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जेम्स प्रथम के शासन काल में मुख्य न्यायाधिपति थे। राजा के विरुद्ध संग्राम में उन्होंने इस बात को सफलतापूर्वक बनाये रखा कि राजा को ईश्वर और विधि के अधीन होना चाहिए, और इस प्रकार उन्होंने कार्यपालिका के विरुद्ध विधि की सर्वोच्चता को स्थापित किया। कोक के इस सिद्धांत को डायसी ने अपनी प्रतिष्ठित पुस्तक The Law and the constitution (विधि और संविधान),
जो 1885 में प्रकाशित हुई, में विकसित किया।1 प्रो. डायसी ने विधि शासन की शास्त्रीय मीमांसा प्रस्तुत किया। 1) अनुज गुप्ता, प्रशासनिक विधि, विधि भारती (लॉ सक्सेस), माग 3) 2) डॉ. कैलाश रॉय, प्रशासनिक विधि, कतिपय सांविधानिक उपबंध अथवा सिद्धांत और प्रशासनिक विधि, द्वितीयसंस्करण 2009, विधि-शासन का अर्थ:-“विधि-शासन” पद का अर्थ है कि सरकार मनुष्यों के सिद्धांतों पर नहीं बल्कि विधि के सिद्धांतों पर आधारित है। एच. डब्ल्यू. आर. वेड ने अपनी पुस्तक Administrative Law में कहा है कि विधि शासन का सिद्वांत सरकार की मनमानी करने की शक्ति के विरुद्ध है। साधारण तौर पर विधि-शासन का अर्थ है कि शासन का प्रत्येक कार्य विधि के अनुसार किया जाए। किन्तु इस अर्थ से कोई लाभ तब तक नहीं है जब तक यह न कहा जाये कि विधि
शासन में सरकार को अत्यधिक शक्ति नहीं होनी चाहिए। विधिक दृष्टिकोण के सम्या भी विधि शासन का अंग है| श्री नगेन्द्र नाथ घोष ने कम्पैरेटिव एडमिनिस्ट्रेटिव लॉ में विधि शासन का विवेचन करते हुए कहा है कि इसके अंतर्गत शासक और प्रजा के बीच राज्य की वरीयता का सिद्धांत नहीं रहता। किसी भी व्यक्ति को अवैध कार्य के लिये क्षमा नहीं किया जा सकता तथा सरकारी कर्मचारी और जनता दोनों ही राज्य के नियमों के अधीन समान रूप से उत्तरदायी होते
हैं|1 ————————————————————————————————————————–
1) विधि शासन (rule of law in hindi) का अर्थ है मनमानी करने की शक्ति के विपरीत सामान्य विधि की पूर्ण सर्वोचता या वरिष्ठता _____________________________________________________________________________________ डायसी के अनुसार विधि शासन का अर्थ :-प्रो0 डायसी ने विधि शासन(rule of law in hindi) की शास्त्रीय मीमांसा प्रस्तुत की और उनका मत विधि जगत में काफी प्रभावशाली रहा। डायसी की विवेचना के अनुसार विधि शासन की संकल्पना में तीन सिद्वांत सन्निहित हैं-
1) विधि की सर्वोच्चता :-डायसी ने इस सिद्वांत को कॉमन विधि का ‘’केन्द्रीय और अति विशिष्ट लक्षण’’ कहा है। विधि शासन से अभिप्रेत है ’’नियमित विधि की आत्यांतिक सर्वोच्चता या प्रधानता जो मनमानी शक्ति के प्रभाव के विरूद्व है और मनमानीपन के, परमाधिकार के या सरकार के भी व्यापक विवेकाधिकार के अस्तित्व का अपवर्जन करता है।‘’ डायसी
का यह विचार था कि जहां कहीं भी विवेकाधिकार है वही मनमानी करने की गुंजाइश रहती है, जो नागरिकों के विधिक स्वातंत्र को असुरक्षा की और ले जाती है।1 _____________________________________________________________________________________ इस प्रकार किसी व्यक्ति को दण्ड का पात्र तभी माना जा सकता है अथवा विधिपूर्वक उसे दंडित तभी किया जा सकता जबकि सामान्य न्यायालय के समक्ष सामान्य विधिक तरीके से यह स्थापित हो चुका है कि उसने किसी विधि का सुस्पष्ट उल्लंघन किया है। यह स्पष्ट करता है कि कोई भी व्यक्ति केवल विधि के उल्लंघन पर ही दंण्ड का पात्र होगा अन्यथा नहीं तथा किसी व्यक्ति को विधि के उल्ंघन के लये दंडित करने के पूर्व सामान्य प्रक्रिया के अनुसरण में अभियोग को सिद्व करना आवश्यक है।1 2) विधि के समक्ष समता:-इसका तात्पर्य यह कि सभी
व्यक्ति विधि के समक्ष समान हैं। डायसी की यह प्रतिपादना थी कि प्रत्येक व्यक्ति एक ही विधि के अधीन है। कोई भी व्यक्ति विधिे के उपर या विधि से परे नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में डायसी ने विधि शासन तथा फ्रांस की ड्रायट एडमिनिस्ट्रेटिव में भेद अभिदर्शित किया। उन्होंने फ्रांस में स्थित ड्रायट एडमिनिस्ट्रेटिव की कटु आलोचना की क्योंकि वहॉ शासन तथा नागरिकों के बीच विबादों के विनिश्चय के लिये पृथक रूप से प्रशासनिक अधिकरणों का उत्क्रम है। उन्होंने यहा तक कह डाला कि उनके देश में प्रशासनिक विधि
की सत्ता ही नहीं है।2 _____________________________________________________________________________________ _____________________________________________________________________________________ 3) विधियॉं मानवीय अधिकारों के परिणमस्वरूप न कि स्त्रोत के रूप में, या विधिक भावना की प्रवलता या न्यायाधीश निर्मित संविधान:-प्रो. डायसी का
यह मानना है कि इंग्लैण्ड में लोगों को जो अधिकार मिले हैं वह अभिसमय, प्रथा या रूढि़ द्वारा दिए गए, तथा इन अधिकारों की रक्षा न्यायापालिका करती है।2 विधियॉं न्यायालयों द्वारा परिभाषित एवं मानवीय अधिकारों के स्त्रोत के रूप में नहीं वरन् परिणाम है इसका अर्थ है मानवीय अधिकार संवैधानिक विधि से परे है और स्वतंत्र है। __________________________________________________________________________________ विधि शासन की परम आदर्श के रूप में अवधारणा-अंतर्राष्ट्रीय विधिवेत्ता आयोग के अनुसार:-विधि शासन की संकल्पना को परम आदर्श के रूप में इंटरनेशनल कमीशन आफ ज्यूरिस्ट ने अपनी 1959 की दिल्ली घोषणा में विस्तृत रूप से प्रतिपादित किया है। विधिवेत्ताओं की इस घोषणा के अंतर्गत विधि शासन को स्वतंत्र समाज के लिये एक आदर्श के रूप में निरूपित किया गया है। इसके अनुसार विधि शासन के तीन तत्व है:-
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विधि-शासन की आधुनिक संकल्पना :-डायसी की विधि शासन की संकल्पना सन् 1885 में भी जब कि उन्होनें इसका प्रतिपादन किया पूर्णतः अंगीकृत नहीं थी क्योंकि इस समय भी प्रशासनिक विधि और प्रशासनिक प्राधिकारी विद्यमान थे। कल्याणकारी राज्य के युग में आज डायसी के विधि शासन के सिद्धांत को पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। डेविस ने एडमिनिस्ट्रेटिव लॉ में विधि शासन का सात प्रमुख अर्थ बताया है-
_____________________________________________________________________________ विधि शासन का उद्देश्य एवं महत्व:-‘विधि शासन’’ का उद्भव
या प्रारंभ सर एडवर्ड कोक ने किया था। उन्होने यह मत व्यक्त किया कि राजा को अवश्य ही ईश्वर और विधि के अधीन होना चाहिए। इसका उद्वभव या प्ररंभ सरकार की निरंकुश शक्ति को अपवर्जित करने तथा सरकार के अवैध कृत्यों से व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया। ______________________________________________________________________ डायसी के मत की आलोचना:-डायसी ने विधि शासन की जो परिभाषा दी है उसकी आलोचना निम्न आधारों पर की जा सकती है-
वास्तव में, विवेकाधिकार और मनमानी करने की शक्ति में भेद करने में डायसी असफल रहे है। मनमानी करने की शक्ति को ‘’विधि-शासन’’ की अवधारणा के विरूद्व माना जा सकता है। परंतु विवेकाधिकार जो कि उचित मार्गदर्शक के साथ प्रदान किया जाता है, विधि शासन की अवधारणा के विरूद्व नहीं माना जाता है। ________________________________________________________________________
_______________________________________________________________________ 2) डायसी के अनुसार विधि का शासन यह अपेक्षा करता है कि प्रत्येक व्यक्ति देश के सामान्य न्यायालय के अधीन हो । प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह गरीब हो अथवा धनवान और उसका पद अथवा स्थिति चाहे जो भी हो, एक ही विधि और देश के एक ही न्यायालय के अधीन होना चाहिए। डायसी ने यह दावा किया कि इंग्लैण्ड में सरकारी सेवकों के विचारण के लिये पृथक विधि अथवा न्यायालय नहीं है। उसने फ्रांस में व्याप्त ड्रायट एडमिनिस्ट्रेटिव की आलोचना की ओर इसका विरोध किया। डायसी का मत था कि प्रशासन से संबंधित विवाद के निपटारा हेतु प्रशासनिक न्यायालयों की स्थापना सरकारी अधिकारियों को संरक्षण प्रदान करने के लिये की गयी है। इसी आधार पर उसने मत व्यक्त किया कि फ्रांस में ‘’ विधि-शासन’’ नहीं है। बाद में उसने स्वंय महसूस किया कि फ्रांस में स्थापित प्रशासनिक न्यायालयों के बारे में उसका मत गलत था। प्रशासनिक अधिकारियों को नियंत्रित करने में प्रशासनिक न्यायालयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इन न्यायालयों ने बवैध प्रशासनिक कृत्यों
के विरूद्ध नागरिकों को तीव्र और प्रभावकारी उपचार प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त इंग्लैण्ड में भी विशिष्ट मामलों को विश्चित करने हेतु विशिष्ट न्यायालयों की स्थापना की गयी है। उदाहरण के लिये मेडिकल पेशा के सदस्यों के दुराचरण के मामलों के विचारण हेतु जनरल मेडिकल कौंसिल की स्थापना की गयी है। सैन्य विधि के विरूद्ध अपराध करने वालों के विचारण हेतु सेना न्यायालय की स्थापना की गयी है। सैन्य विधि के विरूद्ध अपराध करने वालों के विचारण हेतु सेना न्यायालय(कोर्ट मार्शल) की स्थापना की गई है। धर्म संबंधी विधि का
क्रियान्वयन धर्म संबंधी न्यायालय द्वारा किया जाता है। 3) डायसी के अनुसार विधि शासन के लिये आवश्यक है कि सभी व्यक्ति देश की सामान्य विधि के अधीन हो और किसी भी व्यक्ति को (प्रशासनिक प्राधिकारी सहित) विशेष सुविधा न हो। परंतु डायसी की यह धारणा इंग्लैण्ड के संदर्भ में भी ठीक नहीं है। इंग्लैण्ड में भी अनेकों व्यक्तियों को विशेषाधिकार प्राप्त है। उदाहरण के लिये public Authorities 1893 द्वारा अधिकारियों को विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। न्यायालय के समक्ष विदेशी राजनयिकों को विशेष सुविधाएं प्रदान की गयी हैं। ब्रिटिश सम्राट सेवकों की सेवा समाप्त कर सकता है और वह संविदा में उल्लिखित व्यक्त शतों से भी बाध्य नहीं है। इसी प्रकार अन्य विशेष सुविधाएं भी ब्रिटिश सम्राट को प्रदान की गयी । कस्टम कान्सोलिडेशन एक्ट 1866 और इंग्लैण्ड रिवेन्यू एक्ट, 1890 पदीय कर्तव्यों के सम्पादन में किये गये कार्यों के संबंध में आबकारी आफिसरों को संरक्षण प्रदान करता है। अतः विधि शासन का जो अर्थ डायसी ने किया है वह पूर्ण रूप से संतोषजनक नहीं है। 4) डायसी ने विधि शासन का जो तीसरा अर्थ किया है उस अर्थ में संविधान सामान्य सिद्धांत न्यायालय द्वारा उसके समक्ष लाये गये विशिष्ट वादों में प्राईवेट व्यक्तियों के अधिकारों को विनिश्चित करने हेतु दिये गये यों का परिणाम है। यह मत, वास्तव में, ब्रिटिश संविधान के विशिष्ट प्रकृति और लक्षण पर आधारित है। ब्रिटेन का संविधान लिखित नहीं है और इसमें न्यायालयों के निर्णयों द्वारा विकसित सिद्धांत समाविष्टहैं। अत: ब्रिटेन का संविधान न्यायालय के निर्णयो द्वारा विकसित सिद्धांतो का परिणाम है। परंतु यह मत भारत और अमेरिका के संदर्भ में सही नहीं है। उदाहरण के लिये भारत का संविधान लिखित है और इसे न्यायालय के निर्णयो द्वारा विकसित सिद्धांतों का परिणाम नहीं माना जा सकता। भारतीय संविधान में विधि शासन:-भारत में विधि शासन का अर्थ अल्पंत व्यापक है। भारतीय उच्चतम न्यायालय ने श्रीमती इन्दिरा नेहरू गांधी V राजनारण, 1975 S.C. में यह अभिकथित किया है कि विधि शासन संविधान के मूल संरचना का भाग है और इसे संसद विधि बनाकर श्री नष्ट या समाप्त नहीं कर सकती । विधि
शासन के संदर्भ में उच्च्तम न्यायालय ने विभिन्न वादों में निम्नलिखित मत व्यक्त किया है – विधि का शासन भारतीय संविधान में निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। 1 1) संविधान की सर्वोच्चता:-केस :- ए0के0गोपालन V मद्रास राज्य 1950 S.C. ______________________________________________________________________ 2) समता की संवैधानिक अपेक्षा:-भारतीय संविधान के Art.14 में विधि के समक्ष समता को स्वीकार किया गया है। सतीश चन्द्र V भारत संघ के बाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्णीत किया कि Art.14 का तात्पर्य हैकि समान परिस्थितियों में सभी व्यक्तियों और वस्तुओं को उन्मुक्तियों
और दायित्वों के आधार पर समान माना जायेगा। 3) अधिकारों को संवैधानिक संरक्षण :-भारतीय संविधान व्यक्तियों एवं नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान करता है ये अधिकार राज्य या किसी निकाय के द्वारा अपनी शक्ति के दुरूपयोग पर नियंत्रण स्थापित करते हैं। भारतीय संविधान के Art.32 एवं Art.226 के अधीन पीडि़त व्यक्ति उपचार प्राप्त कर सकते हैं। 4) आधिकारिक संरचना का भाग :-विधि शासन संविधान का आधारभूत ढॉंचा है और इसे संशोधन द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता है। 5) मनमानापन का अपवर्जन विवेकाधिकार का नहीं:-भारतीय संविधान में विवेकाधिकार को स्वीकार किया गया किन्तु मनमानेपन को अपवर्जित कर दिया गया हैं। 6) विधिक अपेक्षा का पालन:-विधि शासन के लिये विधिक अपेक्षा का पालन आवश्यक है। 7) औचित्य निर्धारण:-विधि शासन का एक आवश्यक तत्व है कि प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग उचित तरीके से हो। 8) लोकहित का संरक्षण:-विधि शासन में लोकहित संरक्षित होना चाहिए। निष्कर्ष:-लोकतांत्रिक सरकार के लिये विधि-शासन एक आधारभूत अपेक्षा है। विधि शासन को बनाये रखने के लिये स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका अपरिहार्य है। यह धारणा विधि-शासन की संकल्पना में सन्निहित है कि विधि के समक्ष समानता सभी नागरिकों को सुनिश्चित की जाये, और
प्रत्येक नागरिक को राज्य द्वारा शक्ति के मनमाने प्रयोग के विरूद्ध संरक्षण प्रदान किया जाये। यह आर्टिकल Awadesh kumar shukla के द्वारा लिखा गया है जो की LL.M. Ist सेमेस्टर Dr. Harisingh Gour central University,sagar के छात्र है |संविधान में विधि का शासन कहाँ से लिया गया है?भारत में विधि का शासन
भारतीय संविधान में यह शासन अंग्रेजी-अमेरिकी विधान से लिया गया है।
विधि का शासन किस देश का मालिक कौन है?कौन क्या है. विधि शासन का प्रवर्तक कौन है?प्रत्येक प्रश्नांश के लिए केवल एक ही प्रत्युत्तर चुनना है।
इंग्लैंड में विधि का शासन किसकी देन है?भारत की समुद्री विरासत - Join Indian Navy | Government of India.
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