विवाह के लिए कौन सा लग्न शुभ होता है? - vivaah ke lie kaun sa lagn shubh hota hai?

विवाह में मुहूर्त का महत्व चंद्रबल विचार: चंद्र ग्रह वर और कन्या की राशि से तृतीय, षष्ठ, सप्तम, दशम और एकादश शुभ, प्रथम, द्वितीय, पंचम और नवम दान देने से शुभ तथा चतुर्थ, अष्टम और द्वादश अशुभ होता है। विवाह में अंधा लग्न: दिन में तुला और वृश्चिक लग्न, रात्रि में तुला लग्न और मकर लग्न बहरे होते हैं। दिन में सिंह, मेष तथा वृष और रात्रि में कन्या, मिथुन तथा कर्क अंधे लग्न होते हैं। दिन में कुंभ और रात्रि में मीन ये दो लग्न पंगु होते हैं। किसी-किसी आचार्य के मत से धनु लग्न तुला और वृश्चिक अपराह्न में वधिर होते हैं। मिथुन, कर्क और कन्या ये लग्न रात्रि में अंधे होते हैं। सिंह, मेष और वृष लग्न दिन में अंधे होते हैं और मकर, कुंभ तथा मीन ये लग्न प्रातः तथा सायंकाल कुबड़े होते हैं। अंधादि लग्नों का फल: यदि विवाह बहरे लग्न में हो तो वर और वधू दरिद्र होते हैं। दिवांध लग्न में हो तो कन्या विधवा हो जाती है। रात्रांध लग्न में हो तो संतान की मृत्यु और पंगु लग्न में हो तो धन का नाश होता है। विवाह में शुभ लग्न विचार: तुला, मिथुन, कन्या, वृष एवं धनु शुभ तथा अन्य लग्न मध्यम होते हैं। विवाह में लग्न-शुद्धि: लग्न से द्वादश शनि, दशम मंगल, तृतीय शुक्र, लग्न में चंद्र और क्रूर ग्रह अच्छे नहीं होते हैं। लग्नेश शुक्र, चंद्र षष्ठ और अष्टम में अशुभ होते हैं। लग्नेश और सौम्य ग्रह अष्टम में अच्छे नहीं होते हैं और सप्तम स्थान में कोई भी ग्रह शुभ नहीं होता है।

जब सूर्य, चंद्र एवं गुरु इन तीनों महत्वपूर्ण ग्रहों की शुभ गोचर स्थिति को ध्यान में रखते हुए शुद्ध विवाह मुहूर्त दिन का विचार कहते हैं तो इसे त्रिबल-शुद्धि विचार कहा जाता है। वर की जन्म रात्रि से सूर्य व चंद्र का बल तथा कन्या की जन्म राशि से गुरु व चंद्र का बल विशेष रूप से देखा जाता है। सूर्य, चंद्र व गुरु के बलाबल के बिना विवाह-कार्य शुभ नहीं माना जाता। मुनि गर्गाचार्य के अनुसार- स्त्रीणां गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम्। तयोः चंद्रबलं श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम्।। वर की जन्म राशि से विवाह मुहूर्त के समय गोचर में सूर्य भाव 3, 6, 10 या 11 में हो, तो शुभ और भाव 1, 2, 5, 7 या 9 में किंचित् अशुभ एवं पूज्य परंतु यदि 4, 8, या 12 में हो, तो अशुभ एवं त्याज्य होता है। कन्या की जन्म राशि से विवाह मुहूर्त के समय गोचर में गुरु यदि भाव 2, 5, 7, 9 या 11 में हो, तो शुभ और 1, 3, 6 या 10 में हो तो सामान्य पूज्य होता है किंतु यदि 4, 8 या 12 में हो, तो अशुभ होता है। परंतु आजकल क्योंकि कन्याओं का विवाह प्रायः प्रौढ़ायु होने पर ही किया जाता है, अतएव आचार्यों के अनुसार कन्या के लिए भाव 4, 8 या 12 स्थित गुरु निंद्य एवं त्याज्य नहीं बल्कि पूज्य होता है।


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वर तथा कन्या दोनों की राशियों से विवाह मुहूर्त समय की राशि भाव 1, 3, 6, 7, 10 या 11 में चंद्र हो, तो शुभ और 2, 5, 9 या 12 में हो, तो कुछ अशुभ एवं निंद्य होता है। यदि वर और कन्या की राशि से सूर्य, चंद्रादि गोचर ग्रह नीच या शत्रु राशिस्थ हों अथवा किसी शत्रु या अशुभ ग्रह से दृष्ट हों, तो ऐसा मुहूर्त शास्त्रानुसार ग्राह्य होते हुए भी पूज्य विवाह मुहूर्त माना जाएगा। उदाहरण हेतु, मिथुन राशि के वर व कन्या का यदि वैशाख मास में मघा नक्षत्र में विवाह करना अभीष्ट हो, तो त्रिबल शुद्धि चक्र के अनुसार मिथुन राशि को वैशाख में सूर्य के भाव 11 में एवं मेष में उच्चराशिस्थ होने से यह महीना अत्यंत शुभ होगा। मघा नक्षत्र कालीन चंद्र के का स्वामी ग्रह शनि तथा सूर्य और चंद्र की राशि वृश्चिक के स्वामी ग्रह मंगल के शत्रु ग्रह होने से प्राप्त विवाह-मुहूर्त सामान्य एवं मध्यम कोटि का होगा। इसमें मंगल ग्रह की विशेष पूजा व उससे संबंधित ग्रह का दान आदि करना शुभ होगा। विवाह में ग्राह्य शुभ लग्न: मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार विवाह लग्न काल में भाव 3, 6, 8 या 11 में सूर्य तथा इन्हीं स्थानों में राहु, केतु और शनि शुभ होते हैं। भाव 3, 6 या 11 में मंगल, 2, 3 या 11 में चंद्र तथा 3, 6, 7 और 8वें स्थानों को छोड़कर अन्य किसी भी भाव में स्थित शुक्र शुभ होता है।

11वें भाव में सूर्य तथ केंद्र त्रिकोण में गुरु लग्नगत अनेक दोषों का परिहार करते हैं। लग्ने वर्गोŸामे वेन्दौ घूनाथे लाभगेऽथवा। केंद्र कोणे गुरौ दोषा नश्यन्ति सकलाऽपि।। ‘मुहूर्Ÿागणपति’ के अनुसार विवाहादि शुभ कार्य के लग्न में, केंद्र त्रिकोण में गुरु, शुक्र एवं बुध तथा 11वें भाव में चंद्र या तो उस काल को गोधूलि की संज्ञा दी गई है। इसे विवाहादि सब मांगलिक कार्यों में प्रशस्त माना गया है। यह लग्न, मुहूर्त, अष्टम, जामित्रादि दोषों को प्रायः नष्टकर देता है। नो वा योगो न मृतिभवनं नैव जामित्र दोषो। गोधूलिः सा मुनिभिरुदिता सर्व कार्येषु शस्ता।। पति और पत्नी का संबंध बहुत नाजुक एवं संवेदनशील होता है। भारतीय समाज में अब भी जाति, गोत्र, समाज, आदि के आधार पर संबंध स्थिर किए जाते हैं। पति और पत्नी के संबंध को सात जन्मों का संबंध माना जाता है। इसलिए विवाह पूरी तरह सोच-विचार कर करना चाहिए। ऊपर वर्णित तथ्यों पर यदि गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए और सही मुहूर्त में विवाह संपन्न हो तो दाम्पत्य सुखमय हो सकता है। त्रिबल शुद्धि-चक्र त्रिग्रह बल सूर्यबल चंद्रबल गुरुबल शुभ एवं ग्राह्य 3, 6, 10, 11 1, 3, 6, 7, 10, 11, 2, 5, 7, 9, 11 अल्प-शुभ एवं पूज्य 1, 2, 5, 7, 9 2, 5, 9,12 1, 3, 6, 10 निंध एवं त्याज्य 4, 8,12 4, 8 4, 8, 12

विवाह एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसे हिंदू धर्म में सात जन्मो का बंधन कहां जाता है। इसलिए इसे शास्त्रों में पवित्र और मांगलिक कार्यक्रम माना जाता है। हिंदू धर्म में जो भी पवित्र और मांगलिक कार्यक्रम किया जाता है। तो उसके लिए किसी ज्योति विशेषज्ञ से shubh muhurat और शुभ समय देखा जाता है।

क्योंकि हिंदू धर्म में ऐसी मानता है कि किसी भी शुभ कार्य को शुभ समय, शुभ तिथि और शुभ नक्षत्र में किया जाएं। तो उसका फल शुभ प्राप्त होता है।

इसलिए विवाह जैसे बड़े और पवित्र मांगलिक कार्यक्रम को करने के लिए shubh muhurat का देखा जाना बेहद आवश्यक है।

इसलिए वर्ष इसके लिए shubh vivah muhurat का समय सारणी नीचे दिया गया है। इसमें आपको वर्ष के सभी marriage muhurat के बारे में विस्तार से बताया गया है।

विवाह मुहूर्त का चुनाव कैसे करें।

विवाह का मुहूर्त सार्वजनिक तौर पर बताना उचित नहीं होगा। क्योंकि विवाह का एक मुहुर्त प्रत्येक व्यक्ति के लिए शुभ नहीं हो सकता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के विवाह के समय मुहूर्त का चुनाव करते समय बेहद जटिल प्रक्रिया करनी पड़ती है। उसके बाद एक शुभ मुहूर्त का निर्णय लिया जाता है।

इसलिए सार्वजनिक तौर पर उस प्रक्रिया को नहीं किया जा सकता है। और करने के बाद भी कुछ हासिल होने वाला नहीं है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का नक्षत्र और राशि अलग-अलग होता है। इसलिए यहां पर केवल विवाह के तारीख को बतलाया गया है। जिससे आपको विवाह की तारीख के बारे में ज्ञान हो सके।

लेकिन अगर अपने लिए कोई तारीख का निर्णय लेते हैं। तो यह निर्णय केवल ब्राम्हण या ज्योतिषी से ही सलाह लेकर निर्णय लें। अन्यथा वह तारीख आपके लिए शुभ है या अशुभ इसका ज्ञान आपको नहीं हो सकता है।

विवाह मुहूर्त कैसे निकाला जाता है?

विवाह मुहूर्त के लिए सबसे पहले कुंडली से वर और कन्या का गुण मिलान किया जाता है। गुण मिलान सफल होने के बाद जन्म राशि से मुहूर्त का चुनाव किया जाता है। मुहूर्त का चुनाव करने के लिए त्रिबल शुद्धि (सूर्य, चंद्र और गुरु) देखना पड़ता है।

त्रिबल शुद्धि में कन्या के लिए गुरु का बल (शुभ गोचर), व वर के लिए सूर्यबल (शुभ गोचर) और दोनों के लिए चंद्र बल देखा जाता है।

जब त्रिबल शुद्धि जिस तिथि, वार, नक्षत्र और समय के मिलने पर हो जाता है। उसी दिन विवाह का समय रखा जाता है। अर्थात वही विवाह का मुहूर्त कहलाता है।

विवाह कौन से लग्न में करना चाहिए?

विवाह के लिए तुला, मिथुन, कन्या, वृषभ और धनु लग्न अत्यधिक शुभ है। बाकी अन्य लग्न मध्यम माना गया है।

विवाह में अन्धादि लग्न और उसका फल

विवाह के समय लग्न विचार करते समय अन्धादि लग्न पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योंकि यह अति आवश्यक है। यहां पर हम सबसे पहले जानेंगे की अन्धादि लग्न कब होते हैं।

अन्धादि लग्न – दिन में तुला और वृश्चिक, रात्रि में धनु और मकर बधिर हैं। दिन में मेष, वृषभ, सिंह और रात्रि में मिथुन, कर्क, कन्या अंधे संज्ञा लग्न है। दिन में कुंभ और रात्रि में मीन लग्न पंगु है।

कुछ ज्योतिष आचार्यों के मत के अनुसार तुला, वृश्चिक, धनु यह दोपहर बाद के समय में बधिर हैं। मिथुन, कर्क, कन्या यह लग्न रात्रि में अंधे हैं। मेष, वृष, सिंह यह लग्न दिन में अंधे हैं। मकर, कुंभ, मीन यह लग्न प्रातः काल और सायं काल में पंगु (कुबडे) हैं। लेकिन यह मत विशेषतया ऋषिसम्मत नहीं है।

अन्धादि लग्न का फल – यहां पर अन्धादि लग्न का फल दिया जा रहा है। की किस अन्धादि लग्न में क्या फल होता है। इसलिए इसको ध्यान से पढ़ें।

बधिर लग्न – अगर विवाह बधिर लग्न में हो तो वर-कन्या दरिद्र होते हैं।
दिन के अंधे लग्न – दिन के अंधे लग्न में विवाह हो तो कन्या विधवा होती हैं।
रात्रि के अंधे लग्न – रात्रि के अंधे लग्न में विवाह हो तो संतान की मृत्यु होती है।
पंगु लग्न – अगर पंगुल लग्न में विवाह हुआ तो धन नाश होता है।

विवाह के कितने नक्षत्र होते हैं?

विवाह करने के लिए सबसे उत्तम नक्षत्र मूल, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती, हस्त, तीनों उत्तरा, स्वाति, मघा और रोहणी नक्षत्र शुभ होता है।

विवाह करने के लिए शुभ माह कौन से हैं?

विवाह करने के लिए सबसे शुभ माह ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष और आषाढ़ को माना गया है। इन माह में विवाह करना अत्यंत शुभ होता है।

विवाह कौन से लग्न में करना चाहिए?

7. विवाह लग्न अंध, बधिर या पंगु नहीं होना चाहिए। मेष, वृषभ, सिंह, दिन में अंध, मिथुन, कर्क, कन्या रात्रि में अंध, तुला, वृश्चिक दिन में बधिर, धनु, मकर रात्रि में बधिर, कुंभ दिन में पंगु, मीन रात्रि में पंगु लग्न होती हैं किंतु ये लग्न अपने स्वामियों या गुरु से दृष्ट हों तो ग्राह्य हो जाती हैं।

विवाह के लिए कौन सी तिथि शुभ है?

हिन्दी पंचांग के अनुसार साल 2023 में विवाह के कुल 59 शुभ मुहूर्त हैं। इनमें जनवरी में 9, फरवरी में 13, मई में 14, जून में 11, नवंबर में 5 और दिसंबर में 7 विवाह मुहूर्त हैं। मार्च 2023 में होलाष्टक और अप्रैल में धनु मास लगने से कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होंगे।

शुभ लग्न क्या है?

Shubh Lagan for Marriage: देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए निद्रा योग में चले जाते हैं. जिसके बाद से सभी शुभ और मांगलिक कार्य बंद हो जाते है, जबकि देवउठनी एकादशी के बाद फिर मांगलिक कार्य, गृह प्रवेश और शादी की शहनाईयां बजनी शरू हो जाती है.

शादी का सावा कैसे निकाले?

कुंडली में जो 7वां घर होता है, वह विवाह के विषय में बताता है। वर अथवा कन्या का जन्म जिस चंद्र नक्षत्र में होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने में प्रयोग किया जाता है। वर-कन्या की राशियों में विवाह के लिए एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिए लिया जाता है।