदास प्रस्तुत पद में भगवान राम और सीता के विरोधियों को त्यागने की बात कर रहे हैं। कवि के अनुसार जिसे सीता और राम प्रिय नहीं हैं वह भले ही अपना कितना प्रिय क्यों न हो, उसे बहुत बड़े दुश्मन के समान मानकर त्याग देना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्तियों के कारण भगवान भक्ति में बाधा उत्पन्न होती है। (ii) तुलसीदास कहते हैं कि ऐसे सुरमे को आँख में लगाने से क्या लाभ जिससे आँख ही फूट जाए। ठीक उसी प्रकार जो व्यक्ति राम और सीता के विरोधी हैं, उन्हें त्यागने में ही भलाई है क्योंकि ऐसे व्यक्तियों की संगत से सीता-राम की भक्ति में बाधा उत्पन्न होती है। (iii) प्रह्लाद हिरण्यकशिपु नामक असुर का पुत्र था। प्रह्लाद विष्णु भक्त था जबकि उसका पिता विष्णु विरोधी। प्रह्लाद को उसके पिता ने विष्णु की भक्ति छुड़ाने के लिए अनेक प्रकार की यातनाएँ दीं किन्तु प्रह्लाद ने उसकी आज्ञा नहीं मानी। होलिका उसकी बुआ थी जिसे न जलने का वरदान प्राप्त थी। वह हिरण्यकशिपु के कहने पर प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई। उसके भाई ने उसे आग लगा दी। होलिका जल गई पर प्रह्लाद जीवित रहा। अंत में भगवान ने नृसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकशिपु का वध किया। भरत की माता का नाम कैकेयी था। उन्होंने अपने पति दशरथ के वचन के अनुसार उनसे दो वरदान माँगे - अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या की राजगद्दी और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास। राम के विरोध के कारण भरत ने माँ कैकेयी का त्याग कर दिया। उन्होंने राजगद्दी का भी बहिष्कार किया। (iv) तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे। उन्होंने विष्णु के अवतार भगवान राम की दास्य-भक्ति की। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध ग्रन्थ 'रामचरितमानस' में विस्तार से राम की महिमा का गुणगान किया है। तुलसीदास ने भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत किया है। राम की कृपादृष्टि होने से मनुष्य भवसागर के कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसे सांसारिक सुखों की भी कमी नहीं रहती। शबरी, जटायु और विभीषण का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत है। विनय के पद के रचयिता कौन थे?" विनय पत्रिका " के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं ।
विनय पत्रिका में कुल कितने पद हैं?विनय-पत्रिका तुलसीदास के 279 स्तोत्र गीतों का संग्रह है जो हिन्दुस्तानी संगीत के 20 रागों में निबद्ध हैं। तुलसी ने विनयपत्रिका में आसावरी, बिलावल, विलास, भैरवी, मलार, मारू, रामकली, ललित, विभास, सारंग, सोरठ, सुहों बिलावल, दंडक, कान्हरा, केदारा, जैतश्री, टोड़ी, नट, वसंत और कल्याण में पदों को निबद्ध किया है।
तुलसी रचित रामचरितमानस और विनयपत्रिका की भाषा क्या है?तुलसी ने विनयपत्रिका तथा कवितावली की रचना-2) ब्रजभाषा में की। रामललानहछू(1582),वैराग्यसंदीपनी(1612),रामाज्ञाप्रश्न(1612),जानकी-मंगल(1582),रामचरितमानस(1574),सतसई,पार्वती-मंगल(1582),गीतावली(1571),विनय-पत्रिका(1582),कृष्ण-गीतावली(1571),बरवै रामायण(1612),दोहावली(1583) और कवितावली(1612)। कवितावली एक प्रबंध रचना है।
विनय पत्रिका का दूसरा नाम क्या है?' संकेत लिखे हुए हैं और अंत में एक श्लोक में रचना का नाम रामगीतावली दिया हुआ है, इसलिए यह निश्चित है कि 'विनय पत्रिका' के इस रूप का नाम 'रामगीतावली' था।
|